पर्ण विन्यास क्या है ? (phyllotaxy in hindi) | एकान्तरित (alternate) | सम्मुख (opposite) चक्रिक (whorled)

(phyllotaxy in hindi) पर्ण विन्यास क्या है ? एकान्तरित (alternate) | सम्मुख (opposite) चक्रिक (whorled) किसे कहते है , प्रकार |

पर्ण विन्यास (phyllotaxy) : तने पर पत्तियों के लगने का व्यवस्थाक्रम पर्णविन्यास कहलाता है। प्रत्येक जाति में एक विशिष्ट प्रकार का पर्ण विन्यास पाया जाता है। तने का वह भाग जहाँ से पत्ती निकलती है , पर्व संधि कहलाता है। जब पत्तियाँ सीधे ही मुख्य तने पर लगी होती है स्तम्भिक कहलाती है। जैसे खजूर और सायकस। प्राय: पत्तियाँ मुख्य तने और इसकी शाखाओं दोनों पर लगी रहती है। इन्हें स्तम्भिक और शाखीय कहते है , जैसे – आम , नीम आदि। जिन पौधों में तना अत्यधिक संघनित और डिस्कनुमा होता है , पत्तियां सीधे डीस्कनुमा तने से निकलती है और जड़ से निकली प्रतीत होती है। इन्हें मूलज पर्ण कहते है। (उदाहरण – मूली , गाजर) पर्ण विन्यास मुख्यतः तीन प्रकार का होता है।

1. एकान्तरित (alternate)

2. सम्मुख (opposite)

3. चक्रिक (whorled)

1. एकान्तरित (alternate) : इस प्रकार के पर्ण विन्यास में एक पर्व संधि पर केवल एक ही पत्ती तने से जुडी रहती है। प्राय: आवृतबीजी पौधों में इस प्रकार का पर्णविन्यास सबसे अधिक पाया जाता है। यहाँ पौधे की ऊपर से देखने पर सभी पत्तियाँ एक निश्चित संख्या में पंक्तियों में दृष्टिगोचर होती है। इस प्रकार तने अथवा शाखा पर लगी हुई दो पत्तियों में बराबर कोणीय दूरी पायी जाती है। तने अथवा शाखा पर लगी हुई सभी पत्तियों के आधार बिन्दुओं को आपस में जोड़ने पर एक सर्पिलाकार रेखा जैसी आकृति बन जाती है। इसे पत्रसंधि सर्पिल रेखा (genetic sprial line) कहते है। इस प्रकार की रेखाकार आकृति को कागज पर चित्र के रूप में उतार कर पत्तियों का पारस्परिक संलग्न आसानी से परिलक्षित किया जा सकता है। एक के बाद एक क्रम में दो लगातार पत्तियों द्वारा केंद्र में बनने वाले कोण को कोणीय डाइवरजेन्स (angular divergence) कहते है। इसे निम्नलिखित सूत्र द्वारा भी प्रदर्शित किया जा सकता है –

कोणीय डाइवरजेन्स = (पहली पत्ती के ठीक ऊपर आने वाले चक्रों की संख्या / उपर्युक्त चक्रो में मौजूद पत्तियों की संख्या ) x 360

बहुधा एकांतर पर्ण विन्यास को उपर्युक्त भिन्नात्मक संख्या के रूप में ही प्रदर्शित किया जाता है। इस विवरण के आधार पर पौधों की पत्तियों में निम्न प्रकार के एकान्तरित विन्यास पाए जाते है –

 

(i) 1/2 अथवा द्विपंक्तिक एकांतर विन्यास (distichous phyllotaxy) : यहाँ एक पत्रसंधि सर्पिल रेखा में दो पंक्तियाँ होती है , इस प्रकार पहली पत्ती के ठीक ऊपर अथवा उसकी सीध में तीसरी पत्ती और दूसरी पत्ती की सीध में चौथी पत्ती होती है और कोणीय डाइवरजेन्स 180 डिग्री होता है , जैसे – गेहूं (triticum)

(ii) 1/3 अथवा त्रिपंक्ति (tristichous phyllotaxy) : इस पर्ण विन्यास में एक पत्रसंधि सर्पिल रेखा के एक चक्र में तीन पत्तियाँ मौजूद होती है और पहली पत्ती के ठीक ऊपर चौथी पत्ती दिखाई देती है और कोणीय डाइवरजेन्स 1/3 x 360 = 120 होता है , जैसे – साइपरस ट्राइसेप्स (cyperus triceps)

(iii) 2/5 या पंच पंक्तिक (pentastichous phyllotaxy) : इस प्रकार के पत्रसंधि सर्पिल रेखा के दो चक्रो में पांच पत्तियाँ पायी जाती है। इसमें पहली पत्ती के ठीक ऊपर अथवा सीध में छठी पत्ती पायी जाती है। इसका कोणीय डाइवरजेन्स 2/5 x 360 = 144 डिग्री होता है जैसे – गुडहल (china rose)

(iv) 3/8 अथवा अष्ठ पंक्तिक (octastichous phyllotaxy) : इस एकान्तर पर्ण विन्यास में पत्रसंधि सर्पिल के तीन चक्रों में आठ पत्तियाँ मौजूद होती है और पहली पत्ती की सीध में नवीं पत्ती निकलती है , यहाँ कोणीय डाइवरजेन्स 3/8 x 360 = 135 डिग्री होता है , जैसे – पपीता (papaya)

