JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: Biology

personality who contribute in science and technology in india in hindi विज्ञान और तकनिकी के क्षेत्र में महान व्यक्तित्व

जानिये personality who contribute in science and technology in india in hindi विज्ञान और तकनिकी के क्षेत्र में महान व्यक्तित्व के नाम और उपलब्धियां ?

महत्वपूर्ण पहलें
शिक्षाविदों ने भारत में चिंता के प्रमुख क्षेत्रों की पहचान की और कुछ विशेष प्रकार के कदम उठाकर इनका समाधान प्रस्तुत किया।
शिक्षा में सूचना-प्रौद्योगिकी (आईटी) का समावेशः प्रगति एवं विकास में सूचना प्रौद्योगिकी की एक उपकरण के तौर पर भूमिका को व्यापक रूप से स्वीकार किया गया है। शिक्षण में आईटी उपकरणों के प्रयोग ने अधिगम प्रक्रिया को महत्वपूर्ण रूप से सरल एवं वहनीय बना दिया है। भारत जैसे बड़े एवं विकासशील देश के लिए दूरवर्ती शिक्षा (डिस्टेंस लर्निंग) जैसी प्रौद्योगिकी के प्रयोग को बड़े स्तर पर अपनाने की आवश्यकता है जिससे सीमित शैक्षिक सामग्री और संसाधनों की समस्या का समाधान हो सके। आईआईटी, आईआईएससी, इग्नू, नेशनल काउंसिल फाॅर साइंस एंड टेक्नोलाॅजी (एनसीएसटी) और बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस ए.ड टेक्नोलाॅजी (बीआईटीएस), पिलानी जैसे अग्रणी संस्थानों के साथ आईटी आधारित सामान्य शिक्षा एवं आईटी शिक्षा दोनों की अभिवृद्धि के दीर्घावधिक उद्देश्य के साथ बड़ी संख्या में प्रोजेक्ट प्रायोजित किए गए हैं। इग्नू में आईटी से सम्बद्ध कई सारे कोर्स हैं और इस संस्कृति को आगे बढ़ाया जा रहा है। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् (एनसीईआरटी) ने एक राष्ट्रीय कम्प्यूटर-आधारित शिक्षा केंद्र की स्थापना की है ताकि शिक्षकों के प्रशिक्षण एवं विकास को प्रोत्साहित किया जा सके।
पीपुल्स साइंस मूवमेंट के माध्यम से शिक्षाः कुछ दशक पूर्व पीपुल्स साइंस मूवमेंट (पीएसएम) पर विचार किया गया और इसके द्वारा शिक्षा प्रदान करने का एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया। पीएसएम की भूमिका न केवल विज्ञान के संचार एवं सरलीकरण तक सीमित थी अपितु विज्ञान-सम्बद्ध गतिविधियों के प्रत्येक पहलू पर प्रश्न करना भी है, विशेष रूप से जहां विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का मुद्दा संलग्न हो और लोगों की सहभागिता से जहां कहीं भी आवश्यक हो हस्तक्षेप करना है।
होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम का विकास पीएसएम का परिणाम था। शिक्षा की प्रक्रिया में विद्यार्थियों की सक्रिय सहभागिता इस प्रयास की एक अद्वितीय विशेषता थी। यद्यपि इसने शिक्षा की परम्परागत पद्धति से विचलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका दर्ज की और प्रभावी साबित हुआ, तथापि यह अभी तक औपचारिक पद्धति में तब्दील नहीं हो पाया। पीएसएम तेजी से बढ़ा और पूरे देश में फैल गया और भारत ज्ञान विज्ञान जत्था के नाम से जनआंदोलन का नेतृत्व किया एवं समाज में विज्ञान एवं वैज्ञानिक प्रवृत्ति के अवशोषण के लिए आवश्यक सामाजिक माहौल तैयार करने में उल्लेखनीय रूप से मदद की।
