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monoclonal antibodies in hindi , एकक्लोनी प्रतिरक्षी क्या है , एक क्लोनी प्रतिरक्षी प्राप्त करने की विधि

जाने monoclonal antibodies in hindi , एकक्लोनी प्रतिरक्षी क्या है , एक क्लोनी प्रतिरक्षी प्राप्त करने की विधि ?

आधुनिक चिकित्सा पद्धति में औषधियों के प्रयोग के दौरान पाया जाता है कि रोगी को दी गयी औषधियाँ कई बार एलर्जी उत्पन्न करती हैं अर्थात् इन्हें भी प्रतिजन मान कर देह प्रतिक्रिया प्रदर्शित करती है। हमारी देह में ये प्रतिरक्षियाँ किसी भी बाह्य (foreign) या स्वयं का नहीं (non self) पदार्थ के प्रति उत्पन्न की जाती है। कभी-कभी स्वयं की देह के ऊत्तक या पदार्थ भी प्रतिजन के समान कार्य करते हुए प्रतिरक्षियों का उत्पादन हेतु उद्दीपन देते हैं। स्पष्ट है कि ऐसी सुरक्षित चिकित्सा प्रणाली का उपयोग किया जाना चाहिए जो देह में किसी प्रकार की हानि न पहुँचाये। यदि रोग के कारक का ज्ञान हो जाये तो इसके निवारण हेतु देह में बनने वाली प्रतिरक्षियाँ देह से बाहर बनावा कर रोगी की देह में प्रवेशित कर उपचार संभव है। इसी को आधार मान वैज्ञानिकों ने अध्ययन आरम्भ किये एवं इस क्षेत्र में सफलता भी प्राप्त की।

एकक्लोनी प्रतिरक्षियाँ (Monoclonal antibodies) (MABs)

प्रतिरक्षियाँ (antibodies) सामान्य: किसी प्राणी की देह में प्रतिजन के प्रवेश करने के उपरान्त उद्दीपन स्वरूप प्रतिरक्षा हेतु प्राप्त अनुक्रिया के अन्तर्गत उत्पन्न होती हैं। प्रतिरक्षियाँ प्लाज्मा कोशिकाओं द्वारा बनायी जाती है एवं रक्त सीरम में पायी जाती है। देह में किसी प्रतिजन के प्रवेश करने पर एक से अधिक प्रकार की प्रतिरक्षियाँ बनायी जाती हैं जो प्रतिजन अणु के प्रत्येक निर्धारक बिन्दु (determinant point) से जुड़ने में विशिष्टता रखती है। अतः रक्त सीरम में प्रतिजन के प्रवेश करने पर एक से अधिक प्रकार की प्रतिरक्षियों का मिश्रण या समूह पाया जाता है इन्हें बहुक्लोनी प्रतिरक्षियाँ (polyclonal antibodeis) कहते हैं । बहुक्लोनी प्रतिरक्षियाँ प्रायः अपने बन्धन स्थलों में विभिन्न संरचनाओं के साथ विभिन्न प्रतिरक्षीग्लोबुलिन (immunoglobulins) वर्गों या उपवर्गों के अणुओं का मिश्रण होती है।

एकक्लोनी प्रतिरक्षियाँ (Monoclonal antibodies) उन प्लाज्मा कोशिकाओं से उत्पन्न होती है। जो कि एकाकी एक पूर्वज (single clone) के कोशिका विभाजन से प्राप्त हुई है। ये एक एकाकी प्रतिजनिक निर्धारक (a single antigenic determinant) से प्रतिरक्षीग्लोबुलिन को संयुक्त कराने में अतिविशिष्टता युक्त होती है। एकक्लोनी प्रतिरक्षियों में एक ही समान प्रकार के अमीनो अम्लों का क्रम (sequence) या श्रृंखला उपस्थित होती है। ये एक ही प्रतिरक्षीग्लोबुलिन वर्ग की होती है। किसी प्राणी की देह में उनके उत्पन्न होने हेतु किसी प्रतिजन का प्रवेश कर प्रतिरक्षी तन्त्र को उद्दीप्त करना आवश्यक होता है। इस प्रकार एक क्लोनी प्रतिरक्षियाँ वे विशिष्ट प्रतिरक्षियाँ होती है जो एक विशिष्ट प्रतिजेनिक निर्धारक या एपीटोप (epitope) के विरूद्ध इन लिम्फोसाइट्स या प्लाज्मा कोशिकाओं के समूह द्वारा बनायी जाती है जो एक क्लोन से व्युत्पन्न होती है। ये कोशिकाएँ समान आनुवंशिक संगठन रखती है अतः केवल एक ही वर्ग के विशिष्ट प्रतिरक्षी-ग्लोबुलिन का निर्माण करने का गुण रखती है।

