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प्लाज्मिड क्या है इसके प्रकार लिखिए , plasmids in hindi , types , प्लाज्मिड के प्रमुख लक्षण (Main characters of plasmid)

पढो प्लाज्मिड क्या है इसके प्रकार लिखिए , plasmids in hindi , types , प्लाज्मिड के प्रमुख लक्षण (Main characters of plasmid) ?

जीन स्थानान्तरण हेतु वाहक (Vectors For Gene Transfer)

वाहक वे DNA अणु होते हैं जो इसके साथ निवेशित (incorporated) बाह्य DNA (foreign DNA) को एक जीव से दूसरे जीव तक ले जाने का कार्य करते हैं। इन्हें वाहक अथवा व्हीकल (vehicle) DNAs भी कहते हैं। वाहक से हमारा आशय उस काय से होता है जो दाता व ग्राही के मध्य आनुवंशिक सूचना या पदार्थ (DNA) को ले जाता है। इस क्रिया के लिये जीवाण्विक प्लैज्मिड्स (plasmids), बैक्टिरिओफेज (bacteriophage), कॉसमिड्स (comids) एवं विषाणु (virus) का उपयोग करते हैं। भिन्न-भिन्न दाता व ग्राही हेतु प्रकृति के अनुरूप भिन्न प्रकार के वाहक का चयन किया जाता है। प्रकृति एवं स्त्रोत के आधार पर वाहक निम्नलिखित प्रकार के हो सकते हैं-

  1. प्लाज्मिड (Plasmid)
  2. बैक्टीरियोफेज (Bacteriophage)
  3. कास्मिड (Cosmid)
  4. फेज्मिड (Phasmid)
  5. विषाणु (Viruses)

1970 में वैज्ञानिकों ने पहली बार शब्द वाहक (vector) का प्रयोग उस कारक हेतु किया जो डीएनए से संलग्न या क्लोनिंग (cloning) हेतु वाहक का कार्य करता है। वाहक में अपनी स्वयं की कोशिका से मुक्त अवस्था में भी प्रकृतिकृति बनाने की क्षमता पायी जाती है अर्थात् ये रेप्लिकेशन क्रिया हेतु स्वतंत्र होते हैं, इन्हें रेप्लिकॉन्स (replicons) भी कहते हैं। वाहक पुनर्योगज डीएनए निर्माण में मुख्य भूमिका रखते हैं। ये वास्तव में डी एन ए के अंश या cDNA के खण्ड ही होते हैं। जिन्हें औजार के रूप में उपयोग किया जाता है। ये विशिष्ट जीन भी हो सकते हैं जो जीनोम से पृथक किये गये हों या mRNA, CDNA आधार पर संश्लेषित किये गये हो। इनमें संलग्न होने एवं प्रतिकृतिकरण की क्षमता होना आवश्यक है। कभी-कभी वाहकों की प्रकृति में परिवर्तन किया जाता है ताकि बिना किसी अवरोध के अपनी क्रिया जारी रख रखें। इनमें विशिष्ट स्थल पर DNA खण्ड जोड़कर भी ऐसा किया जाता है। इस क्रिया में जिन एन्जाइम का उपयोग करते हैं, उन्हें बहुयोजी (polylinker) का नाम दिया जाता है। अधिकतर डी एन ए में स्वतंत्र रूप से प्रतिकृतिकरण की क्षमता नहीं पायी जाती अतः यदि ऐसे डी एन ए को, डी एन ए के ऐसे खण्ड से जोड़ दिया जाये (प्लाज्मिड) जिसमें स्वायत्त तौर पर (autonomously) प्रतिकृतिकरण की क्षमता रखता हो तो स्वतंत्र रूप से डी एन ए के प्रतिकृतिकरण की क्षमता नहीं रखने वाले DNA भी प्रतिकृतिकरण की क्रिया करने लगते हैं।

प्लाज्मिड्स (Plasmids)

