कवक मूल किसे कहते है ? प्रकार क्या है परिभाषा लिखिए mycorrhiza in hindi ectomycorrhizae meaning endomycorrhizae hindi.
मूल और सूक्ष्मजीवों की पारस्परिक क्रिया (interaction of roots with microbes) : विभिन्न पौधों की जड़ों के आस पास मृदा में अनेक सूक्ष्मजीव मौजूद होते है। इनमें से अनेक सूक्ष्मजीव तो इन पौधों की जड़ों के निरंतर सघन सम्पर्क में आते रहते है और कवक मूल और मूल ग्रन्थियों जैसी सहजीवी गणबंधन संरचनाओं का निर्माण करते है।
1.कवक मूल (mycorrhiza) : मृदा में उपस्थित अनेक कवक प्रजातियाँ यहाँ मृतोपजीवी अथवा परजीवी के रूप में मौजूद न रह कर उच्च वर्गीय पौधों की जड़ों के साथ एक सहजीवी गठबन्धन स्थापित करती है। इनके कवक जाल उच्चवर्गीय पौधों की जड़ों के साथ सघन सम्पर्क स्थापित करके इनको लाभान्वित करते है। इस प्रकार कवक प्रजातियों का उच्चवर्गीय पौधों की जड़ों के साथ सहजीवी अन्तर्सम्बन्ध कवक मूल कहलाता है। जड़ों में कवक की स्थिति के अनुरूप तीन प्रकार की कवक मूल पायी जाती है।
(a) बाह्य कवक मूल (ectomycorrhizae) : इस प्रकार की कवक मूल संरचना में कवक जाल , पौधे की अन्तस्थ मूल शाखाओं के आस पास चारों तरफ तीव्र वृद्धि करके सघन कवक जाल का आवरण निर्मित करता है , इसे हारटिग नेट अथवा आच्छादी कवक मूल भी कहते है। इस कवक मूल अथवा आच्छादी जाल से उत्पन्न कवक तन्तु पादप जड़ों की बाहरी परतों मूलीय त्वचा और कुछ वल्कुट कोशिकाओं के मध्य में प्रविष्ट होते है।
लगभग 100 प्रकार की कवक प्रजातियाँ कवक मूल गठबंधन की स्थापना कर सकती है। इनमें से बाह्य कवक मूल गठबंधन की स्थापना अधिकांशत: कवक वर्ग बेसीडियोमाइसिटीज के गण ऐगेरिकेल्स के सदस्यों जैसे बोलीटिस , अमानीटा , क्लेवेरिया और ट्राइकोलोमा द्वारा की जाती है। ये कवक प्रजातियाँ आश्रय और पोषण हेतु परपोषी पादप जड़ पर निर्भर करती है और बदले में भागीदार पादप की लवण अवशोषण क्षमता को बढ़ा देती है। इस प्रकार निम्न पोषक तत्वों वाली मृदा में उगने वाले पौधों के लिए ये अत्यंत उपयोगी सिद्ध होती है। विभिन्न बीजधारी पौधों की लगभग 3 प्रतिशत प्रजातियों में कवक मूल गठबन्धन पाया जाता है। अधिकांशत: उत्तरी शीतोष्ण वनों में उगने वाले पाइनेसी , फेगसी , टिलीयेसी और बेटूलेसी कुल के सदस्यों की जड़ों में कवकमूल गठबंधन पाया जाता है। उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगने वाले पौधों में कवकमूल गठबन्धन कम मात्रा में पाया जाता है। यहाँ केवल एक अथवा दो कुलों जैसे मिटेंसी के सदस्यों में ही कवक मूल गठबंधन पाया जाता है। पाइनस , एबीस , प[पाइसिया , ओक , भोजपत्र , केस्यूराइना और यूकेलिप्टस आदि कवक मूल गठबंधन के प्रमुख उदाहरण है। अनेक वृक्षों जैसे पाइनस में कवक मूल छोटी स्थुलित और द्विभाजी रूप से शाखित अथवा बारम्बार शाखित होती है। इसके विपरीत अनेक मजबूत काष्ठीय वृक्षों में कवक मूल सामान्य जड़ों के समान ही प्रतीत होती है।
