विभज्योतक किसे कहते हैं meristem in hindi विभाज्योतक क्या है ? प्रकार , उदाहरण , चित्र ntercalary meristems

(meristem in hindi) विभज्योतक किसे कहते हैं विभाज्योतक क्या है ? प्रकार , उदाहरण , चित्र ntercalary meristems की परिभाषा लिखिए |

प्रस्तावना : संवहनी पौधों में पादप शरीर मुख्यतः मूल तंत्र और प्ररोह तंत्र से मिलकर बना होता है। पौधे का वायवीय भाग जिसमें तने के अतिरिक्त पत्तियाँ और पुष्प शामिल होते है , प्ररोह कहलाता है। प्ररोह की उपर्युक्त सभी संरचनायें , शीर्षस्थ विभाज्योतक से विकसित होती है। इसी प्रकार मूल तंत्र का विकास भी शीर्षस्थ विभाज्योतक से होती है। उपरोक्त विभाज्योतकों की उत्पत्ति सर्वप्रथम भ्रूणीय प्ररोह और भ्रूणीय मूल में होती है। ये दोनों विभाज्योतक पादप शरीर में इनकी स्थिति के आधार पर शीर्षस्थ विभाज्योतक कहलाते है। इस प्रकार पादप शरीर के सभी प्राथमिक ऊत्तकों की उत्पत्ति शीर्षस्थ विभाज्योतक से होती है।

विभाज्योतक (meristem in hindi) : विभाज्योतक शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम नागेली द्वारा किया गया। विभाज्योतक या मेरीस्टेम की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के एक शब्द मेरीस्टोस से हुई है। इसका शाब्दिक अर्थ है to divide अर्थात विभाजित होना। जैसा कि इस अर्थ से स्पष्ट है , इस प्रकार के ऊतक की कोशिकाओं में सक्रीय रूप से विभाजित होने की अनूठी क्षमता होती है। अत: विभाज्योतक को हम निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित कर सकते है –
विशेष प्रकार की कोशिकाओं का समूह जिनमें सक्रीय रूप से विभाजित और पुनर्विभाजित होने की क्षमता होती है और जो पौधों की वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान देती है , उसे विभाज्योतक कहते है।
चूँकि विभाज्योतक कोशिकाएँ जीवन पर्यन्त बारम्बार विभाजित होकर नयी संतति कोशिकाओं का निर्माण करती है , अत: इस महत्वपूर्ण कार्य के अनुरूप ही इनकी संरचना भी होती है। विभाज्योतक के लक्षण निम्नानुसार है –
1. यह कोशिकाएँ विभिन्न प्रकार की आकृतियों जैसे गोलाकार , अण्डाकार या बहुकोणीय हो सकती है।
2. इनका आमाप अपेक्षाकृत छोटा होता है।
3. इनके बीच अंतर्कोशिकीय स्थान नहीं पाए जाते।
4. इनकी कोशिकाभित्ति अत्यंत पतली होती है लेकिन कोशिकाद्रव्य गाढ़ा होता है।
5. इनके कोशिका द्रव्य में रिक्तिकाएँ लगभग नहीं पायी जाती और इनका केन्द्रक बड़ा और सुस्पष्ट होता है।
6. इनमें विभिन्न प्रकार के कोशिका उपांग उपस्थित होते है लेकिन हरितलवक प्राय: नहीं पाए जाते क्योंकि इनके द्वारा प्रकाश संश्लेषण नहीं होता है।

विभाज्योतकों का वर्गीकरण (classification of meristems)

