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असंक्रमणशील प्लाज्मिड्स क्या है non-infectious plasmids in gene cloning in hindi

non-infectious plasmids in gene cloning in hindi असंक्रमणशील प्लाज्मिड्स क्या है ?

प्लाज्मिड (Plasmid)

अमरीकी वैज्ञानिक जोशुआ लेडरबर्ग (Joshua Lederberg ) का एवं आस्ट्रेलिया के विलियम हेप (Wiliam Hays) ने सर्वप्रथम सन् 1952 में यह देखा कि बेक्टीरिया की कोशिका में मुख्य गुणसूत्र के अलावा भी छोटी-छोटी गोलाकार अनुवांशिक संरचनाएँ (Extra Chromosonal Structure) पाई जाती हैं। उन्होंने इनको प्लाज्मिड (Plasmid) का नाम दिया (चित्र 6.4 ) । मुख्यतया जीवाणु कोशिका में ये प्लाज्मिड्स (Plasmids) जीवाणु गुणसूत्र (Bacterial Chromosome) के अतिरिक्त कोशिका द्रव्य में वर्तुलाकार DNA (Circular DNA ) के रूप में पाये जाते हैं (चित्र 6.3 ) ।

सभी जीवाणु कोशिकाओं में प्जाज्मिड नहीं पाये जाते और इनकी उपस्थिति किसी एक जीवाणु प्रजाति के सभ विभेदों (Strains) में पाई गई है। एक प्रारुपिक जीवाणु कोशिका में प्लाज्मिड की संख्या एक या एक से अधिक, प्रायः 18 से 25 तक हो सकती है। जीवाणुओं की कोशिका में इसकी आकृति (Shape) एवं परिम (Size) अलग-अलग होती है। इसकी संरचना में तीन से लेकर कई हजार जीन्स होते हैं। इसी प्रकार हालांकि प्रारुपिक प्लाज्मिड की आकृति गोल या वर्तुलाकार DNA के रूप में पाई जाती है, परन्तु अन्य प्रकार जैसे रैखिक (Linear ) या खुले वलयाकार (Open ring) आकृति के प्लाज्मिड भी पाये जाते हैं।

आधुनिक अवधारणा के अनुसार “कोशिका में मुख्य जीनोम के अतिरिक्त उपस्थित किसी भी अनुवांशिक संरचना या अंश को प्जाज्मिड (Plasmid) कहते हैं।” इसका प्रतिकृतिकरण या तो स्वतंत्र रूप से कोशिका द्रव्य में अथवा कोशिका के मुख्य गुणसूत्र (जिसे परपोषी गुणसूत्र, Host Chromosome भी कहते हैं। के साथ जुड़कर (Integrated) इसके साथ ही होता है । इसके अतिरिक्त पलाज्मिड का DNA भी द्विरज्जुको कुण्डिलत (Double Stranded helix ) की संरचना निरूपित करता है तथा जब यह मुख्य गुणसूत्र के साथ जुड़कर या समाकलित (Integrated) होकर मुख्य या पोषी गुणसूत्र के साथ प्रतिकृतिकरण (Replication) करता है, तो इस प्रक्रिया के दौरान ये प्लाज्मिड परपोषी जीवाणु गुणसूत्र या जीनोम का कुछ हिस्सा, अपने भीता पुनर्योजन (Recombination) द्वारा समाविष्ट कर लेते हैं। इसके बाद आगे के चरण में इस प्रकार पुनर्योजन द्वारा अपने भीतर निहित परपोषी जीनोम के अंश मूलपोषी जीवाणु कोशिका से अन्य कोशिका मे स्थानान्तरित का है। हैं। इस प्रक्रिया के द्वारा हम यह कह सकते हैं कि प्लाज्मिड पोषी जीवाणु DNA या जीन को एक कोशिका से दूसरी कोशिका में पहुंचाकर एक प्रकार संवर्ध वाहक (Clonal Vehicle) का कार्य करते हैं। अतः आधुनिक अनुवांशिक अभियांत्रिकी (Genetic Engineering) में प्लाज्मिड्स एक महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं। एक सामान्य प्रारूपिक प्लाज्मिड के द्वारा लगभग 10,000 क्षारक-युग्म युक्त DNA खण्ड को प्रतिरोपित या क्लोन किया जा सकता है।