वैज्ञानिकों ने अनेक अध्ययनों के दौरान पाया कि प्रतिरक्षियों का निर्माण करने वाली B कोशिकाएँ कैन्सर प्रवृत्ति ( cancerous) की हो जाती है। कैन्सर प्रवृत्ति में इनके रूपान्तरण से आशय यह है कि ये अनियन्त्रित रूप से असीमित समय तक विभाजन करने लगती है। देह में अबुर्द (tumours) या गांठ बनाने लगती है। कोशिकाओं के ऐसे पिण्ड या मायलोमा (myeloma) कहते हैं। चूंकि मायलोमा एक एकल कोशिका के विभाजन से प्राप्त कोशिकाओं का समूह होता है, इनमें एक समान जीन पाये जाते हैं। इन्हें क्लोन कहते हैं। ये एक ही समान प्रकार की प्रतिरक्षियाँ लम्बे समय तक बनाने की क्षमतायुक्त होती है।

इन कैन्सर कोशिकाओं को देह से पृथक कर प्रयोगशाला में संवर्धन माध्यम में रख कर संवर्धित कराया जा सकता है। इस क्रिया हेतु आरम्भ में सीरमयुक्त संवर्धित माध्यमों का ही उपयोग किया जाता था । किन्तु संक्रमण की संभावनाओं से बचने के लिए अब इसके स्थान पर संश्लेषित प्रकार के संवर्धन माध्यमों का उपयोग किया जाने लगा है। जिनमें सीरम अनुपस्थित होता है। इनसे संतति कोशिकाएँ एवं प्रतिरक्षियाँ भी प्राप्त की जाती है, इस प्रकार ये सामान्य B कोशिकाओं में इस अर्थ में भिन्नता रखती है कि ये अमर (immortal) प्रकृति की होती है। सामान्य B कोशिकाएँ किसी प्रतिजन द्वारा उद्दीप्त होने पर प्रतिरक्षियाँ उत्पन्न करती हैं। प्रतिजन को नष्ट या उदासीन किये जाने के उपरान्त या निश्चित समय के उपरान्त ये कोशिकाएँ नष्ट हो जाती हैं एवं प्रतिरक्षियों का उत्पादन रुक जाता है।

