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Categories: Biology

metabolism of carbohydrates in hindi कार्बोहाइड्रेट्स का उपापचय क्या है समझाइये

जाने metabolism of carbohydrates in hindi कार्बोहाइड्रेट्स का उपापचय क्या है समझाइये ?

(vii) डेक्स्ट्रान. (Dextran ) — यह यीस्ट (yeast) एवं जान आ (bacteria) में पाये जाने यह पॉलिसैकेराइड है।

केवल ग्लूकोज इकाइयों द्वारा बना होता है तथा अतिशाखत (highly branched ) होने के कारण यह ग्लाइकोजन से मिलता-जुलता है।

कुछ  जटिल पौलीसैकेराइड्स (Some complex polysaccharides) (i) म्यूकोपोलीसेकेराइड्स (Mucopolysaccharides है :

इनमें एमीनों शर्कराएँ तथा यूरेनिक (uranic) अम्ल पाये जाते हैं। इनके उदाहरण निम्नलिखित

(a) हायल्युरौनिक अम्ल (Hyluronic acid ) – यह एक लसलसा (viscous) पौलीसेकेराइड है जो N-एसीटाइल-ग्लूकोसैमाइन तथा ग्लुकुरोनि (glucoronic) अम्ल अवशेषों की श्रृंखला का बना होता है।

यह अम्ल संयोजी ऊत्तक (connective tissue) में पाया जाता है और एक प्रकार के अन्तरकोशिकीय (intercellular) सीमेन्ट का कार्य करता है।

चित्र 12.8 : हाइएल्यूरॉनिक अम्ल में उपस्थित इकाई

(b) कौन्ड्राइटिन सल्फेट (Chondroitin sulphate) – यह पौलीसैकेराइड कार्टिलेज में पाया जाता है।

एसीटाइल ग्लूकोमाइन के स्थान पर गैलेक्टोसेमाइन सल्फेट (galactosamine sulphate) पाया इसकी रचना हाइएल्युरौनिक एसिड के समान ही होती है, अन्तर केवल इतना होता है कि इसमें जाता है।

(c) हिपैरिन (Heparin) – यह एक शक्तिशाली थक्कारोधक (antihrombic) यूकोपौलीसैकेराइड है।

यह प्रोथ्रोम्बिन का थ्रोम्बन में बदलने से रोकता है।

इसके फलस्वरूप फाइब्रिनोजेन का फाइब्रिन में परिवर्तन रूक जाता है क्योंकि इस क्रिया के लिये थ्रोम्बिन एक उत्प्रेरक (catalyst) के रूप में आवश्यक होता है।

चित्र 12.9 : कॉण्ड्रारिन सल्फेट की एकल संरचना

(ii) ग्लाइको-अथवा म्यूकोप्रोटीन्स (Glyco-or- Mucoproteins)

ये प्रोटीन तथा पौलीसैकेराइड के बने हुए यौगिक होते हैं तो विभिन्न ऊत्तकों तथा विशेष रूप से श्लेष्मिक स्राव (catalyst) में पाये जाते हैं।

ओवोलब्युमिन (ovoalbumin), म्युसिन (mucin), फाइब्रिनोजन (fibrinogen), सीरम के गामा ग्लोब्युलन्स तथा मूत्र सम्बन्धी ग्लाइकोपेप्टाइड्स (urinary glycopeptides) इस समूह के सामान्य उदाहरण है।

कार्बोहाइड्रेट्स के जैविक महत्त्व (Biological significance of carbohydrates).

  1. कुछ जन्तुओं में कार्बोहाइड्रेट्स महत्त्वपूर्ण रचनात्मक अंग बनाते हैं तथा पोधौं में सैल्युलोज का ढाँचा इन्हीं के द्वारा निर्मित होता है।
  2. कार्बोहाइड्रेट्स जीवन के लिये आवश्यक है एवं लगभग सभी जंतु इन्हें ईंधन (fuel) के रूप में प्रयोग करते हैं। जन्तु कोशिकाओं में कार्बोहाइड्रेट्स ग्लूकोज तथा ग्लाकोजन के रूप में जैविक क्रियाओं के लिये आवश्यक ऊर्जा का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। 3. . एमीनों अम्लों तथा वसीय अम्लों के उपापचय में कार्बोहाइड्रेट्स महत्त्वपूर्ण भाग लेते हैं। 4. कुछ कार्बोहाइड्रेट्स के विशेष कार्य होते हैं : जैसे – कोशिकाओं के न्यूक्लियोप्रोटीन में राइबोस, कुछ वसाओं में गैलेक्टोज, दूध में लेक्टोज ।

