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Categories: Biology

प्राणियों में संरचनात्मक संगठन , प्रकार , उपकला ऊत्तक , संयोजी उत्तक , पेशी , तंत्रिका ऊत्तक

Organizational organization in animals in hindi प्राणियों में संरचनात्मक संगठन :

1. उपकला ऊत्तक (epithelial tissue ) : यह उत्तक शरीर का आवरण अथवा आस्तर का निर्माण करता है।  इस ऊत्तक का एक स्तर देहतरल व दूसरा स्तर बाह्य वातावरण के सम्पर्क में रहता है , इसकी कोशिकाएं अंतरा कोशिकीय अद्यात्री द्वारा दृढता से जुडी रहती है।  यह दो प्रकार का होता है –

(i) सरल उपकला ऊत्तक : यह एक ही स्तर का बना होता है , यह देहगुहा , वाहिनियों व नलिकाओं का स्तर बनाता है।  यह रक्षात्मक आवरण के रूप में कार्य करता है।  यह तीन प्रकार का होता है –

(a) शल्की उत्तक : यह चपटी कोशिकाओं से बना पतला स्तर होता है , यह वहिकाओ , फेफड़े व वायकोष का स्तर बनाता है।

(b) घनाकार उपकला : यह  एक स्तरीय घनाकार कोशिकाओं का बना होता है , यह वृक्क नलिकाओं , ग्रंथियों की वाहिकाओं , का स्तर बनाता है।  यह मुख्य रूप से स्त्रवण व अवशोषण का कार्य करता है।

(c) स्तंभकार उपकला : यह एक स्तरीय लम्बी , पतली कोशिकाओ का बना होता है।  इसकी मुक्त सतह पर सूक्ष्म अंकुर पाये जाते है।  यह अवशोषण में सहायक है।  यह अमाशय आंत्र का आन्तरिक स्तर बनाता है।

जब स्तम्भकार उपकला पर मुक्त सतह पर पक्ष्माय पाये जाते है तो इसे पक्ष्मायी उपकला कहते है।  यह कणों व श्लेष्मा को उपकला की सतह पर एक निश्चित दिशा में ले जाता है।

कुछ स्तम्भाकार कोशिकाओ में स्त्रवण की विशेषता होती है , ऐसी उत्तकता को ग्रंथिल उत्तकता कहते है  यह दो प्रकार का होता है –

  • एककोशिका : यह प्रथक तथा एकल कोशिकाओ का बना होता है।  उदाहरण – आहारनाल की कलश कोशिकाएं।
  • बहुकोशिका : यह अनेक कोशिकाओ की पुंज से बना होता है।  उदाहरण – लार ग्रंथि।

ii . संयुक्त उपकला : यह दो या दो से अधिक स्तरों का बना होता है , यह त्वचा की शुष्क सतह , मुखगुहा की नम सतह , ग्रसनी , लार ग्रंथियों व अग्नाशय की वाहिनियो की भीतरी स्तर बनाती है  यह अवशोषण , रासायनिक व यांत्रिक प्रतिबलो से रक्षा करता है।  उपकला की सभी कोशिकाएं अंतरकोशिकीय पदार्थ से जुडी रहती है , उपकला व अन्य उत्तको में दृढ संधि आंसजी संधि , अन्तराली पायी जाती है।

2. संयोजी उत्तक (connective tissue) : यह उत्तक जन्तुओ में बहुतायत व विस्तृत रूप में पाया जाता है।  यह अन्य उत्तकों व अंगो को एक दूसरे से जोड़ने व आलंबन / सहारा प्रदान करने में सहायक होता है।

इस उत्तक में कोमल उत्तक ,उपास्थि , अस्थि व वसीय उत्तक शामिल है।  रक्त को छोड़कर सभी संयोजी उत्तको में प्रोटीन तन्तु पाये जाते है , जिन्हें कोलेजन या इलास्टिन कहते है।  कोलेजन या इलास्टिन उत्तक को यांत्रिक शक्ति , प्रत्यास्थता एवं लचीलापन प्रदान करते है।  संयोजी उत्तक तीन प्रकार का होता है –

(a) लचीले संयोजी ऊत्तक : इस उत्तक में कोशिकाएँ व तन्तु अर्द्धतरल अद्यारी पदार्थ में शिथिलता से जुड़े रहते है।

उदाहरण – त्वचा गर्तिका उत्तक , वसा उत्तक

(b) सघन संयोजी उत्तक : इस उत्तक में कोशिकाए व तन्तु दृढ़ता से व्यवस्थित रहती है , तन्तुओ के अभिविन्यास के आधार पर यह डो प्रकार का होता है –