एक्सप्लोरेटरीः पुणे में कुछ समर्पित शिक्षाविदों द्वारा एक अद्वितीय संस्था एक्सप्लोरेटरी का विकास किया गया। एक्सप्लोरेटरी न तो एक स्कूल या काॅलेज लेबोरेट्री है और न ही एक संग्रहालय है, लेकिन यह एक ऐसा स्थान है जहां स्कूल एवं काॅलेज के बच्चे प्रयोग एवं अनुप्रयोग, खोज एवं नवोन्मेष, एवं अभिकल्पन तथा निर्माण कर सकते हैं। एक्सप्लोरेटरी में कोई शिक्षक नहीं होता है, लेकिन अत्यधिक अनुभवी माग्र दर्शक होते हैं। इसका उद्देश्य विज्ञान की प्रक्रिया में भागीदारी द्वारा बच्चों को विज्ञान सीखने में सक्षम बनाना। एक्सप्लोरेटरी उत्सुक एवं सावधानीपूर्वक प्रेक्षण को प्रोत्साहित करती है, उत्सुकता को बढ़ाती है, प्रश्न पूछने के लिए बच्चों को प्रोत्साहित करती है, उत्तरों को प्रश्नगत करने और सामान्यीकरण और खोज करने में उन्हें सक्षम बनाती है।
यद्यपि विज्ञान शिक्षा की औपचारिक पद्धति ने अभी तक विज्ञान अधिगम की एक्सप्लोरेटरी पद्धति को नहीं अपनाया है, फिर भी पूरे देश में एक्सप्लोरेटरीज की स्थापना की जागी चाहिए।
नवोदय विद्यालयः नवोदय विद्यालय वर्ष 1986 में भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा शुरू किया गया था। इस योजना का लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्रों में सुव्यवस्थित एवं उच्च कौशल प्राप्त शिक्षकों वाले विद्यालय की स्थापना करना था। कुशाग्र एवं प्रतिभाशाली बच्चों को अच्छी गुणवत्ता की विज्ञान शिक्षा मुहैया कराने के लिए प्रत्येक जिले में कम से कम एक विद्यालय खोलना। इन नवोदय विद्यालयों ने क्षेत्र के दूसरे विद्यालयों के लिए भी संसाधन केंद्र और गति निर्धारक के तौर पर भी सेवा प्रदान की। आज इसका उद्देश्य उत्कृष्टता को बढ़ावा देना और असमानताओं को दूर करना भी है।
अंडर ग्रेजुएट विज्ञान शिक्षा पुनग्रठन प्रस्तावः राष्ट्रीय योजना आयोग ने स्नातक के अंतग्रत विज्ञान शिक्षा के पुनग्रठन के सुझाव के लिए एक समिति का गठन किया था। समिति ने स्नातक के स्तर पर विज्ञान शिक्षा के पुनर्शक्तीकरण को लेकर त्रिस्तरीय उपागम की अनुशंसा की। यद्यपि अनुशंसाओं को समूचे वैज्ञानिक समुदाय ने हतोत्साहित किया जिससे ये अभी तक औपचारिक पद्धति का अंग नहीं बन सके।
उत्कृष्टता बढ़ाने में यूजीसी के प्रयासः उत्कृष्टता में अभिवृद्धि करने के लिए यूजीसी ने बड़ी संख्या में कार्यक्रम निर्धारित किए हैं
ऽ स्वायत्त काॅलेज
ऽ संकाय सुधार कार्यक्रम
ऽ अकादमिक स्टाफ काॅलेज
ऽ उच्च शिक्षा केंद्र
ऽ पाठ्यक्रम विकास कार्यक्रम
ऽ कैरियर विकास कार्यक्रम
ऽ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की अवसंरचना को मजबूत करने में सहायता
ऽ क्षमता के साथ विश्वविद्यालयों की पहचान और उन्हें वैश्विक स्तर का बनाने में मदद करना।
अंतर-विश्वविद्यालय केंद्रः उत्कृष्टता वर्द्धन की दिशा में यूजीसी द्वारा किया गया एक महत्वपूर्ण कार्य था अंतर-विश्वविद्यालय केंद्रों की स्थापना करना जो आधुनिक अनुप्रयोगात्मक सुविधाओं से सुसज्जित थीं। इस दिशा में न्यूक्लियर साइंस सेंटर, दिल्ली; इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फाॅर एस्ट्रोनाॅमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स, पुणे; इंटर-यूनिवर्सिटी कंर्सोटियम फाॅर द डिपार्टमेंट आॅफ एटोमिक एगर्जी महत्वपूर्ण हैं, जो बेहद उपयोगी सिद्ध हुए हैं।