विभिन्न सजीव कोशिकाओं में प्रायः दो प्रकार के प्लाज्मिड्स पाये जाते हैं-

(A) प्लाज्मिड्स (Plasmids)——- ये जीवाणु कोशिका द्रव्य में मुख्य जीनो से अलग उपस्थित DNA खण्ड होते हैं, जिनका अस्तित्व स्वतंत्र होता है एवं इनमें स्वप्रतिकृतिकरण (Self Replication) की क्षमता होती है ।

(B) अधिकाय (Episome ) — जब जीवाणु कोशिका द्रव्य में उपस्थित अतिरिक्त गुणसूत्रीय DNA या प्लाज्मिड अपना स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त करके मुख्य जीवाणु गुणसूत्र या जीनोम से समाकलित (Incorporate) हो जाता है एवं इससे जुड़ कर इसी का एक हिस्सा बन जाता है तो इसे अधिकाय या इपीसोम (Episome) कहते हैं। प्रायः इन संरचनाओं में स्थानान्तर या स्थलान्तरणशीलता का विशेष गुण पाया जाता है, अत: इस प्रकार के इपीसोम्स को ट्रान्सपोसोन भी कहा जाता है।

उपरोक्त तथ्यों के आधार पर प्लाज्मिड (Plasmid) के विशिष्ट लक्षणों को निम्न प्रकार से निरूपित किया जा सकता है-

  1. इनका संरचनात्मक संगठन वाइरस की तुलना में सरल होता है।
  2. ये अतिरिक्त गुणसूत्रीय (Extra Chromosomal), द्विरज्जुकी, सर्पिलाकार कुण्डलित (Helically Coiled), वर्तुलाकार (Circular) डी. एन. ए. खण्ड होते हैं, जिनमें स्वप्रतिकृतिकरण (Self Replication) की क्षमता होती है ।
  3. इनका परिमाप (Size) जीवाणु मुख्य गुणसूत्र की तुलना में कम होता है ।
  4. इनमें प्रोटीन कवच अनुपस्थित होता है ।
  5. क्योंकि ये मुख्य जीनोम से पृथक अतिरिक्त गुणसूत्रीय (Extra Chromosomal) डी.एन.ए. खण्ड होते हैं, अतः ये मातृक वंशागति (Maternal Inheritance) या कोशिका द्रव्यीय वंशागति (Cytoplasmic In- heritance) में सक्रिय योगदान देते हैं।

6.इसका पुनयोजन (Recombination), मुख्य जीवाणु गुणसूत्र (Genome ) अथवा किसी अन्य प्लाज्मिड के साथ हो सकता है।

  1. परपोषी (Host) या मुख्य जीवाणु कोशिका के भीतर रहते हुए ही इनका स्वतंत्र रूप से प्रतिकृतिकरण (Replication) होता रहता है एवं जब इनकी पोषी (Host) जीवाणु कोशिका विभाजित होती है, तो इसके परिणामस्वरूप नई बनने वाली जीवाणु कोशिकाओं में ये प्लाज्मिड्स स्थानान्तरित हो जाते हैं (चित्र 65 ) ।
  2. इनकी उपस्थिति जीवाणुओं के लक्षण प्ररूप (Phenotype) को प्रभावित करती है।
  3. प्लाज्मिड्स की उपस्थिति जीवाणु कोशिका के लिये जरूरी नहीं है। इसके बिना भी जीवाणु का काम चल सकता है क्योंकि यह जीवाणु कोशिका में किसी महत्त्वपूर्ण जैविक क्रिया को नियंत्रित नहीं करते, अपितु एक सहायक भूमिका निभाते हैं ।
  4. प्लाज्मिड जीवाणु कोशिकाओं में कुछ विशिष्ट क्रियाओं का नियंत्रण करते हैं, जैसे-प्रतिजैविक एवं भारी धातु प्रतिरोध (Antibiotic and heavy metal resistance), कुछ विषाणु पदार्थों (Toxins) जैसे- कोलीसिन (Colicin) एवं बेक्टीरियोसिन (Bacteriocin) इत्यादि का उत्पादन, प्रदूषक विघटन (Pollutant degradation) एवं नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Nitrogen fixation) इत्यादि ।

जीन प्रतिरोपण अथवा क्लोनिंग में प्लाज्मिड की भूमिका (Role of Plasmid in Gene Cloning)—

