हिंदी माध्यम नोट्स
समसूत्री विभाजन (mitosis meaning in hindi) , समसूत्री कोशिका विभाजन की खोज , क्रिया विधि , प्रकार
(mitosis meaning in hindi) समसूत्री कोशिका विभाजन की खोज , क्रिया विधि क्या है ? , प्रकार , समसूत्री विभाजन किसे कहते है ? परिभाषा , प्याज जड़ टिप समसूत्री विभाजन :-
समसूत्री विभाजन
यह विभाजन शरीर के वृद्धि अंगों की कायिक कोशिकाओं में होता है। वास्तव में यह केन्द्रक का विभाजन है। समसूत्री विभाजन में एक कोशिका विभाजित होकर दो कोशिकाएं बनाती है। प्रत्येक विभाजित कोशिका में गुणसूत्रों की संख्या पैतृक कोशिका के गुणसूत्रों की संख्या के बराबर होती है। इस विभाजन से जीव-जन्तुओं के शरीर की वृद्धि होती है।
- सजीवों में घाव भरना एवं अंगों का पुनरूद्भवन इसी विभाजन के परिणाम स्वरूप होता है।
समसूत्री विभाजन (mitosis) :
mitos = धागा
osis = अवस्था
इसे अप्रत्यक्ष कोशिका विभाजन अथवा कायिक कोशिका विभाजन अथवा सूत्रीय विभाजन भी कहते है। इसमें परिपक्व कायिक कोशिका के विभाजन से बनी पुत्री कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या स्थिर रहती है। गुणसूत्र की यह संख्या जनक कोशिका के समान होती है अत: इसे सूत्रीय विभाजन कहते है।
समसूत्री विभाजन की खोज : पादप कोशिका में , समसूत्री विभाजन की खोज सर्वप्रथम स्ट्रासबर्गर (1875) ने की और जन्तु कोशिका में इसकी खोज फ्लेमिंग (1879) ने की और 1882 में इसे माइटोसिस नाम दिया।
प्राप्ति : समसूत्री विभाजन कोशिका विभाजन की सामान्य विधि है। यह जंतुओं और पौधों की कायिक कोशिकाओ में पाया जाता है। इसलिए इसे कायिक विभाजन के रूप में भी जाना जाता है। पादपों में समसूत्री विभाजन विभाज्योतक कोशिकाओ में होता है।
उदाहरण : जड़ शीर्ष और तना शीर्ष
समसूत्री विभाजन की क्रिया विधि : यह दो चरणों में पूर्ण होती है :
कैरियोकाइनेसिस : कैरियो = केन्द्रक , काइनेसिस = गति।
यह केन्द्रक का विभाजन है। यह शब्द श्नीडर (1887) ने दिया।
कैरियोकाइनेसिस सम्पूर्ण विभाजन का 5 से 10% (छोटी अवस्था) समय लेती है। यह चार अवस्थाओं से मिलकर बनी होती है।
जैसे – प्रोफेज , मेटाफेज , एनाफेज , टीलोफेज।
- प्रोफेज: यह कैरियोकाइनेसिस की सबसे लम्बी अवस्था है।
- इसमें क्रोमेटिन फाइबर मोटे और छोटे होकर गुणसूत्र का निर्माण करते है। जो एक दूसरे पर अतिव्यापित हो सकते है और ऊन की गेंद के समान दिखाई देते है। जैसे – स्प्रिम अवस्था।
- प्रत्येक गुणसूत्र लम्बवत दो क्रोमेटिड्स में विभाजित होता है , जो सेन्ट्रोमियर से जुड़े रहते है।
- केन्द्रक कला विघटित होना प्रारंभ कर देती है। डाइनोफ्लैजिलेट इसका अपवाद है।
- केंद्रिका विघटित होना प्रारंभ कर देती है।
- कोशिकाएँ विस्कस , रीफ्रेक्टिव और अंडाकार हो जाती है।
- स्पिंडल निर्माण प्रारंभ हो जाता है।
- कोशिका कंकाल , गोल्जी कॉम्प्लेक्स , ER आदि अदृश्य हो जाते है।
- जन्तु कोशिकाओं में , सेंट्रीयोल विपरीत दिशाओं में गति करते है।
- लैम्पब्रुश गुणसूत्रों का अच्छा अध्ययन किया जा सकता है।
