nitrogen excretion and urea cycle in hindi , मानव शरीर से नाइट्रोजन उत्सर्जन क्या है समझाइये

जानिये nitrogen excretion and urea cycle in hindi , मानव शरीर से नाइट्रोजन उत्सर्जन क्या है समझाइये ?

नाइट्रोजन उत्सर्जन (Nitrogen excretion)

जीवित प्राणियों में मुख्य नाइट्रोजनयुक्त पदार्थों से स्वतंत्र नाइट्रोजन मुक्त करने कभी । उपापचय नहीं होता है। नाइट्रोजनी अपशिष्ट पदार्थ मुख्यतया प्रोटीन (अमीनो अम्ल) के विअमानीक (deamination) के कारण उत्पन्न होते हैं। सामान्यतया जन्तु जगत में नाइट्रोजन अपशिष्ट

अमोनिया ( ammonia), यूरिया (urea) एवं यूरिक अम्ल (uric acid) के रूप में पाए जाते है

विभिन्न अपशिष्ट पदार्थों का निर्माण एवं उत्सर्जन विभिन्न जातियों में भ्रूणीय परिवर्धन के समय पानी की उपलब्धता एवं उनके विकासीय अनुकूलन पर निर्भर करता है।

सारणी 5.1: कुछ कीलोनिया गण के सदस्य में नाइट्रोजन उत्सर्जन

विभिन्न नाइट्रोजनयुक्त पदार्थों का प्रतिशत

मुख्य नाइट्रोजनयुक्त अपशिष्ट पदार्थ के आधार पर जन्तुओं को निम्न तीन समूहों में विभाजित किया जाता है :

(1) अमोनोटेलिक (Ammonotelic) : वे जन्तु जो नाइट्रोजन उपापचय ( nitrogen metabolism) के अन्तिम उत्पाद के रूप में अमोनिया उत्सर्जित करते हैं, अमोनोटेलिक (ammonotelic) कहलात हैं। भोजन में उपस्थित प्रोटीन्स का पाचन के पश्चात अन्तिम उत्पाद अमीनों अम्ल (amino acids) होते हैं। अमीनों अम्ल विअमीनीकरण (deamination) द्वारा अमोनिया बनाते हैं। अमोनिया एक अत्यन्त विषैली (toxic) गैस है जो लम्बे समय तक शरीर में नहीं रह सकती है। अमोनिया को रूधिर में सहनशीलता (tolerance) बहुत कम होती है। स्तनधारियों के रूधिर में अमोनिया का सान्द्रता 0.0001 से 0.0003 मि.ग्रा./ 100 मि.ली. होती है। यद्यपि मछलियों, एम्फीबियन्स एव रेप्टाइल्स के रूधिर में अमोनिया की सहनशीलता अधिक होती है। अमोनिया के जहरीले होने के कारण इसे बनते ही तरन्त उत्सर्जित किया जाना चाहिये या फिर कम विषैले पदार्थ में परिवर्तित किया

जाना चाहिये अन्यथा प्राणी की मृत्यु हो सकती है।

अमोनिया जल में घुलनशील होती है अतः कई प्राणियों में यह सीधे ही जल में विसरित (diffuse) कर दी जाती है। यह क्रिया जलीय (aquatic) प्राणियों में ही सम्भव हो पाती है क्योंकि, । ग्राम नाइट्रोजन को अमोनिया के रूप में उत्सर्जन करने हेतु लगभग 300-500 मि.ली. पानी की आवश्यकता होती है। स्थलीय जन्तुओं में पानी की कमी होने के कारण अमोनिया को किसी अन्य पदार्थ के रूप में उत्सर्जित किया जाता है।

उदाहरण – कुछ प्रोटोजोआ (जैसे अमीबा प्रोटियस), कुछ सीलेन्ट्रेटस (जैसे हाइड्रा, पॉलीकीट्स (जैसे नीरीज), क्रस्टेशियन आर्थोपोड्स (जैसे केंकड़ा), कुछ मॉलस्कस (एप्लिसिया, सीपिया, आक्टोपस आदि), स्वच्छ जलीय अस्थिल मछलियाँ (fresh water bony fishes), टेडपोल लार्वा एवं जलीय कछुये (aquatic tortoises) आदि ।

(2) यूरिओटेलिक (Ureotelic) : वे जन्तु जो मुख्य नाइट्रोजन अपशिष्ट पदार्थ के रूप में यूरिया (urea) उत्सर्जित करते हैं, यूरिओटेलिक (ureotelic) कहलाते हैं। स्थलीय वातावरण (terrestroal environment) में रहने वाले जन्तुओं में पानी की काफी कम मात्रा पाई जाती है। इस कारण ये जन्तु अमोनिया को सीधे ही शरीर से बाहर नहीं निकाल सकते हैं। इन जन्तुओं में घुलनशील होता है तथा इसकी रूधिर में सहनशीलता भी अधिक होती है। मनुष्य के रूधिर में यूरिया का उपयुक्त मान 20 से 40 मि.ग्रा. प्रति 100 मि.ली होता है। रूधिर में यूरिया की मात्रा उपयुक्त से अधिक होने पर अविषालुता (toxicity) उत्पन्न हो जाती है। इस स्थिति को यूरेमिया (uremia) कहा जाता है। यूरिया को शरीर से बाहर निकालने हेतु कम पानी की आवश्यकता होती है, अतः यह स्थलीय जन्तुओं का मुख्य अपशिष्ट पदार्थ होता है। 1 ग्राम यूरिया को शरीर से बाहर निकालने हेतु 50 मि.ली. पानी की आवश्यकता होती है।

