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Categories: Biology

Malpighian corpuscle in hindi , मैलपीघी कोष क्या है , वन लैप्सूल व ग्लोमेरूल्स किसे कहते हैं कार्य

जानेंगे Malpighian corpuscle in hindi , मैलपीघी कोष क्या है , वन लैप्सूल व ग्लोमेरूल्स किसे कहते हैं कार्य ?

प्रत्येक नलिका निम्न पाँच भागों में मिलकर बनी होती है

(a) मैलपीधी कोष (Malpighian corpuscle) (वन लैप्सूल व ग्लोमेरूल्स)

(b) समीपस्थ कुण्डलित भाग (Proximal convoluted part) (PCT)

(c) हेनले का लूप ( Henle’s loop)

(d) दूरस्थ कुण्डलित भाग (Distal convoluted part) (DCT)

(e) संग्रह नलिका (Collecting tubule)

उपरोक्त भागों का वर्णन निम्नलिखित प्रकार से है :

  • मैलपीघी कोष (Malpighian corpuscle ) : यह रचना वृक्क नलिका का प्रथम भाग बनाती है। इसका व्यास 3 मि.मी. होता है। इस भाग में एक प्यालेनुमा रचना होती है जिसे बोमेन सम्पुट (Bowman’s capsule) कहते हैं। यह शल्की उपकला (squamous epithelial) कोशिकाओं द्वारा रेखित होता है। वक्क धमनी (renal artery) वृक्क में अन्दर प्रवेश करके अनेक छोटी-छोटी शाखाओं में विभाजित हो जाती है जो अभिवाही धमनिकाएँ (afferent arterioles) कहलाती है। प्रत्येक अभिवाही धमनिका बोमेन सम्पुट के भीतर अनेक शाखाओं में विभाजित होती हैं जो अपवाही धमनिकाएँ (efferent arterioles) कहलाती है। इनकी संख्या एक बर्मिन सम्पुट में 35 से 50 होती है। इस प्रकार बोमेन सम्पुट के भीतर अभिवाही तथा अपवाही कोशिकाओं द्वारा निर्मित जटिल गुच्छ (bunch) स्थित रहता है। इसे केशिका गुच्छ या गलोमेरूलस (glomerules) कहते हैं। इस प्रकार प्राप्त केशिका गुच्छ एवं बोमेन सम्पुट मिलकर मैलपीजी कोष (malpighian corpuscle) का निर्माण करते हैं। यह वृक्क के कर्टिक्स वाले भाग में पाया जाता है। केशिका गुच्छ में अत्यधिक रूधिर दाब होने के कारण रूधिर से अनेक पदार्थ छनकर बोमेन सम्पुट की गुहा में आ जाते हैं। इन्हें ग्लोमेरूलर निस्पंद (glomerular filtrate) कहा जाता है।
  • चित्र 10: मैल्पीघी कोष की रचना
  • (ii) समीपस्थ कुण्डलित भाग (proximal convoluted tubule) : बोमेन सम्पुट आगे चलकर एक पतली कुण्डलित नलिका में परिवर्तित हो जाता है जिसे समीपस्थ कुंडलित भाग कहते हैं। यह भी कॉर्टेक्स में पाया जात है तथा इसकी लम्बाई लगभग 15 मि.मी. होती है। इसका व्यास लगभग 50 अथवा 05 मि.मी. होता है। यह रचना घनाकार उपकला ( cuboidal epithelial) कोशिकाओं द्वारा रचित होती है। इन कोशिकाओं के मुक्त सिरों पर अनेक सूक्ष्म रसांकुर (microvilli) पाये जाते हैं जो पदार्थों के अवशोषण में सहायक होते हैं। मुक्ष्य रसांकुर की उपस्थिति के कारण समीपस्थ कुण्डलित भाग द्वारा वृक्क निस्पंद से पदार्थों के अवशोषण की क्षमता बढ़ जाती है। वृक्क नलिका का यह भाग ग्लोमेरूलर निस्पंद के पदार्थों के अवशोषण (absorption) का कार्य करता है: ये पदार्थ मुख्यतया पानी, लवण, ग्लूकोस इत्यादि होते हैं।
