हिंदी माध्यम नोट्स
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History
chemistry business studies biology accountancy political science
Class 12
Hindi physics physical education maths english economics
chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology
English medium Notes
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
Class 12
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
पूंजीवाद को समझने में मैक्स वेबर के दृष्टिकोण का विश्लेषण कीजिए max weber thoughts on capitalism in hindi
max weber thoughts on capitalism in hindi पूंजीवाद को समझने में मैक्स वेबर के दृष्टिकोण का विश्लेषण कीजिए ?
पूँजीवाद के बारे में मैक्स वेबर के विचार
पूँजीवाद पर मैक्स वेबर द्वारा किये गए विश्लेषण की इन उप भागों में चर्चा की जाएगी। इस अध्ययन से स्पष्ट होगा कि मैक्स वेबर ने पूँजीवाद का स्वतंत्र और अधिक जटिल विश्लेषण प्रस्तुत किया। वेबर ने एक विशिष्ट प्रकार के पूँजीवाद “तर्कसंगत पूँजीवाद‘‘ का वर्णन किया। उसके अनुसार “तर्कसंगत पूँजीवाद‘‘ पाश्चात्य देशों (पश्चिम यूरोप और उत्तरी अमरीका के देश) में पूरी तरह विकसित हुआ। तर्कसंगति की अवधारणा और उससे संबंधित प्रक्रिया मूलतः पाश्चात्य है। “तर्कसंगति‘‘ और ‘‘तर्कसंगत पूँजीवाद‘‘ के बीच संबंध को समझना जरूरी है। इसीलिए, सबसे पहले तर्क संगति के बारे में मैक्स वेबर के विचारों की चर्चा की जाएगी।
तर्कसंगति के बारे में वेबर के विचार
पूँजीवाद के बारे में मैक्स वेबर के विचारों को समझने के लिए तर्कसंगति की उसकी अवधारणा को समझना जरूरी है। पश्चिमी देशों में तर्कसंगति का विकास पूँजीवाद से जुड़ा रहा है। तर्कसंगति तथा तर्कसंगतिकरण से वेबर का क्या तात्पर्य है? आपने खंड 4 की इकाई 15 में पढ़ा था कि तर्कसंगति वैज्ञानिक विशिष्टीकरण का परिणाम है जो पाश्चात्य संस्कृति की अनोखी विशेषता है। यह बाहरी दुनिया पर स्वामित्व और नियंत्रण प्राप्त करने से संबंधित है। इसके अंतर्गत मानव जीवन को सुसंगठित करने का प्रयास है जिसमें कार्यकुशलता बेहतर हो और उत्पादकता बढ़े।
संक्षेप में, तर्कसंगत बनाने का तात्पर्य मानवीय गतिविधियों को ऐसे नियमित और निर्धारित तरीके से व्यवस्थित और समन्वित करना है जिससे परिवेश पर मानवीय नियंत्रण कायम हो सके। घटना-क्रम को प्रकृति या किस्मत के भरोसे नहीं छोड़ा जाता। लोगों को अपने आस-पास के परिवेश के व्यवस्था की ऐसी समझ हो जाती है कि प्रकृति रहस्मय और अनिश्चित नहीं रह जाती। विज्ञान और तकनीकी, लिखित नियमों और कानूनों के द्वारा मानवीय गतिविधियाँ सुसंबद्ध हो जाती हैं। रोजमर्रा की जिंदगी से एक उदाहरण लें। किसी कार्यालय में एक पद रिक्त होता है। इस पर भर्ती का एक तरीका यह है कि अपने किसी मित्र या संबंधी को नियुक्त कर दिया जाए। लेकिन वेबर के अनुसार यह तर्कसंगत नहीं होगा। दूसरा तरीका यह है कि पद समाचार-पत्रों में विज्ञापित किया जाए, आवेदन करने वालों के लिए प्रतियोगी परीक्षा आयोजित की जाए, फिर साक्षात्कार परीक्षा हो और सर्वोत्तम परिणाम पाने वाला उम्मीदवार चुन लिया जाए। इस तरीके में कुछ नियमों और आचारों का पालन किया गया है। पहले तरीके में नियमित प्रक्रिया नहीं थी, जो दूसरे में अपनायी गयी। वेबर के अनुसार यह प्रक्रिया तर्कसंगतिकरण का उदाहरण कहलाती है।
तर्कसंगतिकरण और पाश्चात्य सभ्यता
वेबर के अनुसार, तर्कसंगतिकरण पश्चिमी सभ्यता का सबसे विशिष्ट लक्षण है। तर्कसंगति द्वारा प्रभावित पश्चिम देशों में ऐसी अनेक विशेषताएँ शामिल हैं जो विश्व के किसी और भाग में एक साथ कभी नहीं पायी गई हैं। ये विशेषताएं निम्न हैं।
प) विज्ञान, यानी पश्चिमी देशों में सुविकसित, प्रमाणित किये जा सकने वाले ज्ञान का भंडार