1995 में जर्मनी के वैज्ञानिकों जॉर्जेज जे.एफ. कोहलर (Georges J. F. Kohler) एवं अर्जेन्टीना के वैज्ञानिकों सीजन मिल्सटेन (Cesar Milstein) ने प्रयोगशाला में एक अमर कोशिका या कैन्सर कोशिका (ऐसी उत्परिवर्ती कोशिका जिसमें प्रतिरक्षी उत्पन्न करने की क्षमता नष्ट हो चुकी थी) को सामान्य प्लाज्मा (B) कोशिका ( ऐसी कोशिका जो अकैन्सर प्रवृति की थी एवं प्रतिरक्षियाँ उत्पन्न करने की क्षमता रखती थी) से संलयन कराने में सफलता प्राप्त की जो उस मूसे से प्राप्त की गयी थी जिसे एक विशिष्ट प्रतिजन दिया गया था। इस प्रकार प्राप्त संकर कोशिका में यह क्षमता पायी जाती है कि यह विभाजन करती हुई कोशिकाओं के एक क्लोन को उत्पन्न करती हैं जिसे संकरित या हाइब्रिडोमा ( hybridoma) कहते हैं। हाइब्रिडोमा शब्द का प्रयोग दो भिन्न प्रकृति की कोशिकाओं के संलगन से प्राप्त या निर्मित कोशिका हेतु किया जाता है। इस हाइब्रिडोमा को संवर्धन माध्यम में संवर्धित किये जाने पर ये समान आनुवंशिक लक्षणों वाली कोशिकाओं को जन्म देती है एवं उसी समान प्रकार की प्रतिरक्षियाँ उत्पन्न करती हैं जो पूवर्ज B कोशिका या प्लाज्मा कोशिका द्वारा की जा रही थी। ये उत्पन्न की गयी प्रतिरक्षियाँ एक क्लेनी प्रतिरक्षियाँ (monoclonal antibodies) थीं। इस प्रकार शुद्ध प्रकार की एक क्लोनी प्रतिरक्षियों को लम्बे समय तक अत्यधि क मात्रा में प्राप्त करने की विधि की खोज हुई। इससे पूर्व केवल प्राणियों की देह में एक छोटे से समय के लिए संक्षिप्त मात्रा में प्रतिरक्षियों के प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होने की जानकारी वैज्ञानिकों को थी। इस असाधारण खोज के लिए इन दोनों वैज्ञानिकों को 1984 में चिकित्सा क्षेत्र के नोबेल पुरुस्कार से पुरस्कृत किया गया। इस विधि से एकक्लोनी प्रतिरक्षियों के प्राप्त करने को संकरित तकनीक या हाइब्रिडोमा तकनीक (hybridoma technique) कहा गया है। इनका उपयोग चिकित्सा क्षेत्र के अतिरिक्त आणविक जीव विज्ञान, सूक्ष्मजीव विज्ञान में भी किया जा रहा है।

एक क्लोनी प्रतिरक्षी प्राप्त करने की विधि (Method to obtain monoclonal antibodies)

एक क्लोनी प्रतिरक्षी प्राप्त करने की क्रिया को चार पदों में विभक्त करते हैं।

  1. हाइब्रिडोमा का बनाना (Making of Hybridoma)
  2. हाइब्रिडोमा कोशिकाओं का संवर्धन करना (Culture of Hybridomas)

