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Categories: Biology

पैलेम्निअस या बिच्छु क्या है जानकारी Palamnaeus or Scorpion in hindi वर्गीकरण (Classification)

पढ़िए कि पैलेम्निअस या बिच्छु क्या है जानकारी Palamnaeus or Scorpion in hindi वर्गीकरण (Classification) ?

पैलेम्निअस या बिच्छु (Palamnaeus or Scorpion) किसे कहते हैं ?

वर्गीकरण (Classification)

संघ – आर्थ्रोपोडा (Arthropoda)

द्विपार्श्व सममित, त्रिस्तरीय, खण्डयुक्त शरीर, देहगुहीय तथा शारीरिक गठन ऊत्तक अंग स्तर तक का होता है।

संधियुक्त उपांग पाये जाते हैं। काइटिनी क्यूटिकल का बाह्य कंकाल पाया जाता है।

परिसंचरण तन्त्र खुले प्रकार का होता है। देहगुहा हीमोसील कहलाती है।

उत्सर्जन ग्रीन ग्रन्थियों का मेल्पिजियन नलिकाओं द्वारा होता है।

उपसंघ-केलीसेरेटा (Chelicerata)

शरीर शिरोवक्ष या अग्रकाय (prosoma) तथा उदर या अनुकाय (opisthosoma) में बंटा होता

एक जोड़ी मुख-पूर्वी नखर युक्त, अशनकारी उपांग पाये जाते हैं जिन्हें केलीसेरी कहते हैं।

एक जोड़ी मुख-पश्च उपांग पद स्पर्शक (pedipalps) पाये जाते हैं।

वर्ग-एरेक्निडा (Arachnida)

स्थलीय तथा वायुवीय श्वसन पाया जाता है। शरीर में 4 जोड़ी पाद पाये जाते हैं।

उत्सर्जन मैल्पिजियन नलिकाओं द्वारा होता है।

गण-स्कोर्पिओनिडा (Scorpionida)

श्वसन पुस्त फुफ्फुसों द्वारा होता है। ,

जाति : पैलेम्निअस स्वेमेर्डेनी (Palamanaeus swammerdani)

स्वभाव एवं आवास (Habits and Habitat)

बिच्छू गर्म प्रदेशों में पाया जाता है। ये रात्रिचर, (nocturnal) जन्तु होते हैं। दिन के समय पत्थरों, मलबों, पुरानी दरियों के नीचे, दरारों आदि में छिपे रहते हैं ये शिकारी प्रवृत्ति के माँसाहारी प्राणी होते हैं, जो रात्रिचर कीटों व मकड़ियों को पकड़ कर खाते हैं।

बाह्य संरचना (External Features) :

शरीर लम्बा, संकरा खण्डयुक्त तथा पृष्ठ से प्रतिपृष्ठ की तरफ चपटा होता है। इसकी लम्बाई लगभग 15.cm. होती है। शरीर का रंग चमकीला काला या पीला होता है। पृष्ठ की तरफ रंग गहरा व अधर की तरफ हल्का होता है। बिच्छू के शरीर को संरचना की दृष्टि से दो भागों में बांटा जा सकता है

  1. अग्रकाय (Prosoma) या सिरावक्ष (Cephalothorax)
  2. अनुकाय (Opisthosoma) या उदर (Abdomen)
  3. अग्रकाय (Prosoma) या सिरोवक्ष (Cephalothorax) : शरीर का अग्र चपटा भाग. जो सिर एवं वक्ष के संगलन से बना होता है, अग्रकाय या सिरोवक्ष कहलाता है। यह एक पूर्वमुखी तथा छ: पश्च मुखीय खण्डों के संगलन से बना होता है। इसकी अधर सतह पर उपस्थित छः जोड़ी उपांग इसके खण्डयुक्त होने का प्रमाण है। पृष्ठ सतह पर काइटिन की बनी एक चतुर्भुजाकार ढाल (shield) या पृष्ठवर्म या केरापेस (carapace) पायी जाती है। अग्रतः केरोपेस एक मध्यवर्ती खांच द्वारा दो ललाट पालियों (frontal lobes) में बंटा रहता है। केरापेस की पृष्ठ सतह पर एक जोड़ी मध्यवर्ती नेत्र पाये जाते हैं। केरापेस की अग्र पार्श्व सतह पर 2 से 5 जोड़ी पार्श्व नेत्र भी पाये जाते माना प्रकार के नेत्र सरल प्रकार के होते हैं। अग्रकाय की अग्रअधर सतह पर एक छोटा सा मुख पाया जाता है। इसकी सरक्षा के लिए आगे की तरफ एक पालिनुमा लेब्रम (labrum) पाया जाता है मुख के दोनों तरफ एक-एक केलीसेरी (chelicerae) तथा पद स्पर्शक या पेडीपल्प (pedipalni है। मुख के दोनों तरफ एक-एक केलीसेरी (cheliceras पाय जाते हैं। अग्रकाय की अधर तह पर एक तिकोने आकार की प्लेट पायी जाती है। जिसे अधरक या स्टरनम (stermum) कहते हैं। यह तीसरी व चौथी जोडी टांगों में मध्य स्थित होता है। अग्रकाय में ही चार जोड़ी चलन टाँगे पायी जाती हैं।
  4. अनुकाय (Opisthosoma) या उदर (Abdomen) :