विभाज्योतकी कोशिकाओं की विभिन्न विशेषताओं और प्रमुख लक्षणों के आधार पर जैसे इनकी उत्पत्ति , स्थिति , कोशिका विभाजन का तल और इनके कार्य के आधार पर वनस्पतिशास्त्रियों के द्वारा इनके विविध वर्गीकरण प्रस्तुत किये गए है , जो कि निम्नलिखित प्रकार से है –
(A) उत्पत्ति के आधार पर वर्गीकरण (classification on the basis of origin) :
उत्पत्ति के आधार पर विभाज्योतकों को निम्न तीन श्रेणियों में बाँटा गया है। यह है –
(1) प्राकविभाज्योतक (promeristem)
(2) प्राथमिक विभाज्योतक (primary meristem)
(3) द्वितीयक विभाज्योतक (secondary meristem)
(1) प्राकविभाज्योतक (promeristem) : पादप काय में नए ऊतकों का निर्माण जहाँ प्रारंभ होता है वह क्षेत्र प्राकविभाज्योतक कहलाता है। इनसे उत्पन्न कोशिकाएँ सामान्यतया प्राथमिक विभाज्योतक में विभेदित होती है। इन कोशिकाओं को भ्रूणीय विभाज्योतक अथवा आद्यक कोशिकाएँ अथवा सत्य विभाज्योतक भी कहते है।
प्राक विभाज्योतक पादप शरीर में बनने वाली सबसे पहली भ्रूणीय अवस्था में विकसित विभाज्योतक कोशिकाएं होती है। ये कोशिकाएँ पादप भ्रूण के मूलांकुर और प्रांकुर के विकास के समय निर्मित होती है और नावोद्भिद अथवा शिशु पादप में वृद्धि क्षेत्र को बनाती है।
(2) प्राथमिक विभाज्योतक (primary meristems ) : जैसा कि नाम से ही स्पष्ट होता है , प्राथमिक विभाज्योतक कोशिकाएँ पौधों की प्रारंभिक अथवा शिशु अवस्था से ही पादप शरीर में विकसित हो जाती है। इनका परिवर्धन प्राक विभाज्योतक कोशिकाओं से होता है और प्राथमिक विभाज्योतक की सक्रियता के कारण प्राथमिक स्थायी ऊतक बाह्यत्वचा , प्राथमिक जाइलम , प्राथमिक फ्लोयम आदि बनते है। प्राथमिक विभाज्योतकी कोशिकाएँ जीवनपर्यन्त सक्रीय और विभाजनशील रहती है और यह मुख्यतः पादप शरीर में जड़ , तने अथवा शाखाओं के अंतिम सिरों पर पर्ण कलिका के आद्यकों के रूप में पायी जाती है। वस्तुतः अग्रस्थ विभाज्योतक कोशिकाएं प्राथमिक विभाज्योतक प्रकृति की होती है।
हालाँकि प्राथमिक विभाज्योतक का सर्वप्रमुख लक्षण पौधे की शिशु अवस्था से ही इनकी सक्रीय विभाजन क्षमता है लेकिन कुछ उदाहरणों जैसे अपस्थानिक कलिकाओं और जड़ों के अंतिम सिरे पर पायी जाने वाली विभाज्योतकी कोशिकाओं को भी प्राथमिक विभाज्योतक कोशिकाओं की श्रेणी में ही रखा गया है। क्योंकि इनका विकास अपस्थानिक जड़ के विकास के साथ ही हो जाता है।
(3) द्वितीयक विभाज्योतक (secondary meristems ) : इस श्रेणी की विभाज्योतक कोशिकाएँ प्रारंभ में पौधे के स्थायी ऊतक का भाग होती है लेकिन पौधे की आयु बढ़ने के साथ साथ ही आवश्यकतानुसार यह विभाज्योतकी प्रवृति धारण करके सक्रीय रूप से विभाजित और पुनर्विभाजित होने लगती है। अत: ऐसी विभाज्योतक कोशिकाएँ जो बाद में सक्रीय विभाजन क्षमता प्रदर्शित करती है , उनको द्वितीयक विभाज्योतक कहते है।
काग एधा , अंत:पूलिय एधा और अतिरिक्त केम्बियम वलय द्वितीयक विभाज्योतकों के सुन्दर उदाहरण है। द्वितीयक विभाज्योतक की सक्रियता से कार्क , छाल , द्वितीयक फ्लोयम और द्वितीयक वल्कुट जैसे ऊतकों का निर्माण होता है।