- गुणसूत्र पर छोटी गोलाकार संरचनाओं को क्रोमोमीयर कहते है।
- स्पिंडल का निर्माण (जन्तु कोशिकाओं में) सेन्ट्रोयोल अथवा पादप कोशिकाओं में MTOC (माइक्रोट्यूब्यूल ऑर्गेनाइजिंग सेंटर) से होता है। पादप कोशिकाओं में इसे क्रमशः एनेस्ट्रल तन्तु कहते है।
2. मेटाफेज
- गुणसूत्र अत्यधिक स्पष्ट हो जाते है। अर्थात – इनके आकार का मापन किया जा सकता है।
- एक रंगहीन , फाइब्रस , द्विध्रुवीय स्पिंडल दिखाई देता है।
- स्पिंडल फाइबर 97% टुब्यूलिन प्रोटीन और 3% RNA के बने होते है।
- स्पिंडल के मध्यवर्ती तल की ओर गुणसूत्रों की गति कांग्रीशन कहलाती है। गुणसूत्र अपनी भुजाओं के साथ ध्रुवो की ओर और सेन्ट्रोमीयर मध्य रेखा की ओर व्यवस्थित हो जाते है।
- स्पिंडल फाइबर काइनेटोकोर से जुड़ जाते है।
- गुणसूत्रों की आकारिकी के अध्ययन के लिए मेटाफेज सबसे अच्छी अवस्था है।
- स्पिंडल में दो प्रकार के फाइबर होते है।
- सतत फाइबर – एक ध्रुव से दुसरे ध्रुव तक गति करते है।
- असतत फाइबर – ध्रुव से सेन्ट्रोमीयर तक गति करते है।
3. एनाफेज
- सेंट्रोमीयर के मध्य से अलग होने पर दोनों क्रोमेटिड्स पृथक हो जाते है।
- प्रतिकर्षित बल के कारण दोनों क्रोमेटिड्स विपरीत ध्रुवो की ओर गति करते है। इसे एनाफेजिक गति कहते है।
- एनाफेजिक गति सतत् फाइबर के पुन: बहुलकीकरण और गुणसूत्रीय फाइबर के अबहुलकीकरण के द्वारा होती है। इन्टरजोनल फाइबर का निर्माण और प्रसार होता है।
- गुणसूत्रों की गति के दौरान गुणसूत्र की विभिन्न आकृतियाँ V , J , I अथवा L स्पष्ट हो जाती है जैसे – मेटासेंट्रिक , एक्रोसेंट्रिक आदि।
- सेन्ट्रोमीयर मध्य रेखा की ओर मुख किये होते है।
- क्रोमेटिड्स 1 um/मिनिट की स्पीड से ध्रुवों की ओर गति करते है। एक गुणसूत्र को मध्य रेखा से ध्रुव तक ले जाने के लिए लगभग 30 ATP अणुओं का उपयोग किया जाता है।
- क्रोमोसोम की आकृति का सबसे अच्छा अध्ययन एनाफेज में किया जाता है।
4. टीलोफेज
- स्पिंडल फाइबर के द्वारा गुणसूत्र ध्रुवों पर पहुंचकर दो समूह निर्मित करते है।
- गुणसूत्र अकुंडलित होना प्रारंभ कर देते है और क्रोमेटिन जाल का निर्माण करते है।
- केन्द्रक कला और केंद्रिका पुनः दिखाई देने लगते है।
- दो पुत्री केन्द्रकों का निर्माण होता है।
- गोल्जी कॉम्प्लेक्स और ER पुनः निर्मित होते है।
- इस अवस्था को रिवर्स प्रोफेज भी कहते है।
सायटोकाइनेसिस
kitos = कोशिका , kinesis = गति
इसमें कोशिकाद्रव्य का विभाजन होता है। यह शब्द व्हाइटमैन (1887) ने दिया। सायटोप्लाज्म का विभाजन दो बराबर भागों में होता है। साइटोकाइनेसिस दो विधियों के द्वारा होती है :
- कोशिका खाँच विधि: यह जन्तु कोशिका का विशेष लक्षण है। दृढ़ कोशिका भित्ति के अभाव के कारण अधिक लचीली कोशिका झिल्ली , कोशिका की बाहरी परत का निर्माण करती है। इनमे मध्यवर्ती अथवा केन्द्र स्थान पर संकीर्णन बनकर धीरे धीरे अन्दर की ओर बढती हुई दो संतति कोशिकाओं में पृथक कर देती है।