पप) एक तर्कसंगत राज्य, जिसमें विशिष्टीकृत संस्थाएं, लिखित नियम तथा राजनीतिक गतिविधि को नियमित करने के लिए संविधान हो।
पपप) कलाएं, जैसे पाश्चात्य संगीत, जिसमें स्वरलिपि प्रणाली हो, अनेक वाद्यों का क्रमबद्ध इस्तेमाल हो। इस स्तर की नियमितता अन्य संगीत प्रणालियों में नहीं है। आपको पश्चिमी मंदात के बारे में वेबर के विश्लेषण की और अधिक जानकारी कोष्ठक 21.1 में मिलेगी।
पअ) अर्थव्यवस्थाः तर्कसंगत पूँजीवाद में यह स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। अगले उपभागों में इन सब का विस्तृत विवरण होगा।
तर्कसंगति जीवन के कुछ पक्षों तक ही सीमित नहीं है। यह जीवन के हर क्षेत्र से जुड़ी है। पाश्चात्य समाज का यह सबसे विशिष्ट लक्षण है (देखें फ्राएंड 1972ः 17-24)।
कोष्ठक 21.1ः पाश्चात्य संगीत को तर्कसंगत बनाने के प्रयास
1911 में वेबर ने एक पुस्तिका लिखी रेशनल एंड सोशल फाउंडेशन म्यूजिक। इसमें उसने पाश्चात्य संगीत के विकास में बढ़ती तर्कसंगति का विश्लेषण किया। पाश्चात्य संगीत में सरगम का क्रम (ेबंसम) आठ सुरों (वबजंअम) में बंटा है और हर सुर की बारह तानें (दवजमे) होती हैं। मंद्र तथा तार स्वरों में समान ध्वनियों वाली तानें है। इसमें संगीत-लहरी एक नियमित क्रम में आगे या पीछे लायी जा सकती है। पाश्चात्य संगीत में “बहुस्वरता‘‘ (चवसलअवबंसपजल) भी होती है अर्थात् अनेक आवाजों में गायन तथा अनेक वाद्यों का वादन एक साथ एक ही तान में होता है। वेबर के अनुसार “बहुस्वरता‘‘ से वाद्यवृंद (व्तबीमेजतं) बनता है और इस तरह पाश्चात्य संगीत एक संगठित प्रयास बन जाता है। संगीतकारों की विशिष्ट भूमिका का तर्कसंगत ढंग से ताल मेल बिठाया जाता है। इस तरह संगीत भी नौकरशाही की तरह सुसंबद्ध हो जाता है। इसके अलावा पाश्चात्य संगीत के अंकन की अपनी स्वरलिपि प्रणाली है। संगीतकार अपनी संगीत-रचनाओं को इन स्वरलिपि प्रणाली में लिख लेते हैं और इस प्रकार उनके कार्य को मान्यता मिलती है, उन्हें सर्जन कलाकार के रूप में मान्यता मिलती है और अन्य संगीतकारों के लिए उनकी रचनाएं आदर्श बन जाती हैं। भावी संगीतकार उनकी नकल करने और उनसे भी आगे निकलने का प्रयास करते हैं। इस तरह पाश्चात्य संगीत एक निश्चित क्रम में व्यवस्थित और संगठित है। इसमें गतिशीलता है और एक-दूसरे से बेहतर कर दिखाने की प्रतिस्पर्धा है। एक तरह से संगीतकार संगीत के क्षेत्र के उद्यमी हैं।
आइए, अब देखें कि वेबर द्वारा दी गई तर्कसंगत अर्थव्यवस्था और तर्कसंगत पूँजीवाद अन्य आर्थिक प्रणालियों से किस प्रकार भिन्न हैं और उसने पूँजीवाद के विकास में सहायक सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था का किस प्रकार विवेचन किया।
परंपरागत और तर्कसंगत पूँजीवाद
खंड 4 की इकाई 15 में आपने “परंपरागत‘‘ और ‘‘तर्कसंगत‘‘ पूँजीवाद के अंतर का संक्षेप में अध्ययन किया। क्या पूँजीवाद मात्र लाभ कमाने वाली प्रणाली है? क्या पूँजीवाद के लक्षण मात्र लालच और धन-दौलत की लालसा ही है? इस रूप में पूँजीवादी प्रणाली दुनिया के अनेक भागों में मौजूद थी। प्राचीन बेबीलोन, भारत, चीन और मध्यकालीन यूरोप के व्यापारियों की शक्तिशाली श्रेणियों वाली प्रणाली भी इस अर्थ में पूँजीवादी प्रणाली ही थी। लेकिन ये तर्कसंगत पूँजीवाद नहीं था।
परंपरागत पूँजीवादी प्रणाली में ज्यादातर परिवार आत्म-निर्भर थे और अपनी बुनियादी जरूरत की वस्तुओं का स्वयं उत्पादन कर लेते थे। परंपरागत पूँजीवाद में केवल विलासिता की वस्तुओं का व्यापार होता था। बिक्री की वस्तुएं बहुत थोड़ी होती थीं और कुछ गिने-चुने लोग ही खरीदार होते थे। विदेश में व्यापार करना जोखिम भरा था। मुनाफे के लालच में ये व्यापारी बहुत ज्यादा कीमत पर वस्तुएं बेचते थे। व्यापार जुए जैसा था। अच्छा धंधा होने पर भारी लाभ होता था। पर कामयाबी न मिलने पर नुकसान भी बहुत ज्यादा होता था।
