गुरुबीजाणुजनन क्या है | गुरू बीजाणु जनन किसे कहते है megasporogenesis in hindi meaning diagram

megasporogenesis in hindi meaning diagram गुरुबीजाणुजनन क्या है | गुरू बीजाणु जनन किसे कहते है ?

गुरुबीजाणुजनन (megasporogenesis) : आवृतबीजी पौधों में , जैसा कि हम जानते है , बीजांड गुरूबीजाणुधानी को निरूपित करता है। बीजाण्ड की मुख्य संरचना मृदुतकी बीजाण्डकाय होती है। जिसमें गुरुबीजाणु का विकास होता है। बीजाण्डकाय के भीतर गुरूबीजाणु के विकास की प्रक्रिया गुरूबीजाणुजनन कहलाती है।

बीजाण्डकाय की अधोत्वचा की कोई भी कोशिका आसपास की अन्य कोशिकाओं की तुलना में स्पष्ट और बड़े आकार की हो जाती है और इसका केन्द्रक भी बड़ा और सुस्पष्ट होता है और इसका जीवद्रव्य गाढ़ा होता है। इस कोशिका को प्रपसू कोशिका कहते है। प्रपसू कोशिका का विभेदन बीजाण्ड के विकास की प्रारंभिक अवस्थाओं में ही हो जाता है। अधिकांश पौधों में एक बीजांड में एक ही प्रपसू कोशिका विभेदित होती है परन्तु कुछ एन्जियोस्पर्मी कुलों जैसे फेबेसी , रेननकुलेसी , रोजेसी , एस्टरेसी और लिलिएसी आदि के बीजाण्डो में प्रपसू कोशिकाओं का एक समूह विभेदित होता है , इसे बहुकोशिकीय प्रपसूतक कहते है। इनमें से केवल एक कोशिका क्रियाशील होती है लेकिन सीडम में सभी कोशिकाएँ क्रियाशील होती है अर्थात सभी कोशिकाएँ गुरुबीजाणुमातृ कोशिकाओं में विकसित होती है।
तनु बीजाण्डकायी संरचना में प्रपसु कोशिका बाह्य त्वचा के ठीक नीचे ही पायी जाती है है जबकि सघन बीजाण्डकायी अथवा स्थूल बीजांडकायी संरचना में यह बीजाण्डकाय में गहराई तक धँसी होती है। तनु बीजाण्डकायी संरचना में प्रपसू कोशिका सीधे गुरुबीजाणु मातृ कोशिका के समान कार्य कर सकती है। स्थूल बीजांडकायी अवस्था में प्रपसू कोशिका पहले परिनतिक रूप से विभाजित होती है। परिणामस्वरूप दो सन्तति कोशिकाएँ बनती है।  ऊपर वाली कोशिका प्राथमिक भित्तीय कोशिका कहलाती है जबकि निचे वाली कोशिका प्राथमिक बीजाणुजन कोशिका होती है जो आगे चलकर गुरुबीजाणु मातृकोशिका के रूप में विकसित होती है।
गुरुबीजाणु मातृकोशिका (2n) के अर्द्धसूत्री विभाजन से चार अगुणित (n) गुरुबीजाणु बनते है। अर्द्धसूत्री विभाजन सदैव अनुप्रस्थ रूप से होता है , जिससे चारों गुरुबीजाणु रेखिक क्रम में व्यवस्थित रहते है। चार गुरूबीजाणुओं के इस समूह को रेखिक चतुष्क कहते है। कुछ पौधों में चारों अगुणित बीजाणु रेखिक चतुष्क में व्यवस्थित न होकर T अथवा विलोमित T के रूप में व्यवस्थित होते है जैसे रयूमेक्स और रीअम। इसका प्रमुख कारण यह है कि अर्द्धसूत्री विभाजन II के बाद दोनों द्वयक II के बाद दोनों द्वयक कोशिकाओं में से एक कोशिका में तो अनुप्रस्थ विभाजन होता है और दूसरी कोशिका में लम्बवत विभाजन होता है। परिणामस्वरूप T के आकार की संरचना बनती है। फास्टिया जेपोनिक में चतुष्फलकीय चतुष्क बनता है।
सामान्यतया रैखिक चतुष्क का निभागीय गुरुबीजाणु क्रियात्मक होता है तथा भ्रूण कोष में परिवर्धित होता है। ऊपर के अन्य तीन गुरूबीजाणु जो बीजाणुद्वार की तरफ स्थित होते है , अपघटित हो विलुप्त हो जाते है।
कुछ पौधों जैसे बेलेनोफोरा में बीजाण्डद्वारीय गुरुबीजाणु क्रियात्मक हो सकता है। केजुराइना और पोआ में चारों में से कोई भी गुरुबीजाणु क्रियाशील हो सकता है।