उदाहरण: कुछ जन्तु जैसे ऐनेलिड्स (केंचुआ), ग्रेस्ट्रोपोड मॉलस्क, (जैसे पाइला), उपास्थिल मछलियाँ (cartilaginous fishes), वयस्क एम्फीबिया (मेंढक ) व स्तनि (खरहा) एवं मनुष्य आदि ।

यूरिया का संश्लेषण (Synthesis of urea)

यूरिया मुख्यतया यकृत में परन्तु कुछ मात्रा में वृक्क में भी उत्पन्न होता है, इसका निर्माण एक चक्रीय (cyclic) रासायनिक क्रियाओं द्वारा होता है। इन क्रियाओं को सर्वप्रथम क्रेब्स तथा हेंसेलि (Kerb’s and Hanseleit) ने 1932 में प्रस्तुत किया था। यह चक्रीय प्रक्रिया उपापचयी क्रियाओं में सर्वप्रथम खोजी गई थी। इसे ऑर्निथीन चक्र भी कहते हैं क्योंकि यह चक्र के प्रारम्भ में प्रयुक्त होता है तथा इसके निर्माण पर समाप्त होता है। रूधिर में यूरिया की उपरोक्त मात्रा 20-40 मि.ग्रा. प्रति 100 मि.ली. होती है। इस चक्र के अन्तर्गत निम्नलिखित पद होते हैं :

(1) कार्बामाइल फॉस्फेट का निर्माण (Synthesis of carbamyl phosphate) : इस क्रिया में एक अणु अमोनिया (NH + के रूप में) एक अणु कार्बन डाई ऑक्साइड तथा एक अणु जल संघनन की क्रिया कार्बोमाइल फॉस्फेट का निर्माण करते हैं। इस क्रिया में 2 अणु ATP प्रयुक्त होते हैं। अतः यह ऊष्माशोषी (endothermic) अभिक्रिया है। इस क्रिया के लिए N एसिटाइल ग्लूमेटिक अम्ल (AGA). Mg, + तथा कार्बामाइल फॉस्फेट सिन्थेटेज (carbamyl phosphate synthetase किण्वक आवश्यक होते हैं।

(2) सिटुलिन का निर्माण (Synthesis of citruline) : इस क्रिया में कार्बोमाइल फॉस्फेट एक आर्निथिन ( ornithine) अणु से क्रिया कर सिटुलिन एवं एक अकार्बनिक फॉस्फेट बनाता है। यह क्रिया यकृत कोशिकाओं के माइट्रोकॉण्ड्रिया में उपस्थित आर्निथिन कार्बनकि ट्रांसफरज एन्जाइम तथा बायोटिनसहकारक द्वारा सम्पन्न होती है।

(3) आर्जिर्निनोसक्सनिक अम्ल का संश्लेषण (Synthesis of argininosuccinic acid): इस क्रिया में अमोनिया का द्वितीय अणु (secondary molecule) चक्र में एम्पार्टिक अम्ल के रूप में प्रवेश करता है। ATP की उपस्थिति में सिटुनिल एवं एस्पार्टिक अम्ल संयोग कर आर्जिनिनों-सक्सनिक अम्ल बनाते हैं। यह क्रिया आर्जिनिनोसक्सिलेट सिन्थेटेज (arginiosuccinate synthetase) एन्जाइम तथा Mg 2+ की उपस्थिति में होती है।

(4) आर्जिनीन का निर्माण (Formation of arginine) : इस क्रिया में आर्जिनीनो सक्सीनेज (arginino succinase) एन्जाइम की उपस्थिति में आर्जिनिनोसक्सीनिक विदलित (cleaved) होता है जिससे आर्जिनीन तथा फ्यूमैरिक अम्ल का निर्माण होता है।

इस प्रकार प्राप्त फ्यूमेरिक अम्ल सैद्धान्तिक रूप से अमीनीकरण द्वारा कई पदों के पश्चात् एस्पार्टिक अम्ल बनाता है परन्तु इनमें से एक पद ऑक्सेलो एसिटिक अम्ल का निर्माण करता है। इस प्रकार फ्यूमेरिक अम्ल क्रैब्स चक्र में प्रवेश पा जाता है। यूरिया चक्र में प्रयुक्त होने वाला एस्पार्टिक अम्ल ऑक्सेलो एसिटिक अम्ल के ग्लूटेमिक अम्ल साथ अमीनान्तरण द्वारा प्राप्त होता है।

