JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History

chemistry business studies biology accountancy political science

Class 12

Hindi physics physical education maths english economics

chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology

Home science Geography

English medium Notes

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Class 12

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Categories: BiologyBiology

परजीवी पादप (parasitic plants in hindi) परजीवी पौधे किसे कहते हैं मृतोपजीवी पादप (saprophytic plants)

(parasitic plants in hindi) परजीवी पादप क्या है ? परजीवी पौधे किसे कहते हैं मृतोपजीवी पादप (saprophytic plants meaning in hindi) definition , example उदाहरण लिखिए | अंतर बताइए ?

पोषण के आधार पर विभिन्नता (diversity on the basis of nutrition) : सामान्यतया आवृतबीजी स्वपोषी होते है अर्थात ये अकार्बनिक पदार्थो से अपने भोजन का स्वयं निर्माण करते है। फिर भी कुछ आवृतबीजी अपना भोजन स्वयं नहीं बना पाते और भोजन के लिए दुसरे पौधों पर निर्भर रहते है। ऐसे पौधे परपोषी कहलाते है।

परपोषी पादप अपना पोषण मृत या जीवित जीवधारियों से प्राप्त करते है , जिसके आधार पर ये क्रमशः मृतोपजीवी या परजीवी कहलाते है। कुछ पादप परस्पर रहकर सहजीवन व्यतीत करते है। विशिष्ट प्रकार के कीट भक्षी पादप अपना नाइट्रोजन पोषण छोटे जन्तुओं अथवा कीटों से प्राप्त करते है।

A. परजीवी पादप (parasitic plants)

कुछ आवृतबीजी पादप भोजन के लिए पूर्ण या आंशिक रूप से अन्य पादपों पर (परपोषी : host) आक्षित रहते है जिन्हें परजीवी कहते है। परजीवी पादपों को निम्नलिखित श्रेणियों में रखा जाता है –
(1) पूर्ण स्तम्भ परजीवी (total stem parasite) : अमरबेल की अनेक जातियाँ पूर्ण स्तम्भ परजीवी है जो दुरन्ता और बबूल और अन्य वृक्षों के ऊपर पायी जाती है।
कस्कुटा में पत्तियाँ नहीं पायी जाती और क्लोरोफिल के अभाव के कारण यह दुर्बल और पीला होता है। इसका तना परपोषी तने के चारों ओर लिपट जाता है। इसके तने से चुषकांग परपोषी के तने में प्रवेश कर उसके संवहन उत्तक से सम्बन्ध स्थापित कर जल और भोजन पदार्थो का अवशोषण करते है।
(2) आंशिक स्तम्भ परजीवी (partial stem parasite) : विस्कस एलबम और बांदा आंशिक तना परजीवी के अच्छे उदाहरण है। इन पौधों में हरी पत्तियां पायी जाती है और चूषकांग भी विकसित होते है। ये अपने चूषकांग द्वारा परपोषी से जल और खनिज का अवशोषण कर आंशिक भोजन का निर्माण करते है।
(3) पूर्ण मूल परजीवी (total root parasite) : ओरोबेंकी , सिसटैंकी स्ट्राइगा और रेफ्लीसिया आदि इसके प्रमुख उदाहरण है। ओरोबेंकी सामान्यतया सोलेनेसी और क्रुसीफेरी कुल के पौधों की जड़ों पर उगता है। इसी प्रकार सिसटैंकी नामक मूल परजीवी आक की जड़ों से पोषण अवशोषण करता है।
रेफ्लीसिया नामक पादप सुमात्रा के जंगलों में महालताओं की जड़ों पर पाया जाता है। इस पादप में सबसे बड़ा पुष्प (1 मीटर व्यास) विकसित होता है जिसका भार लगभग  8 किलोग्राम होता है।
(4) आंशिक मूल परजीवी (partial root parasite) : चंदन का पेड़ एक आंशिक मूल परजीवी है जो दुसरे पौधों जैसे शीशम की मूलों पर उगते है और उनसे जल और खनिज लवणों का अवशोषण करते है।

B. मृतोपजीवी पादप (saprophytic plants)

मृतोपजीवी पौधे अपना पोषण मृत जीवों या गले सड़े पदार्थो से प्राप्त करते है। इस प्रकार का पोषण प्राय: कवकों और जीवाणुओं में पाया जाता है। पुष्पीय पादपों में नियोटिया , मोनोट्रोपा और सारकोड्स प्रमुख मृतोपजीवी पादप है। मृत कार्बनिक पदार्थो से पोषण प्राप्त करने के लिए इनकी जड़ों में माइकोराइजा पाया जाता है।