- कोशिका पट्टी विधि: यह पादप कोशिकाओं का विशेष लक्षण है। गोल्जी कॉम्पलेक्स से उत्पन्न वेसाइकल एकत्रित होकर फ्रेग्मोप्लास्ट का निर्माण करते है। कोशिका पट्टी पहले मध्य में और बाद में परिधि की ओर (सेंट्रीफ्युगल प्लेट निर्माण) बनती है। कोशिका भित्ति पदार्थो का कोशिका पट्टी के दोनों तरफ जमा होने लगता है और दो पुत्री कोशिकाओं का निर्माण होता है।
समसूत्री कोशिका विभाजन का महत्व
- इसके द्वारा पुत्री कोशिकाओ में गुणसूत्रों की संख्या और आनुवांशिकता स्थिर बनी रहती है। जिससे जीव की रेखीय आनुवांशिकता नियंत्रित रहती है। सभी कोशिकाएं समान आनुवांशिक घटकों युक्त होती है।
- यह क्षतिग्रस्त भागों की मरम्मत और पुर्नजनन और घावों को भरने के लिए नयी कोशिकाएं प्रदान करता है।
- यह विखण्डन , मुकुलन , तना कर्तन आदि के द्वारा अलैंगिक प्रजनन में सहायता करता है।
- कायिक विभिन्नताएं जब वर्धी प्रवर्धन द्वारा नियंत्रित होती है , तब यह जाति निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
समसूत्री विभाजन के प्रकार
- अन्त: केन्द्रकीय अथवा प्रोमाइटोसिस: इसमें केन्द्रकीय कला विघटित नहीं होती और स्पिंडल का निर्माण केन्द्रकीय कला के अन्दर होता है। उदाहरण : प्रोटोजोआ (अमीबा) और यीस्ट।
इसमें केन्द्रक के अन्दर सेंट्रीयोल भी उपस्थित होता है।
- अतिरिक्त केन्द्रकीय अथवा यूमाइटोसिस: इसमें केन्द्रक कला नष्ट हो जाती है और स्पिंडल का निर्माण केन्द्रक कला के बाहर होता है। उदाहरण : पादपों और जंतुओं में।
- एण्डोमाइटोसिस: गुणसूत्र और उनका डीएनए द्विगुणित हो जाता है , लेकिन यह पृथक होने में असफल हो जाता है जो कि बहुगुणित को बढाता है। उदाहरण : मनुष्य के यकृत में द्विगुणित (2N) और बहुगुणित (4N) दोनों प्रकार की कोशिकाओं को रिर्पोट किया गया है।
इसे एण्डोडुप्लीकेशन और एण्डोपोलीप्लॉइडी भी कहा जाता है।
- डाइनोमाइटोसिस: जिसमे केन्द्रकीय आवरण बना रहता है , और माइक्रोटुब्यूलर स्पिंडल का निर्माण नहीं होता है। गतिशीलता के दौरान गुणसूत्र केन्द्रकीय कला से जुड़ जाते है।
माइटोटिक विष
वे एजेंट जो कोशिका विभाजन को रोकते है।
- एजाइड्स और सायनाइड: प्रोफेज को रोकते है।
- कोल्चिसिन: मेटाफेज पर स्पिंडल निर्माण को रोकता है।
- मस्टर्ड गैस: गुणसूत्रों को आपस में जोडती है।
- कैलोन्स: इन्हें सर्वप्रथम लोरेन्स और बुलघ (1960) ने रिपोर्ट किया था। ये स्वस्थ कोशिकाओं के अतिरिक्त कोशिकीय द्रव द्वारा स्त्रावित पेप्टाइड और ग्लाइकोप्रोटीन्स है। जो कोशिकीय विभाजन को रोकते है।
कैरियोकोरियोसिस
यह कवक में माइटोसिस का एक प्रकार है। जिसमे अंतरकेन्द्रकीय केन्द्रक खाँच निर्माण द्वारा विभाजित होता है।
जन्तु कोशिका और पादप कोशिका में अंतर :-
जंतु कोशिका | पादप कोशिका |
1. सेंट्रीयोल स्पिंडल ध्रुव की ओर स्थित होते है | | स्पिंडल ध्रुव की ओर सेंट्रीयोल अनुपस्थित होते है | |
2. एस्टर का निर्माण होता है (एम्फीएस्टरल) | एस्टर का निर्माण नहीं होता है (एनएस्टरल) |