 III. हाइब्रिडोमा कोशिकाओं का क्लोनिंग कराना एवं इनका परिक्षण किया जाना  (Cloning and preservation of Hybridomas)

  1. एक क्लोनी प्रतिरक्षियों का उत्पादन किया जाना (Production of monoclonal antibodies) कैन्सर के रोगियों को उपचार हेतु मिथिओट्रेक्सेट (methiotrexate) औषधि दी जाती है। यह फॉलिक अम्ल संश्लेषण हेतु आवश्यक किण्वक डाइहाइड्रोफॉलेट रिडक्टेज (dihydrofolate reductase) या DHFR की क्रिया का दमन कर कैन्सर कोशिकाओं को नष्ट करती है। क्लाइन एवं साथियों ( Cline and colleagues) ने अस्थिमज्जा कोशिकाओं में मिथिओट्रेक्सेट औषधि के प्रति प्रतिरोधकता उत्पन्न करने हेतु हाइब्रिडोमा तकनीक का उपयोग किया है। इन वैज्ञानिकों ने चूहों की प्रतिरोधक कोशिकाओं से जिनमें DHFR जीन की अनेक प्रातियाँ थी से डी एन ए बना कर इसे चिन्हाकिंत (marked) गुणसूत्र युक्त चूहे की अस्थि मज्जा की कोशिका के डी एन ए में रोपित कर दिया। इस प्रक्रिया से अनेकों अस्थि मज्जा कोशिकाएँ रूपान्तरित हो गयी। इन रूपान्तरित अस्थि मज्जा कोशिकाओं को पुनः जीवित चूहों में प्रवेशित करा दिया गया। प्रतिरोधी अस्थि मज्जा कोशिकाओं का परीक्षण एवं चुनाव हेतु चूहों में मिथिओट्रेक्सट औषधि की निर्धारित मात्रा का प्रयोग किया गया। I. हाइब्रिडोमा का बनाना (Making of Hybridoma)
  2. हाइब्रिडोमा के बनाये जाने एवं इससे इच्छित एक क्लोनी प्रतिरक्षियों (monoclonal antibodies) MABs के स्त्रोवित किये जाने एवं प्राप्त किये जाने हेतु सर्वप्रथम एक प्रायोगिक प्राणी का चयन किया जाता है सामान्यत: कार्य हेतु मूसे (mouse) का उपयोग करते हैं।
  3. इस मूसे को इच्छित प्रतिजन का इंजेक्शन (injection) पर्युदर्या गुहा (peritoneal cavity) में अथवा उपत्वकत: (subcutaneously) लगाकर प्रतिरक्षित (immunize) किया जाता है। यह क्रिया अनेक बार की जाती है तथा प्रत्येक बार निवेशित किये जाने वाले प्रतिजन की मात्रा पहले की अपेक्षा बढ़ा दी जाती है। अन्तिम बार प्रतिजन के निवेशित किये जाने के 72 घण्टे या तीन दिन बाद इस प्राणी का विच्छेदन कर इसकी प्लीहा या लसीका पर्वो (lymph nodes) को प्राप्त किया जाता है। इस क्रिया द्वारा प्रतिजन के प्रति प्रतिरक्षी तंत्र को पूर्ण रूप से उद्दीप्त किया जाता है। इस प्रकार बार-बार दिये गये प्रतिजन की मात्रा B लिम्फोसाइट्स कोशिकाओं को प्रतिरक्षियाँ बनाने हेतु उत्तेजित करती हैं एवं तीन दिनों के भीतर प्रतिरक्षी उत्पन्न करने वाली कोशिकाएँ पूर्ण रूप से वृद्धि कर लेती हैं।
  4. प्रतिरक्षित मूसे की देह से तीन दिनों के बाद प्लीहा या लसीका पर्वों को सावधानी से अलग कर खोल लेते हैं। लिम्फोसाइट्स व रक्ताणुओं को एकत्रित कर लिया जाता है। लिम्फोसाइट्स को धनत्व एवं अपकेन्द्रण (centrifugation) तकनीक द्वारा अलग कर प्राप्त किया जाता है। इन्हें आसुत जल से धोया जाता है एवं जल तथा विशिष्ट माध्यम में 1:20 के अनुपात में रखा जाता है।
