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Categories: BiologyBiology

आमाशय में भोजन का पाचन कैसे होता है , प्रोटीन का पाचन कहाँ होता है , वसा , सेल्युलोज , कार्बोहाइड्रेट

वसा का पाचन किसके द्वारा होता है , आमाशय में भोजन का पाचन कैसे होता है , प्रोटीन का पाचन कहाँ होता है , वसा , सेल्युलोज , कार्बोहाइड्रेट ? पाचन एवं अवशोषण , जल का अवशोषण किस अंग में होता है ?

पाचन की कार्यिकी (physiology of digestion in hindi) : पाचन की क्रिया को निम्नलिखित आठ चरणों में समझा जा सकता है –

  1. भोजन ग्रहण करना: अधिकांश जन्तुओ में भोजन को मुंह और जीभ की सहायता से ग्रहण किया जाता है।
  2. भोजन को चबाना: भोजन को मुखगुहा में दाँतो की सहायता से चबाया और काटा जाता है इस प्रक्रिया में भोजन छोटे छोटे टुकड़ो में टूट जाता है और उसकी सतह का क्षेत्रफल बढ़ जाता है। मेंढक में दांत का कार्य शिकार को मुख से बाहर निकलने से रोकना है।
  3. निगलना: मुख ग्रासन गुहिका से भोजन ग्रसनी / आमाशय में जाता है। स्तनियो के मुख में भोजन को चबाने से बने निवाले मुखगुहा से ग्रहणी में खिसक जाते है। यह प्रक्रिया एच्छिक रिफ्लैक्स द्वारा होती है। चक्रीय और अनुदैधर्य पेशियों द्वारा क्रमबद्ध संकुचन और शिथिलन की एक श्रृंखला (तरंग) जो भोजन को ऊपर से नीचे ले जाती है , इस क्रिया को पेरिस्टालसिस कहते है। आहारनाल के अलावा यह वासा डिफरेन्सिया और यूरेटर में भी पाई जाती है। पेरिस्टालसिस सबसे अधिक ग्रसनी में और सबसे कम रेक्टम में होती है। जब पेरिस्टालसिस विपरीत दिशा में हो तो यह क्रिया एंटीपेरिस्टालसिस कहलाती है। यह क्रिया उल्टी (मतली) के समय आहारनाल में होती है। इस गतिविधि को “रिगर्जिटेशन” कहते है।
  4. पाचन: वह प्रक्रिया जिसमे जटिल भोजन अणुओं को पाचक एन्जाइम्स की सहायता से सरल अणुओं में परिवर्तित किया जाता है , पाचन क्रिया कहलाती है। स्तनियों में पाचन की क्रिया मुखगुहा (बक्कोफेरेंजियल केविटी) से प्रारंभ होती है।

(i) मुखगुहा में पाचन : मुखगुहा में स्टार्च का पाचन होता है , जो कुल भोजन का 5% और कार्बोहाइड्रेट का 20-30% होता है।

(ii) आमाशय में पाचन : यहाँ प्रोटीन का पाचन होता है।

(iii) छोटी आंत में पाचन : भोजन के तीनो अवयवों (कार्बोहाइड्रेटस , प्रोटीन और वसा) का पाचन विभिन्न एन्जाइम्स (जो कि अग्नाशय और आंत्रीय ग्रंथियों के द्वारा स्त्रावित होते है। ) की सहायता से छोटी आंत में होता है। 5. अवशोषण : भोजन को ग्रहण करने और पचाने की क्रिया में प्रथम 2 क्रियायें है। ये भौतिक क्रियाएं आहारनाल में होती है। तीसरी क्रिया में पचे हुए पोषक तत्वों को आहारनाल की दिवार से रक्त में अवशोषित कर लिया जाता है।

(i) मुख में अवशोषण : मुख द्वारा कोई अवशोषण नहीं होता है लेकिन कुछ औषधियां जो जीभ के निचे घुल जाती है , म्यूकस मेम्ब्रेन के द्वारा अवशोषित हो जाती है। उदाहरण – आइसो प्रिनेलिन , ग्लिस्रोल ट्राईनाइट्रेट।

(ii) आमाशय में अवशोषण : अमाशय में बहुत नियंत्रित और कम मात्रा में अवशोषित होता है। यहाँ पर जल , ग्लूकोज और एल्कोहल का अवशोषण होता है। ये पदार्थ वीनस सर्कुलेशन में आमाशय की भित्ति द्वारा अवशोषित हो जाते है। आयरन का अवशोषण तो छोटी आंत में होता है परन्तु उसको एचसीएल की उपस्थिति में आमाशय में भोजन के साथ घोला जाता है।