अग्रकाय के ठीक पीछे एक लम्बा खण्डयुक्त भाग पाया जाता है जिसके अनकाय या उदर कहते हैं। इसे फिर दो भागों में विभेदित किया जा सकता है

(i) मध्यकाय (Mesosoma) या उदर-पूर्व (Preabdmomen)

(ii) पश्चकाय (Metasoma), या उदर-पश्च (Postabdomen)

(1) मध्यकाय (Mesosoma) या उदर-पूर्व (Preabdmomen): अनुकाय का अग्र चौडा भाग जो अग्रकाय से सतत रहता है, मध्यकाय या उदर-पूर्व कहलाता है। यह आगे की तरफ चौडा किन्तु पीछे की तरफ संकरा होता है। यह सात खण्डों का बना होता है। प्रत्येक खण्ड पृष्ठ सतह की तरफ से काइटिन की बनी प्लेट टर्गम (tergum) तथा अधर की तरफ अधरक या स्टरनम (sternum) से ढका रहता है। दोनों प्लेटे पार्श्वतः एक लचीली झिल्ली द्वारा जुड़ी रहती है जिसे सन्धिकारी कला (arthrodial membrane) कहते हैं। मध्यकाय के खण्डों में उपांगों का अभाव होता है। मध्यकाय की अधर सतह पर निम्न संरचनायें दिखाई देती हैं.

(अ) जननिक प्राच्छद (Genital operculum): मध्यकाय के प्रथम खण्ड की अधर सतह पर एक छोटी गोलाकार, चपटी, द्विशाखित चलायमान प्लेट पायी जाती है, जिसे जननिक प्राच्छद कहते हैं। इसके नीचे जननिक छिद्र (genital aperture) पाया जाता है। यह जननिक छिद्र * की सुरक्षा करता है।

(ब) पेक्टिन (Pectin) : GENITAL OPERCULUM दूसरे खण्ड की अधर सतह पर एक जोड़ी कंघीनुमा संरचनाएँ पायी जाती है, जिन्हें पेक्टिन कहते हैं। प्रत्येक पेक्टिन का हस्तक (handle) या शाफ्ट (shaft) तीन खण्डों का बना होता है, इसकी पश्च सतह पर कंघी के दांतों की तरह 4 से F 36 संकरे व गतिशील प्रवर्षों की एक पंक्ति पायी जाती है ये उपांग भ्रूणीय पाद अवशेषों से विकसित हुए होते हैं। ये स्पर्श ग्राही एवं गंध के संवेदी अंग होते हैं। इनकी सहायता से बिच्छु  को अधर सतह का ज्ञान होता है। नर जन्तु में मादा की अपेक्षा पेक्टिन बडे पाये जाते है मादा में कभी-कभी पेक्टिन विशेष रूप से रूपान्तरित हो जाते हैं अत: इनके लैंगिक व अन्य कार्य भी सुझाये गये हैं।

(स) श्वास रन्ध्र (Stigmata or Spiracles): तीसरे खण्ड से लगा कर छठे खंड तक प्रत्येक खंड की  पार्श्व अधर सतह पर एक जोड़ी दरार नुमा छिद्र पाये जाते हैं जिन्हें श्वास रन्ध्र कहते हैं। इस तरह कुल चार जोडी श्वास रन्ध्र पाये जाते हैं जो पुस्त- फुफ्फुसों (book lungs) में खुलते हैं।