  5. इस प्रकार प्राप्त लिम्फोसाइट्स को HPRT (hypoxanthine phosphoribosyl transferase) ऋणात्मक मायलोमा कोशिकाओं से मिलाया जाता है। किसी भी सामान्य प्रकार की मायलोमा कोशिकाओं का उपयोग यहाँ नहीं किया जाता है। जिन मायलोमा कोशिकाओं का उपयोग किया जाता है। वे दो प्रकार के गुण रखती हैं प्रथम ये मायलोमा कोशिकाएँ स्वयं किसी भी प्रकार प्रतिरक्षियों का स्त्रावण नहीं करती है। केवल विभाजन करने एवं संख्या में वृद्धि करने की क्षमता रखती हैं। द्वितीय इस प्रकार की माइलोमा कोशिकाओं को 8- एजेगुएनिन (azaguanine) युक्त माध्यम में संवर्धित किया जाता है एवं इनका चयन कर इन्हें लिम्फोसाइट्स के साथ संलयन हेतु उपयोग में लाया जाता है, इस क्रिया में अनेक मायलोमा कोशिकाएँ मृत हो जाती है। कुछ ही प्रतिरोधी मायलोमा कोशिकाएँ जीवित रहती हैं जिनमें किण्वक हाइपोजेन्थिन फॉस्फोराइबोसिल ट्रान्सफरेज (HPRT) की विकृति होती है। इन्हें (HPRT) ऋणात्मक मायलोमा कोशिकाएँ कहते हैं। ये मायलोमा कोशिकाएँ किसी अन्य मूसे से प्राप्त की जाती है।
  6. ऋणात्मक मायलोमा कोशिकाएँ व लिम्फोसाइट्स जो प्लीहा से प्राप्त की गयी है, संलयन प्रोन्नत (fusion promote) करने वाले माध्यम में 5:1 से 2:1 के अनुपात में कुछ कणों के लिए रखी जाती है। इस माध्यम हेतु पॉलीइथाईलीन ग्लाइकॉल (polyethylene glycol) नामक अभिकर्मक का उपयोग किया जाता है। यह अभिकर्मक कोशिकाओं हेतु हानिकारक होता है अतः सावधानी के साथ कुछ क्षणों हेतु की क्रिया करायी जाती है।
  7. संलयन के बाद प्राप्त कोशिकाओं को धोया जाता है एवं स्वच्छ माध्यम में रखते हैं। इस प्रकार कोशिकाओं का ऐसा मिश्रण प्राप्त होता है जिसमें हाइब्रिडोमा कोशिकाओं (संलयित कोशिकाएँ) एवं असंलयित कोशिकाएँ जो पूर्व की भाँति मायलोमा व लिम्फोसाइट्स होती है पायी जाती है। इस मिश्रण को संवर्धित होने दिया जाता है। चूँकि ऋणात्मक HPRT कोशिकाएँ DNA का संश्लेषण करने में असमर्थ रहती हैं। मृत हो जाती हैं | प्रकार HPRT माध्यम में केवल संलयित कोशिकाएँ (हाइब्रिडोमा ) ही जीवित बनी रहती है शेष कोशिकाएँ (लिम्फोसाइट्स व मायलोमा कोशिकाएँ) मृत होकर पृथक हो जाती है। इनको छाँट कर अलग कर लिया जाता है।
  8. यदि सभी हाइब्रिडोमा कोशिकाओं को एक साथ संवर्धित किया जाये तो इससे बहुक्लोनी प्रतिरक्षियों वाला मिश्रण प्राप्त होता है, इस मिश्रण से एक ही प्रकार की प्रतिरक्षियाँ उत्पन्न करने वाली हाइब्रिडोमा कोशिकाओं को पृथक किया जाना आवश्यक है ताकि इनसे एक क्लोनी प्रतिरक्षियाँ प्राप्त की जा सकें।
  9. हाइब्रिडोमा कोशिकाओं का संवर्धन करना (Culture of hybridomas) .
  10. उपरोक्त मिश्रण से एक क्लोनी प्रतिरक्षियों को उत्पन्न करने वाली हाइब्रिडोमा को प्राप्त करने हेतु इस घोल को इस स्तर तक तनु करते हैं कि प्रत्येक परीक्षण नलिका (test tube) या फ्लास्क (flasks) में एक हाइब्रिडोमा कोशिका को चयनित HAT माध्यम में संवर्धित होने देते हैं। इस माध्यम में थाइमोसाइट्स ( thymocytes) कोशिकाओं पोषण हेतु मिलायी जाती है।