(iii) छोटी आंत में अवशोषण : छोटी आंत मुख्य अवशोषण स्थल है। कुल पचे हुए भोजन का 90% का अवशोषण छोटी आंत में हो जाता है।

आहारनाल में भोजन का अवशोषण निम्न दो मार्गों से होता है –

हिपैटिक पोर्टल सिस्टम की शिराओं द्वारा जो सीधे यकृत में खुलती है और आंत की लिम्फैटिक वाहिकाओं द्वारा जो लिम्फैटिक सिस्टम और थोरेसिक डक्ट द्वारा सीधे रक्त में खुलती है।

कार्बोहाइड्रेट का अवशोषण : कार्बोहाइड्रेट के पाचन के फलस्वरूप बने मोनोसैकेराइड्स मुख्यतः हैक्सोज के रूप में (ग्लूकोज , फ्रक्टोज , मैनोज और गैलेक्टोज) आंत से अवशोषित होकर वीनस पोर्टल सिस्टम के रक्त में पहुँच जाते है।

अमीनो अम्ल और प्रोटीन का अवशोषण : भोजन में लिए गए प्रोटीन पूर्णतया पच कर एमिनो अम्ल और अन्य अंत: उत्पाद के रूप में एक्टिव ट्रांसपोर्ट द्वारा अवशोषित होकर पोर्टल रक्त में पहुँचते है। अधिक मात्रा में उपस्थित एमीनो अम्ल को यकृत कोशिकाओं द्वारा पोर्टल रक्त से निकाल दिया जाता है , जो डिएमिनेटेड होकर अमोनिया और कीटों अम्ल में परिवर्तित हो जाते है। अमोनिया को यूरिया में रूपांतरित करके रक्त के माध्यम से किडनी द्वारा बहिर्स्त्रावित कर दिया जाता है जबकि कीटों अम्ल को ग्लूकोज अथवा पायरूविक अम्ल में परिवर्तित करके ऊर्जा उत्पादन में या संचित भोजन (वसा अथवा ग्लाइकोजन) के रूपमे उपयोग किया जाता है।

वसा का अवशोषण : भोजन में उपस्थित वसा का पाचन आंत में उपस्थित पैन्क्रियाटिक लाइपेज के द्वारा होता है। वसा के पाचन के फलस्वरूप ग्लिस्रोल , वसा अम्ल और मोनोएसिलग्लिसरोल निर्मित होते है , वसा पाचन के अंतिम उत्पाद जैसे – माइसेल , वसीय अम्ल तथा ग्लिसरोल छोटी आंत की म्यूकोसा कोशिकाओं द्वारा अवशोषित कर लिए जाते है।

लैक्टियल्स के द्वारा वसा सिस्टर्ना काइनी में पहुँचता है जहाँ से यह थोरैसिक डक्ट द्वारा बायीं ब्रैकियोसिफैलिक शिरा में होता हुआ रक्त में प्रवेश कर जाता है। आंत से थोरैसिक डक्ट में पहुँचा लिम्फ वसा की अधिकता के कारण दुधिया दिखाई देता है इसे काइल कहते है। इस रास्ते से वसीय अम्ल और ग्लिसरोल रक्त प्रवाह से होते हुए यकृत में पहुँच जाते है। यकृत में इन्हें पहचान कर मानव वसा में परिवर्तित कर दिया जाता है।

विटामिन्स का अवशोषण :  जल में घुलनशील विटामिन जैसे विटामिन B कॉम्प्लेक्स (विटामिन B12 के अलावा) और विटामिन C आंत के विलाई से परासरण द्वारा रक्त में पहुँच जाते है। वसा में घुलनशील विटामिन A , D , E और K माइसेल में घुल कर आंत की म्यूकोसा कोशिकाओं में सरल विसरण द्वारा प्रवेश कर जाते है। वसा में घुलनशील विटामिन्स का अवशोषण बाइल की अनुपस्थिति में कम मात्रा में होता है।

(iv) बड़ी आंत में अवशोषण : बिना पचे हुए भोजन में से लगभग 100 से 200 मिली लीटर जल का अवशोषण कोलन में हो जाता है। यह शरीर के जल स्तर को नियमित करती है। जल के अलावा यहाँ पर कुछ लवण और विटामिन्स का भी अवशोषण होता है।

आंत में पाए जाने वाले सहजीवी बैक्टीरिया (ई. कोलाई) निष्क्रिय विटामिन्स को सक्रीय कर देते है (अर्थात विटामिन्स का संश्लेषण – जैसे विटामिन B कॉम्पलेक्स और विटामिन K का संश्लेषण ) जिनसे इनको अवशोषित किया जा सके।

