द्वार कोशिकाओं में प्रकाश संश्लेषण का सिद्धांत (Photosynthesis in guard cells hypothesis in hindi)

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रन्ध्रों की संरचना (Structure of stomata)

पत्ती की बाह्यत्वचा पर उपस्थित छिद्रों को रन्ध्र कहते हैं। यह छिद्र सामान्यतः दो वृक्काकार अधिचर्म (epidermal) कोशिकाओं से घिरा रहता है। इन वृक्काकार कोशिकाओं को द्वार कोशिकाएँ (guard cells) कहते हैं। ग्रेमिनी के पौधों में द्वार कोशिकाएँ डम्बैल (dumbell) आकृति की होती है। द्वार कोशिकाएं केन्द्रक, हरित लवक एवं कोशिकाद्रव्य युक्त जीवित कोशिकाएं होती हैं। इन कोशिकाओं की बाह्य भित्ति पतली एवं अन्तः भित्ति मोटी होती है। ये द्वार कोशिकाएं कुछ विशिष्ट सहायक कोशिकाओं (subsidary or accessory cells) से घिरी रहती है (चित्र – 20)। एक पादप में रन्ध्रों की संख्या बहुत अधिक होती है। एवं इकाई क्षेत्र में रन्ध्रों की संख्या विभिन्न प्रजातियों में भिन्न-भिन्न होती है।

रन्धों के प्रकार (Types of stomata)

  1. स्थिति एवं वितरण के आधार पर रन्ध्रों के प्रकार (Stomata types based on position and distribution)
  2. सेव एवं शहतूत प्रकार के (Apple and mulberry type)- रन्ध्र पत्ती की निचली सतह पर ही उपस्थित रहते हैं।
  3. आलू अथवा बीन प्रकार के (Potato or bean type)- इसमें रन्ध्र पत्ती की ऊपरी सतह की अपेक्षा निचली सतह पर अधिक संख्या में होते हैं।
  4. जई अथवा मटर प्रकार के (Oat or pea type)- इसमें रन्ध्रों की संख्या पत्ती की दोनों सतहों पर समान होती है।
  5. कुमुदिनी प्रकार के (Water lily type)- इसमें रन्ध्र पत्ती की केवल ऊपरी सतह पर वितरित रहते हैं।
  6. पोटोमोजीटोन प्रकार के (Potamogeton type)- रन्ध्र अनुपस्थित होते हैं। यदि उपस्थित हो तो ये निष्क्रिय होते हैं।
  7. दैनिक गतियों के आधार पर रन्धों के प्रकार (Stomatal types based on their daily movements ) लॉफ्टफील्ड (Loftfield) ने रन्धों के निम्न प्रकार दिये हैं-
  8. अल्फा अल्फा प्रकार के (Alfa alfa type)

इस प्रकार के रन्ध्र दिन में खुले रहते हैं तथा रात्रि में बन्द हो जाते हैं। उदाहरण- पतली पत्तियों वाले समोद्भिद (mesophytic) पादप, मटर, सेम, मूली, सरसों, शलजम, अंगूर एवं सेब ।

  1. आलू प्रकार के (Potato type)

इस प्रकार के रन्ध्र दिन एवं रात दोनों में बन्द रहते हैं तथा सांयकाल कुछ घन्टों के लिए ही खुलते हैं। उदाहरण – बन्दगोभी, कददू एवं प्याज ।

  1. जौ प्रकार के (Barley type)

इस प्रकार के रन्ध्र रात्रि में बन्द रहते हैं तथा दिन में कुछ घन्टों के लिए खुलते हैं। उदाहरण- जौ, मक्का, गेहूँ, जई इत्यादि ।

  1. इक्वीसीटम प्रकार के (Equisetum type)

इक्वीसीटम प्रकार के रन्ध्र कभी नहीं खुलते हैं। उदाहरण- इक्वीसीटम (Equisetum) |

  1. माँसलोभिद् प्रकार के ( Succulent type)

रन्ध्र दिन भर बन्द रहकर रात्रि में खुलते हैं। उदाहरण- नागफनी (Opuntia), कैक्टस (Cactus), (Aloe) इत्यादि ।

रन्ध्रीय सूचकांक (Stomatal Index)