(B) स्थिति के आधार पर वर्गीकरण (classification on the basis of position)

इस आधार पर विभाज्योतक कोशिकाओं को तीन श्रेणियों में विभेदित किया जा सकता है ये निम्नलिखित है –
(1) अग्रस्थ विभाज्योतक (apical meristem)
(2) अन्तर्वेशी विभाज्योतक (intercalary meristem)
(3) पाशर्व विभाज्योतक (lateral meristem)
(1) अग्रस्थ विभाज्योतक (apical meristems) : यह विभाज्योतक कोशिकाएँ तनों , शाखाओं और जड़ों के अन्तस्थ सिरों पर पायी जाती है। इनकी सक्रियता से पादप शरीर के इन अंगों का निर्माण और लम्बाई में वृद्धि होती है। अग्रस्थ सिरों पर जहाँ यह कोशिकाएँ स्थित होती है , उनको वृद्धि शीर्ष अथवा वृद्धि बिंदु कहते है।
अग्रस्थ विभाज्योतक कोशिकाएं प्राथमिक विभज्योतक अथवा प्राक विभाज्योतक प्रकार की होती है।
(2) अन्तर्वेशी विभाज्योतक (intercalary meristems) : इस प्रकार की विभाज्योतक कोशिकाएँ पादप शरीर के मध्यस्थ भागों में अथवा अन्तस्थ सिरों से अपेक्षाकृत कुछ दूर होती है। इनकी सक्रियता के कारण तनों की पर्ण की लम्बाई में अथवा पत्रावरण की चौड़ाई में वृद्धि होती है। इस प्रकार की विभाज्योतक कोशिकाएं घासों के पर्णाधार पर और इक्वीसीटम की पर्व संधियों के आधारीय भाग पर पायी जाती है।
अनेक वनस्पतिशास्त्रियों के अनुसार अंतर्वेशी विभाज्योतक कोशिकाएं वस्तुतः अग्रस्थ विभाज्योतक का ही एक हिस्सा कहा जा सकता है , जो स्तम्भ की लम्बाई बढ़ने से और बीच में स्थायी ऊतक के आ जाने से इससे पृथक हो गयी है।
महान महिला वनस्पति शास्त्री केथरीन इसाऊ के अनुसार अंतर्वेशी विभाज्योतकों को अग्रस्थ विभाज्योतक के साथ ही रखा गया है। अंतर्वेशी विभाज्योतक की सक्रियता केवल कुछ समय के लिए ही रहती है और तने के पर्व की लम्बाई में वृद्धि करने के कुछ समय बाद स्थायी ऊतकों का ही एक हिस्सा बन जाती है और इनकी सक्रियता समाप्त हो जाती है।
(3) पाशर्व विभाज्योतक (lateral meristems) : जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है , यह विभाज्योतक कोशिकाएँ पौधे की पाशर्वीय स्थिति में पायी जाती है और इनकी सक्रियता के कारण पौधे के आयतन और मोटाई विशेषकर तने के घेरे में बढ़ोतरी होती है। यह विभाज्योतक कोशिकाएं केवल परिनतिक रूप से अथवा स्पर्शरेखीय तल में विभाजित होती है। पाशर्व विभाज्योतक प्राथमिक (अन्त:पुलिय एधा) अथवा द्वितीयक (काग एधा) और अन्तरा पुलिय एधा प्रकृति के हो सकते है। चूँकि इनकी सक्रियता से पौधे की मोटाई में वृद्धि होती है , इसलिए यह कहा जा सकता है कि यह विभाज्योतक द्वितीयक वृद्धि का कार्य करते है। इसके साथ ही यहाँ यह उल्लेख कर देना भी आवश्यक है कि पाशर्व विभाज्योतक उत्पत्ति के आधार पर प्राय: द्वितीयक विभाज्योतकों की श्रेणी में रखे जा सकते है।

