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अनिषेक जनन किसे कहते है | अनिषेकजनन की परिभाषा क्या है उदाहरण उसके प्रकार (parthenogenesis in hindi)

(parthenogenesis in hindi) अनिषेक जनन किसे कहते है | अनिषेकजनन की परिभाषा क्या है उदाहरण उसके प्रकार ? 

अनिषेकजनन (parthenogenesis) : अनिषेकजनन से तात्पर्य है , निषेचन के बिना मादा युग्मक से सीधे ही नए पौधों का विकास। वस्तुतः शब्द “parthenogenesis” का गठन ग्रीक भाषा के दो शब्दों क्रमशः पार्थीनो और जेनेसिस को मिलाकर हुआ है। हिंदी में इसका शाब्दिक अर्थ है – लैंगिक जनन के बिना मादा युग्मक से नवीन जीवन की उत्पत्ति होना।

अनिषेकजनन शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम ओवेन (1849) के द्वारा किया गया था। उसके अनुसार “मादा युग्मक का नर युग्मक से संयोजन न होने पर भी यदि भ्रूण का विकास हो तो इस प्रक्रिया को अनिषेकजनन कहते है। “
यह एक विशेष प्रकार के असंगजनन का प्रारूप है जिसमें गुरुबीजाणुमातृ कोशिका अर्धसूत्री विभाजन के द्वारा पहले अंड का निर्माण करती है और इसके बाद युग्मकी संलयन अथवा निषेचन के बिना ही अंड कोशिका से भ्रूण का निर्माण होता है।

अनिषेकजनन के प्रकार (types of parthenogenesis)

सुओमेलेनिन (1950) ने प्रजनन की विधि और कोशिकीय लक्षणों के आधार पर अनिषेकजनन को दो श्रेणियों में विभेदित किया है। इसका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित प्रकार से है –
I. प्रजनन विधि के आधार पर वर्गीकरण (classification based on reproduction) : प्रजनन की विधि के आधार पर अनिषेकजनन की प्रक्रिया को निम्नलिखित वर्गों में बाँटा जा सकता है।
(1) आकस्मिक अनिषेकजनन (accidental parthenogenesis) : कभी कभी अनिषेचित अंड कोशिका अचानक ही भ्रूण में विकसित हो जाती है।
(2) सामान्य अनिषेकजनन (normal parthenogenesis) : जब किसी पौधे में अनिषेकजनन , प्रजनन की बहु प्रचलित प्रक्रिया होती है , तो इसे सामान्य अनिषेकजनन कहते है। यह भी निम्नलिखित प्रकार का हो सकता है –
(अ) अविकल्पी अनिषेकजनन (obligatory parthenogenesis) : यहाँ अनिषेकजनन की प्रक्रिया केवल अंड कोशिका से ही हो सकती है , यह भी दो प्रकार की हो सकती है –
(i) पूर्ण अथवा सतत अनिषेकजनन (complete or constant parthenogenesis) : इनमें सभी पीढियों में भ्रूण विकास अनिषेकजनन द्वारा ही होता है। अत: इसे अचक्रीय अनिषेकजनन भी कहते है।
