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Categories: Biology

Pituitary gland or hypophysis in hindi , पीयूष ग्रन्थि या हाइपोफाइसिस किसे कहते हैं , पीयूष ग्रंथि की संरचना

जानों Pituitary gland or hypophysis in hindi , पीयूष ग्रन्थि या हाइपोफाइसिस किसे कहते हैं , पीयूष ग्रंथि की संरचना ?

पीयूष ग्रन्थि या हाइपोफाइसिस (Pituitary gland or hypophysis)

पीयूष ग्रन्थि, पीयूषिका, हाइपोफासिस एवं हापोफइसिस सेरब्राई (hypohysis cerebri) सभी नामों से यह ग्रन्थि जानी जाती है। सभी उच्च कशेरुकी जंतुओं से यह आवश्यक रूप से पायी जाने वाली मुख्य ग्रन्थि है। एक ओर यह मस्तिष्क से परोक्ष रूप से जुड़ी रहती हैं तथा दूसरी ओर यह अनेकों अन्तःस्रावी ग्रन्थियों एवं अंग तंत्रों पर नियंत्रण या प्रभाव रखती हैं। अतः यह मस्तिष्क एवं अन्तःस्रावी तंत्र के मध्य मुख्य कड़ी (link) होती है जो देह में क्रियात्मक फलकलन (functional Integration) की स्थिति को यथावत् बनाने रखती है। इसकी स्थिति एवं क्रियात्मक अवस्थ देखकर ही विसेल्यिस (Vesalius) ने इसे मास्टर ग्लेण्ड (Master gland) व “आकेस्ट्रा का लीडर” (Leader of Orchestra) आदि उपनाम दिये गये थे। पिछले कुछ वर्षों में किये गये अनुसंधान कार्यों के परिणामों से ज्ञात हुआ है कि यह पीयूष ग्रन्थि व देह की अन्य ग्रन्थियाँ मस्तिष्क के हापोथैलेमस (hypothalamus) भाग द्वारा नियंत्रित की जाती है, अतः अब इन उपनामों का प्रयोग नहीं किया जाता। गलन (Gelen) ने इस ग्रन्थि को नासा स्रवण ( nasal secretion) करने वाला एक अंग मानकर इसे पिट्यूटरी नाम दिया जिसका आय फेलगम (phlegm = एक अधतरल, श्वसन नाल में उपस्थित पदार्थ) से था ।

चित्र 8.6 – मानव देह में उपस्थित अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ

पीयूष ग्रन्थि का परिवर्धन (Development of pituitary gland)

पीयूष ग्रन्थि का विकास एक्टोडर्म से होता है किन्तु इसका परिवर्धन दो भिन्न-भिन्न क्षेत्रों से होता है। पीयूषिका के न्यूरोहाइपोफॉइसिस (neurohypophysis) नामक उद्वर्ध (outgrowth) के नीचे की ओर वृद्धि करने से होता है। पीयूषिका के एडीनोहाइपोफाइसिस (adenohypophysis) भाग का निर्माण भ्रूण की ग्रसनी (pharynx) के पृष्ठ भाग से विकसित रेथ्थक की धानि (Rathkes का विकास को रेथ्थक की धानि के इन्फन्डीबलम के सम्पर्क में आने से भिन्नित होने के कारण pouch) के ऊपर को बढ़ने से होता है। मध्यपिण्ड या पार्स इन्टरमिडिया (pars intermedia) भाग होता है। इस धानि को शेष भाग पार्स डिस्टेलिस (pars distalis) में बदल जाता है। भ्रूणीय पार्स डिस्टेलिस के संयोजन से पार्स ट्यूबेरेलिस (pars tuberalis) बनता है, धानि की गुहा हाइपाफाइसिस की अवशिष्ट अवकाशिका (residual lumen) बन जाती है।