यह पत्ती की अधिचर्म (epidermis ) में उपस्थित एक इकाई क्षेत्र में कुल कोशिकाओं में से रन्ध्रों की संख्या का प्रतिशत होता है।

I = S/E+S x 100

यहाँ I = रन्ध्रीय सूचकांक

S = एक इकाई क्षेत्र में उपस्थित रंधों की संख्या

E= एक इकाई क्षेत्र में अधिचर्मीय कोशिकाओं की संख्या

रन्ध्रीय गति की क्रियाविधि (Mechanism of stomatal movement)

रन्धों का खुलना एवं बन्द होना द्वार कोशिकाओं के स्फीत दाब के बढ़ने एवं घटने पर आधारित होता है। द्वार कोशिकाओं के जल अवशोषित करने से उनकी बाहरी कोशिका भित्ति फैल जाती है। बाहरी कोशिका भित्ति के फैलने से अन्तः कोशिका भित्ति अवतल होजाती है एवं रन्ध्र छिद्र (stomatal pore) खुल जाताहै। द्वार कोशिकाओं में स्फीत दाब घटने से इनकी अन्दर की भिति निकट आ जाती है जिससे छिद्र बन्द हो जाता है। रन्ध्रीय गति के सम्बन्ध में अनेक मत प्रस्तुत किये गये हैं। उनमें से कुछ निम्न हैं-

  1. द्वार कोशिकाओं में प्रकाश संश्लेषण का सिद्धान्त ( Photosynthesis in guard cells hypothesis)

वॉन मोल (Von Mohl, 1856) के अनुसार द्वार कोशिकाओं में उपस्थित हरित लवकों में प्रकाश संश्लेषण क्षमता होती। इनमें प्रकाश संश्लेषण द्वारा कार्बोहाइड्रेट बनने से परासरण दाब ( osmotic pressure, OP) बढ़ता है। परासरण दाब बढ़ने से इन कोशिकाओं में पड़ोस की कोशिकाओं से जल का अन्तः परासरण (endosmosis) द्वारा अन्दर प्रवेश कर जाता है जिससे कोशिका स्फीत हो जाती है। कोशिकाओं के स्फीत होने से स्फीत दाब (turgor pressure, TP) बढ़ जाता है जिससे रन्ध्र खुल जाते हैं। रात्रि के समय प्रकाश संश्लेषण नहीं होने के कारण द्वार कोशिकाओं का OP एवं TP के घट जाने से रन्ध्र बन्द हो जाते हैं।

इस सिद्धान्त को इस लिए नहीं माना जाता क्योंकि द्वार कोशिकाओं में अधिक स्टार्च का संचय नहीं होता है जिससे अन्तः परासरण (endosmosis) एवं कोशिका की स्फीत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

  1. स्टार्च-शर्करा अन्तर परिवर्तन सिद्धान्त (Starch surgar interconversion hypothesis)

इस सिद्धान्त को लॉएड (Lloyd, 1908) ने प्रतिपादित किया तथा सायरे (Sayre, 1926) ने इसकी सूत्ररूप में व्याख्या (formulated) की। लॉएड के अनुसार द्वार कोशिकाओं में स्टार्च अन्धकार में अधिक तथा प्रकाश में कम होता है। उन्होंने यह भी देखा कि द्वार कोशिकाओं की स्फीत उनकी परासरण सान्द्रता ( osmotic concentration) पर आधारित होती है जो स्टार्च एवं शर्करा के अन्तः परिवर्तन द्वारा नियंत्रित होती है।

सायरे के अनुसार स्टार्च एवं शर्करा का अन्तर परिवर्तन द्वार कोशिकाओं के pH द्वारा निर्धारित होता है। इनके अनुसार रन्ध्र उच्च pH (pH 7) पर खुलते हैं तथा निम्न pH ( pH 5) पर बन्द हो जाते हैं। प्रकाश एवं अन्धकार में यह क्रिया निम्न प्रकार होती है:-

(i) प्रकाश में रन्ध्रीय गति (Stomatal movement in light)

