हिंदी माध्यम नोट्स
निरंजनी संप्रदाय के संस्थापक कौन थे | निरंजनी संप्रदाय के प्रवर्तक कौन हैं niranjani sect established in hindi
niranjani sect established in hindi निरंजनी संप्रदाय के संस्थापक कौन थे | निरंजनी संप्रदाय के प्रवर्तक कौन हैं ?
प्रश्न: निरंजनी सम्प्रदाय
उत्तर: डीडवाना के संत हरिदास जी ने 15वीं सदी में शैव सम्प्रदाय की निर्गुण भक्ति की शाखा निरंजनी सम्प्रदाय की पीठ मारवाड में स्थापित की। हरिदास जी ने अपनी वाणी में अनाशक्ति, वैराग्य, आचरण शुद्धि आदि निर्गुण ज्ञानाश्रयी मार्ग का तथा दूसरी ओर सगण भक्ति की उपासना का अवलंबन कर समन्यवयवादी विचार दिया। इस पंथ के अनुयायी निरंजनी कहलाते हैं जो गहस्थी (घरबारी) एवं वैरागी (निहंग) में बंटे होते हैं। इसमें परमात्मा को अलख निरंजन, हरि निरंजन आदि कहा गया है।
इस प्रकार के प्रश्नों में किसी संत/लोक देवता का जीवन वृत्त नहीं बताया जाता है। क्योंकि वे भक्ति परम्परा, समाज सुधारक एवं समाज व संस्कति के रक्षक के रूप में जाने जाते हैं अतः उत्तर का बिन्दु उनके कार्यों पर होना चाहिए द्य जबकि जीवन वृत्त गौण होना चाहिए।
लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर
राजस्थान के संत एवं पंथ
प्रश्न: वल्लभ सम्प्रदाय/पुष्टिमार्गीय/अष्टछाप
उत्तर: वाराणसी के वल्लभाचार्य ने 16वीं सदी में ब्रह्म सूत्र पर अणुभाष्य लिखकर शुद्धाद्वैत मत प्रतिपादित कर पुष्टिमार्ग चलाया जो वैष्णव धर्म में श्रीनाथ (श्रीकृष्ण) भक्ति की एक धारा थी। वह वल्लभ सम्प्रदाय कहलाया। 17वीं सदी में गोस्वामी दामोदरजी ने राजसमंद में वल्लभाचार्य के आराध्यदेव श्रीनाथद्वारा की स्थापना की। बाद में इस सम्प्रदाय की अन्य प्रमुख पीठ मथुरेशजी कोटा, द्वारिकाधीश जी-कांकरोली, गोकुलचन्द्रजी व मदनमोहन जी कामवन में स्थापित हुई। वर्तमान में राजस्थान में 41 पुष्टिमार्गीय मंदिर है जो हवेलीनुमा है। इनमें मधुर शास्त्रीय संगीत बजता रहता है जिसे श्हवेली संगीतश् कहते हैं।
प्रश्न: रामस्नेही सम्प्रदाय
उत्तर: रामानन्द शिष्य परम्परा द्वारा प्रवर्तित रामावत सम्प्रदाय की निर्गुण भक्ति की एक शाखा रामस्नेही के नाम से विभिन्न स्थानों पर स्थापित हुई। रामस्नेही का शब्दार्थ दशरथ पुत्र राम न होकर निर्गुण निराकार ब्रह्म है। इस पंथ में मूर्ति पूजा, तीर्थयात्रा आदि नकारकर साधना व योगमार्ग द्वारा शुद्ध ज्ञानाश्रयी पंथ का अवलंबन करना है। इस पंथ की रामचरणजी ने शाहपुरा भीलवाडा में मख्य पीठ स्थापित की तथा खेड़ापा में रामदास जी ने, हरिरामदास जी ने सिंहथल में एवं दरियावजी ने रैण में शाखाएं स्थापित की।
प्रश्न: संत दादूदयाल
उत्तर: 16वीं सदी में अहमदाबाद में जन्मे दादू की ख्याति राजस्थान में एक संत के रूप में तथा एक पंथ प्रवर्तक रीय भाषा में कविता के माध्यम से व्यक्त किए जिन्हें ‘दादू का दूहा‘ एवं ‘दादू की वाणी‘ के अपने विचार स्थानीय उनके विचार जातिवाद और बन्धनों से मुक्त, ईश्वर तथा गुरु में आस्था, प्रेम व नैतिकता. रूप में संकलित किया गय साम्प्रदायिक एकता आदि पक्षों पर रहे। इन्होंने प्रमुख पीठ नरायना (जयपुर) में स्थापित की। इनके मतानुयायी दादी कहलाये।
