Parasitism in Crustaceans in hindi , परजीविता क्रस्टेशिया में किसे कहते हैं , उपवर्ग-कोपेपोडा (Sub class – Copepoda)

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क्रस्टेशियन में परजीविता (Parasitism in Crustaceans)

क्रस्टेशिया, संघ आथ्रोपोडा का एक बड़ा वर्ग है । क्रस्टेशिया वर्ग में विभिन्न प्रकार के हैं जो मनुष्य के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उपयोगी होते हैं। इस वर्ग में आने वाले कई जन्तु मनुष्य के लिए भोजन के रूप में उपयोगी होते हैं। इसके अतिरिक्त कई क्रस्टेशियाई जन्तु विभिन्न जन्तुओं पर परजीवी के रूप में भी पाये जाते हैं। परजीवी जन्तु वे होते हैं जो दूसरे जन्तुओं के शरीर पर या शरीर के अन्दर रह कर उससे पोषण प्राप्त करते हैं। जिस जन्तु से वे पोषण प्राप्त करते हैं उन्हें पोषक (host) जन्तु कहते हैं। तथा जो जन्तु पोषण प्राप्त करता है उसे परजीवी ( pararsite) कहते हैं तथा इस प्रकार के सम्बन्ध को परजीविता (parasitism) कहते हैं। कुछ परजीवी जन्तु पोषक के शरीर के बाहर पाये जाते हैं उन्हें बाह्य परजीवी (ectoparasite) कहते हैं तथा वे परजीवी जो पोषक के शरीर के अन्दर पाये जाते हैं उन्हें अन्त: परजीवी (endoparsite) कहते हैं। परजीवी अपने पोषक को कम या अधिक हानि पहुँचाते हैं। कुछ परजीवी अपने पोषक पर अल्प समय तक उपस्थित रहते हैं जबकि अन्य परजीवी लम्बे समय तक अपने पोषक के शरीर से सम्बन्ध बनाये रखते हैं। कुछ परजीवी जाति विशेष के एक ही पोषक के शरीर पर ही पाये जाते हैं उन्हें ऑब्लिगेट परजीवी (obligate parasite) कहते हैं। जबकि अन्य परजीवी किसी भी पोषक से पोषण प्राप्त कर लेते हैं उन्हें फेकल्टेटिव परजीवी (factultative parasite) कहते हैं।

क्रस्टेशिया वर्ग के 6 उपवर्गों की लगभग 1000 जातियाँ परजीवी के रूप में जीवन व्यतीत करती है। इन 6 उपवर्गों के कुछ क्रस्टेशियाई परजीवी जन्तुओं का वर्णन निम्न प्रकार है

  1. उपवर्ग-कोपेपोडा (Sub class – Copepoda)

इस उपवर्ग में बड़ी संख्या में परजीवी जन्तु पाये जाते हैं। ये जन्तु इस उपवर्ग के निम्न पांच गणों में वर्गीकृत किये जा सकते हैं

  1. गण – मोन्सट्रीलोइडा ( Order : Monstrilloida ) : इस गण के निम्न सदस्य परजीवी के रूप में जीवन यापन करते हैं

(i) मोन्स्ट्रिला (Monstrilla) : मोन्स्ट्रिला की मादा वयस्क का शरीर बिना उपागों के थैले समान होता है। यह अपने मेन्डिबल के हुक्स की सहायता से एक पॉलीकीट कृमि (संघ एनेलिडा) के शरीर से लटकी रहती है। इसके शरीर में एक जोड़ी नेत्र व एक जोड़ी अण्ड थैलियाँ (egg sacs) पायी जाती है। कुछ समय बाद मादा पोषक से पृथक होकर स्वतन्त्र रूप से तैरते हुए पानी में अण्डे देती है। कुछ समय बाद अण्डे लावा निकलता है। लारवा में सुविकसित उपांग पाये जाते हैं जिससे वह स्वतन्त्रता पूर्वक तैरते हुए अपने पोषक की खोज करता है। साल्मेसिना (Salmacina) नामक पॉलीकीट कृमि इसका पोषक होता है। पोषक के मिल जाने पर लारवा पोषक के शरीर में प्रवेश कर पोषक के शरीर की अधर रक्त वाहिका ( ventral blood vessel) में अन्त: परजीवी के रूप में स्थापित हो जाता है।