जीन क्लोनिंग की प्रक्रिया में प्लाज्मिड मुख्यत: वाहक (Vector) की भूमिका का निर्वहन करते हैं। इस प्रक्रिया के अन्तर्गत प्लाज्मिड पहले एक DNA खण्ड को अधिग्रहीत करके, उसकी प्रतिकृति (Replication) अपने DNA के साथ, जीवाणु कोशिका में निर्मित करता है । प्रतिकृतिकरण के पश्चात विभोजी कणों (Phage particles) के माध्यम से प्लाज्मिड इन DNA खण्डों को दूसरी जीवाणु कोशिका में पहुंचाते हैं। इस आधार पर हम यह कह सकते हैं कि प्लाज्मिड की जीन प्रतिरोपण (Gene Cloning) के लिये एक वाहक (Vehicle or Vector) के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। जीन प्रतिरोपण या क्लोनिंग को सम्पन्न करने वाले प्लाज्मिड DNA ‘में निम्न विशेषताएँ होनी चाहिए-

  1. इनको पोषी (Host) जीवाणु कोशिका से वियुक्त (Isolate) करना आसान होना चाहिए।
  2. इनकी जीवाणु कोशिका में ही उपस्थिति आवश्यक है ।
  3. इनको पोषी (Host) कोशिका में पुन: निवेशित (Reintroduce) करना सम्भव होना चाहिये ।
  4. प्लाज्मिड के साथ किसी रेखीय अणु (Linear molecule) को जोड़ने के बाद भी इसके प्रतिकृतिकरण (Replication) क्रम में कोई बदलाव नहीं होना चाहिये।
  5. प्लाज्मिड युक्त कोशिकाओं की पहचान एवं चयन भी आसान होना चाहिये ।

प्लाज्मिड द्वारा जीन क्लोनिंग के लिये, पहले चयनित एवं संकुचित DNA खण्डों (Restricted fragments) को प्लाज्मिड वाहक (Plasmid Vector) के साथ जोड़ा जाता है या निवेशित (Insert ) किया जाता है। इसके बाद प्रतिकृतिकरण (Replication) के द्वारा इच्छित व निवेशित DNA खण्ड की प्लाज्मिड के साथ ही संख्या में वृद्धि होती है, इस प्रक्रिया को विवर्धन (Amplification) कहते हैं। सामान्यतया 10,000 क्षारक युग्म मुक्त DNA खण्ड को इस प्रक्रिया के अन्तर्गत प्लाज्मिड के द्वारा क्लोन करवाया जा सकता है।

जीवाणु कोशिका से प्लाज्मिड का पृथक्करण (Isolation of Plasmids from Host Bacterial Cell )-

पोषी जीवाणु कोशिका से प्लाज्मिड खण्ड को विमुक्त (Isolate) करने का कार्य निम्न प्रकार से सम्पन्न करवाया जाता है-

  1. सर्वप्रथम जीवाणु कोशिका को अपमार्जक या डिटरजेंट (Detergent) पाउडर द्वारा उपचारित (Treat- ment) करवा कर कोशिका झिल्ली को विलीन करवा देते हैं। इस मिश्रण को लाइसेट (Lysate) कहते हैं।
  2. पोटेशियम एसिटेट या ऐसिटिक अम्ल के विलयन से जब लाइसेट की क्रिया करवाई जाती है तो जीवाण को गुणसूत्रीय DNA एवं कुछ प्रोटीन अवक्षेपित (Precipitate) हो जाता है।
  3. सेन्ट्रीफ्यूज मशीन के द्वारा अवक्षेपित विलयन को तेजी से सेन्ट्रीफ्यूज करवाने पर, लाइसेट से गुणसूत्रीय _DNA पृथक हो जाते हैं एवं अवसाद (Sediment) के रूप में तली में बैठ जाते हैं। प्लाज्मिड DNA कुछ के साथ साफ लाइसेट ऊपर रह जाते हैं। RNA
  4. एन्जाइम RNAse के साथ लाइसेट की क्रिया करवाने पर इसमें उपस्थित RNA का पाचन (Digestion) या विघटन हो जाता है।
  5. अब लाइसेट को फीनोल (Phenol) से उपचारित करवाया जाता है तो कुछ समय बाद फिनोल एवं जल दोनों अलग-अलग सतहों में व्यवस्थित हो जाते हैं। प्रोटीन एवं RNA ase फीनोल की सतह में एवं जल की सतह में प्लाज्मिड DNA प्राप्त होता है ।
  6. पृथक्करण कीप (Separation Funnel) द्वारा फीनोल सतह को अलग कर लेते हैं। बची हुई जलीय सतह में एल्कोहल को मिलाने पर प्लाज्मिड DNA प्राप्त होता है।