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी उन्नत केंद्रः कुछ वरिष्ठ वैज्ञानिकों एवं उद्यमियों ने एडवांस्ड सेंटर फाॅर साइंस एंड टेक्नोलाॅजी (एसीएसटी) की स्थापना का प्रस्ताव रखा। ये संयुक्त विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र हैं। इसने शिक्षा एवं अनुसंधान, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, विशुद्ध एवं औद्योगिक अनुसंधान को समन्वित करने का प्रयास किया। ये केंद्र 5 वर्षीय समन्वित एमएससी या एम.टेक. डिग्री कोर्स प्रदान करेंगे। यूजीसी ने दसवीं पंचवर्षीय योजना में एसीएसटी के गठन का प्रस्ताव शामिल किया था।
इस प्रकार स्वातंत्र्योत्तर काल में भारत में विज्ञान शिक्षा के प्रसार के लिए अत्यधिक संगठनात्मक एवं अनौपचारिक प्रयास किए। इसके परिणामस्वरूप आज भारत का विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में एक सराहनीय स्थान है।
प्र्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक
अश्विनी कुमारः वैदिक काल से ही भारत चिकित्सा सहित अनेक क्षेत्रों में उन्नति कर चुका था। वैदिक काल में भारत में दो महान चिकित्सक अश्विनी कुमार बन्धु प्रसिद्ध थे। औषधि विज्ञान,शल्य-चिकित्सा तथा विशुद्ध आयुर्वेद के विशेषज्ञ के रूप में इन कुमार बंधुओं का वर्णन ऋग्वेद व पुराणों में भी मिलता है। उल्लेखनीय है किए जड़ी-बूटियों द्वारा निर्मित च्यवनप्राश का सृजन इन जुड़वां भाइयों द्वारा ही किया गया था।
अरदासीर कर्स्टजी (1808-1877)ः इन्होंने वर्ष 1841 में बम्बई में गैस स्ट्रीट लाइट से लोगों को परिचित करवाया था। ये प्रथम भारतीय थे, जिन्हें राॅयल सोसायटी की फेलोशिप के लिए चुना गया था।
अवतार सिंह पेंटल (1925)ः राॅयल सोसायटी के फेलो, जिन्होंने फेफड़ों में स्थित श्र-अभिग्राही की खोज की। इनकी महत्वपूर्ण उपलब्धि फेफड़ों और हृदय से संबंधित बीमारियों और उच्च-स्तर पर समस्याओं के इलाज और अध्ययन में सहायता प्रदान करना है।
आनन्द चक्रवर्ती (1938 ई.)ः भारत में जन्मे इस अमेरिकी वैज्ञानिक ने एक ‘सुपरबग’ बैक्टीरिया-‘सुडोमोनास’ का विकास किया है, जिसे प्रथम जैव पेटेण्ट के रूप में निबन्धित किया गया है।
आर्यभट्ट (476-550)ः प्राचीन भारत के प्रसिद्ध गणितज्ञ, जिनकी रचना ‘आर्यभट्टीय’ कहलाती है। इन्होंने गणित एवं खगोल में कई युगानतकारी स्थापनाएं दीं। सबसे पहले तो इन्होंने ये बताया कि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती हुई सूर्य की परिक्रमा करती है। उन्होंने π (पाई) का सटीक मान भी दिया- 3-1416। उन्होंने वग्रमूल निकालने की विधि एवं कई त्रिकोणमितीय निष्पत्तियां भी दीं।
आशीष प्रसाद मित्र (1927)ः प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी, जिनका योगदान व्यक्तिगत रूप से आयनमण्डल से सम्बद्ध, समताप मंडल-मध्य ताप मंडल (जोड़ों) और ग्लोबल वर्मिग के क्षेत्र में रहा।
डाॅ. आत्माराम (1908-1985)ः डाॅ. आत्माराम का जन्म उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के पिलाना गांव में 12 अक्टूबर, 1908 को हुआ।
डाॅ. आत्माराम डी.एस.सी.एफ.एस.जी.टी. (ऑनरेरी), एक आई.सी.एनआई, अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक थे जिन्होंने कांच और सिरेमिक क्षेत्रों में अत्यंत महत्वपूर्ण वैज्ञानिक अनुसंधान किए। उन्होंने केनिल कांच, सिलेनियम मुक्त लाल कांच जैसे पदार्थ बनाने की विधि विकसित की है, जिनसे देश में अनेक नए उद्योग स्थापित हुए। उनके नेतृत्व में कांच और सिरेमिक अनुसंधान संस्थान ने देश मंे ही उपलब्ध पदार्थों से ऑप्टीकल कांच बनाने की विधि विकसित की और अब यह संस्थान देश की संपूर्ण ऑप्टीकल कांच की मांग पूरी करता है। इनका निधन 1985 में हुआ।
