micturition in hindi , मृत्रण किसे कहते हैं , मृत्रण की परिभाषा बताइए क्या होती है संरचना प्रक्रिया

जानिये micturition in hindi , मृत्रण किसे कहते हैं , मृत्रण की परिभाषा बताइए क्या होती है संरचना प्रक्रिया ?

मूत्र का संगठन (Composition of urine)

सामान्य व्यक्ति द्वारा 24 घण्टे में मूत्र को शरीर से बाहर निकाले जाने वाली मात्रा अनेक कारकों पर निर्भर करती है। इनमें शरीर में ली जाने वाली पानी की मात्रा, मानसिक एवं शारीरिक क्रियाशीलता, वातावरण, ताप एवं भोजन की मात्रा अधिक प्रमुख है। सामान्य व्यक्ति के मूत्र का संगठन निम्नलिखित होता है :

मूत्र का पीला रंग एक रंजक (pigment) यूरोक्रोम (urochrome) की उपस्थिति के कारण होता है। इसका निर्माण हीमोग्लोबिन के विखण्डन के फलस्वरूप होता है। उत्सर्जन तंत्र से सम्बन्धि अनेक विकारों में मूत्र में लाल रूधिर कोशिकाएँ, ल्यूकोसाइट्स, प्रोटीन्स इत्यादि भी देखे जाते हैं। उत्सर्जन तंत्र में संक्रमण (infection) के फलस्वरूप नेफ्रेराइटिस (nephritis), पॉलीनेफ्रेराइटिस (polynephritis), सिस्टिस (cystitis), रीनल स्टोन (renal stone ), नेफ्रोसिस (nephrosis), यूरेमिया (ureamia) एवं पॉलीयूरिया (polyurea) इत्यादि से घातक स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

मूत्र का निर्माण का नियंत्रण (Regulation of urine formation)

मूत्र निर्माण की क्रिया तंत्रिका तंत्र (nervous system) एवं अन्त स्त्रावी तंत्र (endocrine system) द्वारा नियंत्रित रहती है।

  1. तंत्रिका तंत्र द्वारा नियंत्रण (Nervous control) : वृक्क केन्द्रीय तंत्रिका तंत्रिकाओं से सम्बन्धित होती है। केन्द्रीय तंत्रिका यंत्र वृक्कों को संवेदनाएँ प्रसारित करते हैं। तंत्रिका द्वारा प्रसारित संवेदना वृक्कीय वाहिनियों (renal vessels) के व्यास को प्रभावित करती है जिससे केशिकागुच्छ या ग्लोमेरूलस की सतह एवं मूत्र नलिका की उपकला कोशिकाओं के अवशोषण की क्रिया प्रभावित होती है। इससे मूत्र निर्माण की क्रिया प्रभावित होती हैं।
  2. हारमोन द्वारा नियंत्रण (Hormonal control) : मूत्र निर्माण की क्रिया निम्न हामानी द्वारा प्रभावित होती है :

(i) एल्डोस्टिरॉन या मिनरेलोकॉर्टीकोइडस (Aldosterone or Mineralo corticoids) : यह हार्मोन कॉट्रेक्टस के जोना ग्लोमेरूलोसा (zona glomerulosa) वाले भाग से स्त्रावित किया जाता है। यह हार्मोन वृक्कीय निस्पंद (renal filtate) से सोडियम आयनों के अवशोषण को बढ़ाता है

चित्र 5.22 : रेनिन एंजिओटेन्सिनोजन एन्जिओटेन्सिन ऐल्डोस्टिरॉन तंत्र

जिससे रूधिर प्लाज्मा में सोडियम आयनों की मात्रा में वृ)ि होती है। सोडियम का अवशोषण क्लोराइड के साथ होता है। इसी प्रकार यह हार्मोन पोटेशियम आयनों के मूत्र के साथ निष्कासन को भी बढ़ाता है। एल्डोस्टिरॉन की अनुपस्थिति में मूत्र के द्वारा सोडियम एवं क्लोराइड का निष्कासन अधिक मात्रा में होता है जिससे रूधिर में इन आयनों की कमी हो जाती है। इससे रक्त दाब कम हो जाता है। इसी तरह एल्डोस्टिरॉन की कमी के कारण पोटेशियम आयनों का निष्कासन पूर्णरूप से नहीं हो पाता है जिससे रूधिर में पोटेशियम आयनों की मात्रा में वृद्धि हो जाती हैं। इस प्रकार उत्पन्न स्थिति से एडिसन का रोग (Addison’s disease) हो जाता है।

एल्डोस्टिरॉन का स्त्रावण रेनिन- एन्जीओटेंसिन क्रिया (rennin angiotensin mechanism) से भी प्रभावित होता है। वृक्क नलिका की पोडोसाइट कोशिकाओं से रेनिन नामक एन्जाइम का स्त्रावण होता है। यह एन्जाइम प्लाज्मा में उपस्थित प्रोटीन एन्जीओटेंसिनोजन ( angiotensiogen) को एन्जीओटेंसिन | (angiotensin 1) में परिवर्तित कर देता है।

इस प्रकार प्राप्त एजिओटेसिन || अन्त में एक परिवर्तनी एन्जाइम (converting enzyme) द्वारा एजिओटेसिन II में बदल जाता है। यह पदार्थ एल्डोस्टिरॉन के निर्माण को बढाता है। यह एक वाहिका संकीर्णन (vaso constrictor) के रूप में भी कार्य करता है।