लारवा के शरीर में प्रारम्भ से ही आहारनाल नहीं पायी जाती है। पोषक के शरीर में प्रवेश करने के बाद समस्त शारिरिक संरचनाएँ विलुप्त हो जाती है तथा वह कोशिकाओं की संहति (mass) के रूप में रूपान्तरित हो जाता है। ये कोशिकाएँ एक काइटिनी आवरण में आबद्ध रहती है। पोषक से पोषण प्राप्त कर इन कोशिकाओं से वयस्क जन्तु विकसित हो जाता है। पूर्ण विकसित वयस्क पोषक के शरीर की त्वचा को तोड़ कर बाहर निकल आता है व स्वतन्त्र जीवन यापन करने लगता है। वयस्क में एक जोड़ी प्रशृंगाकाएँ ( antennules) तथा कई द्विशाखित वक्षीय उपांग (biramous thorasic appendages) पायी जाती है। वक्षीय उपांग तैरने के काम आते हैं। वयस्क में क्रियाशील मुखीय उपांग नहीं पाये जाते हैं। वयस्क की आहारनाल में एक मुख पाया जाता है जो सीधे है एक छोटे आमाशय में खुलता है।

इस परजीवी में यह देखा गया है कि यदि एक पोषक के शरीर में एक से अधिक परजीवी का संक्रमण पाया जाता है तो सभी जन्तु नर में विकसित होते हैं। किन्तु यदि पोषक एक ही परजीवी से संक्रमित होता है तो वह मादा में विकसित होता है।

(ii) साल्मिन्कोला (Salmincola) : साल्मिन्कोला यूरोपीय साल्मन मछली के गिल्स पर बाह्य परजीवी के रूप में पाया जाता है। यह पोषक के शरीर पर द्वितीय जम्भिका (second maxilla) द्वारा चिपका रहता है तथा वहाँ से पोषण प्राप्त करता है।

(iii) निकोथोए (Nicothoe) : वह लोब्स्टर नामक क्रस्टेशियन के गिल्स पर बाह्य परजीवी के रूप में पाया जाता है। इसकी श्रृंगिकाएँ व मुखांग रक्त चूसने के लिए रूपान्तरित हो जाते हैं। वक्ष बड़े-बड़े पिण्डों के रूप में पाया जाता है जबकि उदर सामान्य आकार का होता है । युग्मित अण्ड थैले (egg sacs) पाये जाते हैं।

(iv) एस्टेरोकेरेस (Asterocheres ) : यह विभिन्न प्रकार के जन्तुओं जैसे स्पंजों, इकाइनों डर्मस तथा एसिडेसिया पर बाह्य परजीवी के रूप में पाया जाता है। 2. गण – साइक्लोपोइडा ( Cyclopoida )

इस गण के निम्न सदस्य परजीवी के रूप में पाये जाते हैं

  1. इर्गासिलस (Ergasilus ) : यह स्वच्छ जलीय, मछली बास (Bass) के गिल्स पर बाह्य परजीवी के रूप में पाया जाता है। इसका सिरोवक्ष बड़ा व खण्डित उदर पाया जाता है। उदर में ह्रासित प्लव पाद पाये जाते हैं। इसकी प्रश्रृंगिका पांच खण्डों की बनी होती है, आँखें अनुपस्थित होती है, शृंगिका हुक समान होती है तथा जम्भिकापाद लटक सकने योग्य (prehensile) होते हैं। श्रृंगिका के हुक की सहायता से यह पोषक के शरीर पर पकड़ बनाता है। केवल मादाएँ ही परजीवी जीवन यापन करती है इनमें युग्मित अण्ड थैले (egg-sacs) पाये जाते हैं।