अनेक जीवाणु कोशिकाओं में गुणसूत्र के अतिरिक्त प्लाज्मिड नामक संरचनायें आनुवंशिक पदार्थ के रूप में पायी जाती हैं। ये वृत्ताकार, दो लड़ों से बने DNA अणु के रूप में पाये जाते हैं। इनमें प्रतिकृति बनाने का गुण पाया जाता है। ये स्वतः बिना किसी अन्य नियंत्रण के प्रतिकृति बनाते हैं। इनमें उपस्थित जीन्स धारक कोशिका की वृद्धि हेतु आवश्यक नहीं होती है। यह इस प्रकार जीवाण्विक गुणसूत्र से भिन्न होते हैं।

प्लाज्मिड अनेक जीवाणु कोशिकाओं में 1-20 तक उपस्थित हो सकती हैं। इन्हें एपीसोम्स (episomes) भी कहते हैं। ये कभी-कभी जीवाणिक गुणसूत्र के साथ जुड़ भी सकते हैं। प्लाज्मिड्स का स्थानान्तरण एक कोशिका से दूसरी जीवाण्विक कोशिका में संयुग्मन (conjugation) के दौरान होता है। इस प्रकार दात्री कोशिकाओं (recipient cell) में लक्षणप्ररूप लक्षणों (phenotypic characters) का स्थानान्तरण होता है। सूक्ष्मजीव जगत् में प्लाज्मिड एवं जीव से जीन्स लेकर दूसरे जीव में जीन्स का संचरण करते हुए पाये जाते हैं।

प्लाज्मिड के प्रमुख लक्षण (Main characters of plasmid)

  1. ये बाह्य गुणसूत्री (extra chromosomal) काय होते हैं।
  2. जिस कोशिका में ये रहते हैं उसके बाहर इनका अस्तित्व समाप्त हो जाता है।
  3. जिस कोशिका में प्लाज्मिड पाये जाते हैं, स्वतंत्र रूप से पुनरावृत्ति करते हैं किन्तु पोषक कोशिका में दो भिन्न प्रकार के प्लाज्मिड पुनरावृति करने में अक्षम होते हैं।
  4. जिस कोशिका में यह रहते हैं, के जनन करने पर ये सामान्य तौर पर वंशागत होते हैं।
  5. जिस कोशिका में ये पाये जाते हैं, उसके लक्षण प्ररूप को ये प्रभावित करते हैं।
  6. कुछ प्लाज्मिड जन्तु व पादप कोशिकाओं में रोग उत्पन्न करते हैं जबकि कुछ प्लाज्मिड पोषक कोशिका में प्रतिजैविकों, आविषों तथा पराबैंगनी किरणों के प्रति प्रतिरोधकता प्रदर्शित करते हैं। जीवाणुओं में संयुग्मन हेतु F कारक पाया जाता है।
  7. प्लाज्मिड्स में नई जीनों का समावेश हो सकता है तथा पूर्व में उपस्थित जीन्स का पुनर्विन्यास भी संभव होता है।
  8. प्लाज्मिड्स · अनेक आमाप के पाये जाते हैं। संचरणशील (transmissible) प्लाज्मिड लघु आमाप के किन्तु संख्या में अधिक, जबकि बड़े प्लाज्मिड्स जैसे कारक संख्या में कम (1-2) होते हैं।
  9. प्लाज्मिड बन्द प्रकार के वृत्ताकार एवं द्विसूत्रीय डी एन ए अणु होते हैं।
  10. यदि बन्द एवं वृत्ताकार प्रकार के प्लाज्मिड को किसी एक स्थल से काट दिया जाये तो यह रेखीय प्रकृति के डी एन ए अणु जैसी ही संरचना प्रदर्शित करता है।

वृत्ताकार प्लाज्मिड या DNA को एक स्थल पर काट देने से यह रेखीय प्रकृति का बन जाता है। इसके दोनों सिरों पर बाह्य डी एन ए (foreign DNA) को जोड़ा जा सकता है। यह प्रतिकृति बनाने के दौरान अपनी एवं बाह्य डी एन ए की प्रतिकृति भी बनाता है, इसे संकरित डी एन ए hybrid DNA) या काइमेरिक (chimeric) अंश कहते हैं। यह अंश जीवाणु के डी एन ए के साथ भी जोड़ा जा सकता है। ग्रैम अवर्णी जीवाणुओं में ऐसे प्लाज्मिड पाये जाते हैं जो अनेक पोषकों में व पोषण कर सकते हैं। अतः जीन क्लोनिंग हेतु अत्यन्त उपयोगी होते हैं।