3. सायटोप्लाज्म की खांच के बाद साइटोकाइनेसिस | अधिकतर कोशिका प्लेट के बनने के बाद साइटोकाइनेसिस |
4. खांच अभिकेन्द्रित (केंद्र की ओर) तक विस्तृत होती है | | कोशिका प्लेट अपकेन्द्रीय (केंद्र से बाहर की ओर) वृद्धि करती है | |
5. माइक्रोफिलामेंट रिंग विदलन में सहायता करती है | सायटोकाइनेसिस में माइक्रोफिलामेंट की कोई भूमिका नहीं है | |
6. यह सभी उत्तकों के पास होती है | | मुख्य रूप से मेरिस्टेम में होती है |
7. माइटोसिस के समय कोशिका गोल हो जाती है और कोशिकाद्रव्य अधिक चिपचिपा होता है | | माइटोसिस के समय कोशिका अपना रूप ओर स्वभाव नहीं बदलती है | |
8. स्पिंडल की मध्य रेखा पर मध्यकाल उत्पन्न होता है | | स्पिंडल की मध्य रेखा फेरमोप्लास्ट में परिवर्तित हो जाते है | |
9. पुत्री कोशिकाओं के मध्य अंतराकोशिकीय अवकाश दिखाई देने लगते है | | मध्य पटलिका के द्वारा कोशिका चिपकी रहती है | |
10. जन्तु माइटोसिस कुछ माइटोजेन्स के द्वारा नियंत्रित होती है | | पादप माइटोसिस साइटोकाइनिन हार्मोन के द्वारा नियंत्रित होती है | |
अर्द्धसूत्री विभाजन
यह विभाजन केवल लैंगिक जनन कोशिकाओं में होता है। इस विभाजन से एक कोशिका से चार कोशिकाएं बनती हैं जिनमें गुणसूत्रों की संख्या पैतृक कोशिका की आधी होती है। इस विभाजन में केन्द्रक दो बार विभाजित होता है। इसे न्यूनीकरण विभाजन भी कहते हैं। अर्द्धसूत्री विभाजन का वास्तविक महत्व
-गुणसूत्रों की संख्या का न्यूनीकरण
-आनुवंशिक पदार्थों (क्रोमैटीन) की अदला-बदली
ऽ समसूत्री विभाजन करीब पांच चरणों में पूरा होता हैः
इंटरफेज, 2. प्रोफेज, 3. मेटाफेज, 4. एनाफेज, 5. टेलोफेज
ऽ कोशिका विभाजन में एक (2छ) क्रोमोसोम वाली कोशिका का विभाजन प्रोफेज में पूरा होता है।
ऽ प्रोफेज की लेप्टोटीन अवस्था में क्रोमोसोम एक-दूसरे के निकट आकर जोड़े बनाते हैं।
ऽ जाइगोटीन अवस्था में प्रत्येक क्रोमोसोम एक दूसरे के निकट आकर जोड़े बनाते हैं।
ऽ डाइकाइनेसिस अवस्था में केन्द्रक झिल्ली का लोप होने लगता है।
ऽ मुकुलन के अंतर्गत कोशिका की एक या एक से अधिक छोटी संरचनाएं बन जाती हैं एवं केन्द्रक समसूत्री विभाजन द्वारा
विभाजित होकर दो भागों में बट जाता है। उदाहरण- खमीर
Recent Posts
मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi
malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…
कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए
राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…
हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained
hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…
तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second
Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…
चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi
chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…
भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi
first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…