(ii) पश्च काय (Metasoma) : यह शरीर का पिछला पतला बेलनाकार भाग होता है जो पांच खण्डों का बना होता है। जो पांच खंडो का बना होता है वास्तव में यह छ: खण्डों का बना होना चाहिये क्योंकि मध्यकाय का अन्तिम सातवां खण्ड पश्च काय को प्रथम खण्ड होना चाहिये था। यह खण्ड अपने से पूर्ववर्ती खण्डों से इस बात से भिन्न होता है कि इसमें कोई भी श्वास रन्ध्र या अन्य संरचना नहीं पायी जाती है। पश्च काय के सभी खण्ड पूर्ण काइटिनी वलय से ढके रहते हैं। पश्चकाय को प्रायः गलती से पूंछ कहा जाता है। गति करते समय शरीर का यह भाग ऊपर उठा रहता है तथा मेहराब बनाता हुआ मध्यकाय के ऊपर पहुँचा रहता है। पांचवे खण्ड की अधर सतह पर गुदा द्वारा पाया जाता है तथा पुच्छ खण्ड या टेलसन (telson) पाया जाता है

पुच्छ खण्ड को बिच्छू का दंशन उपकरण (डंक) भी कहते हैं। इसमें एक फूला हुआ आधार आशय (vesicle) या तुम्बिका (ampulla) पाया जाता है तथा एक मुड़ा हुआ कांटा या शल्यक (aculeus) पाया जाता है। इसके आशय में एक जोड़ी विष ग्रन्थियाँ (poison glands) पायी जाती है। इन ग्रन्थियों की महीन वाहिकाएँ शल्यक या कांटे के शिखर पर खुलती हैं। शल्यक एक इन्जेक्शन की सुई की तरह कार्य करता है। जब बिच्छु किसी को डंक मारता है तो यह शल्यक की सहायता से विष उसमें छोड़ देता है। बिच्छू का विष मनुष्य के लिए बहुत अधिक घातक नहीं होता है।

उपांग (Appendages) : बिच्छू के शरीर में छः जोड़ी उपांग पाये जाते हैं। सभी उपांग सिरोवक्ष वाले क्षेत्र में ही पाये जाते हैं।

  1. एक जोड़ी केलीसेरी
  2. एक जोड़ी पाद-स्पर्शक या पेडिपैल्प
  3. चार जोड़ी चलन टांगे

1.कालसरी (Chelicerae) : शरीर के अग्र सिरे में मुख के दोनों तरफ एक जोडी उपांग राय जाते हैं इन्हें केलिसेरी कहते हैं। ये मुख पूर्वी उपांग होते हैं। इनकी तुलना वर्ग क्रस्टेशिया के प्राणियों की द्वितीय जोड़ी शृंगिकाओं से की जा सकती है। प्रत्येक केलिसेरी तीन खण्डों का बना कीलाभ (chelate) उपांग होता है। इसका आधारी खण्ड छोटा वलयाकार होता है तथा केरापेस के नीचे छिपा रहता है। शेष दो खण्ड मिल कर कीला (chela) या चिमटी (pincer) का निर्माण करते हैं। केलिसेरी का दूसरा खण्ड मोटा व फूला हुआ होता है। इसकी भीतरी सतह दांतेदार होती है तथा यह चिमटी की गति विहीन भुजा का निर्माण करता है। तीसरा खण्ड, दूसरे खण्ड की बाहरी सतह : से निकलता है। यह भी मुड़ा हुआ एवं दांतेदार होता है तथा यह चिमटी की गतिशील भुजा का निर्माण करता है। बिच्छू इन उपांगों का उपयोग शिकार को पकड़े रखने तथा चीरने-फाड़ने के लिए करता है।

2.पद स्पर्शक (Pedipalps) : पद-स्पर्शक बिच्छू के दूसरी जोड़ी उपांग होते हैं। ये मुख-पश्च (post oral) उपांग होते हैं, तथा केलिसेरी के पीछे स्थित होते हैं। ये शक्तिशाली , नखरित (clawaed) उपांग होते हैं  जो बिच्छू की एक विशेषता होती है। प्रत्येक पद-स्पर्शक निम्नलिखित छः खण्डों का बना होता है

