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पैलीमोन या मैक्रोब्रेकियम माल्कोम्सोनाई (palaemon or macrobrachium malcolmsonii in hindi)
(palaemon or macrobrachium malcolmsonii in hindi) पैलीमोन या मैक्रोब्रेकियम माल्कोम्सोनाई :
वर्गीकरण
संघ – आथ्रोपोडा
उपसंघ – मैंडिबुलेटा
वर्ग – क्रस्टेशिया
गण – डैकापोडा
कुल – पैलीमोनाइडी
वंश – पैलीमोन
जाति – माल्कोम्सोनाई
स्वभाव और आवास : पैलीमोन अलवण जल के स्रोतों , नदियों , तालाबों और झीलों में रहता है। यह एक रात्रिचर जन्तु है जो दिन के समय तली में छिपा रहता है और रात्रि के समय भोजन की खोज ऊपर सतह पर आता है। यह सर्वहारी होता है जो शैवालों , माँस छोटे छोटे कीटों और अन्य जन्तुओ आदि को खाता है।
यह जलाशय की तली पर अपनी 10 चलन टांगो की सहायता से धीरे धीरे चलता है और जल की सतह पर 10 प्लवपादों की सहायता से सक्रीय रूप से तैरता है।
इसका शरीर लम्बा , और द्विपाशर्व सममित होता है। इसका शरीर सिर एवं वक्ष भाग के समेकन से बने होता है।
इसका शरीर सिर और वक्ष भाग के समेकन से बने शिरोवक्ष और संकरे उदर भाग में विभेदित होता है।
इसका शिरोवक्ष बड़े , मजबूत पृष्ठवर्म में ढका होता है।
एक ग्रैव खाँच इसे शीर्षस्थ और वक्षीय भागो में बांटती है और इसके शीर्षस्थ भाग की मध्यपृष्ठ रेखा में एक कड़ा उभार , जिसे रोस्ट्रम कहते है , पाया जाता है।
इसके शरीर में 19 खंड होते है और सभी में संधित उपांग होते है , शिरोवक्ष भाग सामान्यतया 13 खण्डो का बना होता है। शिरोवक्ष में सिर के पाँच और वक्ष के आठ खण्ड आपस में समेकित हो जाते है।
शिरोवक्ष से भिन्न उदर भाग सुविकसित होता है। इस भाग में 6 गतिशील खंड और एक अन्तस्थ शंकु रूप पुच्छ प्लेट या टेल्सन होता है। प्रत्येक उदर खण्ड में एक जोड़ी संघित उपांग होते है जिन्हें प्लवपाद या तरणपाद कहते है।
शरीर में प्रत्येक खण्ड में एक जोड़ी संधित उपांग होते है। इस प्रकार पैलीमोन में 19 जोड़ी उपांग होते है।
इसमें श्वसन के लिए क्लोमावरको के अस्तर , तीन जोड़ी अधिपादांश और आठ जोड़ी गिल्स या क्लोम पाए जाते है। ये सभी अंग वक्ष के दोनों ओर दो बड़े और संकुचित गिल कोष्ठकों में सुरक्षित रहते है।
इसमें रुधिर संवहनी तन्त्र अन्य ऐनीलिड जन्तुओं की तुलना में जिनमे बंद प्रकार का संवहनी तन्त्र होता है , खुले प्रकार का या रिक्तिका प्रकार का होता है।
इसके उत्सर्जी तन्त्र में एक जोड़ी श्रृंगिकी या हरित ग्रंथियां एक जोड़ी पाशर्व वाहिनियाँ , एक रीनल उया वृक्क पर्युदया कोष तथा अध्यावरण भाग लेते है।
इसका तंत्रिका तन्त्र एनीलिड जन्तुओं की अपेक्षा कुछ बड़ा और विकसित होता है।
यह केन्द्रीय , परिधीय और अनुकम्पी तंत्रिका तंत्रों में बंटा होता है। इसमें नेत्र , लघु श्रृंगकाएं , ज्ञानेन्द्रियो के रूप में पायी जाती है। इन जन्तुओ में नर एवं मादा अलग होते है और लैंगिक द्विरूपता स्पष्ट होती है।
इनमे बाह्य निषेचन पाया जाता है और परिवर्धन प्रत्यक्ष होता है अर्थात भ्रूण से सीधे वयस्क की उत्पत्ति होती है।
जीवन चक्र में कोई भी लार्वा प्रावस्था नहीं पायी जाती है।
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