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एंजाइम की क्रियाविधि का वर्णन कीजिए , Mechanism of enzyme action in hindi , प्रेरित आसंजन सिद्धान्त (Induced fit theory)

पढ़िए एंजाइम की क्रियाविधि का वर्णन कीजिए , Mechanism of enzyme action in hindi , प्रेरित आसंजन सिद्धान्त (Induced fit theory) ?

विकर क्रिया की क्रियाविधि (Mechanism of enzyme action)

विकर क्रिया की क्रिया विधि को निम्न प्रकार समझाया जा सकता है :

  1. विकर – क्रियाधार संकुल (enzyme substrate complex) का बनना ।
  2. सक्रियण ऊर्जा (activation energy) में कमी ।
  3. विकर – क्रियाधार संकुल बनना (Formation of enzyme substrate complex)

विकर सर्वप्रथम क्रियाधार (substrate) से संयुग्मित होकर एक अस्थायी रासायनिक यौगिक का निर्माण करता है जिसे विकर क्रियाधार संकुलं ( enzyme substrate complex) कहते हैं । अभिक्रिया के सम्पन्न हो जाने पर यह संकुल टूट जाता है जिससे पूर्ववत विकर एवं उत्पाद अलग हो जाते हैं।

क्रियाधार + विकर  – विकर – क्रियाधार संकुल  – विकर + उत्पाद

विकर में एक स्पष्ट खाँच (cavity or cleft) होती है। जिस से क्रियाधार आबद्ध हो जाता है। इस खाँच में सक्रिय केन्द्र (active centre) उपस्थित होता है। इस केन्द्र में अमीनो अम्ल इस प्रकार विन्यासित होते है कि वे क्रियाधार से बन्धित हो सके। ये सक्रिय अमीनों अम्ल एक पोलीपेप्टाइड श्रृंखला में अलग-अलग उपस्थित हो सकते हैं। इस श्रृंखला में वलयन (foldings) इस प्रकार होते हैं कि सक्रिय अमीनो अम्ल सक्रिय स्थल में बहुत निकट आ जाते हैं। उत्पाद इन सक्रिय स्थलों से इस लिए अलग हो जाता है क्योंकि वह इनसे कम दृढ़ता से बन्धित होते हैं। विकरों की क्रियाविधि को समझने के लिए दो सिद्धान्त प्रस्तुत किये गये हैं । (i) ताला एवं कुंजी सिद्धान्त तथा (ii) प्रेरित आसंजन सिद्धान्त ।

1.ताला एवं कुंजी सिद्धान्त (Lock and key theory)

फिशर (Fisher, 1898 ) ने विकरों की क्रियाविधि के वर्णन के लिए ताला एवं कुंजी के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। एक विशेष ताले को उसके लिए बनी विशिष्ट कुँजी के द्वारा ही खोला जा सकता है। इस प्रकार विकरों में भी विशिष्ट सक्रिय स्थल (active sites) होते हैं जहाँ पर कुछ विशेष क्रियाधार ही जुड़ सकते है। यह सिद्धान्त विकर क्रिया (enzyme activity) की विशिष्टता को भी स्पष्ट करता है।

दो क्रियाधारों A एवं B के मध्य विकर उत्प्रेरण की क्रिया को दिखाया गया है। विकर – क्रियाधार- संकुल में क्रियाधार इस प्रकार विन्यासित होते है कि इनके मध्य अभिक्रिया तीव्र गति से सम्पन्न होती है। इसी के साथ विकर की सतह से उत्पाद अलग हो जाता है। अब विकर दूसरे A एवं B क्रियाधार अणुओं को अवशोषित कर सकता है तथा इसी प्रकार अभिक्रिया सतत् रूप से चलती रहती है।

  1. प्रेरित आसंजन सिद्धान्त (Induced fit theory)

ताले एवं कुंजी का सिद्धान्त अनेक प्रयोगात्मक तथ्यों को समझाने में असफल रहा। बाद में इन तथ्यों को कोशलैण्ड (Koshland, 1966) के प्रेरित आसंजन सिद्धान्त द्वारा समझाया जा सका ।

इस सिद्धान्त के अनुसार क्रियाधार, विकर में संरचनात्मक (conformational) परिवर्तनों को प्रेरित करता है इस प्रेरण (induction) से विकर के अमीनों अम्ल अवशेष (residues) अथवा अन्य समूह अपने सही स्थान पर विन्यासित हो जाते है जिससे कि क्रियाधार इनसे जुड सके अथवा उत्प्रेरण हो सके अथवा दोनों हो सकें।

इसी समय अन्य अमीनों अम्ल विकर के आन्तरिक भाग में धंस जाते हैं जैसा कि चित्र 4 में दिखाया गया है।

सक्रियण ऊर्जा में कमी (Lowering of activation energy)

