JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: Biology

neisseria in hindi , नेसेरिया जीवाणु क्या है , रोग कौनसा होता है , उपचार क्या है , वर्गीकरण लक्षण

जाने neisseria in hindi , नेसेरिया जीवाणु क्या है , रोग कौनसा होता है , उपचार क्या है , वर्गीकरण लक्षण ?

अग्राही जीवाणु (Gram negative bacteria)

 (i) नाइसीरिया (Neisseria) —

वंश नाइसेरिया के जीवाणु ग्रैम अग्राही, वायुवीय, अचल प्रकृति के तथा बीजाणु न बनाने वाले होते हैं। ये कोकॉई है, जो युग्मों में उपस्थित होते हैं जिन्हें डिप्लोकोकॉई (diplococci) कहते हैं। इस वंश में लगभग 30 जातियाँ हैं। जिनमें से ना. गोनोरी तथा ना. मैनिन्जाइटिस प्रमुख हैं। अधिकतर जीवाणु मुख या श्वास नली में सहभोजी के रूप में रहते हैं।

नाइसीरिया गोनोरी या गोनोकोकॅस (Neisseria gonorrhoeae or Gonococcus)

यह जीवाणु मनुष्य में गुप्त अंगों का रोग उत्पन्न करता है यह रोग सुजाक कहलाता है व लिंग संचारित रोग है। एलबर्ट एल. एस. नाइसर (Albert L.S. Neisser ने 1879 में इनकी खोज की, बूम (Boom ; 1885) ने इसका संवर्धन करने तथा मनुष्यों में इन जीवाणुओं को प्रवेश करा कर रोग के उत्पन्न करने से संबधित प्रयोग किये।

आकारिकी (Morphology)

गोनोरिया रोग में मनुष्य के मूत्रमार्ग से निकले पदार्थ की स्लाइड बना कर देखने पर ये जीवाणु डिप्लोकोकस प्रकृति के दिखाई देते हैं। इन जीवाणु कोशिकाओं की पार्श्व सतह अवतल वृक्काकार या नाशपाती के आकार की होती हैं। ये बहुरूपी प्रकार के जीवाणु हैं। इन जीवाणुओं की कोशिका सतह पर पिली (pili) उपस्थित होती हैं जिनके द्वारा यह स्वयं को श्लेष्माभ सतह पर संलग्न रखता है। इन पर सम्पुट पाया जाता है जो भक्षाणुषण को रोकता है। ये अन्तः आविष (endotoxin) का स्त्रावण भी करता है। ये जीवाणु मनुष्य की लाल रक्त कोशिकाओं को समूहन की क्रिया हेतु प्रोत्साहित करते हैं।

संवर्धन लक्षण (Cultural characteristies)

ये वायुवीय प्रकृति के होते हैं । किन्तु अवायुवीय परिस्थितियों में भी संवर्धित किये जा सकते हैं। वृद्धि हेतु pH 7.2-7.6 तथा तापक्रम 35°C-36°C की आवश्यकता होती है। इन्हें 5-10% CO2 वाले माध्यम में संवर्धित किया जाता है। चाकलेट ऐगार संवर्धन हेतु उपयुक्त होता है, इनके निवह छोटे, गोले, अल्पपादर्शी एवं उत्तल होते हैं। जिनकी सतह कणीय या पिण्डकीय होती है। निवह 4 प्रकार के होते हैं जिन्हें T1, T2, T3, T कहते हैं। प्रथम तथा दूसरी प्रकार के जीवाणु छोटी भूरे रंग की निवह बनाते हैं ये पिली युक्त, उग्र तथा समूह में रहने वाले कोकॉई हैं। T3 तथा T4 प्रकार के जीवाणु बड़ी कण युक्त तथा अवर्णकित बनाते हैं, ये पिली रहित कोकॉई हैं।

जैव-रसायनिक क्रियाएँ (Bio-chemical reactions)

ये कलेज धनात्मक एवं ऑक्सोडेज धनात्मक प्रकृति के होते हैं। ये मेनिन्गोकोकाई की भाँति जैव रसायनिक क्रियाओं का प्रदर्शन करते हैं किन्तु ये माल्टोज को किण्वन करने में समक्ष नहीं है। ये केवल ग्लूकोज का किण्वन करने का गुण रखते हैं।

प्रतिरोधकता (Resistance)