आधुनिक या तर्कसंगत पूँजीवाद विलासिता की कुछ दुर्लभ वस्तुओं के उत्पादन या बिक्री तक सीमित नहीं है। इसमें रोजमर्रा की जरूरत की तमाम साधारण चीजें खाद्य पदार्थ कपड़े, बर्तन, औजार आदि शामिल हैं। परंपरागत पूँजीवाद के विपरीत, तर्कसंगत पूँजीवाद गतिशील है और इसका दायरा फैलता जा रहा है। नये आविष्कार, उत्पादन के नये तरीके और नयी-नयी वस्तुए निरंतर विकसित की जा रही हैं। तर्कसंगत पूँजीवाद बड़े पैमाने पर उत्पादन और वितरण पर टिका है। वस्तुओं का लेन-देन पूर्व-निर्धारित और बार-बार दोहराए जाने वाले समान तरीके से ही होता है। व्यापार अब जुआ नहीं है। आधुनिक पूँजीपति कुछ चुने हुए लोगों को ऊँची कीमत पर चुनी हुई वस्तुएं नहीं बेचते । आधुनिक पूँजीवाद का लक्ष्य ज्यादा से ज्यादा लोगों को ज्यादा से ज्यादा वस्तुएं उचित दामों पर बेचना है।
संक्षेप में, परंपरागत पूँजीवाद कुछ उत्पादकों, कुछ वस्तुओं और कुछ खरीदारों तक सीमित है। उसमें जोखिम बहुत ज्यादा है। व्यापार जुए जैसा है। दूसरी ओर, तर्कसंगत पूँजीवाद में सभी वस्तुओं को बिक्री-योग्य बनाने का लक्ष्य रहता है। इसमें बड़े पैमाने पर उत्पादन और वितरण होता है। व्यापार नियमबद्ध होता है। इस चर्चा में, हमने परंपरागत और तर्कसंगत पूँजीवाद के अंतर को समझा। तर्कसंगत पूँजीवाद किस प्रकार के सामाजिक-आर्थिक वातावरण में पनपता है? अब तर्कसंगत पूँजीवाद के विकास के लिए अनिवार्य परिस्थितियों की चर्चा की जाएगी।
बोध प्रश्न 2
निम्नलिखित प्रश्नों का तीन पंक्तियों में उत्तर दें।
प) तर्कसंगतिकरण से वेबर का क्या तात्पर्य है?
पप) परंपरागत पूँजीवाद में व्यापार कैसे किया जाता था?
बोध प्रश्न 2 उत्तर
प) तर्कसंगतिकरण से वेबर का अभिप्राय दुनिया और मानवीय जीवन-दोनों के संगठन से है। बाहरी दुनिया पर नियंत्रण किया जाना था और मानवीय जीवन को ऐसे व्यवस्थित किया जाना था ताकि ज्यादा से ज्यादा कुशलता और उत्पादकता बढ़े। कुछ भी प्रकृति या भाग्य के भरोसें नहीं छोड़ा गया।
पप) परंपरागत पूँजीवाद में व्यापार को जुआ समझा जाता था। बिक्री की वस्तुएँ सीमित और अक्सर बहुत कीमती होती थीं। खरीदार बहुत कम थे। विदेशी व्यापार जोखिम भरा था। व्यापार में भी जोखिम और अनिश्चितता थीं।
Recent Posts
द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन क्या हैं differential equations of second order and special functions in hindi
अध्याय - द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन (Differential Equations of Second Order…
नियत वेग से गतिशील बिन्दुवत आवेश का विद्युत क्षेत्र ELECTRIC FIELD OF A POINT CHARGE MOVING WITH CONSTANT VELOCITY in hindi
ELECTRIC FIELD OF A POINT CHARGE MOVING WITH CONSTANT VELOCITY in hindi नियत वेग से…
four potential in hindi 4-potential electrodynamics चतुर्विम विभव किसे कहते हैं
चतुर्विम विभव (Four-Potential) हम जानते हैं कि एक निर्देश तंत्र में विद्युत क्षेत्र इसके सापेक्ष…
Relativistic Electrodynamics in hindi आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा
आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा Relativistic Electrodynamics in hindi ? अध्याय : आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी…
pair production in hindi formula definition युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए
युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए pair production in hindi formula…
THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा
देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi…