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Categories: Biology

physiology of muscle contraction in hindi , पेशीय संकुचन की कार्यिकी क्या है , पेशियों के प्रकार (Types of muscles)

जानेंगे physiology of muscle contraction in hindi , पेशीय संकुचन की कार्यिकी क्या है , पेशियों के प्रकार (Types of muscles) ?

पेशीय संकुचन की कार्यिकी (Physiology of Muscle Contraction)

उच्च स्तरीय जन्तुओं में शरीर के विभिन्न भागों में गति (movements) मुख्य रूप से पेशिय द्वारा होती है। पेशियों की वह गति रासायनिक ऊर्जा (chemical energy) के यांत्रिक कार्य (mechanical action) में परिवर्तन के फलस्वरूप होती है। गमन के अलावा पेशियाँ पाचन (excretion), श्वसन (respiration), परिवहन (circulation), उत्सर्जन (excretion) एवं जनन (respiration) आदि क्रियाओं में भी अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पन्न करती है। इस प्रकार पेशीय क्रियाएँ जन्तु के जीवन में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है।

पेशी कोशिकाएँ (muscle cells) संकुचन क्रिया के लिये विशिष्ट होती है। इस कारण इन्हें संकुचनशील ऊत्तक (contractile tissue) भी कहते हैं। प्रत्येक पेशी असंख्या तंतुओं (fibres) की बनी होती है। पेशियों को संवेदी (sensory ) एवं प्रेरक ( motor) तंत्रिका तन्तु भेदते है। पेशी को संकुचित करने वाले तंत्रिका आवेग (nerve impulse) मस्तिष्क से प्रेरक तन्तुओं (motor fibres) द्वारा भेजे जाते हैं। आकार और आकृति के अनुसार पेशी की लम्बी (long). छोटी ( small) या चौड़ी (wide) पेशी कहा जाता है।

चित्र: 7.1 – पेशी का अनुप्रस्थ काट

पेशियों के प्रकार (Types of muscles)

सामान्यतया पेशियाँ तीन प्रकार की होती है- अरेखित पेशियाँ (unstriated muscles), रेखित पेशियाँ (striated muscles) तथा हृदय पेशियाँ (cardiac muscle ) (चित्र 7.2.7.3)

(1) अरेखित पेशियाँ ( Unstriated muscles)

उन्हें चिकनी (smooth) एवं अनैच्छिक पेशियाँ (involuntary muscles) भी कहा जाता है। ये पेशियाँ शरीर के आन्तरिक अंगों (internal organs) जैसे आहारनाल (alimentary canal

रक्त वाहिनियाँ (blood vessels), श्वसन पथ ( respiratory passage). मूत्रीय (urinary) एवं जनन अंगों (genital organs) की दीवारों में उपस्थित होती है। आन्तरिक अंगों में मिलने के कारण इस पेशियों को अन्तरागीय पेशी (visceral muscle) भी कहा जाता है। ये पेशियाँ कोमल तर्क रूपीय (spindle shaped) लम्बी कोशिकाओं की बनी होती है। ये कोशिकायें लम्बाई में लगभग 30 से 200 तथा व्यास में 5 से 10 की होती है। इन कोशिकाओं के केन्द्र में सिर्फ एक केन्द्रक (nucleus) पाया जाता है। इन कोशिकाओं के सिरे परस्पर सटे रहते हैं। ये झिल्ली’ समान मेट्रिक्स द्वारा परस्पर बंधे रहते हैं एवं पतों (sheels) में व्यवस्थित रहते हैं। इनके कोशिकाद्रव्य में महीन पेशी (muofibrils) पाये जाते हैं। इन्हीं तन्तुओं के द्वारा इनमें संकुचनशीलता (Contractibility) का गुण पाया जाता है, इन पेशियों के संकुचन पर तन्तु की इच्छा शक्ति (will power) का नियंत्रण नहीं होता है, अतः ये अनैच्छिक पेशियाँ कहलाती है। ये पेशियाँ धीमी गति से तरंग के समान स्वयं निर्योत्रत पद्धति से संकुचन करती है। ये स्वायत्तशासी तंत्रिका तंत्र (autonomic nervous system) द्वारा नियंत्रित होती है एवं इनके उद्दीपन हेतु आन्तरिक क्रियाएँ होती है।