अयोध्यानाथ खोसला (1892)ः इनका प्रमुख कार्य जल दबाव को गणितीय सिद्धांत पर क्रियान्वित कर द्रव चालित को भी शामिल कर उस आधार पर बांध और वीयर का विवेकपूर्ण ढंग से डिजाइन करना था। गणितीय निपुणता के इनके परिणाम के रूप में, इन्होंने वर्षा घटना और सतह या सतही जल के बह जागे और जलाशय के गाद दर के लिए एक फार्मूले की स्थापना की। 1955 में इन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। ये सिंचाई और जल-निकासी पर आधारित अन्तरराष्ट्रीय आयोग के संस्थापक और अध्यक्ष थे।
कणाद (6ठी सदी पू.)ः कस्यप एवं उलूक नाम से भी प्रसिद्ध कणाद अणु-सिद्धांत के प्रवर्तक थे। इन्होंने अपने ‘वैशेषिक’ सूत्रों में ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के जो आणविक सिद्धांत दिए हैं, वे आधुनिक विकासवादी सिद्धान्त से आश्चर्यजनक रूप से साम्य रखते हैं।
कपिल (550 ई. पू.)ः ये ‘सांख्य’ दर्शन के प्रतिपादक थे। ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के सम्बन्ध में इन्होंने कई सिद्धान्त दिए हैं। ‘तमस’ व ‘रजस्’ एवं ‘सत्व’ गुणों का प्रतिपादन भी सर्वप्रथम इन्होंने ही किया।
कैंडी जाॅर्ज सुदर्शनः भारत में जन्मे इस संयुक्त राज्य अमेरिका के भौतिक विज्ञानी ने हमारे समक्ष मनोग्रन्थि से सम्बद्ध कई समस्याओं का समाधान तथा कई सिद्धान्तों को प्रस्तुत किया। यह प्रथम वैज्ञानिक थे, जिन्होंने आधार तत्व के रूप में टैकिआॅन्स की धारणा को 1969 ई. में विस्तृतता प्रदान की। वह बंगलौर शहर स्थित कण-सिद्धान्त केन्द्र के संस्थापक और निदेशक थे।
डाॅ.- गणेश प्रसाद (1876-1935)ः इनका सबसे महान एवं महत्वपूर्ण कार्य आगरा विश्वविद्यालय की स्थापना और उसका विकास करना था। इन्होंने गणित संबंधी अपनी भौतिक अण्वेषणाएं अपने छात्र जीवन से ही शुरू कर दी थीं। उन्होंने कई शोधपूर्ण लेख लिखे। उनका प्रथम शोधपत्र ‘‘दैध्र्य फलों और गोलीय हरात्मक’’ (एलिप्टिक फंक्शंस एंड स्केरिकल हार्मोनिक्स) शीर्षक से ‘मैसेंजर आॅफ मैथमैटिक्स’ नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ, तो संपूर्ण विश्व में तहलका मच गया। इस लेख में उन्होंने कई प्रख्यात विद्वानों की भूलों और त्रुटियों को शुद्ध किया और उनको सिद्ध किया।
डाॅ. गणेश प्रसाद वर्ष 1932 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस और गणित, भौतिक विज्ञान सम्मेलन के अध्यक्ष निर्वाचित किए गए। शोधपूर्ण लेखों के अतिरिक्त उन्होंने 11 उच्च कोटि की भौतिकी विषय पर पुस्तकें लिखीं, जिनमें से कई भारत में ही नहीं, अपितु विदेशों में भी उच्च कक्षाओं में पाठ्य पुस्तकों के रूप में पढ़ाई जाती हैं। कैंब्रिज विश्वविद्यालय से डिग्री प्राप्त कर डाॅ. गणेश प्रसाद ने जर्मनी के गार्टजन नगर के विद्यापीठ में हिलवर्ट और जेमरफील्ड जैसे गणिताचार्य के भारत में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का विकास 547 548 भारतीय संस्कृति साथ गणित का परिशीलन किया। 9 मार्च, 1935 को उनका देहावसान मस्तिष्क पक्षाघात से हो गया।
