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Categories: BiologyBiology

फुफ्फुस मछली या मीन (lungfish in hindi) | इक्थियोफिस (Icthyophis meaning in hindi) सैलामैंड्रा (salamandra)

फुफ्फुस मछली या मीन (lungfish in hindi) | इक्थियोफिस (Icthyophis meaning in hindi) सैलामैंड्रा (salamandra) क्या होती है ? किसे कहते है समझाइये ?

फुफ्फुस मछली या मीन (lung fish) : जीवाश्म अभिलेखों से यह संकेत मिलता है कि डिवोनी कल्प में स्वच्छ जल की अविश्वसनीय दशा के प्रति अनुकूलन के फलस्वरूप प्राचीन अस्थिल मछलियों में फेफड़े विकसित हुए। ये मछलियाँ फुफ्फुस मीन या फुफ्फुसीय मछली कहलाती है। आधुनिक फुफ्फुस मछलियाँ प्रोटोप्टैरस , लेपिडोसाइरेन और निओसिरैटोडस द्वारा निरुपित होती है। इनमें से प्रोटोप्टैरस – अफ्रीका महाद्वीप में , लेपिडोसाइरेन दक्षिणी अमेरिका में और निओसिरैटोडस ऑस्ट्रेलिया में पायी जाती है।

प्रोटोप्टेरस अथवा अफ्रीकी फुफ्फुस मीन (protopterus or african lung fish)

वर्गीकरण (classification) :

संघ – कॉर्डेटा

उपसंघ – वर्टीब्रेटा

अधिवर्ग – पिसीज

वर्ग – ऑस्टिक्थीज

उपवर्ग – कोएनिक्थीज गण – लैपिडोसाइरेनिफोर्मीज

वंश – प्रोटोप्टेरस

स्वभाव और आवास (habits and habitats)

उष्णकटिबंधीय अफ्रीका की नदियों सेगेनल , वाइट नाइल तथा जेम्बेजी और टेंगानिका झील में इसकी 4 जातियाँ पायी जाती है .इनकी लम्बाई एक अथवा दो मीटर और भार 40 किलोग्राम तक होता है।

यह मछली बिलकारी जीवन के अनुकूल होती है। यह कीचड़दार जल में बनाये बिलों में रहती है। शुष्क मौसम होने पर ये मिट्टी में श्लेष्म से आस्तरित बिलों अथवा घोंसलों में विश्राम करती है और ग्रीष्म निद्रा (aestivation) में रहती है। इसका शरीर लम्बा , बेलनाकार , सर्पमीन सदृश तथा पूर्णरूपेण चक्राभ शल्कों से ढका होता है। इसके पृष्ठ तथा पुच्छीय पंख परस्पर जुड़े होते है। इसके शरीर में छ: क्लोम चाप तथा पाँच विदरें होती है।

लारवा प्रावस्था के गिल अवशेषी अंगों की तरह जीवनपर्यन्त रहते है। सम्पूर्ण देहगुहा में फैले हुए दो फुफ्फुस अथवा वायुकोष होते है। पश्च रेखा सुविकसित होती है। अन्त:कंकाल अधिकतर उपास्थिल होता है।

पृष्ठ उपास्थिल कशेरुकी चापों सहित स्थायी होता है। लेकिन कशेरुकी सेन्ट्रा का अभाव होता है। मादा में युग्मित अंडवाहिनियाँ आगे की ओर प्रगुहा में खुलती है।

नर में शुक्रवाहिनियाँ गुर्दे के उत्सर्जी भाग में से होकर शुक्राणु ले जाती है। निषेचन बाहरी होता है। परिवर्धन में कायान्तरण होता है। मादा द्वारा कीचड़ में बने अंडाकार गद्दे अथवा घोसलें में अंडे देने के पश्चात् नर उनको निषेचित कर उनकी कर्मठतापूर्वक सुरक्षा करता है अर्थात नर में पैतृक रक्षण पाया जाता है। इसके श्रेणी पंखों में जनन काल में संवहनी गुच्छे विकसित हो जाते है। नर समय समय पर वायुमंडलीय हवा को निगलने के लिए घोंसले को छोड़ता है और उसके श्रेणी पंखों के नव वातित रुधिर से O2 अण्डों और बच्चों के समीप उनके श्वसन में वृद्धि के लिए विसरित हो जाती है।