़प्रश्न: दादू सम्प्रदाय
उत्तर: 16वीं सदी मे संत दादू द्वारा प्रचारित निर्गण भक्ति धारा दादू पंथ कहलाया, जिसकी प्रमुख पीठ नरायना (जयपुर) में है। दादू के जीवन काल में ही उनके 152 प्रमुख शिष्यों में से 52 ने शिष्य परम्परा चलाकर दादू पंथ का विकास किया दादू पंथ का 18वीं सदी में खालसा (नरायणा पीठ), विरक्त (घुमन्त) उत्तरादे (हरियाणा), खाखी (भस्म रमाने वाले और (शस्त्रधारा) इन पांच शाखाओं में विभाजन हआ। इन्होंने परमात्मा को सर्वस्व समर्पण, उपासना, साधना, अहिंसा ऐप भक्ति और तन्मयता पर बल देकर इस पंथ को आज भी सजग रखा है।
लोक देवता एवं लोक देवियां
प्रश्न: पाबूजी
उत्तर: मारवाड़ के पंचपीरों में प्रमुख जोधपुर के पाबूजी राठौड ने गौरक्षार्थ प्राण न्यौछावर कर देवत्व प्राप्त किया। इनकी प्लेग रक्षक एवं ऊँटों के रक्षक देवता के रूप में विशेष मान्यता है।
प्रश्न: गोगाजी ,
उत्तर: मारवाड़ के पंचपीरों में प्रमुख चूरू के गोगाजी चैहान ने गौरक्षार्थ एवं देश रक्षार्थ प्राण न्यौछावर कर देवत्व प्राप्त किया। इनकी सांपों के देवता एवं जाहरपीर के रूप में विशेष मान्यता है।
प्रश्न: रामदेवजी
उत्तर: मारवाड़ के पंचपीरों में सर्वप्रमुख बाड़मेर के रामदेव जी तंवर अपने अलौकिक कृत्यों से सर्पदेवता के रूप में पूज्य हैं। रुणेचा (रामदेवरा) धाम में भादवा में इनका विशाल वार्षिक मेला भरता है।
प्रश्न: तेजाजी जाट
उत्तर: नागौर के तेजाजी जाट ने गौरक्षार्थ प्राण न्यौछावर कर देवत्व प्राप्त किया। ये गायों के मुक्तिदाता एवं सर्पदेवता के रूप में पूज्य हैं। परबतसर में भादवा में इनका मेला लगता है।
प्रश्न: देवनारायणजी/देवजी
उत्तर: नागवंशीय गुर्जर देवनारायणजी अपने शौर्य एवं चमत्कारिक कृत्यों के कारण विष्णु के अवतार के रूप में मान्य हुए। आसींद (भीलवाड़ा) में भादवा में इनका विशाल मेला भरता है।
प्रश्न: हड़बूजी
उत्तर: नागौर के सांखला राजपूत हड़बूजी मारवाड़ के पंचपीरों में प्रसिद्ध लोकदेवता है। बैंगटी (फलौदी) में इनका पूजा स्थल है जहाँ मनौती पूर्ण होने पर ‘हड़बूजी की गाड़ी‘ की पूजा की जाती है।
प्रश्न: कल्लाजी राठौड़
उत्तर: मेवाड के प्रसिद्ध लोकदेवता एवं मीराबाई के निकट संबंधी कल्लाजी राठौड़ की मान्यता चार हाथों वाले देवता एवं नागराज के अवतार के रूप में है ये अकबर के विरुद्ध युद्ध करते हुए शहीद हुए।
प्रश्न: जम्मो
उत्तर: बाबा रामदेव द्वारा सामाजिक समरसता एवं जनजागृति के लिए गांव-गांव में किया जाने वाला रात्रि जागरण ‘जम्मो‘ लोकप्रिय रहा। वर्तमान में बाबा के मेले पर भक्तों द्वारा रात्रि जागरण कर इस परम्परा को निभाया जा रहा है।
प्रश्न: रामदेवरा
उत्तर: रामदेवरा (रुणेचा) में रामदेवजी का विशाल मंदिर है जहाँ प्रति वर्ष भाद्रपद में विशाल मेला भरता है जो अपनी साम्प्रदायिक सद्भावना के लिए प्रसिद्ध है यहाँ तेरहताली नृत्य व जम्मा भी आकर्षण के बिन्द हैं।
प्रश्न: गोगामेड़ी
उत्तर: लोकदेवता गोगाजी चैहान का नोहर (हनुमानगढ) में समाधि स्थल श्गोगामेडीश् कहलाता है जिसकी बनावट मकबरेनुमा है जहाँ प्रति वर्ष भाद्रकृष्णा नवमी को विशाल मेला भरता है।