कार्बोहाइड्रेट्स का उपापचय (Metabolism of carbohydrates)

प्राणि शरीर में समस्त कार्यों हेतु ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा भोजन में उपस्थित कार्बोहाइड्रेट्, प्रोटीन तथा वसा जैसे कार्बनिक पदार्थों द्वारा प्राप्त की जाती है। इन कार्बनिक पदार्थों में कई एंजाइम युक्त क्रियाऐं सम्पन्न होती है। एक जीवित कोशिका में सम्पन्न होने वाली ऐसी ही अनेक रासायनिक क्रियाएँ (chemical reactions) तथा ऊर्जा परिवर्तन ( energy transformation) सामूहिक रूप से उपापचय (metabolism) कहलाते हैं। इन क्रियाओं के अन्तिम रासायनिक उत्पादों की प्रकृति एवं ऊर्जा के उत्पादन अथवा निवेश के आधार पर उपापचय (metablism) को निम्नलिखित दो वर्गों में बाँटा जाता है-

  1. अपचय (Catabolism)– इन क्रियाओं द्वारा बड़े (large) एवं जटिल (complex) अवयवों ( को छोटे (small) तथ सरल (simple) उत्पादों (products) में बदल दिया जाता है। कार्बोहाइड्रेट तथा साओं के अन्तिम उत्पाद कार्बन डाइऑक्साइड तथा पानी होते हैं जबकि अमीनों-अम्लों के अपचय नाइट्रोजन युक्त अन्तिक उत्पाद जैसे यूरिया होता है। इन क्रियाओं से ऊर्जा उत्पन्न होती है क्योंकि उत्पादों की अपेक्षा जटिल भोज्य पदार्थों (food stuffs) में अधिक ऊर्जा होती है।
  2. उपचय (Anabolism) – इन क्रियाओं में सरल भोज्य पदार्थों से जटिल एवं बड़े संरचनात्मक (structural) एवं क्रियात्मक (functional) पदार्थों का निर्माण होता है। उदाहरणार्थ- प्रोटीन, संश्लेषण (protein synthesis ) । उपापचयी क्रियाओं में प्रायः ऊर्जा के निवेश (input) की आवश्यकता होती है।

शर्कराओं का अपचय (Catabolism of carbohydrates)

कार्बोहाइड्रेट्स रासायनिक दृष्टि से पोलीहाइड्रिक एल्कोहल (polyhydric alcohols) के एल्डीहाइड अथवा कीटोन व्युत्पन्न होते हैं। इन यौगिकों में सामान्यतया कार्बन हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन पाये जाते हैं तथा इनका मूलानुपाती सूत्र (empircial formula) Cn(H2O), होता है। कुछ ऐसे भी यौगिक ज्ञात किये गये हैं जिनमें कार्बन, हाइड्रोजन एव ऑक्सीजन के अतिरिक्त नाइट्रोजन के अतिरिक्त नाइट्रोजन अथवा सल्फर भी उपस्थित होती है तथा ये कार्बोहाइड्रेट्स के सामान्य लक्षण प्रदर्शित करते हैं।

