palaemon nervous system in hindi diagram पेलिमोन का तंत्रिका तंत्र क्या है , केन्द्रीय , परिधीय अनुकम्पी तंत्रिक तंत्र

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तंत्रिका तन्त्र (Nervous System)

इसका तंत्रिका तंत्र भी सुविकसित एवं उसी आधार पर निर्मित होता है जैसा कि नेरीज का होता है। पेलिमोन का तंत्रिका तंत्र तीन भागों में विभेदित किया जा सकता है

(1) केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (Central nervous system)

(2) परिधीय तंत्रिका तंत्र (Peripheral nervous system)

(3) अनुकम्पी तंत्रिक तंत्र (Syampathetic nervous system)

(1) केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (Central Nervous Systems)

प्रॉन या पेलिमोन का केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र निम्नलिखित भागों से मिलकर बना होता है

(i) मस्तिष्क या अधिग्रसिका गुच्छक (ii) परिग्रसिका संधायियाँ (iii) अधर वक्षीय गुच्छक पिण्ड (iv) अधर तंत्रिका रज्जु ।

(i) मस्तिष्क या अधिग्रसिका गुच्छक (Brain or Supra-oesophageal ganglia)

प्रॉन का मस्तिष्क एक द्विपालित (bilobed) संरचना होती है जो अग्र भाग में ग्रसिका के ऊपर एवं तुण्डक (rostrum) के पीछे स्थित होती है। यह वसा के मोटे आवरण से ढका रहता है। मस्तिष्क के दोनों अधिग्रसिका गुच्छक (supra oesophageal ganglia) कई गुच्छकों के समेकन से बने होते हैं। सम्भवतः तीन जोड़ी गुच्छक संगलित होकर मस्तिष्क की संरचना करते हैं। मस्तिष्क के प्रत्येक अधिग्रसिका गुच्छक से निम्नलिखित तंत्रिकाएँ निकलती हैं

(a) प्रश्रृंगिक तंत्रिका (Antennulary nerve ) – यह प्रशृंगिका ( antennule) को जाती है तथा इसकी एक शाखा स्टेटोसिस्ट (statocyst) को भी जाती है।

(b) दृक तंत्रिका (Optic nerve) – यह एक मोटी तंत्रिका होती है जो संयुक्त नेत्र को जाती है।

(c) ऑफ्थेल्मिक तंत्रिका (Ophthalmic nerve) – यह नेत्र वृन्त (eye stalk) को जाती है।

(d) शृंगिक तंत्रिका (Antennary nerve) – यह शृंगिका को जाती है।

(e) अध्यावरक तंत्रिका (Tegumental nerve)- यह उधर्वोष्ठ या लेब्रम (labrum) को जाती है।

(ii) परिग्रसिका संधाइयाँ (Circum-oesophageal commissures)

मस्तिष्क के पश्च सिरे से दोनों तरफ एक-एक मोटी तंत्रिकाएँ निकलती है जो ग्रसिका को घेरते हुए ग्रसिका के अधर सतह पर स्थित अधो ग्रसनी गुच्छकों (sub-oesophageal ganglia) से जुड़ जाती है। इन्हें परिग्रसिका संधाइयाँ कहते हैं क्योंकि ये ग्रसिका के चारों तरफ एक वलय बनाती हैं। अधो ग्रसिका गुच्छक, अधर वक्षीय गुच्छक पिण्ड का अग्र भाग बनाते हैं तथा ये स्पष्ट रूप से अधर वक्षीय गुच्छक पिण्ड से अलग नहीं होते हैं। प्रत्येक संधायी में अनेक अग्र सिरे के समीप एक छोटा संधायी गुच्छक (commissural ganglion) पाया जाता है। इससे एक पतली तंत्रिका निकल कर मैन्डिबल को जाती है। पश्च सिरे के समीप दोनों परिग्रसिका संधाइयाँ आपस में एक पतले अनुप्रस्थ संयोजक (transverse connective) द्वारा आपस में जुड़ रहती हैं।