(i) कक्षांग (Coxa) (ii) ट्रोकेन्टर (Trochanter), (iii) ह्युमरस (Humerus) (iv) ब्रेकियम  (Brachium) (v) हस्त या मेनस (Hand or manus) (vi) टारसस (Tarsus) या गतिशील अंगुली (Movable finger)।

(i) कक्षाग (Coxa) : यह पद-स्पर्शक का सबसे निचला खण्ड होता है, जिससे यह सिरोवक्ष से जुड़ा रहता है। कक्षांग के भीतरी किनारे पर मुख की तरफ एक पत्तीनुमा संरचना पायी जाती है जिसे हनुआधार (gnathobase) कहते हैं। ये हनु आधार पूर्व मुख गुहा में जबड़ों की तरह कार्य करते हैं। दोनों पद स्पर्शकों के हन आधार शिकार के शरीर को निचोडने (squeeze) का कार्य करते हैं।

(ii) किन्टर (Trochanter) : यह पदस्पर्शक का दूसरा खण्ड है। यह अनियमित आकार का होता है तथा ह्युमरस से जुड़ा रहता है।

(iii) ह्युमरस (Humerus): यह ट्रॉकेन्टर से बड़ा तथा उससे आगे की तरफ स्थित होता है। यह ब्रेकियम से जुड़ा रहता है।

(iv) ब्रेकियम (Brachium): यह ह्यूमरस के सम्मुख उपस्थित होता है। यह बड़ा व शक्तिशाली खण्ड होता है। यह आगे की तरफ हस्त या मेनस (manus) से जुड़ा रहता है।

(v) हस्त (Manus) : यह ब्रेकियम के पीछे की तरफ जुड़ा रहता है। इसकी बाहरी सतह उत्तल व भीतरी सतह चपटी होती है। इसका अग्र भाग अगतिशील अंगुली (immovable finger) का निर्माण करता है।

(vi) टारसस या गतिशील अंगली (Tarsus or movable finger): यह एक गतिशील खण्ड होता है। यह छोटा व तीखा होता है। यह हस्त के निचले भाग से जुड़ा रहता है।

हस्त तथा गतिशील अंगुली, दोनों खण्डों, के भीतरी किनारे दांतेदार होते हैं। ये दोनों खण्ड मिलकर कीला (chela) का निर्माण करते हैं। ये स्पर्शग्राही एवं शिकार को पकड़ने का कार्य करते हैं।

  1. चलन टांगें (Walking legs) : सिरोवक्ष में चार जोड़ी टांगे पायी जाती हैं, जो गमन में सहायक होती है। प्रत्येक टांग एक क्रम में जुड़े सात खण्डों की बनी होती है, इन्हें पद-खण्ड (podomeres) कहते हैं। ये पद-खण्ड निम्न प्रकार हैं

(i) कक्षांग (Coxa) (ii) ट्रॉकेन्टर (Trochanter) (iii) फीमर (Femur (iv) पटेला (Patella) (v) टिबिया (Tibia) (vi) प्रो टार्सस (Protarsus) (vii) टार्सस (Tarsus)।

प्रथम व दूसरी जोड़ी चलन टांगों के कक्षागों के भीतरी किनारों पर तिकोने आकार के हनु आधार (gnathobases) पाये जाते हैं। प्रथम व दूसरी जोड़ी टांगों के कक्षांग गतिशील होते हैं। इन पर उपस्थित हनु आधार या जाम्भिका प्रवर्ध (maxillary process) मुख के नीचे की तरफ स्थित होते हैं, ये भोजन को कुतरने का कार्य करते हैं। तीसरी व चौथी टांगों के कक्षांग अगतिशील होते हैं तथा इनमें हनु आधार का अभाव होता है। शेष संरचनाएँ समान होती है। टिबिया पर एक टिबियल स्पर (tibial spur) नामक उभार पाया जाता है। प्रो टारसस पर पद स्पर (pedal spur) नामक उभार पाया जाता है तथा अन्तिम खण्ड टारसस पर दो या तीन वक्रित नुकीले शृंगी नखर पाये जाते हैं।

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