गोविंद स्वरूप (1929)ः प्रसिद्ध सौर एवं रेडियो खगोल-विज्ञानी, जिन्होंने ऊटकमंड में रेडियो टेलिस्कोप के उत्पादन और डिजाइन बनाने में खगोल भौतिकी के अनुशासन को शामिल कर महत्वपूर्ण उपलब्धियां प्राप्त की हैं।
गोपालसमुद्रम नारायण रामचंद्रन (1922)ः इन्हें आ.िवक जीव-भौतिक का पिता भी कहा जाता है, क्योंकि ये ही इनके संस्थापक थे।
चरकः 200-100 ईसा पूर्व प्रसिद्ध चिकित्साशास्त्री थे, जिन्होंने आयुर्वेदिक दवाओं के निर्माण में कई उपलब्धियाँ हासिल कीं। इनके द्वारा चिकित्साशास्त्र पर रचित ‘चरक संहिता’ एक मान्य पुस्तक है। उन्होंने शरीर में तीन मुख्य तत्व माने वायु, पित्त एवं कफ इनमें असंतुलन को दूर करना ही आयुर्वेद का लक्ष्य बताया गया।
चन्द्रशेखर वेंकट रमन (1888-1970 ई.)ः रमन-प्रभाव के लिए 1930 में भौतिकी का ‘नोबेल पुरस्कार’ प्राप्त विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक सी. वेंकट रमन द्वारा ‘रमन-प्रभाव’ 28 फरवरी को आविष्कृत हुआ था, जिसके महत्व को देखते हुए प्रतिवर्ष 28 फरवरी को ‘राष्ट्रीय विज्ञान दिवस’ मनाया जाता है। 1954 में उन्हें ‘भारत रत्न’ सम्मान से भी विभूषित किया गया।
जयन्त विष्णु नार्लीकर (1938 ई.)ः ‘व्हाइट होल’ के ऊर्जा स्रोत पर इनका अनुसंधान विश्व स्तर पर सराहा गया। गुरुत्वाकर्षण सिद्धान्त पर सर फ्रेड होयले के साथ मिलकर इन्होंने उल्लेखनीय कार्य किए हैं।
डी.आर. कापरेकर (1905)ः वर्ष 1976 में गणितज्ञ डी.आर. कापरेकर ने ‘कापरेकर नियतांक’ की खोज की, जो संख्या 6174 को निर्दिष्ट करता है।
डी.एस.कोठारी (1906)ः इनका मुख्य योगदान खगोल भौतिकी के क्षेत्र में रहा। दाब-आयनीकरण का इनका सिद्धांत, जो विस्फोटक भार के भारी दबाव के नीचे धातु के व्यवहार और अध्ययन में प्रयुक्त होता है अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इन्हें 1962 में पद्मभूषण प्रदान किया गया।
डाॅ. दाराशा नौशेरवां वाड़िया (1883)ः डा.ॅ वाड़िया का जन्म 23 अक्टबूर 1883 को गुजरात राज्य के सूरत नगर में हुआ था। इन्होंने बंबई विश्वविद्यालय से बी.एस.सी. तथा एम.ए. की उपाधियां प्राप्त कीं। वर्ष 1907 में इन्हें जम्मू के प्रिंस ऑफ़ वेल्स काॅलेज में भूर्गीा का प्राध्यापक नियुक्त किया गया। वर्ष 1921 में 38 वर्ष की आयु में इन्होंने भारतीय भूतात्विक सर्वेक्षण विभाग अर्थात् तत्कालीन जियोलाॅजिकल सर्वे आॅफ इ.िडया में कार्य

Sbistudy

Recent Posts

सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है

सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…

1 day ago

मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the

marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…

1 day ago

राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi

sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…

3 days ago

गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi

gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…

3 days ago

Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन

वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…

3 months ago

polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten

get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…

3 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now