  1. स्वांगीकरण: अवशोषित किये गए भोजन का कोशिका के अन्दर सक्रीय कोशिकाद्रव्य में परिवर्तन स्वांगीकरण कहलाता है।
  2. मल निर्माण: मल निर्माण की क्रिया कोलन में जल , लवण पोषक तत्व और विटामिन्स के अवशोषण के द्वारा होती है। कोलन में क्रमाकुंचन गतियाँ भी मल निर्माण में सहायता करती है।
  3. मल बहिर्गमन अथवा परित्याग: आहारनाल से मल का बाहर निकलना मल मल बहिर्गमन अथवा परित्याग कहलाता है। मल आहारनाल के द्वारा बाहर निष्कासित किया जाने वाला व्यर्थ पदार्थ है।

स्यूडोरूमिनेट अथवा कॉप्रोफैगी : जन्तु अपने मल को खा लेते है ताकि उसमे शेष बची अपचित सेल्युलोज को पुनः पचाया जा सके और भोजन का पूर्णतया सदुपयोग किया जा सके। यह व्यवहार कॉप्रोफेगी कहलाता है। उदाहरण : खरगोश।

टेबल : पाचन की क्रियाविधि का सारांश , स्तनीयों में मुख्य आमाशयी आंत्रीय एन्जाइम्स

ग्रंथि का नाम पाचक रस का नाम और pH एंजाइम का नाम क्रिया स्थल क्रियाकारी पदार्थ उत्पाद
1.       लार ग्रंथि लार (6.3 –   6.8) टायलिन/लार एमाइलेज मुख स्टार्च , डैक्सट्रिन डैक्सट्रिन , माल्टोज , आइसोमाल्टोज और लिमिट डेक्सट्रिन
2.       गैस्ट्रिक ग्रंथि गैस्ट्रिक जूस (1-3) पेप्सिन

रेनिन

गैस्ट्रिक लाइपेज

आमाशय

आमाशय

आमाशय

प्रोटीन कैसीन (दूध)

कैसीन

वसा

पेप्टोन , पैराकैसीन (दही) प्रोटिएजेज

पैराकैसीन

वसा अम्ल और ग्लिस्रोल

3.       यकृत बाइल जूस (7.6 – 8.6) कोई एंजाइम नहीं ड्यूओडिनम वसा वसा का इमल्सीफिकेशन , हानिकारक बैक्टीरिया को नष्ट करना और भोजन को क्षारीय बनाना
4.       यकृत बाइल जूस (7.6 – 8.6) कोई एंजाइम नहीं लेकिन उपयोगी पाचक रस जो अम्लीय माध्यम उपलब्ध कराता है और एचसीएल की क्रिया को रोकता है | वसा को इमल्सीफाई और हानिकारक बैक्टीरियाओ को नष्ट करता है |
5.      पैन्क्रियाज पैन्क्रियाटिक जूस (7.1 – 8.2) एमाइलेज /डाएस्टेज

ट्रिप्सिन

छोटी आंत

छोटी आंत

स्टार्च , डैक्सट्रिन ग्लाइकोजन

प्रोटीन्स काइमोट्रिप्सिनोजन (निष्क्रिय)

प्रोकार्बोक्सीपेप्टाइडेज   (निष्क्रिय)

फाइब्रिनोजन (रक्त)   कैसिन (दूध)

 

लिमिट डैक्सट्रिन , माल्टोज , आइसो माल्टोज

पेप्टाइड्स , काइमोट्रिप्सिन (सक्रीय)

कार्बोक्सीपेप्टाइडेज (सक्रीय) इलास्टेज (सक्रीय) , फाईब्रिन (थक्का) पैराकैसीन (दही)

काइमोट्रिप्सिन कार्बोक्सीपेप्टाइडेज

लाइपेज /स्टिएप्सिन

DNAase

छोटी आँत

छोटी आंत

छोटी आंत

छोटी आंत

छोटी आंत

पेप्टोंस

पेप्टाइडस

ट्राईग्लिसरोइड

डीएनए

RNA

पेप्टाइड्स

छोटे पेप्टाइड्स , एमिनो अम्ल

मोनोग्लिसराइड , वसा अम्ल , डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिकयोटाइड्स

राइबोन्यूक्लियोटाइड

 

6.       आंत की ग्रंथियां अथवा इन्टेस्टाइनल ग्लैंड्स इन्टेस्टाइनल जूस या आंत्रीय रस एंटरोपेप्टाइडेज (एण्टरोकाइनेज)

