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पेरीपेटस क्या है , Peripatus in hindi ओनिकोफोरा वर्गीकरण , संघ , आवास एवं स्वभाव (Habit and Habital)

जाने पेरीपेटस क्या है , Peripatus in hindi ओनिकोफोरा वर्गीकरण , संघ , आवास एवं स्वभाव (Habit and Habital) ?

पेरीपेटस (Peripatus)

वर्गीकरण (Classification)

संघ (Phylum) – आर्थोपोड़ा (Arthropoda)

द्विपार्श्व सममित, त्रिस्तरीय, खण्डयुक्त शरीर, देहगुहीय, शरीरिक गठन ऊत्तक अंग स्तर तक का होता है। संधि युक्त उपांग पाये जाते हैं। काइटिनी क्यूटिकल का बाह्य कंकाल पाया जाता है। परिसंचरण तन्त्र खुले प्रकार का होता है।

उपसंघ या वर्ग (Subphylum or Class) : ऑनिकोफोरा (Onychophora)

स्थलीय, आदिकालीन (primitive) कृमि समान शरीर तथा शरीर अखण्डित। लूंठदार असन्धित और नखरित अनेक टांगें पायी जाती है।

वंश (Genus) : पेरिपेटस (Peripatus).

पेरिपेटस एक आदिम प्रकार का जन्तु है जो अपने स्वयं के प्रारूपी लक्षणों में एनेलिड कृमियों तथा आथ्रोपोड़ जन्तुओं के लक्षणों को प्रदर्शित करता है। इस प्रकार यह जन्तु दो संघों के लक्षणों को प्रदर्शित करता है अतः इसे दोनों संघों को जोड़ने वाली कड़ी (connecting link) के रूप में जाना जाता है।

भौगोलिक वितरण (Geographical distribution)

पेरिपेटस की विभिन्न जातियाँ (लगभग 75 जातियाँ) विश्व के गर्म प्रदेशों में पायी जाती है। ये सभी जातियाँ अफ्रीका, न्यूजीलैण्ड, आस्ट्रेलिया, दक्षिणी मध्य अमेरिका, मेक्सिको, वेस्ट इन्जीज, मलेशिया, भारत आदि देशों में पायी जाती हैं। परिपेटस की सभी जातियाँ एक ही वंश के अन्तर्गत आती है यह जन्तु असतत वितरण का एक बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत करता है।

आवास एवं स्वभाव (Habit and Habital)

पेरिपेटस एक स्थलीय जन्तु होता है जो नम व अन्धेरे स्थानों जैसे चट्टानों की दरारों, पत्थरों या लकड़ी के लट्ठों के नीचे या गिरी हुई पत्तियों के ढेर के नीचे पाया जाता है। यह एक रात्रीचर (nocturnal), मांसाहारी (carnivorous) व शिकारी प्रवृत्ति का जन्तु होता है। यह छोटे अकशेरूकी प्राणियों जैसे घोंघे कीट तथा कृमियों को भोजन के रूप में ग्रहण करता है। पेरिपेटस की कई जातियाँ दीमकों को अपना मनपसन्द भोजन मानते हैं। पेरीपेटस की अधिकांश जातियाँ जरायुज (viviparous) अर्थात् शिशुओं को जन्म देने वाली होती है। एक मादा एक साल में एक बार में 30-40 शिशुओं को जन्म देती है।

बाह्रा आकारिकी (External morphology)

पेरीपेटस का शरीर लम्बा कृमि समान या केटर पिलर समान लम्बा, कोमल, बेलनाकार द्विपार्श्व सममित होता है। इसकी लम्बाई 2 सेमी. से लगाकर 15 सेमी तक होती है। इसके पार में बाहरी खण्ड विभाजन स्पष्ट दिखाई नहीं देता है केवल युग्मित उपांगों द्वारा ही खण्डों का अनमान लगाया जा सकता है। शरीर पर कई सतही लाइनें या छल्लेनुमा चिन्ह पाये जाते हैं जिनका खण्टी भवन से कोई सम्बन्ध नहीं होता है।

पेरीपेटस की त्वचा पतली क्यूटिकल से ढकी रहती है जो कोमल व मखमली प्रकृति की होती है। इसकी त्वचा में अनेक अनुप्रस्थ सलवटें पायी जाती है जिनके बीच में अनेक शंक्वाकार काइटिनी कंटक सहित पेपिली (papillae) या गुल्लिकाएँ (tubercles) पायी जाती है। पेरीपेटस की पृष्ठ की त्वचा का रंग गहरा धूसर (dark grey) या भूरा (brown) होता है। अधर सतह का रंग रक्ताभ होता है। किनारों के ओर की त्वचा पर गहरे नीले, हरे, लाल-नारंगी या काले रंग की मार्किंग (marking) पायी जाती है।