कुछ प्लाज्मिडों में विशिष्ट लक्षण जैसे लिंग कारक (Sex factor) एवं जीवाणु गुणसूत्र में प्रतिलोमी निवेशन (Reverse insertion) इत्यादि भी पाये जाते हैं।

उपरोक्त विशेषताओं तथा जीवाणुओं में इनके लक्षण प्ररूपी प्रभाव (Phenotypic effect) को ध्यान में रखकर वैज्ञानिकों के द्वारा प्लाज्मिड्स के वर्गीकरण विभिन्न प्रकार से किये गये हैं। सामान्यतया प्लाज्मिड्स का वर्गीकरण दो आधारभूत विशेषताओं के सन्दर्भ में किया गया है, ये हैं-

  1. संक्रमणशीलता के आधार पर (On the basis of Infectiousness) 2. विशिष्ट कार्य के आधार पर (On the basis of specific functions)
  2. संक्रमणशीलता के आधार पर प्लाज्मिड्स का वर्गीकरण (Classification of Plasmids on the basis of Infectiousness)

प्लाज्मिड्स की संक्रामक क्षमता के आधार पर इनको दो वर्गों में बाँटा गया है-

(A) संक्रमणशीलता या स्वसंचरणीय प्लाज्मिड (Infectious or Self transmissible plasmids)——— इस प्रकार के जीवाणुओं में F कारक तथा I कारक युक्त दो प्रकार के लिंग रोमों का निर्माण संक्रमणशील प्लाज्मिड्स द्वारा नियंत्रित होता है । इन प्लाज्मिड्स में स्थानान्तरण (Transfer-tra) जीन उपस्थित होते हैं, जिसके कारण ये जीवाणु संयुग्मन (Conjungation) में विशेष भूमिका निभाते हैं। पोषी जीवाणु कोशिका में ऐसे संक्रामक प्लाज्मिड्स की संख्या 1 से लेकर 3 हो सकती है एवं इनका अणुभार ज्यादा होता है।

लिंग रोमों (Sex pili) की जीवाणु कोशिका पर उपस्थिति के आधार पर इनको पुनः दो उपवर्गों में विभक्त किया जा सकता है-

  1. F – समान (F-like)—इनमें F+ कारक या या लिंग कारक मौजूद होता है, जिसकी वजह से ये जीवाणु कोशिका में F- रोम या लिंग रोम के निर्माण को नियंत्रित करते हैं। ये लिंग रोम विशेष प्रकार के प्रोटीन पाइलिन (Pilin) के बने होते हैं। इस प्रोटीन में अनेक फास्फोग्लाइको प्रोटीन उप-इकाइयाँ व्यवस्थित होती हैं, जिनका अणु भार 11800 डाल्टन होता है।

II- समान (Ilike)—इनमें एक विशेष कारक कोलीसिनोजिनक I कारक पाया जाता है, यह भी लिंग रोमों (Sex pili) के निर्माण को नियंत्रित करता है।

(B) असंक्रमणशील प्लाज्मिड्स (Non-Infectious plasmids)—

क्योंकि ये प्लाज्मिड लिंग रोमों के निर्माण को नियंत्रित नहीं करते, अतः संक्रमणशील प्लाज्मिड्स के समान इनमें एक जीवाणु कोशिका से दूसरी कोशिका में स्थानान्तरित होने की क्षमता नहीं होती। इसके साथ ही ये अपनी उपस्थिति के द्वारा पोषी जीवाणु कोशिका को दाता प्रारूप ( Donar state) प्रदान करने में अक्षम होते हैं । इसीलिये ये जीवाणु संयुग्मन में भी सक्रिय नहीं होते एवं इनका अणुभार भी कम होता है। पोषी जीवाणु कोशिका मैं इनकी संख्या 20 से 25 तक होती है। इनके स्थानान्तरण के लिये वांछित लक्षण अग्र प्रकार से हैं-

(a) जीवाणु कोशिका में असंक्रमणशील प्लाज्मिड के साथ-साथ F + कारक या लिंग कारक संक्रमणशील प्लाज्मिड की उपस्थिति ।