(ii) चक्रीय अनिषेकजनन (cyclic parthenogenesis) : जिसमें एक अथवा अधिक अनिषेकजननीय पीढ़ी और उभयलिंगी पीढ़ी एक दुसरे के एकांतर क्रम में आती है।
(ब) वैकल्पिक अनिषेकजनन (facultative parthenogenesis) : यहाँ भ्रूण का परिवर्धन निषेचित और अनिषेचित दोनों प्रकार की अंड कोशिकाओं से होता है।
II. कोशिकीय लक्षणों पर आधारित वर्गीकरण (classification based on cytological characters) :
1. जनन अथवा अगुणित अनिषेकजनन :जब भ्रूण विकास ऐसी अंड कोशिका से जिसमें अर्धसूत्री विभाजन हो चुका हो तो इसे अगुणित अनिषेकजनन कहते है। इस प्रकार द्वारा विकसित पादप अगुणित होते है।
2. कायिक अनिषेकजनन (somatic parthenogenesis) : अनिषेकजनन की इस प्रक्रिया द्वारा विकसित पौधे द्विगुणित होते है। इसे निम्नलिखित दो उपश्रेणियों में विभेदित किया जाता है –
(अ) स्वतोजननिक अथवा अर्धसूत्री अनिषेकजनन : यहाँ गुणसूत्रों का न्यूनीकरण सामान्य रूप से होता है और दो अगुणित केन्द्रकों के संयोजन से द्विगुणित अवस्था फिर से प्राप्त हो जाती है।
(ब) असंगजनिक अनिषेकजनन (apomictic parthenogenesis) : इसमें अंडकोशिका में गुणसूत्रों का युग्मन और न्यूनीकरण नहीं होता अपितु यह अनिषेकजनन द्वारा द्विगुणित पादप विकसित होता है।
सुओमेलेनिन (1950) के अनुसार पौधों में अनिषेकजनन के परिणामस्वरूप उत्पन्न आनुवांशिक लक्षण , इनके कोशिकीय गुणों पर निर्भर करते है। वे आनुवांशिक लक्षण निम्नलिखित प्रकार के हो सकते है –
  1. असंगजनिक अनिषेकजनन से उत्पन्न सन्तति समजीनी लक्षणों में समान होती है।
  2. पौधों में विषमयुग्मजी प्रवृत्ति स्थायी और अवैकल्पिक रूप से समयुग्मजी प्रवृत्ति द्वारा प्रतिस्थापित हो जाती है। यह प्रक्रिया स्वतोजनिक कायिक अनिषेकजनन में पायी जाती है।
  3. पौधों में विषम युग्मजी प्रवृति का प्रतिस्थापन समयुग्मजता के द्वारा तभी होता है , जब विषम युग्मजी बिन्दुओं के युग्मविकल्पियों का पृथक्करण , अर्धसूत्री विभाजन से पहले ही हो जाता है लेकिन यदि  युग्मविकल्पियों का यह पृथक्करण अर्धसूत्री विभाजन के बाद होता है तो इनमें विषमयुग्मजी प्रवृति बनी रहती है। स्वताजननिक अनिषेकजनन परिलक्षित करने वाले पौधों में इस प्रकार के आनुवांशिक लक्षणों का पाया जाना एक सामान्य प्रक्रिया है , जहाँ द्विगुणित अवस्था अंडकोशिका और द्वितीय ध्रुवीय केन्द्रक के संयोजन या अन्त:सूत्री विभाजन के द्वारा पुनर्स्थापित होती है।