(ii) बोमोलोकस (Bomolochus ) : यह कुछ मछलियों पर बाह्य परजीवी के रूप में पाया जाता है। यह मछलियों की त्वचा या नासा छिद्र में पाया जाता है। इसकी प्रश्रृंगिका छोटी व खण्ड युक्त होती है। श्रृंगिका हुक के समान मुड़ी हुई होती है जिसकी सहायता से यह पोषक के शरीर पर लटका रहता है। जम्भिकापाद सुविकसित होते हैं। उदर में कोई उपांग नहीं पाये जाते हैं। 3. गण – नोटोडेल्फायोइडा ( Order Notodelphyoida)

इस गण के निम्न सदस्य परजीवी के रूप में पाये जाते हैं

(i) नोटोडेल्फिस (Notodelphys) : इसके नर व मादा दोनों एसिडियन के गिल प्रकोष्ठों को संक्रमित करते हैं। यह अस्थायी परजीवी होता है। कई बार यह गिल प्रकोष्ठों से बाहर आकर स्वतन्त्र जीवन भी यापन कर सकता है।

(ii) डोरोपाइगस (Doropygus) : यह भी एसिडियन्स पर अस्थायी परजीवी होता है। 4. गण – लरनिओपोइडा ( Order Lerneopoida)

इस गण के निम्न सदस्य परजीवी के रूप में पाये जाते हैं

  1. लरनीया (Lernaea) : इनमें केवल मादा ही मछलियों की त्वचा पर व रक्त वाहिकाओं में परजीवी होती है। इनका शरीर कृमि समान होता है। इनकी जम्भिकाएँ भेदने व चूसने के लिए रूपान्तरित होती हैं। प्रारम्भ में मादाएँ स्वतन्त्रजीवी होती हैं किन्तु प्रजनन के बाद में ये परजीवी हो जाती हैं। इनका सिरोवक्ष छोटा होता है तथा उदर बड़ा व अखण्डित होता है उदर में एक जोड़ी अण्ड थैले (egg sacs) पाये जाते हैं।

 

  1. एन्थोसोमा (Anthosoma ) : यह शार्क मछलियों के मुंह में पाया जाने वाला परजीवी है। इसका शरीर थैले समान होता है। श्रृंगिका कीलाभ (chelate) प्रकार की होती है तथा प्रशृंगिकाएँ। संवेदी होती है। प्लव पाद हासित होते हैं। नेत्र अनुपस्थित होते हैं। उदर के शीर्ष पर एक जोड़ी अण्ड थैले (egg sacs) पाये जाते हैं।
  2. गण-केलिगोइडा (Order-Caligoida)

इस गण के निम्न सदस्य परजीवी के रूप में पाये जाते हैं-

केलिगस (Caligus), ट्राइकियुरस (Trichiurus), सिएनीया (Sciancea), आदि

  1. केलिगस (Caligus) : यह मछलियों के गिल प्रकोष्ठों का बाह्य परजीवी होता है। इसकी प्रश्रृंगिकाओं पर रोम पाये जाते हैं। शृमिकाऐं हुक समान होती है जिसकी सहायता से यह पोषक के शरीर पर लटका रहता है। मुखीय उपांग भेदने व चूसने के उपयुक्त होते हैं। पांचवाँ वक्षीय उपांग लम्बा व तैरने के उपयुक्त होता है। नेत्र पाये जाते हैं।
  2. उपवर्ग-ब्रेन्कियूरा (Subclass-Branchiura)