(ii) एन्टीडाइयूरेटिक (Antidiuretic) या वेसोप्रोसिन (Vasopressin) हार्मोन : यह हार्मोन पीयूष ग्रन्थि (pituitary gland) के पश्च भाग द्वारा स्त्रावित किया जाता है। यह हार्मोन मूत्र में जल की मात्रा को नियंत्रित करता है। यह मूत्र नलिका के दूरस्थ कुण्डलित भाग एवं संग्रह नलिका के

चित्र 5.23 मूत्र सांद्रण का हार्मोन द्वारा नियंत्रण

जलीय पारगम्यता (water permeability) को नियंत्रित करता है। यह हार्मोन मूत्र नलिका के इन दोनों भागों से पानी के अवशोषण को बढ़ा देता है। इस हार्मोन के कारण अति परासरणीय (hypertonic) एवं अधिक सान्द्र (highly concentrated) मूत्र का निर्माण होता है। इस हार्मोन के कम स्त्रावण होने पर मूत्र नलिका में उपस्थित वृक्कीय निस्पंद से जल का अवशोषण पूरी तरह नहीं हो पाता है। इससे मूत्र में जल की मात्रा बढ़ जाती है तथा यह अल्प परासरणीय (hypotonic) बनता है इस स्थिति को पॉलीयूरिया (polyurea) कहा जाता है तथा यह विकास डायबिटिज इन्सिपिडस (diabetes insipidus) कहलाता है।

(iii) पैराथॉरमोन (Parathormone) : यह हार्मोन पैराथाइरॉइड ग्रन्थि द्वारा स्त्रावित होता है जिससे

यह हार्मोन वृक्कीय निस्पंद से कैल्शियम आयनों के अवशोषण को बढ़ाता मूत्र के साथ कम कैल्शियम आयन शरीर से बाहर निकाले जाते हैं, इसी प्रकार यह हामान वृक्काय निस्पंद में फॉस्फेट आयनों के अवशोषण को कम करता है जिससे अधिक फॉस्फेट आयन मूत्र के साथ से बाहर निकाले जाते हैं। यह हार्मोन

(iv) थाइरॉक्सिन (Thyroxine) : थायरॉइड ग्रन्थि द्वारा स्त्रावित होता है। नलिका से पानी के अवशोषण को कम करता है। इससे डाइयूरेसिस ( diuresis) या (polyurei) की स्थिति उत्पन्न होती है।

मृत्रण (Micturition)

शरीर में मूत्र को बाहर निकालने को क्रिया का मूत्रण (micturition) कहा जाता है। वृक्क श्रेणि (kidney pelvis) से मूत्र मूत्रनलिका की तरंगति (peristaltic movement) स मूत्राशय (urinary bladdar) में पहुँचता है। मूत्र नलिका का अन्तिम भाग प्रतिवर्त (reflex) को रोकने हेतु एक अवरोधिनी (sphincter) की तरह कार्य करता है। मूत्राशय मूत्र का संग्रह करने का तथा इसे निश्ि अन्तराल के पश्चात् बाहर निकालने का कार्य करता है। मूत्राशय में दो प्रतिवर्ती क्रियाएँ कार्य कर है। एक संग्रह प्रतिवर्त (storage reflex) होती है जो मूत्राशय को मूत्र संग्रह करने हेतु उत्तेजित कर है। दूसरी रिक्तन प्रतिवर्त (voiding reflex) होती है जो मूत्राशय को खाली करने हेतु प्रेरित करती है।

रीनल प्रेसर तंत्र या रेनिन एन्जियोटेन्सिन प्रक्रिया

(Renal pressor system or renin angiotensin mechanism)

स्तनियों में वृक्क कम रक्त दाब को बढ़ाने में सहायक होता है। जैसे ही हमारे शरीर का रक्त दाब कम होता है वृक्क के कार्टेक्स में स्थित जक्स्ट्राग्लोमेरूलर कोशिकाएँ रेनिन (renin) नामक एन्जाइम का स्त्रावण करती है जो वृक्कीय शिरा से रक्त में आ जाता है। रेनिन में यकृत में बनने (angiotensin-1) में बदल देता है। फेफड़ों की कोशिकाओं की एनजोथीलियल कोशिकाओं (endothetial cells) में बनने वाले एन्जाइम पेप्टाईज (peptidase) द्वारा एन्जियोटेन्सिन- I दो अमीनों | अम्ल निकाल कर एन्जियोटेन्सिन II में बदल जाता है। ऐन्जियोटेन्सिन II की दाबीय प्रक्रिया बहुत अधिक होती है।

इसके दो कार्य होते हैं

  1. एन्जियोटेन्सिन II हृदय स्पंदन के दर को बढ़ाता है तथा धमनियों को चौड़ा करता है इस ·

प्रकार रक्त दाब बढ़ जाता है।

  1. जब एन्जियोटेन्सिन II एडरीनल कॉटेक्स में पहुँचता है तो दूरस्थ कुण्डलित नलिका तथा संग्रह नलिका में जल तथा सोडियम के पुनरावशोषण को बढ़ाता है इस प्रकार शरीर में रक्त की मात्रा बढ़ जाती है जिससे रक्त दाब बढ़ जाता है।