जीवाणुओं में प्राकृतिक रूप में पाये जाने वाले प्लाज्मिड्स को बाह्यकोशिकीय तकनीकों द्वारा रूपान्तरित किया जाना संभव है।

कोहन एवं साथियों (Cohen et al, 1973) ने पहली बार क्लोनिंग हेतु प्लाज्मिड का वाहक के रूप में प्रयोग किया। वह प्लाज्मिड आदर्श प्रकार का माना जाता है जिसमें निम्नलिखित गुण पाये जाते हैं-

(i) यह आसानी से जीवाण्विक कोशिका से पृथक किया जा सकता है।

(ii) यह आमाप में छोटा हो एवं पुनयोर्जित अणु में इसका स्वयं का परिमाण लघुत्तम हो ।

(iii) इनमें एक ही प्रतिबन्धित स्थल ( restriction site) उपस्थित हो जिस पर एक या अधिक प्रतिबन्धित एंजाइम क्रिया करते हों।

(iv) इसमें बाह्य DNA के रेखीय अणु के जुड़ जाने पर इसकी प्रतिकृतिकरण (replication) की क्षमता पर विपरीत असर न होता हो ।

(v) यह आसानी से इच्छित पोषक कोशिका में प्रवेशित योग्य हो एवं पुनर्योगज डी एन ए अणु निर्माण के उपरान्त इनकी असंख्य में वृद्धि संभव हो।

(vi) पुनर्योगज डी एन ए की संख्या प्रतिकृतियों की उपलब्धता संभाव हो ।

(vii) यह आसानी से जीवाणु कोशिकाओं में प्रवेशित कराया जा सकता हो प्जाज्मिड रहित व प्लाज्मिड युक्त कोशिकाओं का चयन करना आसान हो।

(viii) प्लाज्मिड में कोई ऐसा विशिष्ट लक्षण होना चाहिए जिसकी चिन्हित किया जा सके एवं

बाह्य डी एन ए से संलग्न होने के उपरान्त इसे सक्रियित किया जा सके। इस सक्रियत लक्षण के आधार पर यह आसानी से पहचाना जा सकता है कि कौनसी पोषक कोशिका में पुनर्योगज डी एन ए नहीं है।

प्लाज्मिड्स में अबुद्धकारी प्लाज्मिड (tumour inducing) तथा रोमिल मूल अबुर्द्ध (hairy root tumours) प्रेरित करने वाले प्लाज्मिड्स काफी महत्त्वपूर्ण हैं। इनके अतिरिक्त इनके अनेक पोषण गुण जैसे प्रतिजैविक एवं भारी धातुओं के प्रति प्रतिरोधकता, नाइट्रोजन स्थिरीकरण, प्रदूषक निम्नीकारक, जीवाणुनाशक एवं आविष उत्पन्न करने के गुण भी अत्यन्त महत्त्व के हैं। स्टेफिलोकोकस ऑरियस (Staplylococcus aureus) प्रभेद के प्लाज्मिड बड़े परास (broad host range) रखते हैं।

एग्रोबैक्टिरियम ट्यूमेफेसिएन्स (Agrobacterium tumefaciens) नामक जीवाणु में T प्लाज्मिड पाया जाता है, यह ग्रैम अवर्णी किस्म का शलाखा रूपी चल प्रकार का जीवाणु है जो मृदा में रहता हैं तथा नग्नबीजी (gymnosperm) द्विबीजपत्री पौधों की जड़ों में घाव या कट (cut) के बनने से प्रवेश करता है। इसका प्लाज्मिड पादप कोशिका के DNA के साथ जुड़कर नवीन संयोग बना लेता है, इस कारण पोषक कोशिका की क्रियाएँ मुख्य दिशा में दिशा से विमुख हो जाती हैं तथा एक गाँठ या अबुर्द्ध (crown gall or tumour) इस निवेशित स्थल पर अविभेद (undifferentiated) रूप से बनती है। T, प्लाज्मिड के डी एन ए को T-DNA स्थानान्तरित डी एन ए (transferred DNA) कहते हैं।