III. हाइब्रिडोमा कोशिकाओं का क्लोनिंग कराना एवं इनका परिक्षण किया जाना (Cloning and preservation of hybridomas)

  1. इनके संवर्धन हेतु क्लोन को (CO 2 ) युक्त HAT संवर्धन माध्यम में उच्च आदर्श पर 3 से 4 दिनों के लिए ऊष्मायित (incubate) किया जाता है। प्रत्येक बार नया (HAT) माध्यम व थाइमोसाइट्स का उपयोग किया जाता है। 9 से 10 दिनों तक संवर्धित किये जाने पर प्रत्येक परीक्षण नलिका में लगभग 500 कोशिकाओं का क्लोन बन जाता है।
  2. उपरोक्त संवर्धन माध्यम में से कुछ कोशिकाओं को पृथक कर इनसे उत्पन्न होने वाली प्रतिरक्षियों का परीक्षण किया जाता है एवं यह पता लगाया जाता है कि कौन से क्लोन से इच्छित प्रतिरक्षियों का निर्माण किया जा रहा है। यह क्रिया संवर्धन क्रिया के आरम्भ किये जाने के 12-14 दिनों के बाद की जाती है। यह क्रिया दो से चार दिनों के बाद पुनः दोहरायी जाती है।
  3. प्रतिरक्षी परीक्षण कर लेने के बाद उस क्लोन का चयन कर लिया जाता है जो इच्छित प्रकार की प्रतिरक्षियों का उत्पादन करती है, इसे धनात्मक कोशिकीय रेखा (positive cell line) कहते हैं, इन्हें 24 पेट्रीप्लेट्स (petriplates) में स्थानान्तरित कर देते हैं। प्रत्येक प्लेट में पोषण हेतु थाइमोसाइट्स भी मिलायी जाती है। इस प्रकार क्लोन की कोशिकाओं के संवर्धन को बनाये रखा जाता है या परिरक्षित रखा जाता है। यह क्रिया दो सप्ताह में पूर्ण होती है। इसके बाद प्रत्येक 2 से 3 दिनों बाद 50-70% क्लोन कोशिकाओं से इनको पृथक कर नयी प्लेट्स में रखते हैं अन्यथा इसमें वृद्धि दर एवं विभाजन दर घटने लगती है एवं प्रतिरक्षी बनाने क्रिया बन्द हो जाती है।
  4. प्रत्येक दो सप्ताह बाद यह क्रिया दोहरायी जाती है। कुछ पैतृक क्लोन कोशिका या हाइब्रिडोमा कोशिकाओं को फ्रीजर (freezer) में परिरक्षित बनाये रखा जाता है ताकि समय-समय पर इन्हें निकाल कर संवर्धित किया जा सके। कुछ क्लोन्स को तरल नाइट्रोजन में परिरक्षित किया जाता है।
  5. इन क्लोन्स का परीक्षण करके यह निश्चित किया जाता है किये वास्तविक प्रतिजन के प्रति अनुक्रिया करते हैं या नहीं, जो इस परीक्षण में सफल हो जाते हैं इनको अलग कर संवर्धन किया जाता है एवं इनसे एक क्लोनी प्रतिरक्षियाँ प्राप्त की जाती है।
  6. एक क्लोनी प्रतिरक्षियों का उत्पादन किया जाना

(Production of monoclonal antibodies)

  1. उन क्लोन कोशिकाओं को जो एक क्लोनी प्रतिरक्षियाँ उत्पन्न करती है अन्य मूसे की देह में निवेशित करा दिया जाता है। ये मूसे में अबुर्द या हाइब्रिडोमा बनाती हैं। अबुर्द की कोशिकाएँ प्रतिरक्षियों का स्त्रावण करती है जो मूसे की उदर गुहा में उपस्थित तरल या एसाइट्स तरल (ascites fluid) में एकत्रित हो जाती है। इस तरल में से एक क्लोनी प्रतिरक्षियों को पृथक कर लिया जाता है। इन्हें आवश्यकता नहीं होने पर निम्न ताप पर फ्रीजर में संग्रहित किया जाता है।
  2. एक क्लोनी प्रतिरक्षियों के उत्पादन के पश्चात् इनका अनेक तकनीकों द्वारा ( assayed ) किया जाता है। ये तकनीक निम्नलिखित है-

(i) प्रवाह कोशिका मापन (Flow cytometry) (ii) कोशिका आविषालुता (Cytotoxicity)

(iii) किवण्क युग्मित प्रतिरक्षी अवशोषी आमापन

(Enzyme-linked immuno absorbant assay) (ELISA)

(iv) प्रतिरक्षी प्रतिदीप्ति (immuno fluorescence)

(v) विकिरण प्रतिरक्षी आमापन (Radio immuno assay) (RIA)

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