चित्र 8.7 पीयूष ग्रन्थि की परिवर्धन

रक्त सम्भरण (Blood supply ) आन्तरिक ग्रीवा धमनी (internal carotid artery) से पश्च पीयूषिका धमनी एवं अग्र पीयूषिका धमनी निकलकर पीयूष ग्रन्थि को रक्त सम्भण करती है। पश्च पीयूषिका धमनी पार्स नर्वोसा (pars nervosa) भाग को रक्त का सम्भरण करती है। कुछ अग्र पीयूषिका धमनियाँ पार्स डिस्टोलिस (pars distalis) भाग को एवं कुछ धमनियाँ हाइपोथैलेमस भाग को रक्त का सम्भरण करती है। हाइपोथैलेमस की शिराकाओं (venules) में से रक्त पार्स डिस्टेलिस के रक्त पात्रों (sinusoids) में आकर हाइपोफाइसिलय निर्वाहिका तंत्र (hypophyseal portal system) बनाता है।

स्थिति (Position) — यह ग्रन्थि मस्तिष्क की निचली सतह पर उपस्थित रहती है। मस्तिष्क के डायनसिफेलॉन भाग की अधर से एक छोटे वृन्त द्वारा करोटि (skull) की स्फीनॉइड (sphenoid) अस्थि की सेला अर्सिला (sella turcica) नामक खाँच में लटकी रहती है। इस ग्रन्थि पर ड्यूरोमटर का आवरण रहता है तथा इसी झिल्ली से निर्मित पट या शैफ ( shelf) समान वलन डायफ्रेमा सैल्ली (diaphragma sellae) बनता है।

संरचना (Structure ) — सभी कशेरुकी जंतुओं में पीयूषिका विभिनन स्वरूपों में पायी जाती है। प्रोटोकॉर्डेट्स के अनुसार किशोर एम्फिऑक्सवस में उपस्थित पूर्वमुखीय खाँच (pre oral pit) पीयूषिका का समजात अंग हैं, वयस्क जन्तु में यह “मूलर के अंग” (Muller’s organ) के रूप में उपस्थित होती साइक्लोस्टोमेटा जन्तुओं में यह सरल अंग के रूप में पायी जाती है। इनमें रेथ्थक. भेजे की गुहा बड़ी होती है, तथा यह मुख गुहा से जुड़ी रहती है। इसकी इन्फडीबुलर गुहा चौड़ी रहती है। उच्च कशेरूकी जंतुओं में हाइपोफोइसियल खाँच सकरी या अनुपिस्थत होती है। इलेक्मोब्रेक मछलियों में अग्र पिण्ड अन्य भागों के पीछे स्थित होता है, इसी प्रकार की संरचना एन्यूरा एम्फीबिया जंतुओं में पायी जाती है। पक्षियों एवं कुछ स्तनि समुद्री गायों एव व्हेल मछलियों में मध्य पिण्ड (intermediate lobe) अनुपस्थित होता है। मनुष्य में इसका विस्तृत अध्ययन किया गया है, इनमें यह मक्का या मटर के दाने की आकृति की सर्वाधिक सुरक्षित ग्रन्थि के रूप में उपस्थित रहती है। इसका भर पुरुषों 0.5-0.6 ग्राम तथा महिलाओं में 0.6-0.7 ग्राम के लगभग होता है। यह 10m.m (आगे से पीछे ) x 6mm (पश्च अधर) x 13m.m (पार्श्वतः) आमाप की ग्रन्थि होती है। आकारित तौर परयह कए संयुक्त ग्रन्थि (compound gland) है जो 3 भागों से मिलकर बनी होती है जो दो भ्रूणीय आद्य (embryonic primordia) से प्राप्त होते हैं।

पीयूष ग्रन्थि 3 पिण्ड (lobes) होते हैं। अग्रपिण्ड ( anterior lobe), मध्य पिण्ड (intermediate lobe) पार्स इन्टर मीडिया (pars intermedia) तथा पश्च पिण्ड (posterior lobe)। अग्र पिण्ड एवं मध्य पिण्ड को संयुक्त रूप से एडोनोहाइपोफाइसिस (adelohypophysis) कहते हैं। इस प्रकार पश्य पिण्ड को न्यूरोहाइपोफाइससि (neurohypophysis) के नाम से जाना जाता है।