प्रश्न: पाबूजी के पवाडे
उत्तर: राजस्थान के प्रसिद्ध लोकदेवता पाबूजी राठौड़ से सम्बन्धित गाथा गीत श्पाबूजी के पवाडेश् मॉठ वाद्य यंत्र के साथ पाबजी के मेले के कोलूमण्ड अवसर पर रायका व नायक जाति द्वारा गाये जाते हैं।
प्रश्न: सुगाली माता
उत्तर: आउवा के ठाकुरों की कुलदेवी सुगाली माता का मंदिर (आउवा) 1857 की क्रान्ति का मुख्य केन्द्र रहा। बाद में अंग्रेजों में सुगाली माता के भक्त कुशाल सिंह को गिरफ्तार कर माता के मंदिर को तहस-नहस किया।
प्रश्न: आलमजी
उत्तर: ये जैतमलोत राठौड़ थे। बाड़मेर जिले के मालाणी प्रदेश में लणी नदी के किनारे स्थित राड़धरा क्षेत्र में इन्हें लोकदेवता के रूप में पूजा जाता है। ढांगी नाम के रेतीले टीले पर इनका स्थान बना हुआ है। जिसे आलमजी का धोरा भी कहते हैं। यहाँ भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मेला भी भरता है।
प्रश्न: जीण माता
जीण माता का मंदिर सीकर से 15 किलोमीटर दक्षिण में खोस नामक गांव के पास तीन छोटी पहाडियों के मध्य स्थित है। यह चैहानों की कुल देवी है। इस मंदिर में जीणमाता की अष्टभुजी प्रतिमा है। कहा जाता है कि जीण तथा हर्ष दोनों भाई बहिन थे। जीण आजीवन ब्रह्मचारिणी रही और तपस्या के बल पर देवी बन गयी। यहाँ चैत्र व आसोज के महीनों में शुक्ल पक्ष की नवमी को मेले भरते हैं। राजस्थानी लोक साहित्य में इस देवी का गीत सबसे लम्बा है। इस गीत को कनफटे जोगी केसरिया कपडे पहन कर, माथे पर सिंदूर लगाकर, डमरू एवं सारंगी पर गाते है। यह गीत करुण रस में ओत प्रोत है।
प्रश्न: पथवारी माता
उत्तर: पथवारी देवी गाँव के बाहर स्थापित की जाती है। इनके चित्रों में नीचे काला-गौरा भैंरु तथा ऊपर कावड़िया वीर व गंगोज का कलश बनाया जाता है।
प्रश्न: स्वांगियाजी/आवड़देवी/आईनाथजी माता, जैसलमेर
उत्तर: आवड़ देवी का ही एक रूप स्वांगिया माता (आईनाथजी) भी है, जो जैसलमेर के निकट विराजमान है। ये भी जैसलमेर के भाटी राजाओं की कुल देवी मानी जाती है। जैसलमेर के राज चिह्नों में सबसे ऊपर पालम चिड़िया (शगुन) देवी का प्रतीक है।
Recent Posts
सारंगपुर का युद्ध कब हुआ था ? सारंगपुर का युद्ध किसके मध्य हुआ
कुम्भा की राजनैतिक उपलकियाँ कुंमा की प्रारंभिक विजयें - महाराणा कुम्भा ने अपने शासनकाल के…
रसिक प्रिया किसकी रचना है ? rasik priya ke lekhak kaun hai ?
अध्याय- मेवाड़ का उत्कर्ष 'रसिक प्रिया' - यह कृति कुम्भा द्वारा रचित है तथा जगदेय…
मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi
malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…
कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए
राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…
हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained
hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…
तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second
Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…