इस उपवर्ग के निम्न जन्तु परजीवी के रूप में पाये जाते हैं –

  1. अर्गुलस (Argulus) 2. डोलोप्स (Dolops)
  2. अर्गुलस (Argulus ) : अर्गुलस की लगभग 75 प्रजातियाँ स्वच्छ जलीय मछलियों के गिल्स प्रकोष्ठ में बाह्य परजीवी के रूप में पायी जाती है। अर्गुलस स्थायी रूप से पोषक के शरीर से चिपका नहीं रहता है या तो यह स्वतंन्त्र रूप से तैरता रहता है या पोषक के शरीर की सतह पर रेंगता रहता है। इसका शरीर पत्ती समान चपटा होता है। इसके शरीर में चपटा अण्डाकर सिरोवक्ष तथा छोटा द्विपालित उदर पाया जाता है। दो संयुक्त नेत्र पाये जाते हैं। प्रत्येक नेत्र के समीप दो छोटी श्रृंगिकाएँ पायी जाती है। प्रथम जम्भिका छोटी तथा कन्टिका समान होती है तथा मेन्डिबल के साथ एक साइफन के भीतर पायी जाती है। इनके अग्र भाग पर एक तीक्ष्ण जहरीली कटिका (poison spine) पायी जाती है जो पोषक की त्वचा को भेदने का कार्य करती है। सिरोवक्ष अण्डाकार होता है। द्वितीय जम्भिकाएँ चूषक के रूप में रूपान्तरित होती है । जम्भिका पाद मैथुन क्रिया के लिए रूपान्तरित होते हैं तथा चार जोड़ी वक्षीय उपांग तैरने के काम आते हैं। जनन पोषक के शरीर के बाहर होता है। निषेचन आन्तरिक होता है।

III. उपवर्ग-टेन्टुलोकेरिडा (Sub class-Tentulocarida)

इस उपवर्ग के निम्न जन्तु परजीवी के रूप में पाये जाते हैं-

(i) बेसिपोडेला (Basipodella), (ii) माइक्रोडेजस (Microdajus)

(i) बेसिपोडेला (Basipodela) : यह परजीवी मात्र 0.2mm लम्बा होता है तथा गहरे जल में पाये जने वाले क्रस्टेशियाई जन्तुओं पर अन्तः परजीवी के रूप में पाया जाता है। इसका लारवा स्वतन्त्रजीवी तैरने वाला होता है किन्तु कायान्तरण के समय सभी उपांग विलुपत हो जाते हैं। इसके अग्र सिरे पर पोषक के शरीर को भेदने के लिए एक तीक्ष्ण कंटिका पायी जाती है। अग्र सिरे पर ही एक चूसने योग्य मुखनलिका पायी जाती है। वयस्क में उपांगों का अभाव होता है।

  1. उपवर्ग-पेंन्टास्टोमिडा (Sub class : Pentastomida)

इस उपवर्ग में लगभग 90 जातियाँ होती है जो कशेरूकी जन्तुओं के फुफ्फुस को संक्रमित करती है। इनमें से दो प्रमुख है- (i) लिंगुआटुला (Linguatula) (ii) सिफेलोबेना (Cephalobena) ये परजीवी अमेरिका, यूरोप व आस्ट्रेलिया में पाये जाने वाले सरीसृप वर्ग (Reptelia) तथा स्तनधारी वर्ग (mammalia) वर्ग के जन्तुओं के फेंफडों को संक्रमित करते हैं। इनका शरीर कृमि समान लम्बा तथा स्पष्ट रूप से खण्डित नहीं होता है। ये लगभग 2 से 13 से. मि. लम्बे होते हैं। इनके अग्र सिरे पर पांच उपांग पाये जाते हैं जिनमें से मध्य वाले उपांग पर मुख उपस्थित हेता है। अधर सतह पर षोषक पर चिपकने के लिए दो जोड़ी हुक्स पाये जाते हैं। शरीर क्यूटिकल से रहता है। इनका मध्यस्थ परपोषी मछली होती है।