प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रकाश में सम्पन्न होती है। इस क्रिया में माध्यम की CO2  प्रयुक्त होती है। CO2  के प्रयुक्त होने से उपरन्ध्रीय गुहिका (substomatal cavity) में CO2 की मात्रा घट जाती है। इससे द्वारा कोशिकाओं की PH बढ़ जाती है। pH के बढ़ने से फास्फोराइलेज (phosphorylase) एन्जाइम की सक्रियता बढ़ जाती है और स्टार्च का ग्लूकोज-1-फास्फेट में जलापघटन (hydrolysis) हो जाता है।

स्टार्च  pH 7.6/ pH 5.0  ग्लूकोज – 1- फास्फेट

(starch)                     (Glucose-1-phosphate)

 

ग्लूकोज- 1-फास्फेट (glucose – 1 – phosphate) के अणु जल में घुलनशील होते हैं इसलिए यह द्वार कोशिकाओं के कोशिका रस में घुल जाता है। इससे कोशिका रस की सांद्रता बढ़ जाती है जिसके फलस्वरूप OP भी बढ़ जाता है। OP के बढ़ने से इन कोशिकाओं का DPD (विसरण दाब न्यूनता (Diffusion pressure deficit) इनको घेरने वाली कोशिकाओं से अधिक हो जाता है। इससे निकटतम कोशिकाओं से जल द्वार कोशिकाओं में प्रवेश कर जाता है। द्वार कोशिकाऐं स्फीत होती हैं तथा रन्ध्र खुल जाते हैं।

 (ii) अन्धकार में रन्ध्रीय गति (Stomatal movement in dark)

अन्धकार में प्रकाश संश्लेषण नहीं होता है जिससे श्वसन द्वारा त्यागी गयी CO2  अन्तर कोशिकीय स्थानों में एकत्रित हो जाती है। इससे उपरन्ध्रीय गुहिका में CO2 का स्तर बढ़ जाता है। CO2 के बढ़ने से द्वार कोशिकाओं में H+ सान्द्रता के बढ़ने से उनकी अम्लता बढ़ जाती है।

CO2 + H2O = H2CO3H+ + HCO3

H+ की सान्द्रता के कारण कोशिका रस की pH घट जाती है। कम pH पर ग्लूकोज – 1- फास्फेट, स्टार्च में परिवर्तित हो जाता है। यह स्टार्च कण जल में अघुलनशील होते हैं। इससे कोशिक रस तनु हो जाता है। अब रस का OP घट जाता है जिसके फलस्वरूप DPD भी घट जाता है। परिणामस्वरूप जल द्वार कोशिकाओं से निकल कर उनके निकट की कोशिकाओं में DPD प्रवणता के कारण प्रवेश कर जाता है। इससे द्वार कोशिकाएं श्लथ (flaccid ) हो जाती है जिससे रन्ध्र बन्द हो जाते हैं। सायरे (Sayre) के इस सिद्धान्त की स्टीवार्ड (Steward) ने आलोचना की तथा बताया कि ग्लूकोज – 1- फास्फेट से परासरण दाब में इतना परिवर्तन नहीं आता है जो कि रन्ध्र के खुलने को प्रेरित करें। रन्ध्र के बन्द होने के लिए ATP की आवश्यकता होती है जो श्वसन से प्राप्त होती है।

(3) स्टीवार्ड का सिद्धान्त (Steward’s hypothesis)

स्टीवार्ड (Steward, 1964) ने सायरे (Sayre) के सिद्धान्त को निम्न प्रकार रूपान्तरित किया:

(i) प्रकाश में रन्ध्रीय गति (Stomatal movement in light)

(i) प्रकाश संश्लेषण प्रकाश की उपस्थिति में होता है जिसमें श्वसन से मुक्त CO2  प्रयुक्त होती है। इससे कोशिका रस H+ की सान्द्रता कम हो जाती है तथा द्वार कोशिकाओं का pH अधिक हो जाता है।

(ii) उच्च pH (7.0) पर फास्फोरायलेज एन्जाइम की क्रिया बढ़ाती है जो स्टार्च को ग्लूकोज – 1- फास्फेट में परिवर्तित 1. कर देता है।

स्टार्च  फास्फोराइलेज/ pH 7.0 ग्लूकोज – 1- फास्फेट

(starch)                        (Glucose-1-phosphate)

