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मुंच की द्रव्यमान प्रवाह परिकल्पना क्या है , Mass flow hypothesis in hindi , समर्थन , दोष
पढ़िए मुंच की द्रव्यमान प्रवाह परिकल्पना क्या है , Mass flow hypothesis in hindi , समर्थन , दोष ?
द्रव्यमान प्रवाह परिकल्पना (Mass flow hypothesis)
यह परिकल्पना सर्वप्रथम मुन्च (Munch. 1930) ने दी तथा बाद में क्राफ्ट्स (Crafts, 1938) तथा अन्य लोगों ने इसका विस्तार (elaborated) किया ।
इसके अनुसार फ्लोएम में कार्बनिक विलेयों का प्रवाह समूचे द्रव्यमान (eninass) के रूप में स्फीति दाब प्रवणता (turgx pressure gradient) के अनुसार कार्बनिक विलयों की उच्च सांद्रता अर्थात स्रोत से निम्न सांद्रता अर्थात सिंक की ओर होत है ।
इस परिकल्पना के मुख्य आधार नियम को हम चित्र द्वारा समझ सकते हैं। इसमें अर्धपारगम्य झिल्ली से घिरे हुए दो कक्ष A एवं B एक दूसरे से एक नलिका T द्वारा जुड़े रहते हैं। इन दोनों कक्षों को एक बड़े पात्र में रखा जाता है जिसस जल भरा रहता है। A कक्ष में अधिक सांद्रता युक्त शर्करा का विलयन लिया जाता है तथा B कक्ष में शर्करा को तनु विलयन लिया जाता है। कक्ष A का परासरण दाब ( osmotic pressure) B कक्ष से अधिक होता है अतः जल कक्ष A में प्रविष्ट जाता है तथा इसका स्फीति दाब (turgor pressure) बढ़ जाता है। बढ़े हुए स्फीति दाब (TP) के कारण एवं स्फीति दर प्रवणता (turgor pressure gradient) के कारण शर्करा A से B में जाने लगती है। यह प्रक्रिया दोनों कक्षों A एवं B में शर्कर की सांद्रता एक समान होने तक चलती रहती है।
मुन्च के अनुसार पादपों में लगभग इसी प्रकार की प्रक्रिया होती है। पादपों में पर्णमध्योतक कोशिकाओं (mesophy cells) में प्रकाशसंश्लेषण के कारण कार्बोहाइड्रेट (मुख्यतया शर्करा सूक्रोस) सतत बनते रहते हैं। अतः इन कोशिकाओं विलेय कार्बनिक पदार्थों की अधिकता के कारण इन का परासरण दाब (OP) बढ़ जाता है तथा वे कोशिकाएं आस-पास की कोशिकाओं से जल अवशोषित कर लेती हैं। ये स्रोत सिरे के रूप में कार्य करती हैं, अतः इन का स्फीति दाब (TP) बट जाता है एवं इनमें से कार्बनिक विलेयकों का चालन फ्लोएम की ओर होता है। दूसरी ओर पादप मूल, फल, बीज अथव अन्य पादप अंग जहाँ पदार्थों का संचय होता है अथवा उपापचयी परिवर्तन (metabolic changes) होते हैं, सिंक के समान कार्य करते हैं। यहाँ पर शर्करा की सांद्रता कम होती है क्योंकि यहाँ शर्करा मंड अथवा अन्य अविलेय संचयी उत्पादों में बदल जाती है अथवा उसका उपयोग हो जाता है। इससे इन कोशिकाओं का परासरणी दाब एवं स्फीति दाब (TP) कम हो जाते हैं एवं पर्णमध्योतक कोशिकाओं से इन कोशिकाओं तक स्फीति दाब प्रवणता (TP gradient) स्थापित हो जाती है एवं शर्करा इस दिशा में गति करती है। सिंक कोशिकाओं में जलाधिक्य होने पर कुछ जल जायलम में चला जाता है।
मुन्च की परिकल्पना को निम्न तथ्यों से समर्थन प्राप्त होता है –
- किसी शाकीय अथवा काष्ठीय पादप के तने का वलयन (ringing) करने पर निकलने वाले निःस्राव में शर्करा की उच्च सांद्रता होती है।
- पत्तियों को हटा देने पर सांद्रता प्रवणता (concentration gradient) समाप्त हो जाता है।
- छाया में स्थित पत्तियों की अपेक्षा प्रकाश में स्थित पत्तियों में हार्मोन तथा अन्य पदार्थों का चालन अधिक तेजी से होता है।
मुन्च परिकल्पना के दोष (Demerits of Munch hypothesis)
- यह परिकल्पना एकदिशीय (unidirectional) प्रवाह को ही निरूपित करती है, जबकि रेडियोधर्मी ट्रेसर तकनीक से प्रतीत होता है कि पदार्थों का गमन दोनों दिशाओं में होता है।
- ऐसा माना जाता है कि संभवतः स्रोत स्थल पर TP इतना अधिक नहीं होता कि वह शर्करा के द्रव्यमान प्रवाह (mass flow) को प्रेरित कर सके ।
- इलैक्ट्रान सूक्ष्मदर्शी के द्वारा अध्ययन से ज्ञात होता है कि फ्लोएम की चालनी पट्टिकाओं के छिद्र प्रोटीन व अन्य पदार्थों की उपस्थिति के कारण लगभग बन्द होते हैं जबकि द्रव्यमान प्रवाह के अनुसार विसरण प्रतिरोध (diffusion resistance) नहीं होना चाहिये ।
- स्रोत स्थल पर स्फीति दाब (TP) सदा उच्च मान वाला नहीं होता ।
