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नेक्रोहार्मोन सिद्धान्त क्या है ? (necrohormone theory in hindi) नेक्रो हार्मोन सिद्धांत किसे कहते है

(necrohormone theory in hindi) नेक्रोहार्मोन सिद्धान्त क्या है ? नेक्रो हार्मोन सिद्धांत किसे कहते है

बहुभ्रूणता का वर्गीकरण (classification of polyembryony) : विभिन्न भ्रूण विज्ञानियों ने , उत्पत्ति और अन्य आधारभूत लक्षणों को देखते हुए बहुभ्रूणता की प्रक्रिया का वर्गीकरण विभिन्न श्रेणियों में किया है जो कि निम्नलिखित प्रकार से है –

उत्पत्ति के आधार पर बहुभ्रूणता को दो श्रेणियों में विभेदित किया गया है , ये है –
1. स्वत: बहुभ्रूणता (spontaneous polyembryony) : जब पौधों में बहुभ्रूणता की प्रक्रिया प्राकृतिक रूप से बिना किसी कृत्रिम उत्प्रेरण के संचालित होती है।
2. प्रेरित बहुभ्रूणता (induced polyembryony) : जब कृत्रिम संसाधनों अथवा रसायनों के द्वारा बहुभ्रूणता की प्रक्रिया पौधों में उत्प्रेरित की जाती है।

1. स्वत: बहुभ्रूणता (spontaneous polyembryony)

अरन्स्ट (1910) के द्वारा स्वत: बहुभ्रूणता को फिर से दो वर्गों में बाँटा गया है , ये निम्नलिखित है –
(i) सत्य या वास्तविक बहुभ्रूणता (true polyembryony) : जब विभिन्न कारणों से एक ही भ्रूणकोष में एक से अधिक भ्रूणों का निर्माण होता है , इसे सत्य बहुभ्रूणता कहते है। एक से अधिक भ्रूणों का निर्माण युग्मनज अथवा प्राकभ्रूण के विदलन के द्वारा जैसे यूफोर्बिया और वांडा में , सहाय कोशिका से , जैसे सेजिटेरिया में , प्रतिमुखी कोशिका से जैसे अल्मस में या बीजाण्डकाय अथवा अध्यावरण से हो सकता है , जैसे सिट्रस और स्पाइरेंथस में।
(ii) आभासी अथवा कूट बहुभ्रूणता : जब पौधे में उपस्थित एक ही बीजांड से (जैसे फ्रेगेरिया में) अथवा बीजाण्डासन से (जैसे – लोरेन्थेसी कुल के कुछ सदस्यों में) एक से अधिक भ्रूणकोष विकसित होते है तो इस प्रक्रिया को आभासी बहुभ्रूणता कहते है।
याकोलेव (1967) ने स्वत: बहुभ्रूणता का वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार से किया गया है –
(i) युग्मकोदभिदी बहुभ्रूणता (gametophytic polyembryony) : जब बहुभ्रूणता का विकास अगुणित (n) भ्रूणकोष की किसी भी अनिषेचित कोशिका से होता है।
(ii) बीजाणुदभिदी बहुभ्रूणता (sporophytic polyembryony) : जब एक से अधिक भ्रूणों का निर्माण युग्मनज प्राकभ्रूण अथवा बीजाण्ड की किसी भी द्विगुणित कोशिका से होता है।
बोमेन और बोसविन्कल (1967) – ने स्वत: बहुभ्रूणता को निम्नलिखित चार वर्गों में बाँटा है –
(i) प्रथम वर्ग – जब एक से अधिक भ्रूणों का विकास जनक पीढ़ी की द्विगुणित बीजाणुभिद कोशिका जैसे – बीजाण्डकाय और अध्यावरण से होता है।
(ii) द्वितीय वर्ग – जब बहुभ्रूणता को उत्पत्ति जनक पीढ़ी के एक ही बीजाण्ड में विकसित एक अथवा एक से अधिक अगुणित युग्मकोद्भिद भ्रूणकोषों से होती है।
(iii) तृतीय वर्ग – जब एक से अधिक भ्रूणों की उत्पत्ति नवनिर्मित बीजाणुदभिद जैसे युग्मनज अथवा प्राकभ्रूण से होती है।
(iv) चतुर्थ वर्ग – जब अधिसंख्य भ्रूणों की उत्पत्ति नर युग्मकोदभिद (अंकुरित परागकण) से होती है , ऐसे भ्रूणों को पुंजनक अगुणित भ्रूण कहते है।
वैसे अनेक भ्रूण विज्ञानियों ने इस प्रकार के भ्रूण परिवर्धन को संदेहास्पद बताया है।

2. प्रेरित बहुभ्रूणता (induced polyembryony)