T, प्लाज्मिड का T-DNA आदर्श वाहक तो है किन्तु इसके DNA में हेरफेर (manipulation). करना कठिन है, इसमें अनेक रेस्ट्रिक्शन स्थल (restriction sites) तो हैं किन्तु इनका उपयोग आसानी के साथ करना कठिन है । किन्तु T प्लाज्मिड का T-DNA यूकैरियोट्स की प्रकृति का हो है जबकि यह जीवाणु प्लैज्मिड से प्राप्त होता है, यह पादप RNA पॉलिमरेज से अनुलेखित हो जाता है, इसमें इन्ट्रान्स (introns) होते हैं जो m-RNA के परिवर्तन होने पर अलग-अलग हो जाते हैं। अतः इन दो गुणों की उपस्थिति के कारण इन्हें आदर्श वाहक कहते हैं।

ऐग्रोबैक्टिरियम की पोषक परास

(range) काफी अधिक है, यह अनेक द्विबीजपत्री पौधों में आसानी से निवेशित किया जा सकता है, इसका T-DNA काफी बड़ा होता है अत: इसे काट कर इसमें हेराफेरी करके उचित पोषक में निवेशित करा देते हैं। इस प्रकार अबुर्द्ध के स्थान पर इच्छित उत्तक या इनसे उत्पादित प्रोटीन, एंजाइम आदि प्राप्त किये जाते हैं। उपयोग में लेने से पूर्व प्लाज्मिड का पूरा मानचित्र (map) बनाकर अध्ययन किया जाता है, इस पर कितने जीन कितनी – किनती दूरी पर हैं इसकी

न्यूक्लिओटाइड श्रृंखला अनुक्रम किस प्रकार की है, कौनसा स्थल प्रतिबन्धित एंजाइम की क्रिया हेतु उपयोगी है आदि।

सामान्यतया उपयोग में लाये जाने वाहक प्लाज्मिड p BR 332 है। ये स्वायत्तशासी तंत्र होते हैं। जिनको जीनोम कोशिका की बाह्यकायिक इकाई में होते हैं। ये सामान्यतः वृत्ताकार, द्वितंत्रीय डीएनए अणु है जिनकी अनेक संख्या में कॉपी कोशिका के भीतर, अंगकों में उपस्थित होती है। ये एक से अधिक संख्या में प्राप्त किये जा सकते हैं। इनकी प्रतिकृति बनाने हेतु इन्हें खोल कर प्रतिकृति बनाने हेतु क्लोनित किये जाने वाला डी एन ए खण्ड जोड़ कर (बाह्य) पुनः वृत्ताकार आकृति के रूप में जोड़ दिया जाता है। इसी श्रेणी में pBR 327 वाहक PUC वाहक, यीस्ट, प्लाज्मिड वाहकों की अनेक श्रृंखलाएँ ज्ञात हैं। चित्र 18.2। इस प्रकार के प्लाज्मिड के क्लोरम्पैनीकाल से उपचारित करने पर अनेक कापी प्राप्त की जा सकती हैं जबकि पोषक ई. कोलाई कोशिका का प्रतिकृतिकरण बन्द हो जाता है किन्तु प्लाज्मिड डी एन ए प्रतिकृतिकरण करता रहता है। इसमें एम्पिसिलीन एवं ट्रेटासाइक्लिन के प्रति प्रतिरोधकता पायी जाती है। यह एक प्रकार से प्लाज्मिड युक्त क्लोन्स के चुनाव हेतु चिन्हक (marker) का कार्य करता है। इनमें DNA खण्डों को उपयुक्त स्थलों पर स्थापित किये जाने हेतु वाहक में अनेकों रेस्ट्रिक्शन एन्जाइम्स (restriction enzymes) पाये जाते हैं यदि इन्हें इनकी पोषक कोशिकाओं में एम्पिसिलीन व टेट्रासाइक्लिन युक्त पोषण माध्यम में संवर्धित कराया जाता है तो केवल वे ही जीवाण्विक कोशिकाएँ वृद्धि करेगीं जिनमें प्लाज्मिड उपस्थित होंगे। अतः यह प्रमाणित हो जाता है कि DNA को रोपित किये जाने हेतु इस कोशिका के प्लाज्मिड में स्पष्ट चिन्हक (marker) उपस्थित है।