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आकारिकी का अर्थ क्या है ? morphology meaning in hindi पादप आकारिकी (plant morphology)
(morphology meaning in hindi) आकारिकी का अर्थ क्या है ? पादप आकारिकी (plant morphology) की परिभाषा किसे कहते है ? in english
परिचय (introduction) : आकारिकी (morphology) शब्द का निर्माण ग्रीक भाषा के दो शब्दों क्रमशः मारफ़ॉस (morphos) = संरचना और logos (लोगोस) = अध्ययन , को संयुक्त रूप से जोड़कर लिया गया है। इसका शाब्दिक अर्थ होता है संरचना का अध्ययन।
उपर्युक्त शाब्दिक अर्थ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि “पादप आकारिकी (plant morphology) वनस्पति विज्ञान की वह शाखा है , जिसके अंतर्गत विभिन्न पौधों की बाह्य आकृति और संरचना का वैज्ञानिक , सुव्यवस्थित और क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है। ”
पादप शरीर के जड़ , तना , पत्ती , पुष्प और फल के बाहरी लक्षणों का अध्ययन बाह्य आकारिकी और इनकी आंतरिक संरचना का अध्ययन आंतरिक आकारिकी (internal morphology) अथवा शारीरिकी (anatomy) के अंतर्गत किया जाता है।
शब्द “एनाटॉमी (anatomy)” का निर्माण लैटिन भाषा के दो शब्दों क्रमशः एना (ana) = भिन्न और टेम्नीन (tamnien) = काटना , को संयुक्त रूप से मिलाकर किया गया है। सामान्यतया शारीरिकी विषय को “उत्तक विज्ञान” अथवा औतिकी (histology) का पर्याय भी मान लिया जाता है , परन्तु यह पूर्णतया दिग्भ्रमित करने वाला तथ्य है , क्योंकि उत्तक विज्ञान के अंतर्गत तो विभिन्न सूक्ष्म संरचनाओं जैसे कोशिका व्यवस्था और उत्तकों की संरचना का अध्ययन करते है , यहाँ किसी सम्पूर्ण सजीव अथवा इसके अंग की आंतरिक संरचना का समग्र अध्ययन नहीं किया जाता है। जबकि पादप शारीरिकी के अंतर्गत विभिन्न पादप भागों की समग्र संरचना और संगठन का अध्ययन आंतरिक रूप से किया जाता है , जैसे रंभ (stele) अथवा संवहन तंत्र अथवा पर्ण अनुपथ आदि। इसके अन्तर्गत सूक्ष्म संरचनाओं का अध्ययन भी साथ साथ ही किया जाता है।
पादप शरीर विज्ञान के आधुनिक वैज्ञानिक अध्ययन का सुव्यवस्थित और क्रमबद्ध प्रारूप , सूक्ष्मदर्शी की खोज के बाद 16 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में प्रारंभ हुआ। वैसे हमारे देश में अति प्राचीन काल से ही विभिन्न पौधों की आंतरिक संरचना का अध्ययन किसी न किसी रूप में किया जाता रहा है। प्राचीन ऋषिमुनियों और विद्वानों के अनुसार एक प्रारूपिक पादप की आंतरिक संरचना को पांच भागो में विभेदित किया गया था , ये थे त्वक या त्वचा , मांस , स्नायु , अस्थि , और मज्जा आदि।
इसके साथ ही यूनान के महान दार्शनिक अरस्तू के शिष्य थियोफ्रेस्टस ने भी विभिन्न पौधों की आंतरिक संरचना का गहन अध्ययन कर यह बताया कि पादप शरीर का निर्माण मुख्यतः फ्लोइस , , जाइलोन और मेत्र आदि घटकों से होता है। थियोफ्रेस्टस ने विभिन्न पौधों की आंतरिक संरचना की जानकारी प्रदान करने हेतु एक पुस्तक भी लिखी थी। आधुनिक युग में थियोफ्रेस्टस (Theophrastus) को “वनस्पति विज्ञान का जनक (father of botany)” माना जाता है।