पौधों में प्राकृतिक रूप से पायी जाने वाली बहुभ्रूणता अपने ऊपर आप बिना किसी बाह्य कारक अथवा कृत्रिम संसाधन के संचालित होती है। ये अतिरिक्त भ्रूण बीजाण्ड ऊतक (अर्थात भ्रूणकोष , बीजाण्डकाय या अध्यावरण) से ही विकसित होते है। पहले भ्रूणविज्ञानियों की यह अवधारणा थी कि भ्रूण के विकास हेतु एक विशेष भौतिक और रासायनिक वातावरण की आवश्यकता होती है जो केवल भ्रूणकोष में ही उपलब्ध हो पाता है। लेकिन पिछले कुछ वर्षो में किये गए प्रयोगों से अब यह स्पष्ट हो गया है कि –
1. पौधों में न केवल बीजांड ऊतक , अपितु सभी कोशिकाएँ , भ्रूण का विकास करने में सक्षम होती है।
2. भ्रूण का विकास , पौधे में भ्रूणकोष के अतिरिक्त , प्रयोगशाला परिस्थितियों में कृत्रिम संवर्धन माध्यम में भी हो सकता है।
संवर्धन माध्यम में विकसित भ्रूणों को अपस्थानिक भ्रूण , कायिक भ्रूण , अधिसंख्या भ्रूण या भ्रूणाभ भी कहा जाता है।
ये भ्रूणाभ युग्मनज और बीजाण्ड ऊतक के अलावा पौधे की जड़ , परागण अथवा फल आदि की कोशिकाओं से भी प्राप्त किये गए है। सन 1986 में किये गए अध्ययन के अनुसार आवृतबीजी पौधों में अब तक 102 से भी अधिक प्रजातियों के कायिक भ्रूण प्राप्त करने में सफलता प्राप्त हो चुकी है , इनमें गेहूँ , धान , अंगूर , सेव , कॉफ़ी और सोयाबीन आदि प्रमुख है।
कृत्रिम संवर्धन माध्यम में कायिक भ्रूणों के विकास को प्रभावित करने वाले कारकों में वृद्धिकारी हार्मोन्स और नाइट्रोजन का स्रोत सर्वप्रमुख है। विभिन्न प्रकार के पौधों में भ्रूण विकास की अलग अलग अवस्थाओं में वृद्धिकारी हार्मोन्स की आवश्यकता में भी भिन्नता पायी जाती है। उदाहरण गाजर में कैलस के निर्माण के लिए संवर्धन माध्यम में ऑक्सीन की प्रचुर मात्रा आवश्यक होती है लेकिन कैलस से भ्रूण तभी विभेदित होता है जब उसे ऑक्सिन की अल्प मात्रा युक्त या ओक्सिन रहित वातावरण में स्थानांतरित कर दिया जाये। कोफिया अरेबिका में कैलस पर भ्रूण केवल ऑक्सिन रहित माध्यम में ही विभेदित होते है।
इसी प्रकार से माध्य में नाइट्रोजन का स्रोत भी कायिक भ्रूणों के विकास को बहुत अधिक प्रभावित करता है। अधिकांश पादप प्रजातियों में नाइट्रेट के रूप में प्रयुक्त नाइट्रोजन पोटेशियम नाइट्रेट (KNO3) कैलस के विकास को उद्दीप्त करती है लेकिन भ्रूण विभेदन के लिए माध्यम में अमोनिया के रूप में अमोनिया क्लोराइड (NH4Cl) नाइट्रोजन की उपस्थिति आवश्यक है।

बहुभ्रूणता के कारण (causes of polyembryony)