सामान्यतया कार्बोहाइड्रेट्स श्वेत ठोस (white solid) पदार्थ होते हैं जो कार्बनिक विलायक (organic solvents) के कम घुनलशील (less soluble) होते हैं परन्तु कुछ जटिल कार्बोहाइड्रेट्स (complex carbohydrates) के अतिरिक्त, ये जल में घुनलशील (soluble) होते हैं कुछ ऊत्तकों में कार्बोहाइडेटस कोशिका के शुष्क भार (dry weigh) का 0.10 प्रतिशत से भी कम अंश का निर्माण करते हैं, जबकि कुछ ऊत्तकों में जैसे यकृत (liver) में, ये 15.0 प्रतिशत तक हो सकते हैं। भोजन में कार्बोहाइड्रेट्स मोनोसैकेराइड्स (monosaccharides), ऑलिगोसैकेराइड्स (oligosaccharides) एवं पॉलीसैकेराइड्स (polysaccharides) के रूप में पाये जाते हैं। सभी प्रकार पाचन योग्य कार्बोहाइड्रेट्स मुँह (mouth) में लार (saliva) तथा आन्त्र से यकृत (lvier) में लाया कै जाता है। यकृत से यह रुधिर द्वारा शरीर की समस्त कोशिकाओं को भेज दिया जाता है। आंत्र (intestine) से अवशोषित ग्लूकोज शरीर में निम्नलिखित क्रियाएँ दर्शाता है –

  1. अधिकांश ग्लूकोज शरीर की कोशिकाओं में अपचयन द्वारा ऊर्जा देता है जो शरीर की क्रियाओं में काम आती है। एक ग्राम कार्बोहाइड्रेट के कार्बन डाइ ऑक्साइड तथा पानी में पूर्ण विभाजन से 4.1 किलो कैलोरी (k.cals.) ऊर्जा प्राप्त होती है।
  2. आवश्यकता से अधिक ग्लूकोज ग्लाइकोजन में परिवर्तित हो जाती है तथा यकृत एवं कंकाल पेशियों (skeletal muscles) में संग्रहित हो जाती है।
  3. कुछ ग्लूकोज वसाओं (fats ) में परिवर्तित होकर वसा – डिपों (fat-depots) में संग्रहित हो जाती है।

ग्लूकोज कोशिका में दहन क्रिया द्वारा CO, एवं H2O का निर्माण करता है। इसके फलस्वरूप ऊर्जा (energy) उत्पन्न होती है। इस क्रिया में लगभग 30 पद ( steps) क्रमबद्ध होते हैं। प्रत्येक पद के लिये एक विशिष्ट एंजाइम होता है। एंजाइम्स एक विशेष रूप से क्रमबद्ध होते हैं जिसके फलस्वरूप एवं एंजाइम के क्रिया से बना उत्पाद (product) अलगे पद के एंजाइम के लिये एक अभिकर्मक (substrate) का कार्य करता है। इस अनुक्रम में व्यस्थित सक्रिय एन्जाइमों (active enzymes) को उपापचय पथ (metabolic pathway) कहते हैं।

ग्लूकोज (glucose) के एक अणु का विघटन निम्नलिखित चार पदों (steps) में पूर्ण होता है- 1. ग्लाइकोलाइसिस (glyacolysis)

2: ऑक्सीकारी विकार्बोक्सीकरण (Oxidative decarboxylation)

  1. क्रैब्स चक्र (Krebs cycle)
  2. ऑक्सीकारी फॉस्फोलिकरण (इलेक्ट्रॉन परिवहन पथ) (Oxidative phospholation (Electron tronspart path)

ग्लाइकोलाइसिस (Glycolysis)

ग्लाइकोलाइसिस वह क्रिया है जिसमें एक ग्लूकोस अणु विघटन द्वारा दो पाइरुविक अम्ल (pyruvic Acid) व 2ATP अणुओं को देता है । ग्लाइकोलाइसिस की क्रिया कोशिका द्रव्ये में पूर्ण होती है व यह क्रिया अनेक पदों में पूर्ण होती है और प्रत्येक पद के लिए विशिष्ट एन्जाइम होता है। इस क्रिया में ऑक्सीजन की और आवश्यकता नही होती है। ग्लाइकोलाइसिस के पदों को जर्मनी के वैज्ञनिक एम्डन (Embden ) व मेयर हॉफ (Mayer Hof) ने ज्ञात किये अतः इस पथ को एम्डन मेयर हॉफ पथ के नाम से भी पुकारते हैं । ग्लाइकोलाइसिस की सभी प्रक्रियाए उत्क्रमणीय (Reversible) होती है। ये प्रतिक्रियाएं निम्नलिखित क्रम में होती है-