(iii) ग्लूकोज – 1- फास्फेट पुनः फास्फोग्लूकोम्यूटेज (phosphoglucomutase) एन्जाइम द्वारा ग्लूकोज – 6- फास्फेट में परिवर्तित हो जाता है।

ग्लूकोज – 1- फास्फेट       ग्लूकोज – 6- फास्फेट

(Glucose-1-phosphate)  (Glucose-6-phosphate)

(iv) ग्लूकोज – 6-फास्फेट एन्जाइम फास्फेटेज (phosphatase) के द्वारा ग्लूकोज (glucose) एवं फास्फेट (phosphate) में परिवर्तित हो जाते हैं।

ग्लूकोज – 6- फास्फेट        ग्लूकोज + फास्फेट

(Glucose-6-phosphate)  (Glucose)   (phosphate)

(v) ग्लूकोज एवं फास्फेट माध्यम में घुल जाते हैं जिससे कोशिका रस की सान्द्रता बढ़ जाती है। इससे द्वार कोशिकाओं की OP बढ़ जाती हैं जिसके फलस्वरूप कोशिका का DPD भी बढ़ जाता है। इसके परिणामतः जल निकट कोशिकाओं से द्वार कोशिकाओं में प्रवेश कर जाता है। द्वार कोशिकाऐं स्फीत होकर फूल जाती हैं। फलतः रन्ध्र खुल जाते हैं।

(ii) अन्धकार में रन्ध्रीय गति (Stomatal movement in dark)

(i) अन्धकार में प्रकाश संश्लेषण नहीं होता है। उपरन्ध्रीय गुहिकाओं में श्वसनीय CO2 का स्तर बढ़ जाता है। इससे द्वार कोशिकाओं में pH कम हो जाता है।

(ii) अब ग्लूकोज अणु हेक्सोकाइनेज (hexokinase) की उपस्थिति में एटीपी (ATP) का प्रयोग कर ग्लूकोज – 1- फास्फेट (glucose-1-phosphate) में परिवर्तित हो जाता है।

ग्लूकोज + ATP    हेक्सोकाइनेज     ग्लूकोज – 1- फास्फेट + ADP

(Glucose)        (Hexokinase)    (Glucose-1-phosphate)

(iii) फास्फोराइलेज (phosphorylase) की उपस्थिति में ग्लूकोज – 1- फास्फेट अणु से स्टार्च उत्पन्न होता है।

ग्लूकोज – 1- फास्फेट  → स्टार्च

(Glucose-1-फास्फेट)  (starch)

स्टार्च संश्लेषण से कोशिका रस तनु हो जाता है। इससे कोशिका रस का OP तथा DPD घट जाते हैं। द्वार कोशिकाओं से जल निकटतम कोशिकाओं में चले जाने से द्वार कोशिकाएं श्लथ हो जाती हैं तथा रन्ध्र छिद्र बन्द हो जाता है। आलोचना (Criticism) – निम्न कारणों से इस मत की आलोचना विभिन्न वैज्ञानिकों द्वारा की गयी है।

  • स्टार्च – शर्करा अन्तर परिवर्तन एक धीमी प्रक्रिया है जो तीव्र रन्ध्री गति का कारण नहीं हो सकती।
  • रन्धों के खुलने के समय द्वार कोशिकाओं में ग्लूकोज की उपस्थिति ज्ञात नहीं की जा सकी ।

(iii) कभी-कभी स्टार्च शर्करा के स्थान पर मैलिक अम्ल में परिवर्तित हो जाती है।

(iv) प्याज में रन्ध्रीय गति के समय स्टार्च नहीं पायी जाती।

(v) यह सिद्धान्त रन्ध्रीय गति में नीले प्रकाश के अतिरिक्त प्रभाव नहीं समझा पाया।

(vi) दोपहर के समय रन्ध्र बन्द हो जाते हैं परन्तु स्टार्च के तल में कोई अन्तर नहीं आता है।

  1. ग्लाइकोलेट उपापचय सिद्धान्त (Glycolate metabolism hypothesis)