C. कीटभक्षी अथवा मांसाहारी पादप (insectivorous plants)

कुछ पादप जो पर्णहरित युक्त और स्वपोषी होते है ऐसे स्थानों पर उगते है (दलदली क्षेत्र) जहाँ नाइट्रोजन यौगिकों की कमी होती है। ये प्रकाश संश्लेषण द्वारा कार्बोहाइड्रेट्स स्वयं बना लेते है लेकिन नाइट्रोजनी यौगिकों की पूर्ति के लिए कीटों को पकड़कर उनका भक्षण करते है। इस कार्य के लिए इनमें विशेष विधियाँ विकसित होती है। भारत में कीटहारी पादप मुख्यतः असम , नैनीताल और दार्जिलिंग आदि क्षेत्रों में पाए जाते है। ड्रोसेरा , निपेंथस , डायोनिया और यूटिकुलेरिया आदि कीटहारी पौधों के सामान्य उदाहरण है।
निपेंथस : आरोही लता के रूप में मिलता है जिसे घटपर्णी भी कहते है। इसकी पत्तियाँ कलश के समान संरचनाओं में रूपान्तरित हो जाती है। कलश के मुख पर एक ढक्कन भी होता है जो पर्ण शीर्ष का रूपांतरण होता है। पत्ती का आधारी भाग पर्णवृंत चपटा होकर पत्ती का कार्य करता है। कलश की आंतरिक भित्ति पर अनेक ग्रंथियां पायी जाती है जो पाचक रस स्त्रावित करती है। इस रस के आकर्षण से कीट कलश के मुख में आते है और फिसलकर निचे पहुँच जाते है। कलश में उपस्थित अम्लीय द्रव की सहायता से किट को पचाकर नाइट्रोजन की आवश्यकता पौधा पूर्ण कर लेता है।
ड्रोसेरा एक 10 से 15 सेंटीमीटर ऊँचा शाकीय पादप होता है। इसके पुष्प आकर्षक होते है और पत्तियाँ रोजेट में व्यवस्थित होती है। पर्णफलक गोलाकार होते है जिनकी उपांत पर रोग अथवा स्पर्शक उपस्थित होते है। प्रत्येक रोम का शीर्ष ग्रंथिल होता है जिससे चिपचिपा पाचक रस स्त्रावित होता है। इस चिपचिपे पदार्थ की गंध से आकर्षक होकर कीट जब फलक पर बैठते है जो चिपक जाते है और स्पर्शक उन्हें चारों से घेर लेते है। स्पर्शको द्वारा स्त्रावित रस में उपस्थित एंजाइम किट के नाइट्रोजनी पदार्थों का पाचन कर लेते है जो पर्णफलक द्वारा अवशोषित कर लिए जाते है। कीट का पाचन कर लेने पर स्पर्शक पुनः सीधे हो जाते है और कीट नीचे गिर जाते है।
डायोनिया या वीनस फलाईट्रेप छोटा शाक होता है जिसकी पत्तियाँ जमीन पर फैली रहती है। प्रत्येक पत्ती का वृंत चपटा होता है। पर्णफलक दो समान भागों में विभक्त रहता है। पर्णफलक के दोनों भाग मध्य शिरा पर आसानी से मुड़ सकते है। फलक के प्रत्येक भाग पर 12-20 दंत या काटे होते है। जैसे ही कीट इनको छूता है तो दोनों फलक खण्ड मध्य शिरा की ओर मुड़कर कीट को बंद कर देते है। पत्ती की सतह पर ग्रंथियाँ स्थित होती है। जो पाचक रस स्त्रावित करती है। यह रस कीटों का पाचन करता है।
यूट्रिकुलेरिया : एक जड़ रहित जलीय पादप है , जो पोखर , तालाब या झीलों में पाया जाता है। इसकी पत्तियाँ कटी फटी होती है। इसकी कुछ पत्तियां छोटी थैलियों में रूपांतरित हो जाती है , इसलिए इसे ब्लेडवर्ट भी कहते है। थैली के मुख पर एक कपाट भी पाया जाता है जो भीतर की ओर खुलता है। मुख के चारों ओर अनेक रोम स्थित होते है। थैली की आन्तरिक सतह पर अनेक ग्रंथिल रोम उपस्थित होते है। पानी की धारा के साथ कीट थैली में प्रवेश करते है। कीटों के प्रवेश के पश्चात् कपाट बंद हो जाते है और आंतरिक ग्रन्थियां कीटों का पाचन करती है।
Sbistudy

Recent Posts

द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन क्या हैं differential equations of second order and special functions in hindi

अध्याय - द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन (Differential Equations of Second Order…

13 hours ago

four potential in hindi 4-potential electrodynamics चतुर्विम विभव किसे कहते हैं

चतुर्विम विभव (Four-Potential) हम जानते हैं कि एक निर्देश तंत्र में विद्युत क्षेत्र इसके सापेक्ष…

3 days ago

Relativistic Electrodynamics in hindi आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा

आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा Relativistic Electrodynamics in hindi ? अध्याय : आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी…

5 days ago

pair production in hindi formula definition युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए

युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए pair production in hindi formula…

1 week ago

THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा

देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi…

1 week ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now