(b) अन्त:कवक मूल (endomycorrhizae) : इस प्रकार के कवक मूल गठबंधन में कवकजाल , पोषण हेतु पादप जड़ के वल्कुट क्षेत्र में काफी भीतर तक प्रविष्ट हो जाता है। इस प्रकार के कवकमूल गठबंधन में दोनों प्रकार की कवक प्रजातियाँ अर्थात पटहीन और पटयुक्त पायी जाती है। ये कवक मूल भी निम्नलिखित दो प्रकार के होते है।
(i) सरल कवक मूल (simple mycorrhiza) : मुख्यतः आर्किड्स और अनेक शंकुधारी वृक्षों में इस प्रकार का कवक मूल गठबंधन पाया जाता है। यहाँ जड़ की सतह पर सामान्य जड़ों के समान मूल रोम पाए जाते है , हरटिग जाल भी नहीं पाया जाता है। जड़ की बाह्य आकारिकी में भी कोई विशेष अंतर नहीं होता। इस प्रकार के कवक मूल गठबन्धन में पटयुक्त कवक वर्ग बेसीडियोमाइसिटीज के सदस्य जैसे राइजोक्टीनिया आदि भागीदारी निभाते है और ये पादप जड़ में पुटिका का निर्माण नहीं करते।
यहाँ एक रोचक तथ्य यह है कि आर्किड्स के बीज अत्यंत सूक्ष्म आकृति के होते है , इनका भ्रूण भी अत्यंत सूक्ष्म होता है। कवकमूल संक्रमण के बिना इनका अंकुरण नहीं होता क्योंकि भ्रूण में पोषक पदार्थो की अत्यंत कम मात्रा पायी जाती है। ऐसी अवस्था में कवकमूल , आवश्यक पोषक तत्व मृदा से प्राप्त कर आर्किड नावोद्भिदो को देते है।
(ii) पुटिकायुक्त कवक मूल अथवा वाम कवक (vesicular arbuscular mycorrhiza or vam fungi)
इस प्रकार के कवकमूल गठबंधन के अंतर्गत पोषी पादप की जड़ों में पुटिकाओं और कुर्चकों का निर्माण होता है। इसलिए इनको पुटिकायुक्त कवक मूल या वाम फंजाई भी कहते है। इस प्रकार के कवकमूल गठबन्धन में भागीदारी निभाने वाली कवक प्रजातियों वर्ग जाइगोमाइसीटीस के गण म्यूकोरेल्स की सदस्य होती है , जैसे एंडोगोन , ग्लोमस और गाइगास्पोरा आदि।
यह कवक मूल गठबंधन ब्रायोफाइटा , टेरिडोफाइटा और अनावृतबीजियों के पाइनेसी कुल को छोड़कर शेष सभी अनावृतबीजी और आवृतबीजी पौधों के सभी कुलों में पाया जाता है। प्रमुख रूप से पोएसी , पामी , साइप्रेसी , रोजेसी , लग्युमिनोसी , ब्रेसीकेसी और चीनोपोडीयेसी आदि आवृतबीजी कुलों में पुटिका युक्त कवक मूल गठबंधन पाया जाता है।
इस गठबंधन को स्थापित करने की प्रक्रिया में कवक प्रजाति परपोषी पादप जड़ की वल्कुट कोशिकाओं में अन्त:कोशिकीय रूप से प्रविष्ट होती है और पुटिकाओं के साथ साथ द्विशाखित अथवा बहुशाखित चुष्कांगो का निर्माण करती है। इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की सहायता से इनका अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि इनके चूषकांग कोशिका भित्ति के भेदन के पश्चात् जीवद्रव्य को भेदन नहीं करते और चारों तरफ से कोशिका झिल्ली द्वारा घिरे रहते है।