  • फॉस्फोरिलीकरण (Phosphorylation) – विघटन में प्रवेश कर रहा प्रत्येक ग्लूकोस अण ATP से एक फॉस्फेट समूह ग्रहण कर ग्लूकोस – 6-फॉस्फेट बनाता है। यह क्रिया हेक्सोकाइनेज (hexokinase) एन्जाइम की उपस्थिति में होती है। इस क्रिया को फॉस्फोरिलीकरण कहते हैं।

2) समवयवीकरण (Isomerization)- अणुओं के पुनर्विन्यास के कारण ग्लूकोस- 6-फॉस्फेट, फ्रक्टोस- 6- फॉस्फेट में बदल जाता है। यह क्रिया फॉस्फोहैक्सोआइसोमरेस (phosphohexoisomerase) एन्जाइम की उपस्थिति में होती है।

(6) ATP का निर्माण (ATP formation ) – अब 1.3 – डाइफॉस्फोग्लिसरिक अम्ल से उच्च ऊर्जा वाला PO4 अणु पृथक होता है इस कारण 3-फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल (PGA) बनता है। PO4 समूह ADP के साथ संयोग कर ATP में परिवर्तित हो जाता है। ग्लूकोस के अणु एक अणु से दो ग्लिसरेल्डिहाइड-3फॉस्फेट के अ बनते अतः इस क्रिया की समाप्ति पर 2ATP अणुओं का निमार्ण होता है। यह क्रिया फास्फोग्लिसरेट काइनेज एन्जाइम की उपस्थिति में होती है ।

 

(3) फॉस्फोरिलीकरण (Phosphorilation) – इस क्रिया में पुनः एक ATP अणु के विघटन से प्राप्त हुआ एक ऊर्जायुक्त फॉस्फेट फ्रक्टोस-6-फॉस्फेट से जुड़ कर फ्रक्टोस 1-6 डाइफॉस्फेट बनाता है। यह क्रिया फॉस्फोफ्रक्टोकाइनेस एंजाइम की उपस्थिति में होती है।

(4) विदलन (Cleavage) – फ्रक्टोस 1-6 डाइफॉस्फेट दो समखण्डों में विभक्त हो जाता है जिसमें तीन कार्बन अणुओं वाले ग्लिसरेल्डिहाइड -3- फॉस्फेट तथा डाइहाइड्रोक्सीएसीटोन फॉस्फेट होते हैं । यह क्रिया एल्डोलेस (aldolase) एन्जाइम की उपस्थिति में होती है ।

इस प्रकार बने हुये ट्रायोस फॉस्फेट्स एक दूसरे के समावयवी होते हैं। उपापचय पथ के अगले पद ग्लिसरेल्डिहाइड – 3 – फॉस्फेट ऑक्सीकृत होता है। अतः डाइहाइड्रोक्सीएसीटोन फॉस्फेट ग्लिसरेल्डिहाइड-3-फॉस्फेट में परिवर्तित हो जाता है क्रिया फॉस्फोट्रायोस आइसोमरेस एन्जाइम की उपस्थिति में होती है।

(5) फॉस्फोरिलीकरण तथा ऑक्सीकारी विहाइड्रोजनीकरण (Phosphorylation and Oxidative dehydrogenation) – प्रत्येक ग्लिसरेल्डिहाइड – 3 – फॉस्फेट (PGAL) का यहां अब फॉस्फोरिलीकरण तथा ऑक्सीकारी विहाइड्रोजनीकरण होता है। फॉस्फोरिलीकरण में में यहां PGAL अणु एक PO4 अणु से और जुड़ता है जोकि फॉस्फॉरिक अम्ल से प्राप्त होता है तथा 1, 3 डाइफॉस्फो ग्लिसिरिक अम्ल बनता है। आक्सीकारी विहाइड्रोजनीकरण में PGAL से 2H परमाणु निकलते है। ये NAD (Nicotinomide adenin dinucleotide) द्वार ग्रहण कर लिये जाते हैं। जो अब NADH + H+ में बदल जाता है तथा ये इलेक्ट्रॉन परिवहन तंत्र में पहुंचा दिये जाते हैं। यह क्रिया ग्लिसरेल्डिहाइड 3- फॉस्फेट डिहाइड्रोजीनेज की उपस्थिति में होती है।