इस सिद्धान्त को जिटिट्क (Zetitch, 1963) ने प्रतिपादित किया। इसके अनुसार CO2 की सान्द्रता कम होने से द्वार कोशिकाओं में ग्लाइकोलिक अम्ल (glycolic acid) बनता है। ग्लाइकोलेट से कार्बोहाइड्रेट संश्लेषण होता है। ग्लाइकोलेट के बनने से द्वार कोशिकाओं का OP बढ़ जाता है। इस क्रिया के लिए एटीपी (ATP) की आवश्यकता होती हैं। यह क्रिया नीचे दी गयी है-

(i) NADP+ + ADP + Pi + H2O प्रकाश   NADPH + H+ + ATP + 1 / 2O2

(अचक्रिक फास्फोराइलेशन)

(ii).ग्लाऑक्सीलेट + NADP + H+ ग्लाऑक्सीलेट रिडक्टेज  ग्लाइकोलेट + NADP

(Glyoxylate)                               (Glyoxylate reductase)

(iii) ग्लाइकोलेट +1 / 2O2   ग्लाइकोलेट ऑक्सीडेज  → ग्लाऑक्सीलेट + H2O2

(Glycolate oxidase)

(iv) H2O2 केटाले  H2O + 1 / 2 O2

  1. पोटैशियम आयनों के सक्रिय अभिगमन का सिद्धान्त (Active K + transport theory)

इस सिद्धान्त के प्रदाता लेविट (Levitt, 1974) है। इस सिद्धान्त के अनुसार रन्धों का खुलना एवं बन्द होना पोटैशियम आयनों के द्वार कोशिकाओं में प्रवेश ( entry ) एवं निर्गम अथवा बाहर निकलने (exit) पर आधारित होता है। द्वार कोशिकाओं में स्टार्च से बना मैलिक अम्ल केटायन (cations) एवं एनायन (anions) में निम्न प्रकार टूट जाता है।

अन्धकार में उपरन्ध्रीय गुहिका में CO2 की सान्द्रता प्रकाश संश्लेषण के रूक जाने से बढ़ जाती है, परन्तु श्वसन सतत् रूपसे चालू रहता है। उच्च CO, सान्द्रता द्वार कोशिकाओं की जीवद्रव्य कला में प्रोटोन प्रवणता (proton gradient) को रोकता है। इससे द्वार कोशिकाओं में K + आयनों का सक्रिय अभिगमन रूक जाता है तथा OP कम हो जाता है। कोशिकाओं के श्लथ हो जाने से रन्ध्र बन्द हो जाते हैं।

द्वार कोशिकाओं से एनायन बाहर निकल आते हैं तथा निकट पर्णमध्योत्क कोशिकाओं से K + द्वार कोशिकाओं में प्रवेश कर जाते हैं। द्वार कोशिकाओं में K + आयन मैलिक अम्ल से क्रिया कर पौटेशियम मैलेट (potassium malate) बनाता है जिसका रिक्तिकाओं में अभिगमन होता है। इससे द्वार कोशिकाओं का OP बढ़ जाता है, जिसके फलस्वरूप इनमें अन्तःपरासरण (endomosis) होता है। द्वार कोशिकाएं स्फीत हो जाती हैं एवं इनका TP बढ़ने से रन्ध्र खुल जाते हैं।

नोगल एंव फ्रिस्टज (noggle and Fristz, 1976) ने इस सिद्धान्त का समर्थन किया। H+K+ विनिमय एक सक्रिय क्रिया है जिसके लिए ए.टी.पी. (ATP) की आवश्यकता होती है। यह एंटीपी श्वसन अथवा फोटोफास्फोराइलेशन की क्रिया से प्राप्त होती है। शार्प एवं जेगर (Sharp and Zeiger, 1981) ने यह प्रतिपादित किया कि प्रकाश से द्वार कोशिकाओं की . जीवद्रव्य कला में इलेक्ट्रॉन अभिगमन क्रिया का प्रारम्भन (initiation) होता है जिससे K + के द्वार कोशिकाओं में सक्रिय अभिगमन के लिए गतिदायी बल (porton motive force) उत्पन्न हो जाता है। द्वार कोशिकाओं की रिक्तिकाओं में K+ एवं मैलेट आयनों की सान्द्रता बढ़ जाने से परासरण दाब उत्पन्न हो जाता है जिससे यह कोशिकाएं अपने निकट कोशिकाओं से जल अवशोषित करती हैं।