पेरीपेटस के शरीर को प्रमुख रूप से दो भागों में बांटा जा सकता है (i) अस्पष्ट सिर (head) (2) लम्बा धड़ (trunk)

1.सिर (Head) : पेरिपेटस का अगला सिरा स्पष्टतः सिर की भांति तो नहीं होता है परन्तु इस पर एक जोड़ी पृष्ठीय नेत्र, एक जोड़ी शृंगिकाएँ, एक जोड़ी अवपंक स्रावी ग्रंथियाँ (slime secreting glands) मुखीय अकुरक (oral papillae) और एक मध्य अधरीय मुख पाया जाता है। मुख में एक जोड़ी काइटिनी जबड़े पाये जाते हैं।

(i) नेत्र (Eyes) : सिर के पृष्ठ भाग में एक जोड़ी सरल नेत्र पाये जाते है जो एनेलिडा संघ के कीटोपोड जन्तुओं के समान होते हैं।

(ii) शृंगिकाएं (Antennae) : सिर पर एक जोड़ी शृंगिकाएँ पायी जाती है जो प्रथम जोड़ी उपांगों को निरूपित करती है। शृंगिकाएँ छल्लेदार होती है तथा स्वतन्त्र सिरे की ओर पतली होती जाती है। अंगिकाओं का अग्रस्थ सिरा फूला हुआ होता है। शृगिकाओं के छल्लों पर कई कटिकाएँ पायी जाती है। शृंगिकाएँ स्पर्शग्राही संवेदांग होती है।

  • मुखीय अंकुरक (Oral papillae) : मुखीय अंकुरक तृतीय जोड़ी उपांगों को निरूपित करती हैं। सिर पर मुख के दोनों ओर एक-एक मुखीय अंकुरक स्थित होता है। मुखीय अंकुरक के शीर्षस्थ सिरे पर एक छिद्र पाया जाता है जिससे विशिष्ट अवपंकी ग्रन्थि (slime gland) बाहर खुलती है।

(iv) जबड़े (Jaws or Mandibles) : मुख गुहा के भीतर एक जोड़ी काइटिनी जबड़े पाये जाते हैं जो दूसरी जोड़ी उपांगों को निरूपित करती है। प्रत्येक जबड़ा एक छोटी पेशीय ठूंठ समान (stumpy) संरचना होती है। इनके स्वतन्त्र सिरे पर एक जोड़ी तीक्ष्ण ब्लेडनुमा संरचनाएँ पायी जाती है। प्रत्येक जबड़े पर मुड़ी हुई दांतेदार चबाने योग्य संरचनाएँ पायी जाती है। जबड़े की आन्तरिक काटने योग्य पेलट पर मुख्य दांत के अलावा काटने वाले दांत पाये जाते हैं। जबड़े भोजन को चीरने व चबाने का कार्य करते हैं।

  1. धड़ (Trunk) : पेरीपेटस का धड़ लम्बा होता है व इसकी त्वचा पर बाह्य कंकाल का अभाव होता है। त्वचा में कई अनुप्रस्थ सलवटें पायी जाती है जिन पर मस्से (wart) समान पेपिला पायी जाती है। धड़ पर युग्मित उपांग या टांगें पायी जाती है। जिनकी संख्या जाति व लिंग के अनुसार 14 से 43 जोड़ी होती है। सभी टांगे संरचना में समान होती है तथा नियमित अन्तराल पर उपस्थित रहती है। प्रत्येक टांग दो मुख्य भागों की बनी होती है पाये या ठूंठ समान टांग (leg) व पाद (foot) प्रत्येक टांग एक अखण्डित, खोखली, शंक्वाकार उभार के रूप में होती है जिसके अन्तिम सिर पर एक जोड़ी नखर पाये जाते हैं।

टाँगों के अधर तल पर 3 से 6 गद्दियाँ पायी जाती हैं जो चलते समय शरीर को धरातल से ऊपर उठाये रखती है। टांग की सम्पूर्ण सतह पर कई पेपिली पायी जाती है। पाद का वह भाग जिस पर नखर पाये जाते हैं वह विशेष रूप से भीतर खींचने योग्य होता है।

शरीर के पश्च भाग में अन्तिम जोड़ी टांगों के पीछे गुदा (anus) पायी जाती है जिससे आहारनाल बाहर खुलती है। शरीर के पश्च सिरे पर गुदा के सम्मुख अन्तिम जोड़ी टांगों के बीच जनन छिद्र (genital pore) पाया जाता है। प्रत्येक टाँग के आधारी भाग में उत्सर्जी छिद्र (nephridiopore) जाता है।