चित्र 8.8 – पीयूष ग्रन्थि की संरचना

  1. एडीनोहाइपोफाइसिस (Adenohy pophysis ) — इस भाग को पश्च पालि या पश्च पिण्ड भी कहते हैं। तो यह अपेक्षाकृत छोटा, ठोस, श्वेत रंग का भाग है जो इन्फण्डीबुलर वृन्त द्वारा मस्तिष्क के अधर तल से संलग्न रहता है। इसके हाइपोथेलेमस स्थित सिरे पर तंत्रिका स्रावी d if id k a(neuro secretory cells) एवं इस भाग में एक्सॉन व इनके अन्तिम छोर पर फूली हुई घुण्डियाँ स्थित रहती है जिन्हें हैरिंग काय (Harring-bodies) कहते हैं। हैरिंग काय के बीच-बीच में बड़ी शाखान्वित वर्ण कित न्यूरोग्लीयल कोशिकाएँ (neuroglial cells) वे पिट्यूसाइट्स (pituicytes) स्थित होती है। यह भाग तंत्रिकीय बाह्य चर्म (neural cetoderm) से विकसित होता है।

वैज्ञानिकों की मान्यता है कि यह भाग अन्तःस्रावी नहीं है क्योंकि इस भाग के द्वारा हारमोनों का संश्लेषण नहीं किया जाता है वरन् यह हाइपोथैलमस द्वारा स्रावित न्यूरोहारमोन्स (Neurohormones) का संच (store) एवं इन्हें पुनः मुक्त (release) करने का कार्य करता है। अत: इसे न्यूरोहीमल (neuroheamal) अंग माना जाता है।

यह भाग भी तीन भागों का बना होता है-

  1. मीडियन एमीनेन्स (Median eminence ) — यह भाग ट्यूबर साइनेरम (tuber cinereum) के नाम से भी जाना जाता है।
  2. इन्फण्डीबुलम या वृन्त (Infundibulum of Stalk) पीयूषिका को मस्तिष्क सं संलग्न रखता है।
  3. पार्स नर्वोसा (Pars nervosa ) – यह पश्च पालि का मुख्य भाग बनाता है।

न्यूरोहाइपोफाइसिस में इन्फाडिबुलर सिसे (infundibular recess) नामक गुहा पायी जाती है जो डायन सिफेलान में स्थित गुहा से जुड़ी रहती है।

पीयूष ग्रन्थि का हाइपोथेलमस से संबंध ( Pituitary hpothalamus relationship)

पीयूषिका का पश्च पिण्ड मस्तिष्क से विकसित एवं इन्फण्डीबुलम द्वारा संलग्न भाग होता है। यह भाग तंत्रिका तंतुओं, तंत्रिका कोशिकाओं के एक्सॉन आदि से बना रहता है, किन्तु इनका कोशिकीय भाग हाइपोथैलेमस के प्रीऑप्टिक या सुप्राऑप्टिक (pre optic or supraoptic) एवं पेरावेन्ट्रीकुलर नाभिकाओं (paraventricular nuclei) में स्थित ( located) होता है। हाइपोथैलेमस से उद्गमित ये तंतु हाइपोथैलेमिक हाइपोफाइसियल प्रदेश (hypothalamic hypophyseal tract) बनाते हैं और पश्च पिण्ड की रक्त केशिकाओं तक व्यवस्थित होते हैं।

सभी चतुष्पादीय जंतुओं (tetrapods) में यह पाया जाता है कि पीयूष ग्रन्थि का एडीनोहाइपोफाइसिस भाग भी हाइपोफाइसियल निर्वाहिका तंत्र (hypophyseal portal system) द्वारा हाइपोथैलेमिक नाभिकों (hypothalamic nuclei) से लायी गई रसायनिक सूचनाओं से प्राप्त करता है । पश्च पिण्ड (nrurohypohysis) में तो हाइपोथैलमस मे स्थित तंत्रिका स्रावी कोशिकाओं (neurosevretory cells) द्वारा स्रावित पदार्थ ही एक्सॉन द्वारा लाये एवं संग्रहित किये जाते हैं। अतः वैज्ञानिकों की धारणा है कि हाइपोथैलेमस द्वारा पीयूष ग्रन्थि को कुछ जैव-रासायनिक (bio chemical) सूचनाऐं अवश्य प्राप्त होती है जो इस ग्रन्थि के कार्य एवं स्रावित किये जाने वाले हारमोन्स पर अपना नियंत्रण रखती है। इन्हें हाइपोथैलेमिक नियंत्रणकारी कारक है।

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