(7) समायवयवीकरण (Isomerisation) – फॉस्फोग्लिसरोम्यूटेस एन्जाइम की उपस्थिति में 3- फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल 2 – फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल बनता है।

(8) निर्जलीकरण (Dehydration) – इनोलेस एन्जाइम की उपस्थिति में 2-फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल से एक पानी का अणु अलग होता है व व फॉस्फोइनोल पाइरूविक अम्ल बनता है।

(9) ATP का निर्माण (ATP Formation)—अन्त में ADP तथा पाइरूवेट काइनेस एन्जाइम की उपस्थिति में फॉस्फोइनोल पाइरूविक अम्ल से एक उच्च ऊर्जा वाला – PO4 अणु अलग होता है। जो ADP को ATP में परिवर्तित करता है व पाइरूविक अम्ल बनता है। ग्लूकोस के एक अणु से दो पाइरूविक अम्ल व दो ATP के अणु बनते हैं, सब्सट्रेट स्तर पर बनते हैं।

 

पाइरूविक अम्ल (ईनोल) स्वतः ही पाइरूबिक अम्ल कीटो अवस्था में परिवर्तित हो जाता है । (10) अवायुवीय प्रवस्थाओं में पाइरुबिक अम्ल NADH ये हाइड्रोजन ग्रहरण कर लेक्टिक अम्ल बनाता है। यह प्रक्रिया लेक्टिक डिहाइड्रोजिनेज एन्जाइम की उपस्थिति में होती है।

प्राणियों में यह प्रक्रिया पेशी कोशिकाओं में पायी जाती है ।

ग्लाइकोलाइसिस प्रक्रिया में ATP का उत्पाद ( ATP yield during glycolysis)

  1. ग्लाइकोलाइसिस में ग्लूकोस के अणु से दो पाइरूबिक अम्ल बनते हैं। इस पथ में 4 ATP अणुओं का सब्सट्रेट फॉस्फोरिलीकरण द्वारा निर्माण होता है। जिसमें से 2 ATP के अणु फॉस्फोरिलीकरण में काम आ जाते हैं।

किण्वन (Fermentation)

किण्वन शब्द का प्रयोग उन सभी क्रियाओं के लिए किया जाता है जिनमें विभिन्न जीवाणुओं और कवकों के अनॉक्सी ‘श्वसन द्वारा ग्लूकोज को अपूर्ण विघटन होकर कार्बन डाइ ऑक्साइड गैस, इथाइल ऐल्कोहॉन तथा कभी कभी दूसरे विभिन्न कार्बनिक पदार्थ जैसे ऐसीटिक अम्ल, लैक्टिक अम्ल, ब्यूराइट अम्ल, ऑक्सेलिक अम्ल, साइट्रिक अम्ल इत्यादि बनते हैं। एंजाइम पायरूविक अम्ल डिकार्बोक्सिलेज एवं एल्कोहल डिहाइड्रोजिनेस इस अभिक्रिया को अत्प्रेरित करता है। दूसरे जीव कुछ जीवाणुओं पायरूविक अम्ल से लैक्ट्रिक का निर्माण करते हैं । प्राणी की मांसपेशियों की कोशिकाओं में शारीरिक अभ्यास के दौरान जब कोशिकीय श्वसन लिये अपर्याप्त ऑक्सीजन होती है तब पायरूविक अम्ल लैक्टिक डिहाइड्रोजिनेस द्वारा लैक्टिक अम्ल में अपचयित हो जाता है। अपचयी कारक NADH + H★ होता है जो पुनः दोनों प्रक्रियाओं में NAD+ में ऑक्सीकृत हो जाता है।

 