(iii) अधर वक्षीय गुच्छक पिण्ड (Ventral thoracic ganglionic mass)

सिरोवक्ष की अधर सतह पर सफेद, अण्डाकार, लम्बा, अधर वक्षीय गुच्छक पिण्ड ( ventral thoracic ganglionic mass) पाया जाता है। यह ग्यारह जोड़ी गुच्छकों के समेकन से बना होता है। प्रॉन में सिर व वक्ष के सभी खण्ड संगलित होकर सिरोवक्ष बनाते हैं अतः सभी खण्डों के गुच्छक संगलित होकर इस अधर वक्षीय गुच्छक पिण्ड की संरचना करते हैं। इस पिण्ड के बीच में एक छिद्र पाया जाता है जिससे होकर स्टर्नल धमनी नीचे की तरफ जाती है अतः इस छिद्र को स्टर्नल धमनी का छिद्र (aperture for sternal artery) कहते हैं। इस गुच्छक से पार्श्वतः 11 जोड़ी तंत्रिकाएँ निकलती हैं। इनमें से प्रथम तीन सिफेलिक क्षेत्र के उपांगों-मेन्डिबल (mandible), लघु जम्भिका या मेक्सिलुला (maxillula) तथा जम्भिका (maxilla) को जाती है। शेष आठ जोड़ी वक्षीय तंत्रिकाएँ होती हैं इनमें से तीन, प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय जम्भपादों (maxillaepedes) को तथा शेष पाँच जोड़ी चलन टाँगों (walking legs) में जाती हैं।

(iv) अधर तंत्रिका रज्जु (Ventral nerve cord)

अधर वक्षीय गुच्छक पिण्ड ( ventral thoracic ganglionic mass) के पश्च सिरे से एक मोटी तंत्रिका रज्जु निकलती है जिसे अधर तंत्रिका रज्जु कहते हैं। यह संरचना में दोहरी होती है तथा एक सामान्य आवरण द्वारा ढकी रहती है। यह अधर वक्षीय गुच्छक पिण्ड के पश्च भाग से उदर की मध्य रेखा में उदर के अन्तिम खण्ड तक फैली रहती है। प्रत्येक खण्ड में यह फूलकर एक खण्डीय गुच्छक (segmental ganglion) का निर्माण करती है। छठे उदर खण्ड का गुच्छक ताराकार एवं बड़ा होता है। प्रथम पाँचों उदरीय गुच्छकों से तीन जोड़ी तंत्रिकाएँ निकलती हैं इनमें से एक जोड़ी प्लवपादों (pleopods) को, एक जोड़ी खण्ड की प्रसारिणी पेशियों (extensor muscles) को तथा एक जोड़ी पिछले खण्ड की आकोचनी पेशियों (flexor muscles) को जाती है। छठे उदर खण्ड का गुच्छक बड़ा व ताराकार होता है। यह कई गुच्छकों के संगलन से बनता है। इससे दो जोड़ी तंत्रिकाएँ आकोचनी पेशियों को दो जोड़ी पुच्छपादों (uropods) को दो जोड़ी पुच्छ खण्ड (telson) को तथा एक अकेली मध्य तंत्रिका मलाशय तथा पश्च आंत्र को जाती है।

संवेदी अंग (Sense organs)

प्रॉन में निम्न प्रकार के संवेदी अंग पाये जाते हैं-1. संयुक्त नेत्र (Compound eye) या प्रकाश ग्राही अंग (Photo-receptor organ) 2. स्पर्श व घ्राण अंग (Tactile and Olfactory organs) 3. सन्तुलन पुटिका (Statocyst)।

संयुक्त नेत्र (Compound Eye) :

पेलीमोन में एक जोड़ी काले रंग के अर्द्धगोलाकार, संवृन्त, संयुक्त नुत्र पाये जाते हैं। प्रत्येक संयुक्त नेत्र एक छोटे, द्विखण्डीय संधियुक्त, गतिशील वृत्त पर स्थित होता है। नेत्र तुण्डक या रॉस्ट्रम दोनों तरफ नेत्र खाँच में स्थित होते हैं।

