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photoreactivation repair in hindi फोटोरिएक्टीवेशन डीएनए सुधार क्या होता है (DNA Repair)
फोटोरिएक्टीवेशन डीएनए सुधार क्या होता है (DNA Repair) photoreactivation repair in hindi ?
डीएनए सुधार (DNA Repair)
कोशिकाओं की डीएनए में सुधार की अन्तर्भूत क्षमता ने जैविक उद्विकास (biological evolution) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। विगत वर्षों के अनवरत शोध के दौरान वैज्ञानिकों ने पाया कि डीएन. की आण्विक संरचना इस प्रकार की होती है कि इसमें होने वाली क्षति को, कोशिका में उपस्थित असे पहचान कर आसानी से सुधार सकते हैं। डीएनए की संरचना देखने पर ज्ञात होता है कि वह दो कुंडली (double helix) सूत्रों द्वारा निर्मित होता है एवं अपनी प्रतिलिपियाँ बनाने में सक्षम होता है। जब एक सन क्षतिग्रस्त (damaged) होता है एवं दोनों सूत्र अलग हो जाते हैं तब प्रत्येक सूत्र एक टेम्पलेट की त कार्य करने लगता है। लगभग सभी कोशिकाओं में डीएनए क्षति की मरम्मत करने के विकर एन्जाइम उपस्थित रहते हैं। डीएनए के सुधार के बाद कोशिका अपना सामान्य कार्य करने लगती है व जीव शक्ति (vitality) पुनः प्राप्त हो जाती है।
कोशिकाओं में निम्न प्रकार से क्षतिग्रस्त DNA में सुधार लाया जा सकता है
(1) कर्तन सुधार (Excisionrepair) (2) पश्चपुनरावर्ती सुधार (Post replication repair)
(3) एस ओ एस सुधार (SOS repair) (4) बेमेल सुधार (Mismatch repair)
(1) कर्तन सुधार (Excision repair) – इसमें डीएनए के क्षतिग्रस्त भागों का कर्तन करने नए अनुक्रम (sequence) संश्लेषित किए जाते हैं जो टूटे हुए भागों को जोड़ दते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान इनमें गुआनिन के आगे साइटोसिन के डीएमीनेशन द्वारा यूरेसिल बनता है।
यूरेसिल तथा डीऑक्सीराइबोस के मध्य स्थित बन्धन डीएनए ग्लाइकोसीलेस द्वारा टूटकर मात्र शर्करा बचती है जिसमें डीएनए से एपी विस्थल (Ap~ Site) पर क्षार अनुपस्थित होता है। यह एमेन्डोन्यूक्लियेज द्वारा चिन्हित किया गया है जो डीएनए श्रृंखला को जोड़ता है।
बचा हुआ डीऑक्सीराइबोस डी ऑक्सी. राइबोसफोसफोडिसट्रेज द्वारा हट जाता है।
सुधार के दौरान खाली स्थान (gap) डीएनए पॉलीमरेज द्वारा भर जाता है तथा लाइगेज द्वारा सील हो जाता है। इस तरह गुआनीन के आगे सही क्षार बेस साइटोसिन पुनः जुड़ जाता है। जटिल क्रिया विधि काम में ली जाती है जिसके तहत बहुविकर सम्मिश्र (multieæyme complex) सुधार के काम में प्रयुक्त होते हैं। इस क्रिया विधि में क्षतिग्रस्त स्थलों की पहचान (recognition), न्यूक्लिएस क्षारों को हटाना तथा पॉलिमरेस देस की सहायता से नवे संश्लेषित डीएनए के सूत्रों को अवकाशों (gap) के मध्य में (क्षतिग्रस्त डीएनए के कारण) भर दिया जाता है व अन्त में पॉलिन्यूक्लिओटाइड लाइगेज विकर की सहायता से डीएनए के नवसंश्लेषित भागों को जोड दिया जाता है। मानव डीएनए के सुधार में यह विधि इस्तेमाल होती है।
फोटोरिएक्टीवेशन (Photoreactivation) – इस प्रकार के सधार में जो डीएनए अल्ट्रावायलट, प्रकाश के कारण क्षतिग्रस्त होते हैं, उनकी मरम्मत की जाती है। दृश्य प्रकाश (visible light) की उपस्थिति में एन्जायम क्रिया करके द्वितय (dimers) को एकलक (monomer) में खोल देते है व सुधार कार्य शुरू कर देते हैं।
(2) पश्चपुनरावृत्ति सुधार (Post replication repair) – ए. कॉनबर्ग ने डीएनए पॉलिमिरेज प् का पता लगाया जो प्रतिकृति (replication) के समय ही होता है तथा मानव डीएनए के सुधार में भी यह क्रिया विधि इस्तेमाल की जाती है।
(3) एस ओ एस सुधार (SOS repair)- यह प्रोकेरियोटिक जीवों में पाया जाता है। यह सुधार कार्य कोशिका में केवल तभी होता है जब डी एन ए क्षतिग्रस्त हो जाता है व सामान्य विधियों (कर्तन, पश्च पुनरावृत्ति, सुधार आदि) से ठीक नहीं हो सकता।