मादा युग्मकोदभिद अथवा भ्रूणकोष (female gametophyte or embryo sac)

आवृतबीजी पादपों के जीवन चक्र में बनने वाली वह अगुणित ऊतक सदृश पीढ़ी जो अंड उत्पन्न करती है , स्त्रीयुग्मकोदभिद अथवा भ्रूणकोष कहलाती है।
क्रियात्मक गुरूबीजाणु से भ्रूणकोष परिवर्धित होता है। द्विगुणित गुरुबीजाणु मातृकोशिका बीजाणुद्भिद पीढ़ी की अंतिम कोशिका होती है। अर्ध सूत्रण द्वारा यह चार गुरुबीजाणुओं का चतुष्क बनाती है। अत: क्रियात्मक गुरूबीजाणु स्त्रीयुग्मकोदभिद पीढ़ी की प्रथम कोशिका है।
स्त्रीयुग्मकोद्भिद का परिवर्धन कई प्रकार से हो सकता है। महिला पादप भ्रूण वैज्ञानिक डेविस के अनुसार इक्यासी प्रतिशत (81%) आवृतबीजी पादपों में भ्रूणकोष परिवर्धन समान प्रकार का अर्थात एकबीजाणुक और पोलीगोनम प्रकार का होता है। पोलीगोनम प्रकार का भ्रूणकोष सात कोशिकीय और आठ केन्द्रकी संरचना होती है। आठों केन्द्रक 3 + 2 + 3 के समूहों में व्यवस्थित होते है।
बीजाण्डद्वार की तरफ स्थित भ्रूणकोष के सिरे में उपस्थित तीन केन्द्रक तीन कोशिकाएँ बनाते है। इसमें से बड़ी और मध्य स्थित कोशिका अंड और मादा युग्मक और इनकी दोनों पाशर्व सतहों पर एक एक सहायक कोशिका होती है। ये तीनों कोशिकाएँ सम्मिलित रूप से अंड समुच्चय का गठन करती है। भ्रूण कोष के लगभग मध्य में दो ध्रुवीय केन्द्रक होते है जो शीघ्र ही संलयित होकर एक द्विगुणित एककेंद्र की कोशिका बनाते है इसे द्वितीयक कोशिका अथवा संलीन कोशिका कहते है। भ्रूणकोष के निभागीय सिरे में भी तीन प्रतिध्रुवी अथवा प्रतिमुखी कोशिकाएं स्थित होती है जो कुछ समय पश्चात् सामान्यतया निषेचन के बाद विघटित हो जाती है।

भ्रूणकोष के प्रकार (types of embryo sac in hindi)

एन्जियोस्पर्मो में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के भ्रूणकोषों का विस्तृत विवरण प्रख्यात भारतीय भ्रूण विज्ञानी प्रो। पंचानन माहेश्वरी ने अपनी पुस्तक “एन इंट्रोडक्शन टू एम्ब्रियोलोगी ऑफ़ एन्जियोस्पर्म्स ”  में किया।
माहेश्वरी ने भ्रूणकोषों को निम्नलिखित प्रकार से बाँटा है –
I. एक बीजाणुक भ्रूणकोष (monosporic embryo sac)
II. द्विबीजाणुक भ्रूणकोष (bisporic embryo sac)
III. चतुष्कीबीजाणुक भ्रूणकोष (tetrasporic embryo sac)