संरचना

प्रत्येक संयुक्त नेत्र अनेक दृष्टि इकाइयों का बना होता है जिन्हें ऑमेटिडिया (ommatidia) कहते हैं। इस तरह के नेत्र संघ आर्थ्रोपोडा की विशेषता होती है। सभी दृष्टि इकाइयां संयुक्त रूप से क्यूटिकल के पारदर्शी काइटिनी आवरण से ढकी रहती है। इस पारदर्शी आवरण को कॉर्निया (comca) कहते हैं। यह क्यूटिकल या कॉर्निया ग्राफपेपर की तरह, अनेक वर्गाकार फलकों (facets) में विभक्त रहती है। प्रत्येक फलक (facct) के नीचे एक दृष्टि इकाई ऑमेटिडियम या नेत्रांशक (ommatidium), स्थित होता है। ये नेत्रांशक संयुक्त नेत्र में अरीय रूप से व्यवस्थित रहते हैं।

नेत्रांशक (Ommatidium) की संरचना

प्रत्येक नेत्रांशक अपने आप में स्वतंत्र दृष्टि इकाई होता है। यह एक ही पंक्ति में विन्यासित

बहुत सारी कोशिकाओं का बना होता है। प्रत्येक नेत्रांशक को संरचना व कार्य के आधार पातो. में बांटा जा सकता है।

(i) अपवर्तन क्षेत्र (Dioptrical region)

(ii) ग्राही क्षेत्र (Receptor region)

(i) अपवर्तन क्षेत्र (Dioptrical Region)

पारदर्शी क्यूटिकल का एक फलक एक नेत्रांशक का कॉर्निया कहलाता है। यह भाग बीच से मोटा होकर उभयोत्तल लैंस (biconvex lens) का निर्माण करता है। इसके नीचे दो कॉर्नियोजन कोशिकाएँ पायी जाती हैं। ये कोशिकाएँ कॉर्निया का स्रावण करती है। त्वकपतन (moulting) के दौरान संयुक्त नेत्र का पारदर्शी कॉर्नियाई क्युटिकल का आवरण भी नवीनीकृत किया जाता है व पुराने को उतार दिया जाता है। नये कॉर्निया का स्त्रावण ये कॉर्नियॉजन कोशिकाएँ करती हैं। इन कोशिकाओं के नीचे एक शंक्वाकर संरचना पायी जाती है जो चार लम्बी शंक कोशिकाओं (cone cells) अथवा विट्रेली (vitrellae) एवं क्रिस्टलीय शंकु (crystaline cone) की बनी होती है। क्रिस्टलीय शंकु एक पारदर्शी संरचना होती है, जिसे शंकु कोशिकाएं घेरे रहती है तथा ये शंकु कोशिकाएँ ही इसका नावण करती है। शंकु कोशिकाओं के पश्च सिरे पतले व नुकीले होते हैं तथा नेत्रांशक के ग्राही भाग पर टिके रहते हैं। नेत्रांशक का यह भाग प्रकाश की किरणों को ग्राही क्षेत्र पर फोकस करता है।

(ii) ग्राही क्षेत्र (Receptor region)