ई. कोलाई (E- coli) रेक ए (rec A) प्रोटीन कम सान्द्रता में मिलता है किन्तु डी एन ए के क्षतिग्रस्त होते ही इसकी मात्रा कई गुणी बढ़ जाती है। रेक ए के अलावा 15 और विभिन्न प्रकार के प्रोटीन डी एन ए के क्षतिग्रस्त हाते ही संश्लेषित हो जाते हैं जो तुरन्त ही डी एन ए के सुधार (repair) में सहायता प्रदान करते हैं तथा कोशिका को जीवन शक्ति (vitality) प्रदान करते हैं।
(4) बेमेल सुधार (Mismatch Repair)- इस विधि में ऐसे क्षार युग्मों को ज्ञात किया जाता है जो मेच नहीं करते अथवा युग्म ठीक से नहीं बनाते। यह बेमेल मेच प्रतिकृतिकरण अथवा पुनर्योजन (recombination) द्वारा होता है। यह मिसमेच कर्तन सुधार द्वारा ठीक किया जाता है। म्यूट जीन (mute gene) ई. कोलाई के मिसमेच (mis match) में भाग लेता है।
परिशिष्ट (Appendix)-2
जैवप्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग (Applications of Biotechnology)
परिचय (Introduction)
बायोटेक्नोलॉजी में उन तकनीकों का अध्ययन किया जाता है जिसमें जीवों, पादपों या उनसे उपलब्ध विकरों (eæyme) का उपयोग करके मानव के लिये फायदेमंद उत्पादों (products), प्रक्रमों (process) का निर्माण हो सके। उत्पाद बनाने के आधार पर देखा जाए तो इतिहास बायोटेक्नोलॉजी का उपयोग सदियों से हो रहा था जैसे एल्कोहल बनाना, गन्ने के रस से मिल बनाना, बेकरी उद्योग में यीस्ट का इस्तेमाल आंदि। आज इस विधा से इन उत्पादों को हम न पैमाने पर नवीन तकनीकों के माध्यम से तैयार करते हैं। आज बायोटेक्नोलॉजी में आनुवंशिक रूप से परिवर्तित जीव (Genetically Modified Organisms-GMO) द्वारा बड़े पैमाने पर चीजें उत्पन्न की जा सकती हैं। काफी समय से परखनली शिशु (test tube babies) का निर्माण हो रहा है जो बायोटेक्नोलॉजी की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। जीन मैपिंग, ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट (HGP) आदि का उपयोग करके त्रुटिपूर्ण जीन को बदलना या सुधारना व डीएनए टीका (DNA vaccine) का निर्माण इंटरफेरॉन, इंसुलिन, एन्टीबायोटिक औषधि का निर्माण आदि सभी बायोटेक्नोलॉजी की उन्नति को दर्शाते हैं। जैव प्रौद्योगिकी द्वारा कृषि, स्वास्थ्य तथा उद्योगों को व्यापक रूप से फायदा हुआ है।
यूरोपीय जैव प्रौद्योगिकी संघ (European Fedreration of Biotechnology-EFB) के अनुसार बायोटेक्नोलॉजी की परिभाषा है- ष्नवीन उत्पादों व सेवाओं हेतु प्राकृतिक विज्ञान व जीव प्राणी कोशिकाओं व इसके अंग तथा आणविक अनुरूपों का समायोजनष् (The integration of natural science and organisms, cells, parts their of and molecular analogies for products and services)
जैवप्रौद्योगिकी का आरम्भ ऊतक संवर्धन तकनीक की विस्तृत जानकारी एवं पादप कोशिका के पोषण (nutrition) के अध्ययन व अनुसंधान के उपरांत हो सका। इस दिशा में निम्न वैज्ञानिकों का योगदान उल्लेखनीय है।
(I) गोटलिब हैबरलेंड (II) पी. नोबेकोर्ट (III) जार्ज मोरेल (IV) फिलिप व्हाइट (V) एफ. सी.. स्टीवर्ड (VI) इन्द्र कुमार वासिल (VII) इ. सी. कॉकिंग (VIII) ए. सी. हिल्डीब्रांड (ix) तोशियो मुराशिगे व एफ. स्कूग (x) पंचानन महेश्वरी आदि। इन सभी के तथा और भी अनेक वैज्ञानिकों के अथक प्रयासों से पिछले कुछ दशकों में पादप ऊत्तक संवर्धन तकनीक एक उन्नत व प्रभावशाली प्रौद्योगिकी के रूप में विकसित हो गई है। उपरोक्त विधियों का वन के वृक्षों, फसली पादपों तथा बागवानी में प्रयूक्त पोधों की जातियों को बेहतर व उन्नत किस्मों में बदलने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इन विधियों के द्वारा पारम्परिक
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