संवेग (momentum) : वस्तु के द्रव्यमान और वेग के गुणनफल को उस वस्तु का संवेग कहते है।
यदि वस्तु का द्रव्यमान m है और वेग V है तो वस्तु का संवेग p है तो संवेग (p) निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जाता है।
p = mv
यहाँ संवेग (p) एक सदिश राशि होती है।
सामान्यत: वस्तु का द्रव्यमान नियत रहता है अत: संवेग में परिवर्तन के लिए वेग में परिवर्तन करना पड़ता है , या दूसरे शब्दों में कहे तो यदि किसी वस्तु के संवेग में परिवर्तन हो रहा है इसका तात्पर्य है वस्तु के वेग में परिवर्तन हो रहा है।
और चूँकि हम जानते है की वस्तु के वेग में परिवर्तन के लिए बाह्य बल की आवश्यकता होती है।
चित्रानुसार दो वाहनों की कल्पना करते है एक कार और एक ट्रक , जब दोनों वाहनों को समान बल समान समय के लिए धक्का दिया जाता है तो हम देखते है की ट्रक कम वेग प्राप्त करता है जबकि कार अधिक वेग प्राप्त कर लेती है।
अत: समान समय के लिए लगाया गया समान बल , समान संवेग परिवर्तन करता है इससे न्यूटन को अपना दूसरा नियम प्राप्त हुआ।
न्यूटन का द्वितीय (दूसरा) नियम (newton second law of motion)
यदि न्यूटन के नियम को निम्न प्रकार लिखा जाए
F = p/t
यहाँ p = mv
मान रखने पर
F = mv/t
चूँकि v/t = a , मान रखने पर
F = k ma
यहाँ a = त्वरण
नोट : यदि न्यूटन के द्वितीय नियम F = ma को देखे , यहाँ F = 0 हो तो a = 0 होगा , अर्थात किसी बाह्य बल की अनुपस्थिति में वस्तु अपरिवर्तनशील (विराम अवस्था या एक समान गतिशील अवस्था) रहती है , इसे न्यूटन का पहला नियम कहा था।
अत: हम कह सकते है की यह नियम भी न्यूटन के प्रथम नियम का सत्यापन करता है।
न्यूटन का गति विषयक द्वितीय नियम (newton’s second law of motion in hindi) : किसी वस्तु पर कार्यरत बल , वस्तु के संवेग परिवर्तन की दर के अनुक्रमानुपाती होता है और संवेग में परिवर्तन लगाये गए बल की दिशा में होता है।
बल ∝ संवेग परिवर्तन की दर
यदि किसी वस्तु पर F बल लगाने पर उसके संवेग में Δt समय में परिवर्तन Δp हो , तब –
F ∝ Δp/Δt
F ∝ dp/dt
F = Kdp/dt
या
F = dp/dt
CGS या SI पद्धति में K = 1
या
F = d(mv)/dt = mdv/dt = ma
(a = dv/dt = वस्तु में उत्पन्न त्वरण )
F = ma
बल = द्रव्यमान x त्वरण
नोट :
- न्यूटन का गति विषयक द्वितीय नियम बल की गणनात्मक परिभाषा देता है।
- न्यूटन के गति विषयक द्वितीय नियम से , प्रथम और तृतीय नियमों को प्राप्त किया जा सकता है अत: न्यूटन का द्वितीय नियम , गति का आधारभूत नियम कहलाता है।
गति का द्वितीय नियम
किसी भी वस्तु के संवेग में परिवर्तन की दर उस वस्तु पर आरोपित बल के समानुपाती होती है और इसकी दिशा आरोपित बल की दिशा के समान होती है।
सन 1803 में न्यूटन द्वारा लेटिन में लिखे गए नियम को अनुवादित किया गया कि –
“गति के परिवर्तन हमेशा आरोपित बल के समानुपाती होता है और यह गति में परिवर्तन उसी आरोपित बल की दिशा के अनुदिश होता है। ”
गणितीय रूप से –
F = dp/dt
F = ma
यहाँ p = mv , p = रेखीय संवेग
दो कण जिनके रेखीय संवेग क्रमशः P1 और P2 है। अन्योन्य बलों के कारण एक दुसरे की ओर गति करते है। न्यूटन के द्वितीय नियम से –
d(p1 + p2)/dt = F = 0
dp1/dt + dp2/dt = 0
F1 + F2 = 0
F2 = -F1
यह न्यूटन का तृतीय नियम है।
न्यूटन के गति के तृतीय नियम से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
- द्वितीय नियम वास्तव में प्रथम नियम का ही संशोधित रूप है , जैसे F = 0 है तो a = 0 होगा।
- गति का द्वितीय नियम एक सदिश नियम है। वास्तव में यह तीन समीकरणों का समूह है। प्रत्येक समीकरण , सदिश के घटकों की समीकरण है।
Fx = dpx/dt = max
Fy = dpy/dt = may
Fz = dpz/dt = maz
इसका यह अर्थ है कि यदि बल , वस्तु के वेग के समान्तर नहीं है लेकिन वेग से कुछ कोण बनाते हुए कार्यरत हो तो वेग का केवल वही घटक परिवर्तित होगा जो कि बल की दिशा में है और बल के लम्बवत वेग का घटक अपरिवर्तित रहता है।
- न्यूटन का द्वितीय नियम बिन्दुवत द्रव्यमानों पर लागू होता है। न्यूटन के द्वितीय नियम में बल F का अर्थ कण पर कार्यरत कुल बाह्य बलों से है। जबकि a का अर्थ कण के त्वरण से है। यहाँ पर किसी भी आंतरिक बल को F में सम्मिलित नहीं करते है।
- गति का द्वितीय नियम एक स्थानीय सम्बन्ध है इसका अर्थ यह है कि समय के किसी क्षण पर क्षेत्र में स्थित बिंदु (कण की स्थिति) पर कार्यरत बल F उसी क्षण उस बिंदु के a से सम्बंधित होता है अर्थात जहाँ पर त्वरण है वहां पर बल ज्ञात कर सकते है इसके लिए उस कण की गति की पूर्व जानकारी की आवश्यकता नहीं है।