नेत्रांशक का ग्राही भाग अपेक्षाकृत लम्बा होता है तथा अपवर्तन क्षेत्र के ठीक नीचे स्थित होता है। ग्राही क्षेत्र के बीचों-बीच एक त• रूपी लम्बी छड़ाकार संरचना पायी जाती है। जिसे रेब्डॉम (rhabdome) कहते हैं। रेब्डोम पर अनुप्रस्थ धारियां दिखाई देता है तथा इसी पर अपवर्तन क्षेत्र की शंकु कोशिकाओं के पश्च सिरे टिके रहते हैं। रेब्डोम (rhabdome) को चारों तरफ से सात लम्बी कोशिकाएँ घेरे रहती है। इन्हें रेटिनल कोशिकाएँ (retinal cells) कहते हैं। ये रेटिनल कोशिकाएँ ही इस छड़नुमा रेब्डोम का स्रावण करती हैं। रेटिनल कोशिकाओं तथा रेब्डोम के पश्च सिरे आधार झिल्ली पर टिके रहते हैं तथा दृक गुच्छकों के तंत्रिका तन्तुओं से जुड़े रहते हैं। ये गुच्छक फिर दुक तंत्रिका (optic nerve) के द्वारा मस्तिष्क से जुड़े रहते हैं। नेत्रांशक का यह भाग ग्राही भाग (receptor part) कहलाता है।

प्रत्येक नेत्रांशक (ommatidium) अपने पड़ौसी नेत्रांशक से गतिशील वर्णक आवरण (pigment sheath) द्वारा पृथक रहते हैं। यह वर्णक शीथ गतिशील अमीबाभ वर्णक कोशिकाओं से बनी होती है। नेत्रांशकों के बीच पायी जाने वाली वर्णक शीथ को दो समूहों में विभक्त किया जा सकता है। वह समूह जो अपवर्तनी क्षेत्र (dioptrical region) में पाया जाता है, आइरिस या उपतारा वर्णक समह (iris pigment) कहलाता है तथा वह समूह जो प्रकाश ग्राही क्षेत्र (receptor region) में रेटिनी कोशिकाओं के बीच पाया जाता है, रेटिनी वर्णक समूह (retinal pigment) कहलाता है।

संयुक्त नेत्र की क्रियाविधि

संयुक्त नेत्र कई नेत्रांशकों का बना होता है तथा अपने आप में स्वतंत्र दृष्टि इकाई होता है। प्रत्येक नेत्रांशक में वस्तु के दिखाई पड़ने वाले छोटे से भाग का ही प्रतिबिम्ब बनता है। इस तरह किसी वस्तु को जितने नेत्रांशक मिल कर देखते हैं, उसका प्रतिबिम्ब उतने ही टुकड़ों में बनता है। प्रतिबिम्ब के ये छोटे-छोटे भाग ठीक उसी तरह परस्पर जुड़ते हैं जैसे फर्श पर टाइलें जुड़ी होती हैं। अतः इस तरह की दृष्टि को मोजेक दृष्टि (mosaic vision) कहते हैं। संयुक्त नेत्र में प्रतिबिम्ब की प्रकृति प्रकाश की तीव्रता के अनुसार बदलती रहती है। तीव्र प्रकाश में बनने वाला प्रतिबिम्ब स्तराधान प्रतिबिम्ब (apposition image) कहलाता है तथा मन्द प्रकाश में बनने वाला प्रतिबिम्ब अध्यारोपण प्रतिबिम्ब (superposition image) कहलाता है।

स्तराधान प्रतिबिम्ब (Apposition image)

दिन के तीव्र प्रकाश के दौरान वर्णक कोशिकाएँ इस तरह प्रसारित हो जाती हैं कि वे पड़ौसी नेत्रांशकों को एक दूसरे से पृथक कर देती है। ये वर्णक कोशिकाएँ प्रकाश अवशोषी पर्दों की तरह ही नेत्रांशकों के बीच फैल जाती है व नेत्रांशकों को पूर्णतः एक दूसरे से अलग कर देती है। इस कारण प्रकाश की किरणें जो भिन्न-भिन्न कोणों से कॉर्निया पर गिरती हैं वे इन वर्णक कोशिकाओं के पर्दे में अवशोषित हो जाती हैं। एक नेत्रांशक की किरणें दूसरे नेत्रशांक में प्रवेश नहीं कर पाती हैं। केवल वे ही किरणें प्रतिबिम्ब बनाने में सफल होती हैं जो कॉर्निया के ठीक केन्द्र में होकर सीधी गुजरती है। इससे स्पष्ट है कि तिरछी किरणें प्रतिबिम्ब बनाने में प्रभावशाली नहीं होती है। केवल सीधी किरणें ही वस्तु के छोटे से भाग का प्रतिबिम्ब बनाती है। इस तरह एक नेत्रांशक वस्तु के छोटे से भाग का प्रतिबिम्ब बनाता है। ऐसे कई छोटे-छोटे प्रतिबिम्ब परस्पर मिलकर पूर्ण वस्तु का प्रतिबिम्ब बनाते हैं। इस तरह का प्रतिबिम्ब जो छोटे-छोटे टुकड़ों का बना होता है मोजेक प्रतिबिम्ब या स्तराधान प्रतिबिम्ब कहलाता है। प्रतिबिम्ब की स्पष्टता (sharpness) प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर करती है। इस तरह प्रतिबिम्ब टुकड़ों में किन्तु साफ बनता है।