- यह परिकल्पना मुख्यतः भौतिक लक्षणों पर आधारित है जबकि स्थानांतरण की पूरी प्रक्रिया पादप उपापचय एवं उपापचयी ऊर्जा पर निर्भर करती है।
स्थानांतरण के बारे में अभी तक कोई पूर्ण संतोषजनक सिद्धान्त अथवा परिकल्पना नहीं दी गई है, हालांकि सर्वाधिक उपयुक्त द्रव्यमान प्रवाह परिकल्पना मानी जाती है। ऐसा भी संभव है कि स्थानांतरण किसी एक क्रियाविधि से न हो कर दो अथवा अधिक प्रकार से होता है।
कार्बनिक विलेय स्थानांतरण को प्रभावित करने वाले कारक (Factors affecting transport of organic solutes)
विभिन्न पर्यावरण कारकों एवं आन्तरिक परिस्थितियों का विलेय स्थनांतरण पर प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। इनमें कुछ इस प्रकार हैं-
- तापमान (Temperature)
तापमान स्थानांतरण को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों तरीकों से प्रभावित करता है क्योंकि यह स्थानांतरण के अतिरिक्त उपापचयी क्रियाओं यथा प्रकाश संश्लेषण एवं श्वसन इत्यादि को भी प्रभावित करता है। स्वैनसन एवं व्हिटनी (Swanson and Whitney, 1953) के अनुसार पत्ती के बाहर स्थानांतरण तापमान द्वारा अत्यधिक प्रभावित होता है। सामान्यतः 25-35°C पर यह उच्चतम होता है एवं निम्न तापमान पर बहुत कम हो जाता है। हालांकि यह प्रभाव अस्थायी होता है क्योंकि प्रबल सांद्रता प्रवणता (high concentration gradient) के कारण यह शीघ्र ही सामान्य गति से होने लगता है।
हार्ट एवं साथियों (Hartt et al, 1965) ने बताया कि प्ररोह की अपेक्षा जड़ों के तापमान में परिवर्तन स्थानांतरण को अ क प्रभावित करता है। तापमान बढ़ने के साथ ही पत्तियों से प्ररोह की अपेक्षा मूल की ओर स्थानांतरण बढ़ जाता है।
- प्रकाश (Light)
प्रकाश भी संभवतः प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से स्थानांतरण को प्रभावित करता है। हार्ट एवं साथियों (Hartt er al, 1964) ने पाया कि गन्ने में स्वांगीकृत पदार्थों (assimilates) का स्थानांतरण प्रकाश की अनुपस्थिति में लगभग आधा (50%) रह जाता है। प्रकाश की कम तीव्रता से मूल एवं प्ररोह वृद्धि संदमित हो जाती है एवं मूल तंत्र में स्थानांतरण को भी विपरीत रूप से • प्रभावित करती है। 650-760 nm तरंगदैर्ध्य के प्रकाश से स्थानांतरण दर बढ़ जाती है।
- ऑक्सीजन (Oxygen)
स्थानांतरण में, विशेषकर शिरा भारण के समय, ऑक्सीजन की उपस्थिति आवश्यक होती है क्योंकि संभवतः इसके लिए ATP की आवश्यकता होती है।
- सान्द्रता प्रवणता (Concentration gradient)
अधिकांशतः स्थानांतरण विलेयों की उच्च सांद्रता युक्त क्षेत्रों (स्रोत) से निम्न सांद्रता वाले स्थल (सिंक ) की ओर होता है, अतः अधिक प्रवणता होने पर स्थानांतरण भी तीव्र गति से होता है।
- उपापचयी कारक (Metabolic factors)
स्थानांतरण की आवश्यक प्रक्रियाओं शिरा भारण (loading) एवं अपभारण (unloading) में ऊर्जा की आवश्यकता होती है, अतः स्रोत एवं सिंक की उपापचयी अवस्था (metabolic state) इन्हें प्रभावित करती है। प्रकाश संश्लेषण एवं श्वसन को प्रभावित करने वाले कारक अप्रत्यक्ष रूप से स्थानांतरण को भी प्रभावित करते हैं।
विलेय स्थानांतरण पादप में आर्द्रता प्रतिबल (moisture stress) के कारण प्रभावित होता है विशेषकर पत्ती से बाहर की ओर स्वांगीकारकों (assimilates) का प्रवाह इसके प्रति अधिक संवेदी होती है।
कुछ खनिज लवणों की उपस्थिति / अनुपस्थिति स्थानांतरण की गति को प्रभावित करती है। गन्ने में K+ की सांद्रता कम होने पर स्थानांतरण दर कम हो जाती है। बोरोन की उपस्थिति में स्थानांतरण दर बढ़ जाती है। संभवतः सूक्रोस-बोरेट के लिए प्लाज्मा झिल्ली की पारगम्यता अधिक होने के कारण ऐसा होता है।
- हार्मोन (Hormones)
जिबरेलिन ऑक्सिन एवं सायटोकाइनिन कुछ हद तक फ्लोएम में स्थानांतरण को प्रभावित करते हैं। IAA एवं GA स्थानांतरण की गति को बढ़ाते हैं। सायटोकाइनिन की उपस्थिति में उस ओर स्थानांतरण अधिक होता है।
- अन्य (Other)
पादपों में कुछ परजीवियों की उपस्थिति के कारण अतिरिक्त सिंक बन जाते हैं क्योंकि वे परपोषी से स्वयं के लिए भोजन अवशोषित करते हैं। इससे पादपों में अन्य स्थानों की ओर फ्लोएम स्थानांतरण में कमी हो जाती है।
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