चित्र: 7.2 – कशेरुकियों में उपस्थित विभिन्न प्रकार की पेशियाँ

(2) रेखित पेशियाँ

ये पेशियाँ पृष्ठवंशियों (chorlates) के कंकाल से संलग्र रहती है इस कारण कंकाल पेशियाँ (skeletal muscles) भी कहलाती है। ये पेशियाँ सम्पूर्ण देह का लगभग 40-45 प्रतिशत भार बनाती है। इन पेशियों की कोशिकाएं लम्बे तन्तुओं के समूहों में व्यवस्थित होती है। ये पेशी तन्तु बेलनाकार (cylindracal) या धागेनुमा तथा 2-4 से.मी. लम्बी हैं प्रत्येक पेशी तन्तु पर एक स्पष्ट पेशी आवरण सार्कोलेमा (sarcolemma) उपस्थित रहता है। इन कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य में अनेक केन्द्रक (nucleus) बिखरे रहते हैं जो एक सिलसियमी (syncytial) संरचना बनाते हैं। प्रत्येक पेशी तन्तुओं से निर्मित होता है। इन तन्तुओं में हल्की एवं गहरी पट्टिायाँ या धारियाँ (striations) पायी जाती है, इसी कारण ये रेखित पेशियाँ कहलाती है। इन पेशियों का संकुचन जन्तु की इच्छा पर निर्भर करता है, अत: ये ऐच्छिक पेशियाँ (voluntary muscles) भी कहलाती है।

चित्र: 7.3- हृदय पेशियाँ

(3) हृदय पेशियाँ (Cardiac muscles)

ये पेशियाँ पृष्ठवेशियों के हृदय में ही उपस्थित होती है। ये कई गुणों में रेखित पेशियों के समान होती है। इनमें भी पेशियों की तरह कई केन्द्रक उपस्थित रहते हैं। इन पेशियों की कोशिकाओं में अनेक माइटोकॉण्ड्रिया पाये जाते हैं। इन पेशियों के तंतुओं में कोमल अनुप्रस्थं धारियाँ ( strips) होती है तथा ये तंतु शाखायुक्त (branched ) होते हैं जो एक अन्तर संयोजी (inter connected) जाल बनाते हैं। हृदय पेशियाँ कार्य की दृष्टि से अनैच्छिक (invountary) प्रकार की जाती है। ये पेशियाँ बिना रुके संकुचन करती रहती है।

रेखित या कंकाल पेशी की संरचना (Structure of striated or Skeletal muscle)

प्रत्येक रेखित या कंकाल पेशी अनेक पेशी तंतुओं (muscles fibres) की बनी होती है जो एक दूसरे के समान्तर व्यवस्थित रहती है। प्रत्येक पेशी तंतु एक संयोजी ऊत्तक के पतले आच्छक (sheath) द्वारा आवरित रहता है जिसे एन्डोमासियम (endomysium) कहते हैं। प्रत्येक पेशी में पेशी-तंतुओं में अनेक समूह पाये जाते हैं जो पूलिकायें (fasciculi) कहलाते हैं। प्रत्येक पूलिका के चारों ओर भी एक संयोजी ऊतक की झिल्ली पाई जाती है जिसे पेरिमाइसियम (permysium) कहते हैं। सभी पूलिकाऐं मिलकर एक पेशी का निर्माण करते हैं। सम्पूर्ण पेशी के चारों ओर भी एक संयोजी ऊत्तक की झिल्ली और पाई जाती है जिसे एपिामाइसियम (epimysium) कहते हैं। संयोजी ऊत्तक के इस जटिल तंत्र के द्वारा प्रत्येक पेशी में तंत्रिकाएं तथा रक्त वाहिनियाँ वितरित की जाती है।