एमीनोपेप्टाइडेज

डाइपेप्टाइडेज

आइसोमाल्टेज

माल्टेज

सुक्रेज/इनवर्टेज

लैक्टेज

लाइपेज

न्युक्लियोटाइडेज

न्युक्लियोसाइडेज

फोस्फोराइलेज

छोटी आंत

छोटी आंत

छोटी आंत

छोटी आंत

छोटी आंत

छोटी आंत

छोटी आंत

छोटी आंत

छोटी आंत

छोटी आंत

ट्रिप्सिनोजन (निष्क्रिय)

पेप्टाइड्स

डाइपेप्टाइड्स “लिमिट डैक्सीट्रिन”

आइसोमाल्टोज

माल्टोज

सुक्रोज

लैक्टोज

ट्राईग्लिसरोइड

न्युक्लियोटाइड

न्युक्लियोसाइड फास्फेट

ट्रिप्सिन (सक्रीय)

छोटे पेप्टाइड्स और अमीनो अम्ल

अमीनो अम्ल

ग्लूकोज

ग्लूकोज

ग्लूकोज , फ्रक्टोज

ग्लूकोज , गैलेक्टोज

मोनोग्लिसराइड्स ,   वसा अम्ल

न्युक्लियोसाइड्स , अकार्बनिक फास्फेट

प्यूरिन्स , पीरीमिडीन्स , पेन्टोज फास्फेट

  1. हार्मोन्स द्वारा पाचन का नियंत्रण: पाचन नलिका की गतिविधियाँ तंत्रिका तंत्र और अंत:स्त्रावी तंत्र द्वारा नियंत्रित होती है , देखने और भोजन की खुशबु से तंत्रिका तंत्र उद्दीप्त होता है , जो मुख गुहा में लार ग्रंथियों को अधिक मात्रा में लार स्त्रावित करने के लिए आमाशय को गैस्ट्रिन हार्मोन स्त्रावित करने के लिए और आंत को मोटिलीन हार्मोन स्त्रावित करने के लिए उत्प्रेरित करता है। इसके अलावा कुछ अन्य हार्मोन भी क्रमबद्ध तरीके से स्त्रावित किये जाते है , ये सभी पोलीपेप्टाइड हार्मोन है।

टेबल : स्तनधारियों में पाए जाने वाले गैस्ट्रोइन्टेसटाइनल हार्मोन 

हार्मोन स्रोत स्त्रावण हेतु उद्दीपन क्रियास्थल लक्ष्य
1.       गैस्ट्रिन पायलोरिक आमाशय की म्युकोसा भोजन के प्रवेश के बाद आमाशय का फूलना आमाशय गैस्ट्रिक जूस के स्त्राव को बढाता है , कार्डियक स्फिंकटर को संकुचित करता है |
2.       एंटोरोगैस्ट्रोन ड्यूओडिनल

एपीथीलियम

ड्यूओडीनम में चाइम का प्रवेश अमाशय यह आमाशय के संकुचन को कम करता है जिससे इसके खाली होने में देर लगती है , गैस्ट्रिक जूस के स्त्राव को रोकता है |
3.       सिक्रिटिन ड्यूओडिनल

एपीथिलियम

ड्यूओडीनम में अम्लीय चाइम का प्रवेश अग्नाशय

यकृत

आमाशय

पेन्क्रियाटिक जूस में सोडियम बाईकार्बोनेट की मुक्ति

बाइल के स्त्राव का बढ़ावा

गैस्ट्रिन के स्त्राव का संदमन

4.       कोलीसिस्टोकाइनिन (पेंक्रियोजाइमिन ) ड्यूओडिनल

एपिथिलियम

ड्यूओडीनम में वसा की उपस्थिति अग्नाशय

पित्ताशय

पेंक्रियाटिक रस में एंजाइम को मुक्त करना

पित्ताशय से पित्त को मुक्त करना |

5.       विलिकाइनिन आंत्रिय उपकला छोटी आंत में भोजन आंत्र विलाई की गति को बढाता है |
6.       ड्यूओक्राइनिन आन्त्रिय उपकला (ड्यूओडिनल म्युकोसा ) आंत्र में अम्लीय चाइम की उपस्थिति आंत्र (ब्रुनर्स ग्रंथियाँ) ब्रुनर्स ग्रंथियों से चिकने म्यूकस को मुक्त करना
7.       एन्टरोक्राइनिन आन्त्रिय उपकला (ड्यूओडिनल म्युकोसा ) आंत्र में अम्लीय चाइम की उपस्थिति आंत्र (लिवरकुहन की दरारें ) लीवरकुहन की दरारों से एन्जाइम्स को मुक्त करना

 

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