  1. देहभित्ति (Body wall) : देहभित्ति निम्नलिखित स्तरों की बनी होती है (i) क्यूटिकल (ii) एपिडर्मिस (iii) डर्मिस (iv) पेशियाँ

(i) क्यूटिकल (Cuticle) : यह एक पतला काइटिनी स्तर होता है जो सम्पूर्ण शारीरिक सतह को ढके रखता है। यह केवल एक माइक्रोन पतली होती है। क्यूटिकल लचीली व पारगम्य होती है । शरीर पर कठोर बाह्य कंकाल नहीं होने के कारण पेरीपेटस आसानी से शरीर को सिकोड कर संकरे स्थानों से भी आसानी से निकल जाता है । क्यूटिकल उभार युक्त (ridged) होती है तथा सूक्ष्म छोटी गांठनुमा (tubercles) संरचनाएँ पायी जाती है जो क्यूटिकल की सतह को मखमली स्वरूप प्रदान करती है।

(ii) एपिडर्मिस ( Epidermis ) : क्यूटिकल के नीचे एक स्तरीय उपकला या एपिडर्मिस (epidermis) पायी जाती है। एपिडर्मिस डर्मिस के ऊपर स्थित होती है। एपिडर्मिस एक स्तरीय कोशिकाओं की बनी होती है व क्यूटिकल का स्रावण करती है।

(iii) डर्मिस (Dermis ) : यह स्तर एक पतले संयोजी ऊत्तक का बना होता है तथा यह एपिडर्मिस के नीचे स्थित होती है।

  • पेशियाँ (Muscles) : डर्मिस के नीचे पेशियों के तीन स्तर पाये जाते हैं। सबसे बाहरी स्तर वृत्ताकार (circular) पेशियों का स्तर होता है। सबसे आन्तरिक स्तर लम्बवत् (longitudinal) पेशियों का स्तर होता है, तथा दोनों स्तरों के मध्य तिरछी ( diagonal) पेशियों का स्तर पाया जाता है। देह भित्ति की मुख्य पेशियाँ अरेखित प्रकार की होती है। जबड़े की पेशियाँ अनुप्रस्थ रूप से रेखित होती है। इस प्रकार पेरीपेटस की देहभित्ति प्रारूपी रूप से एनेलिडा संघ के समान होती है।

गमन (Locomotion) : पेरिपेटस अपनी टांगों की सहायता से रेंग कर गति करता है। टांगों में गति शरीर के संकुचन व प्रसार के कारण होती है। पेरीपेटस धीमी गति से गमन करता है। पेरीपेटस अपने शरीर को सिकोड़ कर शरीर से कम व्यास वाली संकरी दरारों से भी आसानी से रेंग कर निकल सकता है।

देहगुहा (Body cavity ) : पेरीपेटस की देहगुहा हीमोसील कहलाती है। यह उपकला या एपिथिलियम (epithelium) द्वारा आस्तरित रहती है तथा चार कक्षों में बंटी होती है। एक केन्द्रीय दो पार्श्वीय तथा एक अधरीय या पेरिकॉर्डियल या परिहृद गुहा । केन्द्रीय कक्ष सबसे बड़ा होता है जिसमें आहार नाल, जनन अंग तथा अवपंकी या स्लाइम ग्रन्थियाँ पायी जाती है। पाश्र्वय कक्ष केन्द्रीय कक्ष की तुलना में काफी छोटे होते हैं तथा केवल टांगों तक प्रसारित रहते हैं। परिहृद कक्ष

या पेरिकार्डियल कक्ष में विशिष्ठ प्रकार का कोशिकीय ऊत्तक भरा रहता है। वास्तविक देहगुहा केवल जननांगों की गुहा व नेफ्रिडिया से सम्बन्धित छोटे थैलों तक ही सीमित रहती है।

अवपंकी या स्लाइम ग्रन्थियाँ ( Slime glands) : पेरीपेटस की देहगुहा में दोनों ओर एक जोड़ी अवपंकी ग्रन्थियाँ पायी जाती है। ये ग्रन्थियाँ नालिकाकार होती है तथा इनकी वाहिकाएँ फूल कर बड़े अवपंक आशय (slime reservoir) का निर्माण करती है। ये ग्रन्थियाँ मुखीय अंकुरक या पेपिला (oral papillae) के अन्तस्थ सिरे पर खुलती है। ये ग्रन्थियाँ एक चिपचिपे पदार्थ या , का स्रावण करती है जो शिकार को पकड़ने में सहायक होता है। स्लाइम ग्रन्थियों का स्राव दो धाराओं के रूप में विसर्जित किया जाता है जो लगभग 50 सेमी दूर तक जा सकती है। यह भी शीघ्र ही धागे समान संरचनाओं के रूप में कठोर हो जाता है जिससे शिकार निष्क्रिय हो जाता है।

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