(5) यूरिया का निर्माण (Formation of urea) : इस चक्र के अन्त में आर्जिनेस (arginase) की उपस्थिति में आर्जिनीन विघटित होकर यूरिया (urea) तथा अनिर्थीन (orithine) बनाता है। इस प्रकार प्राप्त आर्निथीन फिर से आर्निथीन चक्र में प्रवेश करता है।

इस प्रकार प्राप्त यूरिया रूधिर के साथ वृक्क तक पहुँचाया जाता है। वृक्क से इसे मूत्र की सहायता से शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है। मूत्र में यूरिया की मात्रा 2 ग्रा. प्रति 100 मि.ली. अर्थात् 2 प्रतिशत तक होती है।

यूरिया निर्माण की सम्पूर्ण क्रिया को इस रूप में दर्शाया जा सकता है

CO2 + NH4+ + 3ATP + एम्पार्टिक अम्ल + 2H2O → ‘यूरिया + 2 ADP + 2Pi + PPi + फ्यूमेरिक अम्ल

आर्निथीन चक्र को अगले पृष्ठ पर प्रदर्शित किया जाता है :

(3) यूरीकोटेलिक (Uricotelic): वे जन्तु, जो नाइट्रोजन अपशिष्ट उत्पाद के रूप में यूरिक अम्ल (uric acid) को उत्सर्जित करते हैं, यूरिकोटेलिक जन्तु कहलाते हैं। यह बहुत कम विषैला तथा जल में अघुलनशील (insoluble) होता है। मनुष्य के 100 मि.ली. रूधिर में लगभग 26 मि.ग्रा. यूरिक अम्ल पाया जाता है। इसका उत्सर्जन अर्ध ठोस (semi solid) रूप में किया जाता है। इस विधि द्वारा बिना जल के नाइट्रोजन उत्सर्जन सम्भव हो पाता है। ऐसे जन्तु जो जल की कमी वाले स्थानों में पाये जाते हैं अथवा जल का बहुत कम सेवन करते हैं, यूरिक अम्ल उत्सर्जी होते हैं। इन जन्तुओं

में जल के संरक्षण (conservation) का गुण होता है। मनुष्य में यूरिक अम्ल प्यूरीन उपापचय (purin metabolism) का अन्तिम उत्पाद होता है। मनुष्य के द्वारा सामान्य भोजन लेने पर मूत्र में 24 घण्टे में 1 ग्राम यूरिक अम्ल उत्सर्जित होता है। अधिक न्यूक्लिओप्रोटीन युग्म भोजन लेने पर मूत्र में यूरिक अम्ल की मात्रा 2 ग्राम तक हो जाती है। उप-प्राइमेट स्तनिक में तथा कुछ कीटों में यूरिक अम्ल ऑक्सीकृत होकर एलेण्नटोइन (allantoin) का निर्माण करता है।

उदाहरण: कीट (insects), प्लेमोनेट घोंघे ( snails), स्थलीय रेप्टाइल (snakes and lizards), पक्षी (birds) एवं मरूवासी (esert mammals) स्तनि जैसे ऊँट (cemel) आदि ।

यूरिक अम्ल का संश्लेषण ( Synthesis of uric acid) : जैसा कि पूर्व में बताया गया है कि यूरिक अम्ल प्यूरीन उपापचय का अन्तिम उत्पाद होता है। इसी कारण इसकी संरचना प्यूरिन जाति के प्रोटीन्स से मिलती है। (चित्र 5.4) यूरिक अम्ल 2.6. 8 ट्राइऑक्सी प्यूरीन होता है।

यूरिक अम्ल का निर्माण प्यूरीन उपापचय (purine metabolism) द्वारा होता है। इस क्रिया में सर्वप्रथम एडिनिन (adenine) एव गुऐनिन (guanine) विअमीनीकृत (deaminated) होते हैं। इससे क्रमश: हाइपोजेन्थीन (hypoxanthine ) एवं जन्थीन (xantine) बनते हैं। हाइपोजेन्थीन स्वयं भी जेन्थीन ऑक्सीडेज द्वारा ऑक्सीजन की उपस्थिति में ऑक्सीकृत होकर अम्ल (इनोल रूप) में बदल जाता है। यह कीटो (keto) रूप में परिवर्तित हो जाता है। प्राइमेट्स के अतिरिक्त अन्य सभी स्तनियों में यूरिक अम्ल यूरिकेज एन्जाइम द्वारा ऑक्सीकृत होक एलेण्टोइन बनाता है। (चित्र 5.6) 1

कुछ पक्षियों जैसे कबूतर (Pigeon) में जेन्थीन ऑक्सीजन नामक एन्जाइम अनुपस्थित रहता है। यह हापोजेन्थीन यकृत में बनता है तथा फिर इसे वृक्क (kidney) में जेन्थीन ऑक्सीडेज नामक एन्जाइम द्वारा ऑस्सीकृत किया जाता है। मुर्गों तथा बतखों में यह एन्जाइम यकृत में ही पाया जाता है। अत: इन जन्तुओं में यूरिक अम्ल का निर्माण यकृत में ही होता है।