किसी रासायनिक अभिक्रिया के शुरू होने के लिये आवश्यक उर्जा की न्यूनतम मात्रा को सक्रियण उर्जा (activation energy) कहते हैं। विकरों की उपस्थिति से किसी भी रासायनिक अभिक्रिया की गति बढ़ जाती है क्योंकि विकर अभिक्रिया की सक्रियण ऊर्जा (energy of activation) को कम कर देते हैं। जिससे अभिक्रिया सामान्य शारीरिक तापमान पर सम्पन्न हो जाती है। यह विकर क्रियाधारों को संपर्क में लाकर रासायनिक अभिक्रिया की गति को हजार गुणा तक बढ़ा देते है। वि प्रारम्भिक अणु (starting molecule) से संयुक्त होकर क्रियाधार के संरूपण (conformation) में परिवर्तन कर विकर-मध्यवर्ती सम्मिश्र (enzyme-transition state complex) का निर्माण करता है। जो कि क्रियाधार एवं उत्पाद के बीच की स्थिति होती है। इस विकरयुक्त-क्रियाधार की सक्रियता उर्जा विकर रहित अभिक्रिया में वांछित ऊर्जा से काफी कम होती है अतः अभिक्रिया आसानी से शुरू हो जाती है।

संदमन (Inhibition )

कुछ यौगिक (उदाहरण- औषध, विष) एन्जाइम से संयुक्त तो हो जाते है परन्तु क्रियाधार की भांति कार्य नहीं करते हैं। ये पदार्थ विकर द्वारा उत्प्रेरण को रोकते हैं तथा संदमक (inhibitor) कहलाते हैं। यह संदमक संरचना में क्रियाधार के समान होते हैं। विकर एवं संदमक एक संकुल बनाते हैं जिसे विकर – संदमक संकुल (enzyme-inhibitor complex) कहते हैं। यदि संदमन अनुत्क्रमणीय (irreversible) हो तो संदमक निष्क्रिय कारक (inactivator) कहलाता है। संदमक कोशिकाओं में विकरों के नियंत्रण में विशेष भूमिका निभाते हैं। अधिकतर कृषि में प्रयुक्त महत्त्वपूर्ण कीटनाशक एवं खरपतवारनाशक (herbicides) विकर संदमक होते है।

संदमक दो प्रकार के होते है-

  1. अनुत्क्रमणीय संदमक (Irreversible inhibitors)

ये विकर के साथ सहसंयोजीबंघ (covalent bonds) बनाते हैं अथवा इन्हें विकृत (denature) कर देते हैं। उदाहरण- आइओडोएसिटेट (ICH1⁄2COOH), थाओल प्रोटीएज विकर जैसे- पेपेन (papian) को अनुत्क्रमणीय रूप से संदमित करता है। इसमें विंकर संरचना के कारण आय परिवर्तन वापस सामान्य अवस्था में नहीं आ सकते। इसमें यह इसके सक्रिय स्थल- SH का एल्काइली – करण ( alkylation) कर देता है।

  1. उत्क्रमणीय संदमक (Reversible inhibitors)

ये विकर के साथ कमजोर, असहसंयोजीबंध (noncovalent bonds) बनाते हैं ये निम्न तीन प्रकार के होते हैं-

 (i) प्रतियोगी संदमन (Competitive inhibition)

इस प्रकार के संदमन में संदमक एंव क्रियाधार दोनों के अणु विकर से संयुक्त होने के लिए प्रतियोगिता करते हैं। यदि संदमक की उच्च सान्द्रता होती है तो यह क्रियाधार को विस्थापित कर देता है। प्रतियोगी संदमन को क्रियाधार की सान्द्रता बढ़ा कर उलटा जा सकता है। इसमें संदमक क्रियाधार द्वारा विस्थापित हो जाता है तथा विकर सक्रियता की दर सामान्य क्रियाधार के लिए बढ़ जाती है। उदाहरण- सक्सीनिक डीहाइड्रोजीनेज का मैलोनिक अम्ल द्वारा संदमन ।

कई जीवाणुनाशियों की क्रियाविधि एन्जाइम के प्रतियोगी संदमन पर आधारित होती है। p-अमीनो बेन्जोइक अम्ल (को- एन्जाइम) के उपापचयन में सल्फा ड्रग्स प्रतियोगी संदमक होते हैं।

(i) अप्रतियोगी संदमन (Non-competitive inhibition)

संदमक विकरों के विभिन्न कार्यकारी समूहों से क्रिया करते हैं। जिससे यह विकर द्वारा उत्प्रेरित अभिक्रियाओं को रोक देते है। इसके फलस्वरूप विकर नष्ट हो जाता है। अप्रतियोगी संदमन को क्रियाधार की सान्द्रता बढ़ा कर उल्टा नहीं जा सकता है।

