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Categories: Biology

पौधों के द्वारा खनिजों का अवशोषण कैसे होता है mineral salt absorption in plants in hindi

mineral salt absorption in plants in hindi पौधों के द्वारा खनिजों का अवशोषण कैसे होता है ?

 खनिज लवण अंतर्ग्रहण (Mineral Uptake)

परिचय (Introduction)

पादप विभिन्न खनिज तत्व मृदा से ही ग्रहण करते हैं। जहाँ ये खनिज तत्व विलयन के रूप में पाये जाते है। प्रारंभ में माना जाता था कि लवणों का अवशोषण जल के साथ ही निष्क्रिय विधि से हो जाता है परन्तु गहराई से अध्ययन से ज्ञात होता है कि जलावशोषण एवं लवण अवशोषण दोनो भिन्न प्रक्रियाएं है। लवण अवशोषण की क्रियाविधि समझने के लिए अनेक वैज्ञानिकों ने विभिन्न अवधारणाएं दी हैं परन्तु अभी तक इस बारे में जानकारी पूरी नहीं हो पाई है।

मृदा एवं मृदा विलयन (Soil and soil solution)

मृदा विभिन्न भौतिक, रासायनिक एवं जैविक पदार्थों का विषमांगी जटिल (hetrogenous complex) मिश्रण है जिसमें पदार्थ ठोस, तरल, एवं गैसीय अवस्था में पाये जाते हैं। मृदा में ठोस अवस्था में विभिन्न अकार्बनिक कण एवं कार्बनिक पदार्थ विभिन्न पोषक तत्वों के स्रोत के रूप में कार्य करते हैं।

मृदा की जलीय अवस्था में जल में विलेय विभिन्न लवणों के घटक आयन के रूप में रहते व गति करते हैं। अनेक गैसे जैसे ऑक्सीजन, कार्बन डाइआक्साइड इत्यादि भी विलयन में घुली होती है। परन्तु अधिकांशतः पादप मृदा में उपस्थिति वायु से ही गैस ग्रहण करते हैं।

मृदा कण, खनिज पोषक तत्व एवं उनकी उपलब्धता (Soil particles, mineral and their availability)

मृदा में मृदा के सूक्ष्म कण अथवा क्रिस्टल “मिसेल” (micelle) कहलाते हैं जो कोलायडी (colloidal ) स्वरूप में उपस्थित होते हैं। इन अकार्बनिक एवं कार्बनिक सूक्ष्म कणों की सतह पर ऋणात्मक आवेश (negative charge) होता है। ये धनावेशित आयनों जैसे K+, NH4+ को आकर्षित करते हैं। मिट्टी में उपस्थित विभिन्न धनायन (cations) यथा K+, Mg++, Ca+, Mg++,Fe++ एवं ऋणायन PO43, BO32, SO22 – S2- CH इत्यादि मृदा कणों से अदृढ़ अथवा दृढ़ रूप से आबद्ध अथवा अधिशोषित (adsorbed) रहते हैं। जब मृदा विलयन में लवणों की सांद्रता कम हो जाती है तब अदृढ़ रूप से आबद्ध आयन सरलता पूर्वक अलग हो जाते है। परन्तु कुछ आयन जैसे K+ आयन दृढ़ता पूर्वक अधिशोषित रहते हैं तथा निक्षालन (leaching) के दौरान अथवा इनकी सांद्रता कम होने पर भी इन्हें स्थानच्युत (dissociate) नहीं किया जा सकता है। ये आयन विनिमय के द्वारा ही इन कणों से मुक्त (release) होते हैं। ऐसे धनायन जिनकी मृदा कणों में उपस्थित ऋणायनों से इनकी अपेक्षा अधिक बंधुता (affinity) होती है वे ही इन्हें विस्थापित कर सकते हैं। यह प्रक्रिया धनायन विनिमय (cation exchange) कहलाती है। मिट्टी की किन्ही धनायनों को ग्रहण करने व विनिमय करने की क्षमता धनायन विनिमय क्षमता (cation exchange capacity) कहलाती है जो मृदा कणों की प्रकृति पर निर्भर करती है। छोटे कण युक्त मृदा जैसे चिकनी मिट्टी (clay) में कणों का पृष्ठ क्षेत्रफल अधिक होने के कारण धनायन विनिमय क्षमता अधिक होती है।