(c) बाह्य अन्त:कवकमूल (ecto endo mycorrhizae) : इस प्रकार का कवकमूल गठबंधन कुल एरिकेसी और कुछ अन्य कुलों के सदस्यों में पाया जाता है। कुल एरिकेसी के सदस्य आरबस्टस में जड़ें फूली हुई , छोटी और एक आवरण से ढकी होती है परन्तु यहाँ हरटिंग जाल अनुपस्थित होता है। इसमें बाह्य वल्कुट की कोशिकाओं के मध्य अंतरकोशिकीय कुंडलनों का निर्माण होता है।
लगभग सभी वर्गों जैसे – फर्न्स , आर्किड्स , अनावृतबीजी और अनावृतबीजी पौधों के अनेक सदस्यों में कवकमूल गठबंधन पाया जाता है। ये पौधों की उपयुक्त वृद्धि के लिए आवश्यक है। निम्न पोषक तत्वों युक्त मृदा में उगने वाले पौधों को फास्फेट , केल्शियम और आयरन की प्राप्ति इनके द्वारा अवशोषण के परिणामस्वरूप होती है।
2. मूल ग्रंथिकाएं (root nodules) : प्राय: लेग्युमिनोसी कुल के पौधों और इनके अतिरिक्त कुछ उच्चवर्जीय पौधों में इन मूल ग्रंथियों का निर्माण इनकी जड़ों में सहजीवी राइजोबियम जीवाणु के संक्रमण के पश्चात् ही होता है। राइजोबियम एक छडाकार एक कशाभिकायुक्त , ग्राम ऋणात्मक अथवा अग्राही जीवाणु होता है जो मूल रोमों के माध्यम से पौधों की जड़ों में प्रविष्ट होता है।
मूल ग्रंथि का परिवर्धन (development of root nodule )
सबसे पहले पादप मूल द्वारा स्त्रावित लेक्टिन की पहचान करके विशेष प्रभेद के राइजोबियम जीवाणु इन जड़ों की तरफ आकर्षित होते है और इनकी सतह से चिपक जाते है। इसके बाद जीवाणु कोशिकाओं द्वारा स्त्रावित पदार्थो के द्वारा मूल रोमों में कुंतलन या कुंडलन होने लगता है।
इन कुंडलित मूल रोम सिरों के माध्यम से संक्रमण तंतु द्वारा जीवाणु जड़ के भीतर प्रविष्ट होते है और मूल रोम कोशिका के मध्य भाग तक पहुँच जाते है। जड़ की वल्कुट कोशिकाएं , जीवाणु द्वारा स्त्रावित हार्मोन सायटोकाइनिन के अभिप्रेरण से उदीप्त होकर बारम्बार विभाजित होती है और मूल ग्रंथि का निर्माण करती है। कुछ समय पश्चात् ग्रंथि शीर्ष के निकट विभाज्योतकी कोशिकाओं के बारम्बार विभाजन से मूल ग्रंथि का आकार बढ़ता है। इस क्षेत्र में जीवाणु नहीं होते और ग्रंथि कोशिकाएं बहुगुणित हो जाती है। मूल ग्रन्थि का आकार बढ़ने के साथ ही मूल की बाह्यत्वचा टूट जाती है परन्तु जड़ के वल्कुट क्षेत्र की कोशिकाएं विभाजन और पुनर्विभाजन के कारण खिंच कर तन जाती है और मूल ग्रंथि की बाहरी परत का निर्माण करती है। जड़ के संवहन क्षेत्र से उत्पन्न संवहन क्षेत्र से उत्पन्न संवहन स्ट्रेंड मूल ग्रन्थि के जीवाणुसम क्षेत्र को चारों ओर से घेर लेता है। प्रत्येक स्ट्रेंड की अन्तश्त्वचा पृथक होती है।