अप्रतियोगी संदमक अतिविशिष्ट नहीं होते हैं इसलिए यह अनुत्क्रमणीय प्रकार से विकर से जुड़ जाते हैं। अनेक SH समूह युक्त विकर Hg एवं As से संदमित होते हैं। इसी प्रकार Cu अथवा Fe युक्त विकर CN द्वारा संदमित होते हैं। यह सायनाइड इन तत्वों से क्रिया करके विकर क्रिया में उनकी भूमिका को रोकते हैं।

(ii) संकुल संदमन (Mixed inhibition)

इस प्रकार के संदमन में विकर, क्रियाधार एवं संदमक मिलकर एक संकुल (complex) बनाते हैं जो कि टूटता नहीं है तथा उत्पाद नहीं बन पाते हैं।

E= विकर, 1 = संदमक, ES = विकर-क्रियाधार संकुल, P = उत्पाद, ESI विकरक्रियाधार संदमक संकुल, K1 = EI के निर्माण का वेग स्थिरांक एवं K1‘ = ESI के निर्माण एवं वियोजन का वेग स्थिरांक ।

विकर की सक्रियता को प्रभावित करने वाले कारक (Factors affecting enzyme activity)

  1. क्रियाधार की सान्द्रता ( Substrate concentration).

क्रियाधार की सान्द्रता बढ़ाने से विकर सक्रियता बढ़ती है। सान्द्रता बढ़ाने पर यह अधिकतम होकर फिर से गिर जाती है क्योंकि क्रियाधार की इस सान्द्रता पर विकर की मात्रा सीमित हो जाती है।

क्रियाधार की सान्द्रता का एन्ज़ाइम सक्रियता के प्रति दो प्रकार के ग्राफ प्राप्त होते हैं। यदि एन्जाइम एक इकाई के बने होते हैं तब सीधी रेखा अथवा माइकेलिस प्रकार (Michaelis type) का ग्राफ प्राप्त होता है।

परन्तु यदि यह विकर अनेक उप इकाइयों के बने हों तथा इनमें अन्तः क्रिया (एलोस्टेरिक एन्जाइम) होने पर ग्राफ में सिग्माइडल प्रकार का वक्र पाया जाता है।

  1. विकर की सान्द्रता (Concentration of enzymes)

किसीअभिक्रियामेंविकरोंकीसान्द्रताबढ़ानेसेविकरसक्रियता बढ़ी हुई पायी जाती है। क्रियाधार की अधिकता में विकर सान्द्रता को दुगना करने उत्पाद बनने की दर दुगनी हो जाती है। परन्तु विकर की किसी सान्द्रता पर एक बिन्दु पर सभी क्रियाधार के अणु विकर से संयुक्त हो जाते हैं। इस स्थिति में विकर की मात्रा बढ़ाने पर उत्पाद बनने की दर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

3.तापमान का प्रभाव (Effect of temperature)

तापमान से विकर क्रिया अत्यधिक प्रभावित होती है। अभिक्रिया का तापमान 10° बढ़ाने पर अभिक्रिया दर दुगनी हो जाती है। | परन्तु 40°C-60°C पर विकर की सक्रियता घट जाती है क्योंकि इस तापमान पर प्रोटीन का विकृतिकरण हो जाता है (चित्र-10.) परन्तु कुछ विकर 60°C तापमान पर भी सक्रिय रहते हैं। शुष्क ऊतकों जैसे- बीज एवं बीजाणु के विकर उच्च ताप के प्रति प्रतिरोधी होते हैं।

आयनों का प्रभाव (Effect of ions)

बहुत से विकर धनायनों जैसे – Mg 2+, Ca2+, Mn2 +, Zn 2 + Na + अथवा K + की उपस्थिति में सक्रिय होते हैं। यह धनायन विकर अथवा क्रियाधार से अदृढ़ रूप से आबद्ध रहते हैं। कुछ स्थितियों में ऋणायनों की उपस्थिति में भी विकर सक्रियता बढ़ जाती है। आयनों की सान्द्रता से भी विकर सक्रियता प्रभावित होती है।

  1. pH का प्रभाव (Effect of pH )

विकर प्रोटीन से बने होते है इसलिए यह pH परिवर्तन के प्रति बहुत ही संवेदनशील होते हैं। विकर सक्रियता का pH के प्रति ग्राफ घण्टाकार (bell shaped) होता है (चित्र 11 ) । सभी विकरों का एक अनुकूलतम pH मान होता है जोकि विकरों की प्रकृति पर आधारित होता है । परन्तु कुछ विकरों में दो अनुकूलतम pH हो सकते हैं अथवा कुछ में pH मान की एक परास (range) होती है ।

अनुकूलतम pH पर विकरों की सक्रियता अधिकतम होती है। अधिकतर विकरों की प्रभावी PH परास 4-9 की होती है। इससे अधिक pH पर विकरों का विकृतिकरण (denaturation) हो जाता है।

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