अधिकांशतः ऋणायन जैसे NO3, CF- इत्यादि मृदा कणों पर उपस्थित, ऋणात्मक आवेश के कारण इनसे विकर्षित (repelled) रहते हैं तथा विलयन रूप में ही रहते है। ये सरलता पूर्वक पादप मूल द्वारा अवशोषित कर लिये जाते हैं। नाइट्रेट (NO3)अधिक चलायमान होते हैं तथा निक्षालन के प्रति संवेदी होते हैं जबकि PO43, जैसे आयन एल्यूमिनियम (Al3) एवं आयरन (Fe2+ ) के माध्यम से मृदा कणों से जुड़े रहते हैं। ये इन से संलग्न OH- के बदले में मृदा कणों से संलग्न होते हैं। पादपों में लवण आयन रूप में ही प्रवेश करते है। सामान्यतः एक संयोजी (monovalent) आयन (जैसे K * एवं Nat) द्विसंयोजी (Ca++, Mg++) अथवा बहुसंयोजी (Al3+, Fe3+ ) आयन की अपेक्षा सरलता पूर्वक प्रवेश कर सकते हैं।

कोशिका रस एवं मृदा में लवणों के विलयन के संयोजन व उसमें परिवर्तनों के द्वारा संतुलन स्थापित होता है। धनायनों का अधिक अधिशोषण होने पर कोशिकाएं कार्बनिक अम्ल बनाती है। इससे धनायनों को संतुलित करने हेतु ऋणायन उपलब्ध हो जाते हैं तथा इनके H+ आयन धनायनों की क्षतिपूर्ति करने के लिए बाहर चले जाते हैं।-

तालिका- 1: अधिशोषण एवं अवशोषण में अंतर (Difference between adsorption and absorption)

क्र सं.

 

अधिशोषण

 

अवशोषण

 

‘अधिशोषण किसी गैस अथवा लवणों के सम्पर्क सतह पर एकत्रित होने की प्रक्रिया है।

 

इस प्रक्रिया मे अणु अथवा आयन सतह को भेदकर दूसरी ओर भीतरी जगह में पहुँच जाते हैं।

 

यह सतह पर होने वाली भौतिक रासायनिक प्रक्रिया है तथा पादपों में मुख्यतः धनायन इससे से संबंधित होते.

हैं।

 

यह सतह पर होने वाली प्रक्रिया नहीं हैं। वह उपापचयी वह उपापचयी क्रिया है जो मुख्यतः कोशिकाओं के अन्दर पदार्थों के एकत्रण से संबंधित होते है। |

 

सामान्यतः इससे ऊर्जा निकलती है।

 

इससे ATP के रूप में उर्जा की आवश्यकता होती है।

 

यह जल के अंतः शोषण (imbibition ) तथा जीवद्रव्य की पारगम्यता के लिए महत्वपूर्ण है।

 

यह लवणों एवं जल के अवशोषण के लिए महत्वपूर्ण है।

 

 

मूल पर खनिज लवण अवशोषण के लिए विस्थल (Site for mineral salt absorption in roots)

मूल सतह पर लवणों के अवशोषण के लिए उत्तरदायी स्थल के बारे में भिन्न-भिन्न धारणाएं हैं। बार युसूफ एवं साथियों (Bar Yusef et al. 1972) के अनुसार लवणों का अवशोषण मूल शीर्ष पर ही होता है जबकि नाई एवं टिंकर (Nye and Tinker, 1977) के अनुसार जड़ की पूरी सतह से लवणों का अवशोषण होता है।

मूल तंत्र में तरुण जड़ में विभिन्न क्षेत्र विभेदित किये जा सकते हैं मूलगोप (root cap), मूल शीर्ष (root apex) में शांत क्षेत्र (quiscent zone), विभज्योतकी क्षेत्र (meristematic zone), दीर्घीकरण क्षेत्र, elongation zone), मूल रोम क्षेत्र, (root hair zone) एवं परिपक्वन क्षेत्र (maturation zone)।