दोनों लैक्टिक अम्ल तथा एल्कोहल किण्वन में पर्याप्त ऊर्जा मुक्त नहीं होती है। ग्लूकोस से सात प्रतिशत से कम ऊर्जा का उपयोग उच्च ऊर्जा बंध वाले ATP के उत्पाद में नही होता है। अम्ल एवं एल्कोहल बनने वाली उत्पाद की प्रक्रिया खतरनाक होती है। ग्लूकोस के एक अणु से किण्वन के पश्चात् एल्कोहल एवं लैक्टिक अम्ल से शुद्ध ATP का संश्लेषण होता है। अर्थात् ग्लाइकोलाइसिस के दौरान उपयोग में आने वाले ATP की संख्या घटाकर जब एल्कोहल की मात्रा 13% तथा अधिक होती है तो यीस्ट के लिए विषाक्त व मृत्यु का कारण बनती है। प्राकृतिक किण्वन पेय में एल्कोहल की अधिकतम मात्रा होती है। स्थित एल्कोहल से अधिक होती है।

ऑक्सी श्वसन (Oxy respiration)

ऑक्सीजन श्वसन (Oxy Respiration) वह क्रिया है जिसके द्वारा जीव में ग्लूकोज का पूर्ण ऑक्सीकरण होता है। एवं इस दौरान मुक्त ऊर्जा कोशिकीय उपाचयय की आवश्यकता के अनुसार बहुत से ATP अणुओं का निर्माण होता है। यूकैरियोट में ये सभी चरण माइटोकोन्डिया में संमन्न होते हैं। इसमें ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। इस क्रिया में ऑक्सीजन की उपस्थिति में पूर्ण ऑक्सीकरण होता है एवं. कार्बनडाईऑक्साइड, जल एवं ऊर्जा निकलती है। इस प्रकार का श्वसन उच्च जीवों में पाया जाता है।

ग्लाइकोलाइसिस द्वारा बने पाइरुविक अम्ल अणु माइटोकोन्ड्रिया में प्रवेश करते हैं। माइटोकोन्ड्रिया

के भीतर मेट्रिक्स में पाइरुविक अम्ल का आक्सीकारी विकासर्बोक्सीकरण होता है। फलस्वरूप एसिटाइल CoA तथा CO2 बनते है। इस प्रक्रिया में 2H मुक्त होते हैं जो NAD+ द्वारा ग्रहण कर लिये जाते हैं तथा NADH + H* बनता है। यह NADH + H★ अपने 2H के इलेक्ट्रॉन परिवहन तन्त्र में स्थानान्तरित करते हैं तथा 3ATP अणु देते हैं। पाइरुविक अम्ल के आक्सीकारी विकार्बोक्सीकरण की प्रक्रिया कई एंजाइम की उपस्थिति में होती है, यह एन्जाइम सम्मिलित रूप से पाइरुवेट डिहाइड्रोजिनेज काम्पलेक्स कहलाता है। पाइरुविक अम्ल के एसिटाईल CoA में आक्सीकारी विकार्बोक्सीकरण की सम्पूर्ण प्रक्रिया निम्नलिखित प्रकार होती है।

  1. पाइरुविक अम्ल का थाइमीन पायरोफास्फेट (TPP) की उपस्थिति में विकार्बोक्सीकरण होता है तथा हाइड्रोक्सिइथाइल थाइमीन पायरोफास्फेट बनता है तथा CO2 मुक्त होती है। अभिक्रिया पाइरुविक डिहाइड्रोजिनेस एन्जाइम द्वारा उत्प्रेरित होती है।
  2. हाइड्रोक्सिइथाइल थाइमीन पायरोफास्फोट अब आक्सीकृत लिपोइक अम्ल से क्रिया करता है तथा एसीटाईल लिपोइक अम्ल बनाता है। एसीटाईल लिपोइक अम्ल अब को एन्जाइम- A से क्रिया कर एसीटाईल CoA तथा अपचयित लिपोइक अम्ल बनाता है। यह प्रक्रिया एंजाइम हाइहाईड्रोलिपोइल, ट्रान्सएसिटाइलेज की उपस्थिति में होती है ।
  3. अपचयित लिपोइक अम्ल का पुनः ऑक्सीकरण FAD द्वारा डाइहाड्रोजिनेज एंजाइम की उपस्थिति में हो जाता है फलतः FADH, व ऑक्सीकृत लिपोइक अम्ल बन जाता है। 4. अन्ततः FADH, का NAD द्वारा आक्सीकरण होता है तथा NADH+H+ बनता है जो इलेक्ट्रान परिवहन तंत्र में प्रवेश कर 3 ATP अणु उत्पन्न करता है।
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