  • (iii) हेनले का लूप (Henle’s loop) : समीपस्थ कुण्डलित नलिका का भाग एक “U” के आकार की रचना में खुलता है इसे हेनले का लूप कहते हैं। यह मेड्यूला में पाया जाता है। इसकी चित्र 11 वृक्क नलिका की संरचना
  • विभेदित रहती है। ये दोनो भुजाएँ एक दूसरे के समानान्तर (parallel) होती है। अवरोही भुजा समीपस्थ कुण्डलित नलिका से तथा आरोही भुजा दूरस्थ कुण्डलित नलिका से जुड़ी रहती हैं। अवरोही भुजा आरोही की अपेक्षा भुजा दूरस्थ कुण्डलित नलिका से जुड़ी रहती है। अवरोही भुजा आरोही की अपेक्षा कम मोटी (thick) होती है। यह अन्तर केवल स्तनियों की वृक्क नलिका में पाया जात है। हेनले के लूपका आकार पिरैमिड के आकार से सम्बन्धित होता है। वृक्क नलिका का यह भाग मरूस्थल में पाये जाने वाले जन्तुओं (जैसे ऊँट) में अत्यधिक बड़ा होता है जिससे यह जन्तु अधिक पानी का अवशोषण कर सकते हैं तथा अत्यधिक सान्द्र मूत्र का निर्माण होता है।
  • (iv) दूरस्थ कुण्डलित नलिका (Distal convoluted tubule) : हेनले लूप की आरोही भुजा कॉर्टिक्स वाले भाग में प्रवेश करके पुनः कुण्डलित हो जाती है। इस प्रकार दूरस्थ कुण्डलित नलिका का निर्माण होता है। यह भाग समीपस्थ कुण्डलित भाग की तरह घनाकार कोशिकाओं द्वारा रेखित होता है। परन्तु इन कोशिकाओं के मुक्त सिरों पर सूक्ष्म रसांकुरों (microvilli) का अभाव होता है। यह भाग वृक्क नलिका की गुहिका में उपस्थित ग्लोमेरूलर निस्पंद में अनेक उत्सर्जी पदार्थों के स्त्रावण (secretion) का कार्य करता है।
  • (v) संग्रह नलिका (Collecting tubule): यह वृक्क नलिका का आन्तम भाग होता है जिसमें एक या अधिक दूरस्थ कुण्डलित नलिकायें खुलती है। यह नलिका मुख्यतया स्तम्भकार कोशिकाओं (columnar cell) द्वारा रेखित होती है। इस भाग का मुख्य निस्पंद से पानी
  • चित्र 12: वृक्क नलिका
  • का अवशोषण करना होता है। सभी संग्रह नलिकायें वृक्क के श्रोणि या पेल्विस वाले भाग में खुलती है जहाँ पर मूत्र सर्वप्रथम एकत्रित होता है। सभी संग्रह नलिकायें अन्त में एक ही स्थान पर अभिसारित होकर मूत्रवाहिनी के अगले चौड़े व शंकुरूपी (cone like ) रीनल पेल्विस (renal pelvis) भाग से खुल जाती है। यह भाग वृक्क के हाइलम (hilum) भाग से भीतर की ओर धँसा रहता है।
  • उच्च पृष्ठवंशियों में पाये जाने वाले मेटानेफ्रिक (metanephric) वृक्क में मैलपीधी कोष, समीपस्थ कुण्डलित भाग एवं दूरस्थ कुण्डलित भाग कॉर्टेक्स में तथा हेनले का लूप एवं संग्रह नलिका मेड्यूला में उपस्थित रहते हैं।
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