सामान्यतः खनिज लवणों का मूल रोम द्वारा अवशोषण नहीं होता बल्कि मूल की अधिचर्म कोशिकाओं के द्वारा होता है। कुछ खनिजों का अवशोषण मूल की पूरी सतह से होता है। (जैसे पोटाशियम, नाइट्रेट, अमोनियम एवं फास्फेट इत्यादि) लेकिन मक्का में K+ एवं NO, आयनों का सर्वाधिक अवशोषण दीर्घीकरण क्षेत्र में होता है तथा NH का सर्वाधिक अवशोषण मूल शीर्ष पर होता है।

मूल कोशिका संरचना एवं खनिज लवणों का अवशोषण

(Structure of root cells and mineral salt absorption)

पादप की मूल कोशिका तथा अधिकांश कोशिकाएं कोशिकाभित्ति से घिरी रहती हैं जो मुख्यतः सेलुलोज से बनी होती है। कोशिका भित्ति के अन्दर की ओर जीवद्रव्य झिल्ली (plasma ‘membrane) होती है जो जीवद्रव्य को घेरे रहती हैं। सामान्यतः : जीवद्रव्य पारिधीय (peripheral) होता है तथा अन्दर की ओर रसधानी (vacuole) होती है। जो रसधानी झिल्ली (tonoplast) से घिरी रहती है। रसधानी में विभिन्न पदार्थ जैसे खनिज लवण, प्रोटीन, शर्करा, अमिनों अम्ल इत्यादि कार्बनिक पदार्थ विलेय अवस्था में पाये जाते हैं। मृदा विलयन में उपस्थित लवणों अथवा आयनों को तीन परतों को पार करना पड़ता है:

(i) कोशिकाभित्ति (Cell wall) जो सभी लवणों एवं पदार्थों के लिए पारगम्य होती है एवं लवणों व आयनों व अन्य पदार्थों के आवागमन कोई अवरोध नहीं देती।

(ii) कोशिका झिल्ली (Cell membrane) एवं

(iii) टोनोप्लास्ट अथवा रसधानी झिल्ली (tonoplast membrane)- ये दोनों परतें पदार्थों के लिए वरणात्मक पारगम्य (selectively permeable) होती हैं।

कोशिका झिल्ली एवं रसधानी झिल्ली दोनों ही जैविक झिल्लियां हैं जो मुख्यतः दो परतीय लिपिड तथा विभिन्न प्रकार की संरचनात्मक प्रोटीन से निर्मित होती हैं

झिल्ली वाहक प्रोटीन (Membrane transport proteins)

जैविक झिल्ली में कुछ वाहक प्रोटीन होते हैं जो आयरन तथा अन्य ध्रुवीय अणुओं को झिल्ली के एक ओर से दूसरी ओर ले जाने में मदद करते हैं। इन वाहक प्रोटीनों को तीन समूहों में बांटा जा सकता है। (1) चैनल प्रोटीन (channels), (2) वाहक प्रोटीन (carriers ) एवं ( 3 ) पम्प (pumps)

ये सभी प्रोटीन विलेय विशिष्टता (solute specificity) दर्शाते हैं अर्थात विशिष्ट प्रोटीन विशिष्ट लवण अथवा विलेय के स्थानांतरण में उपयोगी होती है, इसीलिए इनमें बहुत विभिन्नता पाई जाती हैं। उदाहरण के तौर पर हिमोफिलस इम्फ्लूएजी (Haemophilus influenzae) में लगभग 10% जीन इस प्रकार की प्रोटीन के है जो झिल्ली के आर पार विभिन्न अणुओं के स्थानांतरण में उपयोगी होती हैं। अनेक बार एक विशेष प्रोटीन विशिष्ट अणु के साथ-साथ उसके समूह के लिए विशिष्टीकृति (specified) होती है जैसे K+ वाहक प्रोटीन K+ के साथ-साथ इसी प्रकार के आयन यथा Nat, आदि को भी स्थानांतरित सकती है ।

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