अध्यारोपण प्रतिबिम्ब (Superposition image)

रात्रि में मन्द प्रकाश में वर्णक कोशिकाएँ संकुचित होकर नेत्रांशकों के निचले भाग में एकत्र हो जाती है। जिसके कारण पडौसी नेत्रांशक एक दूसरे के सम्पर्क में आकर एक साथ मिल कर प्रतिबिम्ब बनाते हैं। इस प्रक्रिया में प्रकाश की सभी किरणें जो कॉर्निया से टकराती हैं, सभी प्रतिबिम्ब बनाने की क्षमता रखती है। विभिन्न कोणों से पड़ने वाली किरणें भी नेत्रांशकों द्वारा ग्रहण कर ली जाती है तथा मार्ग में पड़ने वाले अन्य नेत्रांशकों में भी चली जाती है। इस तरह प्रत्येक नेत्रांशक केवल अपने सामने पड़ने वाले वस्त के भाग को ही नहीं देखता है बल्कि दूसरे नेत्रांशकों के सामने वाले भाग से आने वाली किरणों को भी ग्रहण कर उसे भी देखता है। इस प्रकार प्रतिबिम्ब पूर्व की तरह छोटे-छोटे टुकड़ों में न बनकर अविच्छिन्न (continuous) तथा अध्यारोपित (overlapping) या संयुक्त प्रतिबिम्ब बनाता है, ऐसे प्रतिबिम्ब को अध्यारोपण प्रतिबिम्ब (overlapping image) कहते हैं। इस तरह का प्रतिबिम्ब केवल वस्तु का आभास देता है क्योंकि यह प्रतिबिम्ब स्पष्ट नहीं होता है।

  1. स्पर्श (Tactile) व घ्राण (Olfactory) अंग :

प्रॉन में श्रृंगिका, व प्रश्रृंगिका (antenna and antennule) प्रमुख स्पर्शग्राही अंग होते हैं। इनमें लम्बे-लम्बे बहुखण्डीय संस्पर्शक (feelers) पाये जाते हैं।शृंगिका एवं प्रशृंगिका के संस्पर्शकों पर स्पर्श-शूक (tactile setae) पाये जाते हैं। इनके अलावा ये स्पर्श शूक प्लवपादों (pleopods) के अन्तः पादांश (endopodite) एवं बहि:पादांश (exopodite) के सीमान्तों पर व अन्य उपांगों के चपटे भागों के सीमान्तों पर भी काफी संख्या में पाये जाते हैं। ये शुक पिच्छाकार (plumose) रूप के होते हैं। प्रत्येक शक क्यटिकल की बनी खोखली संरचना होती है। इनमें एक्टोडर्म की एक पतली अन्तर्वद्धि तथा पेशियां पायी जाती हैं एवं का तंत् भी पहुंचा हुआ होता है। प्रत्येक शूक दो खण्डों का बना होता है (i) शाफ्ट (ii) फलक

शाफ्ट (shaft) समीपस्थ फूला हुआ आधारी खण्ड होता है यह एक लचीली झिल्ली द्वारा त्वचा से जुड़ा रहता है।