प्रत्येक पेशी तंतु (muscle fibre) एक लम्बी ( elongated) तथा बहुकेन्द्रकी (multinucleate) कोशिका होती है। ये तंतु 30 से.मी. तक लम्बे हो सकते हैं तथा इनका व्यास 10-100 तक होता है। प्रत्येक पेशी-तंतु के चारों ओर स्थित कोशिका – कला को पेशी-चोल या सार्कीलेमा ( sarcolemma) कहते हैं। पेशी कोशिका में उपस्थित अर्धतरल कोशिका द्रव्य को पेशी द्रव्य (sarcoplasm) कहते हैं। पेशी द्रव्य में अनेक अनुदैर्ध्य तंतुक (longitudinal fibrils) पाये जाते हैं। जिन्हें पेशी – तंतुक (myofibrils) कहते हैं। प्रत्येक पेशी – तंतुक की लम्बाई पेशी तंतु के समान की होती है परन्तु व्यास । से 3u होता है। ये पेशी तंतुक पेशी-द्रव्य में एक दूसरे के समानान्तर स्थित रहते हैं।

सारणी- 7.1 : रेखित, अरेखित एवं हृदय पेशियों का तुलनात्मक अध्ययन

पेशी-द्रव्य में अनेक माइट्रोकॉण्ड्रिया बिखरे रहते हैं। जो सार्कोसोम्स (sarcosomes) कहलाते हैं। इसी द्रव्य में फैली हुई अन्नद्रव्या जालिका में पाई जाती है जो साकॉप्लास्तिक रेटीकुलम (sarcoplasmic reticulum) कहलाती है। इसी के साथ में इसमें इनेक गॉल्जी कॉम्पलेक्स (Golgi complex). लिपिड (lipid ) एवं ग्लाइकोजन (glycogen) के कण भी पाये जाते हैं। स्लेटर Slater, 1960) के अनुसार पेशी द्रव्य में उपस्थित माइट्रोकॉण्ड्रिया ऑक्सीकारी उपापचयी क्रियाओं के कार्यस्थल होते हैं। जो पेशीय संकुचन के समय ऊर्जा प्रदान करते हैं।

चित्र 7.4 – (a) रेखित पेशी, (b) पेशी तंतु, (c) पेशी तंतुक एवं

(b) सार्कोमियर में उपस्थित पट्टियाँ

प्रत्येक पेशी तंतुक में गहरे (dark) एवं हल्के (light) रंग की अनुप्रस्थ पट्टिायाँ (bands) पायी जाती है। ये एक दूसरे एकान्तर क्रम में उपस्थित होती है। गहरी पट्टियों को ए-पट्टियाँ (A-Bands) या विषदैशिक (anisotropic) पट्टियाँ कहते हैं। प्रत्येक ए-पट्टी का मध्यवर्ती भाग अपेक्षाकृत कम गहरा होता है। जिसे एच- क्षेत्र (H-Zone) या हेन्सेन क्षेत्र (Hensen zone) कहते हैं। एच- क्षेत्र के है। कम गहरे रंग की पट्टी को समदैशिक पट्टियाँया पट्टटी (isotrople band or l-bands) कहने मध्य से एक संकीर्ण गहरी रेखा गुजराती है, जिसे M- रेखा (M-line) या M-पट्टी (M-band) कहते हैं। प्रत्येक । भट्टी के मध्य में एक महीन गहरी रेखा पाई जाती है जो इसे दो बराबर के भागों में विभाजित करती है। इसे क्राउस झिल्ली (Krause’s membrane) कहते हैं। A पट्टी की लम्बाई 1.6 तथा । पट्टी की लम्बाई 1.0 होती है दो निकटवर्ती जेड-रेखाओं (Z-lines) के मध्य उपस्थित पेशी तंतुक के भाग को सार्कोमियर (sarcomere) कहा जाता है। साकमीयर पेशी तंतुओं की सबसे छोटी कार्यिकीय इकाई (functinal unit) होती है। प्रत्येक साकॉमीयर एक पूर्ण A पट्टी एवं इसके दोनों ओर की । पट्टियों के आधे भाग को घेरती है। एक साकमीयीर की पूर्ण लम्बाई 2.6 u होती है।