विभिन्न बीजाधारी पौधों में बहुभ्रूणता क्यों होती है इसका क्या कारण है ? इस जिज्ञासा का समाधान करने के लिए , अनेक अवधारणाएँ प्रस्तुत की गयी है लेकिन इनमे से किसी को भी पूर्णतया सटीक और उपयुक्त नहीं माना गया है। अधिकांश भ्रूणविज्ञानियों ने बहुभ्रूणता की उत्पत्ति को संकरण , नेक्रोहार्मोन्स और अप्रभावी जींस की अभिव्यक्ति पर स्पष्ट किया है।
उपर्युक्त अवधारणाओं को क्रमबद्ध व्याख्या निम्नलिखित प्रकार से प्रस्तुत की गयी है –
1. नेक्रोहार्मोन सिद्धान्त (necrohormone theory in hindi) : इस अवधारणा को सर्वप्रथम हेबरलेन्ड्ट (1920) ने ओइनोथीरा नामक पौधे की भ्रौणिकी पर कार्य करने के पश्चात् प्रस्तुत किया था। इस मत के अनुसार बीजाण्डकाय की विघटित होने वाली कोशिकाओं से एक विशेष प्रकार का उद्दीपन उत्पन्न होता है , जिससे पास वाली कोशिकाएँ अपस्थानिक भ्रूण के विकास हेतु उत्प्रेरित होती है। यह उद्दीपन एक विशेष रासायनिक पदार्थ “नेक्रोहार्मोन” के संश्लेषण से उत्पन्न होता है। इस नाम के शाब्दिक अर्थ के अनुसार यह एक विशेष हार्मोन है जो कि कोशिकाओं के ऊतक क्षय , ( नेक्रोसिस = ऊतक क्षय) द्वारा निर्मित होता है। हालाँकि हेबरलेंडट ने अनेक प्रयोगों के द्वारा इस हार्मोन की उपस्थिति और क्रियाशील को सिद्ध करने का प्रयास किया लेकिन आज भी इस हार्मोन का अस्तित्व प्रमाणित नहीं हो सका है , यह एक काल्पनिक पदार्थ मात्र ही है। अत: इस सिद्धान्त की कोई मान्यता नहीं है।
2. अप्रभावी जीन्स की अभिव्यक्ति द्वारा (by expression of recessive genes) : लेरोय (1947) द्वारा आम पर कार्य करते हुए यह प्रतिपादित किया गया है कि इसमें बहुभ्रूणता एक अथवा एक से अधिक अप्रभावी जीनों की अभिव्यक्ति के कारण होती है लेकिन यह अवधारणा भी मान्य नहीं है।
3. फ्रूसेटो और सहयोगियों (frusato et. al. 1957) : द्वारा यह स्पष्ट किया गया है कि निम्बू के बीजों में अनेक कारणों से बहुभ्रूणता उत्पन्न हो जाती है , जैसे –
I. पौधे की आयु – पुराने अथवा अधिक आयु के वृक्षों की बहुभ्रूणता अधिक होती है।
II. फलन की स्थिति – पौधे में फलों के अधिक होने से बहुभ्रूणता भी अधिक होती है।
III. पादप पोषण – पर्याप्त अथवा अधिक पोषण के कारण बहुभ्रूणता भी अधिक पायी जाती है।
IV. वृक्ष पर शाखाओं की स्थिति – उत्तर दिशा की तरफ उन्मुख शाखाओं में उच्च बहुभ्रूणता पायी जाती है जबकि दक्षिण दिशा की तरफ उन्मुख शाखाओं में बहुभ्रूणता की आवृति कम होती है।

बहुभ्रूणता का अनुप्रायोगिक महत्व (applied significance of polyembryony)

आधुनिक उद्यानविज्ञान और पादप प्रजनन के क्षेत्र में बहुभ्रूणता का विशेष महत्व है क्योंकि बहुभ्रूणता की प्रक्रिया द्वारा बनने वाले बहुसंख्यक भ्रूणों में से केवल एक सामान्य युग्मनजी भ्रूण होता है और अन्य अपस्थानिक भ्रूण होते है। वस्तुतः पादप प्रजनन के क्षेत्र में अपस्थानिक भ्रूणों से प्राप्त पौधों का ही विशेष उपयोग होता है , इसके द्वारा समान लक्षणों वाले पौधे उत्पन्न किये जा सकते है। बहुभ्रूणता के अन्य अनुप्रायोगिक उपयोग निम्नलिखित प्रकार से है –
1. बीजाण्डकायी भ्रूण से विकसित पौधे के सभी लक्षण मादा जनक के समान होते है। अत: इन इच्छित लक्षणों को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।
2. बीजाण्डकायी नवांकुर में मूसला जड़ होती है। अत: इसका मूलतन्त्र कलम से प्राप्त पौधे की तुलना में अधिक विकसित होता है।
3. बहुभ्रूणतया से प्राप्त पौधे अधिक ओज से भरपूर होते है।
4. बीजाण्डकायी भ्रूण रोग रहित और स्वस्थ होते है अत: इनके रोगमुक्त क्लोनों को अपस्थानिक भ्रूणता द्वारा तैयार कर सकते है।
5. रेडेनबाग (1986) के अनुसार कायिक भ्रूण को हाइड्रोजेल में लपेटकर इसे बीज का आकार दिया जा सकता है , दुसरे शब्दों में इससे कृत्रिम बीज तैयार कर सकते है। आजकल भूरी शैवाल से प्राप्त सोडियम एल्जिनेट की गोलाकार मणियों को सुरक्षित रखकर कृत्रिम बीज बनाये जाते है।

प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1 : बीजाण्ड में एक से अधिक भ्रूण बनने की प्रक्रिया है –
(अ) बहुभ्रूणता
(ब) आभासी भ्रूणता
(स) अपभ्रूणता
(द) अपस्थानिक भ्रूणता
उत्तर : (अ) बहुभ्रूणता
प्रश्न 2 :भ्रूणकोष की प्रतिमुखी कोशिका से भ्रूण का निर्माण होता है –
(अ) लिलियम
(ब) एलियम
(स) प्लमबेगो
(द) प्राइमुला
उत्तर : (ब) एलियम
प्रश्न 3 : लैंगिक जनन प्रतिस्थापन की क्रिया कहलाती है –
(अ) असंगजनन
(ब) एलियम
(स) अपबीजाणुता
(द) आभासी जनन
उत्तर : (स) अपबीजाणुता
प्रश्न 4 : अनिषेक फलन में फल का विकास होता है –
(अ) परागकण से
(ब) प्रतिमुखी कोशिका से
(स) सहाय कोशिका से
(द) अंडाशय से
उत्तर :  (द) अंडाशय से
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