प्रेरित अनिषेकजनन (induced parthenogenesis)

विभिन्न आवृतबीजी पौधों में अनिषेकजनन की प्रक्रिया को अभिप्रेरित भी किया जा सकता है और इसके द्वारा विभिन्न आनुवांशिकी प्रयोगों के लिए आवश्यक महत्वपूर्ण समयुग्मजी जीवों को आसानी से और सफलतापूर्वक प्राप्त किया जा सकता है। कोई भी रासायनिक पदार्थ और उपचार जो अंडकोशिका को परिवर्धन के लिए उद्दीप्त कर सके , वह अनिषेकजनन को अभिप्रेरित करने में सहायक हो सकता है।
इस क्षेत्र में प्रेरित अनिषेकजनन का प्रयोग सर्वप्रथम ब्लेकस्ली (1922) द्वारा किया गया था , जिसमें धतूरा के अगुणित पादप प्राप्त किये गए थे। इसके पश्चात् विभिन्न भ्रूणविज्ञानियों द्वारा अनेक भौतिक और रासायनिक उपचारों की सहायता से अनेक पौधों में अनिषेकजनन की प्रक्रिया को प्रेरित करने में सफलता प्राप्त की गयी है। कुछ प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित प्रकार से है –
1. पुष्पित शाखाओं को X किरणों अथवा अत्यंत कम या अत्यधिक तापमान पर उद्भासित करके अनिषेकजनन प्राप्त किया जा सकता है , इसी श्रृंखला में मुंटजिंग (1937) द्वारा सिकेल सिरियेल की शूकिका को अत्यल्प तापमान (0.3 डिग्री सेल्सियस) मे उदभासित करके , अनिषेकजनन द्वारा अगुणित पादप प्राप्त किये गए। इसी प्रकार गेहूँ की एक प्रजाति ट्रिटीकम मोनोकोकम में कुछ अगुणित पादप प्राप्त हो सकते है।
2. कुछ उदाहरणों में यह भी देखा गया है कि यदि वर्तिकाग्र पर स्थानान्तरण के पूर्व परागकणों को X किरणों में उद्भासित किया जाए तो कुछ अगुणित पादप प्राप्त हो सकते है।
कभी कभी दूसरे वंश अथवा विजातीय पादप के परागकण से भी अगुणित पौधे प्राप्त होते है।
3. कुछ पौधों में परागण क्रिया को विलंबित करके भी अगुणित पादप प्राप्त किये जाते है। उदाहरणतया जब गेहूँ की प्रजाति ट्रिटीकम मोनोकोकम में विपुंसन के 6 दिन बाद परागण करवाया गया तो लगभग 20 प्रतिशत पौधों में अगुणित भ्रूण विकसित हुए जबकि विपुंसन के 9 दिन बाद परागण करवाने पर लगभग 38 प्रतिशत पौधों में अगुणित भ्रूण पाए गए।
4. अनेक आवृतबीजी पौधों को विभिन्न रसायनों से उपचारित करवाकर भी अनिषेकजनन प्रेरित किया गया है। यासूदा (1940) द्वारा बेलविटान के जलीय घोल को पिटुनिया के अंडाशय में अंत: क्षेपित किया गया तो तीन दिन के बाद अंडाशय में निम्न परिवर्तन दिखाई दिए –
(1) कुछ बीजाण्डो में बीजाण्डकाय की कोशिकाएँ इस उद्दीपन के पश्चात् विवर्धित हो जाती है।
(2) कुछ बीजाण्डो की अंड कोशिका 1 अथवा 2 बार विभाजित होकर एक छोटा सा प्राकभ्रूण बना लेती है।
(3) कुछ अन्य बीजाण्डो में प्रतिमुखी कोशिकाओं की साइज़ बहुत ज्यादा बढ़ जाती है।
उपर्युक्त पर्यवेक्षण के आधार पर यासुदा ने यह निष्कर्ष निकाला कि भ्रूणीय कोशिकाओं में हालाँकि बेलविटान द्वारा प्रदत्त उद्दीपन कोशिकाओं में विभाजनों को अभिप्रेरित करता है लेकिन परिपक्व कोशिकाओं में इस उद्दीपन के द्वारा केवल वृद्धि ही अभिप्रेरित होती है अर्थात इनके कारण इन कोशिकाओं की साइज़ तो बढती है लेकिन विभाजन नहीं होते।

अनिषेकजनन की महत्ता (significance of parthenogenesis)

प्रकृति में अधिकांश पौधों में केवल लैंगिक जनन पाया जाता है , अत: वहाँ ऐसी प्रक्रियाएँ जैसे अलैंगिक जनन अथवा अनिषेकजनन आदि केवल सिमित महत्व की ही है। अनिषेकजनन प्रदर्शित करने वाली अधिकांश पादप प्रजातियों की आनुवांशिक विविधता अल्प मात्रा में होने के कारण इनकी दशानुकूलन क्षमता अथवा पारिस्थितिक अनुकूलन क्षमता भी कम होती है। इसके अतिरिक्त अर्धसूत्री अनिषेकजनित पादप प्रजातियों में समयुग्मजी प्रवृत्ति होने की वजह से वे दुर्बल होती है। अत: उनका जीवन काल भी अल्प अवधि का होता है।
लेकिन उपर्युक्त वर्णित कमियों के अतिरिक्त इन पौधों के अनेक उपयोगी पहलू भी है , जैसे अनिषेकपुंजनन द्वारा अधिक संख्या में नर और अनिषेकजनन द्वारा अनेक पीढियों तक मादा पौधे प्राप्त किये जा सकते है। अनिषेकजनन द्वारा प्राप्त समयुग्मजी पौधों में लाभदायक गुणों को , यदि वातावरण में बदलाव नहीं हो , तो अनेक पीढियों तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
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