(b) असंक्रमणशील प्लाज्मिड को जीवाणुभोजी (Bacteriophage) द्वारा स्थानान्तरति कर सकने के लिये, पोषी जीवाणु में जीनवहन प्रक्रम (Tranductiondevice) का पाया जाना।

  1. विशिष्ठ कार्य के आधार पर प्लाज्मिड्स का वर्गीकरण (Classification of Plasmids on the basis of Specific functions)-

प्लाज्मिड्स द्वारा जीवाणु कोशिका में सम्पादित कुछ विशेष कार्यों के आधार पर इनको निम्न उप वर्गों में विभेदित किया जा सकता है-

(A) लिंगकारक या स्थानान्तरण कारक – F- प्लाज्मिड (Sex Factor or Fertility factor or P. Plasmid) ——— इस प्रकार की प्लाज्मिड युक्त जीवाणु कोशिकाओं का सर्वाधिक उपयोगी अनुवांशिकी के क्षेत्र में अध्ययन के लिये किया जाता है (चित्र 6.6)। जिस पोषी जीवाणु कोशिका में प्लाज्मिड एक DNA खण्ड के रूप में पाया जाता है, उसे F+ या दाता (Donor) कोशिका कहते हैं एवं जिसमें F कारक अनुपस्थित होता है, उसे ग्राही या अदाता (Recipient) कोशिका कहते हैं। इसी प्रकार F+ कारक जब अतिरिक्त गुणसूत्रीय संरचना (Extra Chromosomal Componant) के रूप में जीवाणु कोशिका द्रव्य में पाया जावे तो ऐसी पोषी जीवाणु कोशिका (Host cell) को F+ कोशिका कहते हैं। इसके विपरीत जब F+ कारक जीवाणु केन्द्रकाभ (Nucleoid) के साथ समावेशित हो जाता है या जुड़ (Incorporate) जाता है तो ऐसी दाता जीवाणु कोशिका को H कोशिका (Hfr-Highfrequency recombinant ) कहते हैं। इस प्रकार की पोषी जीवाणु कोशिकाओं में F+ कारक अत्यन्त छोटे, एक या केवल दो प्रतिलिपियों में उपस्थित होते हैं (चित्र 6.7 ) । इसके अन्तर्गत F+ कारक प्लाज्मिड कोशिका द्रव्यीय वंशागति (Cytoplasmic Inheritance) में सक्रिय भूमिका निभाता है। क्योंकि इस उपवर्ग को प्लाज्मिड्स जीवाणु संयुग्मन (Bacterial Conjugation) के द्वारा दाता (Donor) से अदाता या ग्राही (Recipient) जीवाणु कोशिका में स्थानान्तरण के दौरान गुणसूत्रीय जीन के ग्राही में अभिगमन को प्रेरित करते हैं, अतः इनकी लैंगिक व स्थानान्तरण प्लाज्मिड भी कहा जाता है।

(B) रोगकारी प्लाज्मिड्स (Pathogenic or Diseae Causing Plasmids ) — विभिन्न प्रकार के स्तनपायी (Mammals) जन्तुओं में इस प्रकार के प्लाज्मिड्स पाये जाते हैं।

इनमें कुछ विषालु पदार्थों (Toxins) का निर्माण करने में सहायक होते हैं, इनको आंत्रिक प्लाज्मिड (Entric Plamid) कहते हैं ।

इसके अतिरिक्त कुछ अन्य रोगकारी प्लाज्मिड्स एक विशेष पदार्थ a – हीमोलायसिन्स का निर्माण कर रोगी की लाल रक्त कणिकाओं (RBC) को नष्ट करते हैं, इनको Hly प्लाज्मिड कहते हैं ।

