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पाइला या सेवाभ घोंघा (Pila or apple snail in hindi) पिला क्या है , पाइला का तंत्रिका तंत्र , पाचन , लक्षण
(Pila or apple snail in hindi) पाइला या सेवाभ घोंघा , पिला क्या है , पाइला का तंत्रिका तंत्र , पाचन , लक्षण : –
वर्गीकरण
संघ – मोलस्का
वर्ग – गैस्ट्रोपोडा
उपवर्ग – प्रोसोब्रैंकिया
गण – मेसोगैस्ट्रोपोडा
वंश – पाइला
जाति – ग्लोबोसा
स्वभाव और आवास : इसे इसके आकार के कारण सेभाव घोंघा भी कहते है। यह प्राय: तालाबों , झीलों , दलदलों और धान के खेतो में पाया जाता है। यह उन तालाबों में अधिक मिलता है , जिसमे वैलिस्नेरिया और पिस्टिया जलीय पौधे मिलते है।
यह उभयचरी जन्तु है और जाड़ो में शीत निष्क्रियतादर्शाता है। इसके शरीर में फुफ्फुसीय कोष स्थल पर वायवीय श्वसन के लिए और क्लोम (गिल्स) या कंकत क्लोम जलीय श्वसन के लिए होते है।
पाइला में आंतरिक कंकाल का अभाव होता है। ये जन्तु कवच के रूप में बाह्य कंकाल का स्त्रावण करते है। कवच के केन्द्रीय अक्ष स्तम्भिका के चारो ओर कुंडलित वृत्त पाए जाते है। सबसे छोटा और पुराना वृत्त कवच के ऊपर शिखर पर बनता है और अंतिम दो वृत्तो क्रमशः पेनल्टीमेट और देहवृत्त में जन्तु के शरीर का सबसे अधिक भाग उपस्थित होता है।
देहवृत्त अधर सतह पर चौड़े मुख द्वारा बाहर खुलता है। मुख के चिकने किनारे को परिमुख कहते है। जब पाइला कवच के अन्दर होता है तो इसका मुख मोटी , चपटी प्लेट पुच्छद या प्राच्छद द्वारा बंद रहता है।
पाइला महाभक्षी होता है और अपने रेडुला दाँतो की सहायता से पौधों को खाता है।
इसकी आहारनाल एक कुंडलित नली है। गिल और फेफड़ो दोनों के द्वारा श्वसन का दोहरा प्रबन्ध होने के कारण पाइला का रुधिर परिभ्रमण तन्त्र अति जटिल होता है।
इसमें ह्रदयावरण , ह्रदय , धमनियां , कोटरे और शिराएँ सम्मिलित होती है। इसके रूधिर में कुछ रंगहीन ताराकार अमिबाभ कोशिकाएं और एक श्वसन वर्णक हीमोसाइनिन होता है।
यह वर्णक प्लाज्मा में घुला होता है इसी कारण इसके रक्त का रंग नीला होता है।
पाइला में एक बड़ा उत्सर्जी अंग , वृक्क या वृक्कांग या बोजानस का अंग पाया जाता है। इसका तंत्रिका तन्त्र और ज्ञानेंद्रीया अति विकसित होते है।
पाइला एक लिंगाश्रयी (dioceous) जन्तु है। नर पाइला प्राय: दो प्रकार के शुक्राणु – यूपाइरीन और ओलिगोपाइरीन उत्पन्न करते है।
ओलीगोपाइरीन सामान्यतया निषेचन के अयोग्य होते है। हालाँकि निषेचन आंतरिक होता है तथापि भ्रूण का परिवर्धन मादा के शरीर से बाहर होता है। भ्रूण से निकलने वाले शिशु सीधे वयस्क में परिवर्धित हो जाते है।
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