यह कोमल प्रकृति का जीवाणु है जो ताप द्वारा या धूप की सामान्यत गर्मी से अथवा पूतिरोधी (antiseptic) प्रभाव नष्ट हो जाते हैं। देह के द्रवों से बाहर निकलने पर इनकी 1-2 घाटे में मृत्यु स्वाभाविक रूप से हो जाती है। ये पेनिसिलिन तथा सल्फोनेमाइड्स द्वारा नष्ट किये जा सकते हैं। किन्तु ये सल्फोनोमाइड्स के प्रति प्रतिरोधकता क्षमता प्राप्त करने का गुणा रखते हैं।

रोगजनकता (Pathogenicity)

आदिकाल से इस गुप्त अंगों की बीमारी का ज्ञान मनुष्य को है वैज्ञानिक गेलिन (Galin) द्वारा गोनोरिआ नाम का उपयोग किया गया है जिससे तात्पर्य “बीजों का बहना”। यहं रोग लैंगिक संबंध स्थापित करने के कारण उत्पन्न होता है । मूत्र मार्ग के किसी संक्रमणित श्लेष्माभ सतह को छूने पर मनुष्य में रोग के जीवाणु प्रवेश करते हैं। जीवाणु पिलि द्वारा सतह से संलग्न हो जाते हैं. इनमें चिपकने की अत्यधिक क्षमता पायी जाती है कोकॉई अन्तः कौशिका गुहिकाओं से होकर संयोजी ऊत्तक में प्रवेश कर जाते हैं इस क्रिया में लगभग 3 दिन लगते हैं। नर में ये मूत्र शोथ (urethritis) रोग उत्पन्न करते हैं तथा श्लेष्माभ पदार्थ का स्त्रावण मूत्रमार्ग से आरम्भ होता है जिसमें असंख्य गोनोकोकाई होते हैं। संक्रमण बढ़कर प्रोस्ट्रेट ग्रंथि, शुक्राशय तथा एपिडिडाइमिस तक पहुँचा जाता है। नर जननांगों की परिधि पर अनेक फोड़े उत्पन्न होते हैं जिनसे लसलसा श्वेत- पीला पदार्थ निकलना आरम्भ हो जाता है, मूत्र त्याग में तकलीफ होती है।

मादा में मूत्र मार्ग व भीतर के कुछ भागों में ही संक्रमण होता है श्लेष्मा सतह पर वयस्कों में कोई संक्रमण नहीं पाया जाता है। इसके दो कारण हैं प्रथम स्तरिय शल्की उपकला संक्रमण के प्रति प्रतिरोधी होती है। द्वितीय मादा के जननांगों द्वारा स्त्रावित स्त्रवणों का pH इन जीवाणुओं के लिये अनुकूल नहीं होता किन्तु संक्रमण सहायक जनन ग्रंथियों, गर्भाशय तथा अण्ड वाहिनियों तक पहुँच जाता है। रोग के पुराने होने पर मादा में बाँझपन हो सकता है। मादा में बाहरी तौर पर निदान के लक्षण न दिखाई देने पर भी वह गोनोकोकाई की वाहक हो सकती है, जो नर में संक्रमण करने में सक्षम होते हैं। नर में यह रोग समान लिंग के बीच लैंगिक सम्बन्ध स्थापित करने के कारण भी होता है। यह रोग केवल मनुष्यों में ही पाया जाता है। संक्रमण का एक मात्र कारण लैंगिक संबंध स्थापित करने में असावधानी बरतना है ।

निदान (Diagnosis)

मूत्रमार्ग से बहने वाले द्रव पदार्थ का परीक्षण करके गोगोकोकाई को सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखकर निदान किया जाता है किन्तु संक्रमण कम होने पर इस विधि से निदान असम्भव होता है। मादा योनि स्त्राव का परीक्षण करके या मूत्र की अपकेन्द्री तलछट (centrifugel deposit) का परीक्षण करके गोगोकोकाँई देखे जाते हैं।

उपचार (Treatment)

आरम्भ में सल्फोनेमाइड्स का उपयोग रोग के उपचार हेतु किया गया किन्तु शीघ्र की जीवाणुओं प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न करने के कारण पेनिसिलिन का उपयोग किया जाने लगा है। रोग की व्यापकता को देखते हुए निदान रोग की आरम्भिक अवस्था में हो जाना आवश्यक है यह रोग लोगों . में स्वास्थय शिक्षा तथा निरोधक विधियों के प्रति जानकारी देकर नियंत्रित किया जा सकता है।

Sbistudy

Recent Posts

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

4 weeks ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

4 weeks ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

4 weeks ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

4 weeks ago

चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi

chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…

1 month ago

भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi

first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…

1 month ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now