चित्र 7.5- पेशीय तंतुओं में प्राथमिक एवं द्वितीयक सूत्रों की व्यवस्था

को इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखने से ज्ञात हुआ है कि प्रत्येक पेशी-तंतुक में दो प्रकार के सूत्र (filaments) पाये जाते हैं। इनमें एक प्रकार के सूत्र प्राथमिक सूत्र (primary filaments) कहलाते हैं। ये 1.5 लम्बे तथा 100 A व्यास के होते हैं। दूसरे प्रकार के सूत्र द्वितीयक सूत्र (secondary filaments) कहलाते हैं जो 2.0 लम्बे तथा 50A व्यास के होते हैं। सभी प्राथमिक सूत्र ‘ए पट्टी’ के एक सिरे से दूसरे सिरे तक स्थित रहते हैं। द्वितीयक सूत्र ‘ए-पट्टी’ के एक ‘एच- क्षेत्र’ से दूसरी ‘ए-पट्टी’ के ‘ए क्षेत्र’ तक पाया जाते हैं तथा इनकी लम्बाई 2.0 होती है। एक पट्टी में प्रत्येक प्राथमिक सूत्र के चारों ओर छः द्वितीयक सूत्र उपस्थित रहते है।

जो इनके घेरने वाले प्राथमिक सूत्रों को घेरने में सम्मिलित होते हैं। चित्र 7.3 उपरोक्त वर्णित M. रेखा प्रत्येक मोटे सूत्र में एक सूक्ष्म उभर के रूप में पाई जाती है।

पेशीय तंतुओं में उपस्थित दोनों प्रकार के सूत्र एक दूसरे से अनुप्रस्थ सतुआ (cross-bridges) • द्वारा बन्धित (linked) रहते हैं। ये सेत प्रत्येक प्राथमिक सूत्र से निकलकर द्वितीयक सूत्रों की ओर फैल रहते हैं। दो लगातार पाये जाने वाले सेतुओं के बीच से दूरी 60-70A होती है। प्रत्येक सेतु अन्य सेतुओं में मत्र के अक्ष (axis) पर 60° व्यस्थित रहते है। इस प्रकार से सेतु एक कुण्डलिनी व्यवस्था (helical pattern) बनाते हैं। अनुप्रस्थ सेतु पेशीय संकुचन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

होयले (Hoyle) एवं उनके साथियों ने अनेक अकशेरुकियों एवं कशेरुकियों की अरेखित

पेशियों के अध्ययन से यह पाया कि सारकोमीयर की लम्बाई में एक अति महीन तंतु (super the filament) पाया जाता है जिसे टी-सूत्र (T-filament ) कहा जाता है। ये सूत्र लगभग 25 A व्यास के होते हैं जो पेशीय संकुचन के समय एक्टिन (actin) एवं मायोसिन (mysoin) सूत्रों के मध्य उपस्थित रहते हैं। मेक नेयल एवं होलये (Me Neil and Hoyle) ने 1967 में वाल्कॉत एंव रिग्वे (Walc\cott and Rigway) ने 1967 में बताया कि ये अति महान सूत्र पेशीय तंतुओं में एक लचील आलम्बन की तरह कार्य करते हैं। प्राथिमक पेशी तंतु मायोसिन (mysoin) प्रोटीन का बना होता है जबकि द्वितीयक पेशी तंतु एक अन्य प्रोटीन एक्टिन (actin) का बना होता है। द्वितीयक पेशी तंतुओं में मायोसिन के अलावा ट्रोपोमायासिन एवं ट्रोपोनिन प्रोटीन भी पाई जाती है।

 

चित्र 7.6- एक्टिन एवं मायोसिन अणुओं के मध्य अनुप्रस्थ सेतुओं की व्यवस्था

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