फलक (blade) दूरस्थ खण्ड होता है। यह अपने स्वतंत्र सिरे की तरफ पतला होता है। इस पर कोटे पिच्छकों की दो रेखीय पक्तियां पायी जाती है। इनका प्रमुख कार्य स्पर्श उद्दीपनों को ग्रहण करना होता है।

घ्राण अंग (olfactory organ):-

घाण अंग प्रशृंगिका के मध्य संस्पर्शक की लम्बवत खाँच कों के रूप में पाये जाते हैं। स्पर्श-शक की तरह घ्राण शक भी दो खण्डों के बने होते हैं।

(i) आधार-खण्ड या शाफ्ट-यह एक लचीली झिल्ली द्वारा त्वचा से जुड़ा रहता है। अगर

(ii) दूरस्थ खण्ड या फलक (blade) यह लगभग गोलाकार, खोखला चाकू के फल के समान आकार का होता है।

प्रत्येक घ्राण, अंग को प्रशृंगीय तंत्रिका की एक शाखा, घ्राण तंत्रिका, आती है तथा इस घ्राण तंत्रिका की शाखाएं घ्राण शूकों में जाती है। इस अंग का प्रमुख कार्य घ्राण संवेदनाओं को ग्रहण करना होता है।

3.सन्तुलन पुटिका (Statocyst):

प्रॉन में एक जोड़ी सन्तुलन पुटिकाएँ पायी जाती हैं। ये प्रशृंगिका के अग्रकक्षांग (precoxa) में स्थित होती है तथा उसक पृष्ठ भित्ति से जुड़ी रहती है। प्रत्येक सन्तुलन पुटिका एक सफेद खोखली, माला के दाने के समान गोलाकार संरचना होती है। यह क्यूटिकल की बनी होती हैं। यह एक सूक्ष्म छिद्र द्वारा अग्रकक्षांग की अवतल सतह में ऊपर की तरफ खलती है जिसे सन्तुलन पटिकीय छिद्र (statocystic aperture) कहते हैं। यह एक अध्यवरणी ढांपन द्वारा ढका रहता है।

सन्तुलन पुटिका की गुहा में अनेक सूक्ष्म रेत के कण भरे रहते है। यह पुटिका लम्बे कोमल ग्राही शूकों (receptor setae) द्वारा आस्तरित रहती है। प्रशृगिका तंत्रिका का छोटी शाखा सन्तलन पटिका में जाती है जिसे सन्तुलन पुटिकीय तंत्रिका (statocystic nerve) ‘ कहते हैं। इस तंत्रिका की छोटी-छोटी शाखाएँ इन ग्राही शूकों तक जाती है। प्रत्येक ग्राही शूक दो भागों का बना होता है एक फला हआ आधार तथा एक लम्बा शुण्डाकार शाफ्ट (shaft)| शाफ्ट बीच से मुडी हुइ होती है तथा मुड़े हुए भाग पर महीन रोम पाये जाते हैं। सन्तुलन पुटिका, सन्तुलन एवं अभिविन्यास का कार्य करती है। इसम उपास्थत रत क कण सन्तुलनाश्मा की तरह कार्य करते हैं। तैरते हए प्रॉन की स्थिति में जेस हा काइ पारवतन होता है। तक कण विस्थापित होकर संवेदी शकों पर दबाव डालते हैं जिससे शूक उत्तेजित हो जाते हा य उत्तेजित शूक इस सूचना को तंत्रिका द्वारा मस्तिष्क तक पहुँचा देते हैं तथा जन्तु पेशी संकुचन द्वारा अपनी स्थिति ठीक कर लेता है। प्रॉन में त्वचा निर्मोचन के सयम सन्तुलन पुटिका भी उतार । दी जाती है। इसी वजह से नवनिर्मोचित तन्तुओं में अभिविन्यास (orientation) की शक्ति समाप्त हो जाती है।