(C) कोल कारक या Col प्लाज्मिड (Colinogenic factor or Col – Plasmid ) – इनका सर्वप्रथम अध्ययन फ्रेडरिक (Fredric 1953) द्वारा किया गया था। यह एक असंक्रमणशील प्लाज्मिड है, जिसका एक में द्वारा एक विषालु (Toxic) प्रोटीन कोलीसिन (Colicin) का उत्पादन किया जाता है (कोलीसिन अनेक विषाल दूसरी कोशिका में स्थानान्तरण F + कारक की पोषी कोशिका में उपस्थिति पर निर्भर करता है। यह प्लाज्मिड्स के जीवाणु कोशिकाओं के लिये मारक या घातक (Lethal effect) सिद्ध होते हैं, जिनमें Col कारक अनुपस्थि प्रोटीन्स का सम्मिलित समूह है)। ये कोलिसिन (Colicins) प्रोटीन्स उन निकट सम्बन्धी सवेदा (Sensitive) पर भी जैसे – ATP संश्लेषण, प्रोटीन संश्लेषण, DNA संश्लेषण एवं अपघटन आदि पर भी मारक प्रभाव होता है। इसके अतिरिक्त कोलीसिन्स के द्वारा संवेदी जीवाणुओं की विभिन्न महत्त्वपूर्ण जैव रासायनिक क्रियाओं परिलक्षित होते हैं, जिससे संवेदी या Col कारक रहित जीवाणु मर जाते हैं ।

(D) R- कारक प्रतिरोधी कारक या ड्रग प्रतिरोधी कारक ( Resistance factor- R or Drug Resistance Factor ) – यह प्लाज्मिड आइसेकी एवं साकाई (Iseki and Sakai 1953) द्वारा खोजा गया था। प्रतिरोधक जीनयुक्त प्लाज्मिड होते हैं (R कारक युक्त), जो अनेक ऐन्टीबायोटिक दवाओं जैसे पेनिसिलिन स्ट्रेप्टोमाइसिन एवं ट्रेटासाइक्लिन के विरुद्ध प्रतिरोधी क्षमता प्रदर्शित करते हैं। DNA युक्त R कारक की प्रतिरोधिता का गुण संयुग्मन द्वारा R – रहित कोशिकाओं में भी स्थानान्तरित हो सकता है, अतः यह संक्रमणशील प्लाज्मिड है पोषी जीवाणु कोशिका में इनकी संख्या एक से लेकर चार तक हो सकती है। इनका अणुभार बहुत अधिक 26 × 76 × 10o होता है एवं ये सुदीर्घित संरचनाएं होती हैं, जो दो अवयवों से मिलकर बनती हैं। प्रथम घटक को RTF कारक या प्रतिरोध स्थानान्तरण कारक (Resistance Transfer Factor ) कहते हैं जो (I) प्लाज्मिड में प्रतिकृतिकारक (Replication) का नियमन (II) प्रौढ़ जीवाणु कोशिका में प्लान्यिर का रख-रखाव (Maintenance) एवं कोशिका विभाजन के समय इसके विभाजन का नियंत्रण तथा (III) जीव संयुग्मन के लिये आवश्यक जीनों का नियमन एवं DNA के स्थानान्तरण, जैसे कार्यों को सम्पादित करता है

दूसरे घटक को R निर्धारक या ड्रग प्रतिरोध निर्धारक (Drug Resistance determinant) कहते हैं। यह RTF कारक के साथ रेखीय क्रम में संलग्न होकर ऐन्टीबायोटिक प्रतिरोधकता की विशिष्टता को निर्धारित करते हैं, अर्थात् किस ऐन्टीबायोटिक को निष्प्रभावी किया जाना है। R निर्धारक घटक RTF के अभाव में असंक्रामक एवं असंचरणशील होता है ।

(E) अपघटनकारी प्लाज्मिड (Degradative Plasmid ) – ये प्लाज्मिड्स विभिन्न जीवाणु प्रजातिये जेसे-स्यूडोमोनास (Psudomonas ) के विभिन्न प्रभेदों (Strains) में पाये जाते हैं तथा मृत कार्बनिक पदार्थों के अपघटन (Decomposition) में सहायक होते हैं ।

(F) भारी धातु प्रतिरोधी प्लाज्मिड (Heavy Metal Resistant Plasmids)—–— परपोषी जन्तुओं को आंत में उपस्थित जीवाणुओं (Entric Bacteria) में ये प्लाज्मिड पाये जाते हैं तथा इन जीवाणु कोशिकाओं को पार (Mercury) जैसी भारी धातुओं (Heavy metals) के विरुद्ध प्रतिरोध प्रदान करते हैं। दूसरे शब्दों में पारे के आयनों द्वारा उत्पन्न विषालु पदार्थों (Toxins) को सहन करने की क्षमता प्रदान करते हैं। उदाहरणार्थ, स्यूडोमोनार (Pseudomonas) में उपस्थित प्लाज्मिड पारे (Mercury) के विरुद्ध प्रतिरोधी क्षमता उत्पन्न करते हैं।

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