उपर्युक्त क्रमानुसार विभिन्न पौधों में आगे भी 5/13 , 8/21 . . . . . . . और इसके आगे का क्रम पाया जा सकता है।

2. सम्मुख (opposite phyllotaxy)

जब प्रत्येक पर्व संधि पर 2 पत्तियाँ आमने सामने विकसित होती है , अर्थात युग्म अथवा जोड़े में लगती है तो इस प्रकार के विन्यास को सम्मुख कहते है। यह अग्र प्रकार का होता है –
(i) सम्मुख और क्रासित (opposite decussate phyllotaxy) : जब पत्तियों का जोड़ा अपने से ऊपर अथवा नीचे की पत्तियों के जोड़े के साथ समकोण बनाता है। जैसे – विनका रोजिया (vinca rosea) , केलोट्रोपिस (calotropis)
(ii) सम्मुख और अध्यारोपित (opposite superposed phyllotaxy) : जब प्रत्येक जोड़े की पत्तियां अपने से ठीक पहले जोड़े की पत्तियों के ऊपर होती है और एक ही तल में हो जाती है , जैसे – इक्जोरा (Ixora) और ट्राइडेक्स (tridax)

3. चक्रिक (whorled phyllotaxy)

जब प्रत्येक पर्वसंधि पर दो से अधिक पत्तियाँ होती है जो एक वृत्त अथवा चक्र में व्यवस्थित रहती है , जैसे छ्टिन और एल्सटोनिया (alstonia)
पर्ण विन्यास के अध्ययन द्वारा हम तने पर पत्तियों के उद्गम की जानकारी प्राप्त कर सकते है। पौधे में पत्तियों का विन्यास अथवा व्यावहारिक व्यवस्था क्रम तो स्वयं पौधे की और पत्तियों के प्रकाश के अनुसार अवस्थित पर निर्भर करता है। प्राय: पौधे के तने और शाखाओं पर पत्तियों का व्यवस्थाक्रम इस प्रकार का होता है कि उनको अधिक से अधिक प्रकाश की प्राप्ति हो सके , जैसे – कुप्पी (acalypha)
इसके साथ ही सघन समूहों में उगने वाले पौधों की पत्तियाँ प्राय: लम्बी और पतली होती है इनका विन्यास भी अलग प्रकार का होता है और ये प्रकाश की किरणों के समानांतर विन्यासित रहती है जिसके फलस्वरूप पत्तियों पर छाया कम से कम रहती है।

पर्ण आमाप में विविधता (diversity in leaf size)

विभिन्न पौधों में पायी जाने वाली पत्तियों की आकृति और परिमाप में अत्यधिक विविधता दृष्टिगोचर होती है। यहाँ तक कि कभी कभी तो वातावरणी परिस्थितियों में थोड़े से बदलाव के कारण भी एक ही पौधे में विभिन्न स्थानों पर पायी जाने वाली पत्तियों की बाह्य आकारिकी में भिन्नता दिखाई देती है। वैसे सामान्यतया एक ही पौधे पर पायी जाने वाली सभी हरी पत्तियां एक ही प्रकार की होती है लेकिन कुछ जलीय पौधों , जैसे – रेननकुलस एक्विटिलिस (ranunculus aquitilis) और लिम्नोफिला इंडिका (limnophila indica) में जो कि आंशिक रूप से जल निमग्न रहते है , विषम पर्णिता (heterophylly) का रोचक लक्षण पाया जाता है। इन पौधों में दो प्रकार की पत्तियां मिलती है , जल निमग्न भाग की पत्तियाँ अतिशाखित और कटी फटी होती है। वही दूसरी तरफ पौधे के वायवीय भाग की पत्तियाँ अशाखित और अच्छिन्न्कोर (with entire margins) होती है। इसके अतिरिक्त कुछ पौधे जैसे पेलियोनिया डेवेनाना (pellionia davenana) आदि असमपर्णी (anisophyllous) होते है अर्थात इनकी एक पर्वसंधि पर दो सम्मुख पत्तियाँ पायी जाती है। परन्तु ये बराबर परिमाप को न होकर छोटी बड़ी होती है। वैसे आवृतबीजी पौधों में इस प्रकार की स्थिति विभिन्न पौधों में पर्ण आकृति और परिमाप में विविधता , इनके पर्यावरण और आनुवांशिक लक्षणों पर निर्भर करती है। कुछ पौधों में तो पत्तियाँ बहुत छोटे आकार के शल्क पत्रों के रूप में होती है , या कांटो में रूपांतरित हो जाती है , जबकि पामी अथवा ताड़ कुल के पौधों में पत्तियों की आकृति काफी विशाल होती है। राफिया टीडीगेरा नामक ताड़ वृक्ष में पत्ती के पर्णवृन्त की लम्बाई ही लगभग 4.5 मीटर होती है। इसी क्रम में एक अन्य उदाहरण विक्टोरिया रीजिया नामक जलीय पौधे का लिया जा सकता है जिसकी पत्तियाँ कमल के समान होती है और इनका व्यास लगभग 4 मीटर होता है। इनके उपान्तीय सिरे ऊँचे उठे हुए होते है और ये पानी में पड़े विशालकाय थाल के समान प्रतीत होते है।