  • सघन नियमित उत्तक : इस उत्तक में तन्तु व तन्तु कोशिकाएँ समान्तर कतार में व्यवस्थित होते है। उदाहरण – कण्डाराएँ , स्त्रायु आदि।
  • सघन अनियमित : इस उत्तक में तन्तु व तन्तु कोशिकाएँ अनियमित रूप से व्यवस्थित होते है , यह त्वचा के नीचे पाया जाता है।

(c) विशिष्ट संयोजी उत्तक : यह तीन प्रकार का होता है –

  • उपास्थि : इसका अन्तरा कोशिकीय पदार्थ अर्द्धठोस , विशिष्ट , आनम्य व संपीडित होता है।  इस उत्तक को बनाने वाली कोशिका स्वयं एक गुहिका में बंद होती है।  भ्रूण की उपास्थि व्यस्क अवस्था में अस्थि में बदल जाती है।  उपास्थि नाक की नोक , बाह्य कान , संधियों व मेरुदंड के आस पास पाया जाता है।
  • अस्थि (bone) : यह खनिजयुक्त ठोस संयोजी उत्तक है , इसमें कोलेजन तन्तु व कैल्शियम लवण उपस्थित होते है।  कैल्शियम मजबूती प्रदान करता है , यह शरीर का संरचनात्मक कंकाल तंत्र बनाता है। कुछ अस्थियों की अस्थि मज्जा रक्त कोशिकाओ का निर्माण होता है।
  • रक्त (blood) : यह तरल संयोजी उत्तक है , इसमें जीवद्रव्य , RBC , WBC व पट्टिकाणु पाये जाते है।  यह विभिन्न पदार्थ व गैसों के परिवहन में सहायक होता है।

3. पेशी उत्तक (muscular tissue)

पेशी उत्तक अनेक लम्बे बेलनाकार , समान्तर पंक्ति में व्यवस्थित तन्तुओ से बना होता है तथा प्रत्येक तन्तु अनेक सूक्ष्म तंतुको से बना होता है जिसे पेशी तन्तुक मायोफाइबिल्स (myofibrils) कहते है।  यह पेशी की सबसे छोटी संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई होती है।  सामान्यतया शरीर की सभी गतियो में पेशियाँ प्रमुख भूमिका निभाती है।  पेशीय उत्तक तीन प्रकार के होते है –

  • कंकाल पेशी – यह मुख्यतः अस्थियों से जुडी रहती है , इन्हें रेखित पेशी भी कहते है।  कंकाल पेशी में पेशी तन्तु एक समूह में समान्तर क्रम में व्यवस्थित होते है।  ये एच्छिक संकुचन करती है तथा जल्दी से थक जाती है।
  • चिकनी पेशी – इन पेशियों की कोशिकाएँ दोनों किनारों से पतली होती है इन्हें अरेखित पेशी कहते है।  ये रक्त नलिकाओ , अग्नाशय , आन्तरिकी भित्ति में पायी जाती है।  इन पेशियों का संकुचन अनैच्छिक होता है।  ये देरी से थकती है।
  • ह्रदय पेशी – ये केवल ह्र्दय में पायी जाती है।  ये रेखित व अनैच्छिक पेशियाँ होती है।  ये कभी नही थकती है।

4. तंत्रिका ऊत्तक (Nervous tissue)

तंत्रिका उत्तक तंत्रिका कोशिकाओ (न्यूरोन) के संगठन से होता है।  न्यूरोन के डो भाग होते है –
  • तन्त्रिका काय : यह अनियमित आकार का जीवद्रव्य युक्त व केन्द्र युक्त भाग होता है।  इसमें निस्सल के कण भी पाये जाते है।  जो आवेगों के संचरण में सहायक होते है।  तंत्रिका काय से अनेक रोम के समान संरचनाएँ निकलती है जिन्हें डेन्ड्रोन कहते है।
  • एक्सोन : तंत्रिका काय से नलिका के समान संरचना निकलती है जिसे एक्सोन कहते है।  एक्सोन पर श्वान कोशिकाओ का आवरण पाया जाता है जिसे माइलिन आच्छाद कहते है।  माइलीन आच्छाद में जगह जगह पर रिक्त स्थान पाये जाते है जिन्हें रेनबियर के नोड कहते है।  एक्सोन के अंतिम सिरे घुण्डी के समान होते है जिन्हें साइनोटिक बटन कहते है।
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