(c) कोशिका विभाजन तल के आधार पर वर्गीकरण (classification on the basis of plane of division)

अन्य कोशिकाओं की भाँती विभाज्योतक कोशिकाएँ भी विभिन्न तलों में जैसे अनुप्रस्थ , लम्बवत तिर्यक , परिनतिक या अपनतिक रूप से विभाजित हो सकती है। कोशिका विभाजन के आधार पर निम्नलिखित श्रेणियों में विभेदित किया जा सकता है –
(1) संहति विभाज्योतक (mass or block meristem) : इस प्रकार की विभाज्योतक कोशिकाएं प्राय: सभी तलों में अथवा विविध प्रकार से विभाजित हो सकती है। कोशिका विभाज्योतकों की सक्रियता के कारण पादप शरीर अथवा पादप अंगों के आयतन में बढ़ोतरी होती है। विभिन्न बहुकोशिकीय संरचनाएं जैसे – भ्रूणपोष और मज्जा आदि संहति विभाज्योतक की क्रियाशीलता के कारण ही बनते है।
(2) पट्टिका विभाज्योतक (plate meristem) : इस प्रकार की विभाज्योतकी कोशिकाएँ अपनतिक रूप से दो तलों में विभाजित होती है और पट्टिका जैसी संरचना बनाती है। पट्टिका विभाज्योतक के द्वारा पौधों में बाह्यत्वचा और पर्णफलक जैसी चपटी संरचनाओं का निर्माण होता है।
(3) शिरा विभाज्योतक (rib or file meristem) : यह विभाज्योतक कोशिकाएं अपनतिक रूप से केवल एक ही तल में अर्थात अनुप्रस्थ अथवा लम्बवत रूप से ही विभाजित हो सकती है , परिणामस्वरूप कोशिकाओं की एक पंक्ति बनती है। तान्तुकी शैवालों में एकपंक्तिक तंतुओ का निर्माण जड़ और तने के वल्कुट और कभी कभी मज्जा इन कोशिकाओं के द्वारा ही बनते है।

(d) कार्य के आधार पर वर्गीकरण (classification on the basis of function)

विभाज्योतक कोशिकाएं अपनी क्रियाशीलता के द्वारा विभिन्न प्रकार की पादप संरचनाओं का निर्माण करती है। अत: कार्य के आधार पर विभाज्योतक कोशिकाओं को हम तीन श्रेणियों में बाँट सकते है यह निम्नलिखित है –
(1) प्राक त्वचा (protoderm) : इस प्रकार की विभाज्योतक अग्रस्थ विभाज्योतक की सबसे बाहरी एककोशिकीय मोटाई की परत होती है और अपनत विभाजनों के द्वारा यह बाह्यत्वचा अथवा त्वचीय ऊतक तंत्र का विकास करती है।
(2) प्राक एधा (procambium) : यह विभाज्योतक कोशिकाएं सुदीर्घित , संकरी और लम्बी होती है जो कि संवहन ऊतक तंत्र की प्रारम्भिक अथवा आद्यक कोशिकाओं का निर्माण करती है। यह विभाज्योतक वृद्धिकारी शीर्ष पर प्राकत्वचा और भरण ऊतक के मध्य में स्थित होता है। इसकी सक्रियता से केम्बियम का निर्माण होता है जो अपने आप में एक महत्वपूर्ण और सक्रीय विभाज्योतक है।
(3) भरण विभाज्योतक (ground meristem) : यह विभाज्योतकी कोशिकाएँ पादप शरीर के बड़े क्षेत्रों जैसे अधोत्वचा , वल्कुट और मज्जा का निर्माण करती है और तने के शीर्षस्थ सिरे पर केन्द्रीय भाग में अवस्थित होती है। इनकी आकृति बहुकोणीय अथवा समव्यापी होती है और इनकी कोशिका भित्ति पतली और कोमल होती है।