रोबर्ट हुक ने 16 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में स्वयं के द्वारा विकसित परिष्कृत सूक्ष्मदर्शी की सहायता से कार्क की कोशिकाओं का अध्ययन कर इनकी संरचना के बारे में जानकारी प्रदान की। इसके बाद नेमिया ग्रु और मेल्पीघाई ने भी अनेक पौधों की आंतरिक संरचना का अध्ययन किया। मेल्पीघाई द्वारा “एनाटॉमी प्लान्टेरम (anatomy plantarum)” और ग्रु द्वारा “द एनाटॉमी ऑफ़ प्लांट्स” आदि पुस्तकों का सृजन किया गया।
ह्यूगो वान मोहल (hugo von mohl) द्वारा जीवद्रव्य की जानकारी दी गयी , जिसके बाद से विभिन्न वैज्ञानिकों ने कोशिका की आंतरिक संरचना में विशेष रूचि लेना प्रारंभ किया। इसके साथ ही वाँन मोहल ने विभिन्न पादप उत्तकों जैसे वाहिकाओं की संरचना और वृद्धि , वातरन्ध्र और कार्क की संरचना का विस्तृत अध्ययन किया और पर्ण और शाखा अनुपथ में विभिन्न उत्तकों की सापेक्षिक स्थिति के बारे में जानकारी दी।
मेथियास श्लीडन (mathias schledin) ने पौधों और थियोडोर श्वान (theodore schwann) ने विभिन्न पौधों और जन्तुओं की संरचना का अध्ययन करके कोशिका सिद्धांत प्रस्तुत किया , इसके अनुसार सभी सजीव इकाइयाँ कोशिकाओं की बनी होती है।
जर्मन वनस्पतिशास्त्री कार्ल वान नगेली (carl von nageli) द्वारा विभिन्न पौधों की आंतरिक संरचना में पाए जाने वाले प्राथमिक और द्वितीयक विभाज्योतकों और संवहन बंडलों का अध्ययन किया गया।
स्ट्रासबर्गर (strasburger) द्वारा कोशिका विभाजन के समय गुणसूत्रों के व्यवहार का अध्ययन किया गया।
हेन्सटीन ने जड़ और तने के शीर्षस्थ विभाज्योतकों पर किये गए अपने अध्ययन के आधार पर हिस्टोजन सिद्धान्त प्रस्तुत किया।
हेबरलेंड द्वारा कार्य और व्यवहार के आधार पर उत्तकों को 12 तन्त्रों में विभेदित किया और उन्होंने स्वरचित पुस्तक फिजियोलॉजिकल प्लांट एनाटोमी में विभिन्न तथ्यों की विस्तृत विवेचना की है।
डि बेरी द्वारा विभिन्न वर्गों के पौधों की आन्तरिक संरचना का तुलनात्मक अध्ययन किया गया और इससे प्राप्त तथ्यों और जानकारी को अपनी पुस्तक “कम्पेरेटिव एनाटोमी ऑफ़ फेनेरोगेम्स एण्ड फंर्स” में समाविष्ट किया। इसके बाद वान टिघम द्वारा रंभ सिद्धान्त प्रस्तुत किया गया , जिसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार के रंभ और इनके विकास के बारे में बताया गया। वान टिघम के अनुसार पौधों की आंतरिक संरचना से सम्बन्धित विभिन्न लक्षण इनके वर्गिकीय निर्धारण में महत्वपूर्ण होते है।
भारत में पादप शारीरिकी के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले वनस्पतिशास्त्रियों में एस. अहमद , आर.एम.पाई , वी.पुरी , बी.जी.एल.स्वामी , जे.जे. शाह , वाई.डी.त्यागी , रियाअत खान , बी. त्यागी और एस.के.पिल्लई आदि के नाम सर्वप्रमुख है। उपर्युक्त विद्वानों ने विभिन्न संवहनी पौधों के पादप अंगों की आंतरिक संरचना का विस्तृत अध्ययन किया है।
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