इक्थियोफिस (Ichthyophis)

वर्गीकरण (classification) :

संघ – कॉर्डेटा

समूह – क्रेनिएटा

उपसंघ – वर्टीब्रेटा

विभाग – ग्नैथोस्टोमेटा

अधिवर्ग – टेट्रापोडा

वर्ग – एम्फिबिया

गण – एपोडा

वंश –  इक्थियोफिस (Icthyophis)

स्वभाव और आवास (habits and habitats)

यह उष्णकटिबंधीय प्रदेशों में पाया जाने वाला उभयचर प्राणी है जो भारत , श्रीलंका , फिलीपाइन , बोर्नियो , जावा तथा मक्सिको से अर्जेन्टाइना तक पाया जाता है। कटिबंधीय क्षेत्रों में एपोडा गण का एकमात्र जीवित प्रारूप है। यह प्राय: बिल बनाकर रहता है और बिल में जीवन व्यतीत करने के लिए यह बिलों में रहने हेतु अनुकूलन दर्शाता है। इस जन्तु की आँखे अविकसित होती है। इसे साधारणतया सिसीलियन जन्तु कहा जाता है। इसका शरीर कृमीसदृश , दुर्बल , पादविहीन तथा लगभग 30 सेंटीमीटर लम्बा होता है। इसकी त्वचा चिकनी , अनुप्रस्थ रूप से वलित तथा अनुप्रस्थ पंक्तियों में व्यवस्थित छोटे कैल्सियम शल्कों से बनी होती है। त्वचा में उत्क्षेपण ग्रंथियां होती है जिनसे जलन उत्पन्न करने वाला तरल पदार्थ निकलता है। सिर पर नासा छिद्र , अविकसित नेत्र तथा एक जोड़ी संवेदी स्पर्शक होते है। नर और मादा अलग अलग होते है। नर का मैथुनांग बहिर्क्षेपित (बाहर की ओर पलटने वाला) होता है जो एक प्रगतिशील लक्षण है। गर्भाधान आंतरिक होता है। मादा जल में अण्डों का निक्षेपण करती है। और अंडे देने के पश्चात् भेक शिशु निकलने तक उनके चारों ओर कुंडलित होकर उनकी रक्षा करती है। उनका यह गुण पैतृक रक्षण कहलाता है।

इस जन्तु के विशिष्ट लक्षण निम्नलिखित है –

इक्थियोफिस का ह्रदय त्रिवेश्मी और धमनी शंकुकार विकसित होता है। मुत्रोत्सर्जी अंग तथा मस्तिष्क भी एम्फिबिया से समानता दर्शाते है।

सैलामैंड्रा (salamandra)

वर्गीकरण (classification) :
संघ – कॉर्डेटा
उपसंघ – वर्टीब्रेटा
अधिवर्ग – टेट्रापोड़ा
वर्ग – एम्फिबिया
गण – यूरोडेला अथवा कॉर्डेटा
उपगण – सैलामैंड्राइडिया
कुल – सैलामैंड्रिडी
वंश – सैलामैंड्रा

स्वभाव और आवास (habits and habitats)

यह यूरोप , पूर्वी एशिया और उत्तरी अमेरिका में पाया जाता है और इओसीन काल में वर्तमान तक उपस्थित है। यह स्थलीय जन्तु है जो लकड़ी के लट्ठो तथा पत्थरों के निचे और पुरानी दीवारों की दरारों में निवास करता है। साधारण रूप से सैलामैंड्रा को अग्नि सैलामैंडर के नाम से जाना जाता है क्योंकि प्रौढ़ की चमकीली काली त्वचा पर फैले धब्बे होते है जो अग्नि की तरह प्रतीत होते है। इसका शरीर छिपकली के समान लगभग 12 से 15 सेंटीमीटर लम्बा होता है।
नर की अपेक्षा मादा अधिक लम्बी होती है इसके शरीर को धरातल से ऊपर उठाये रखने में समर्थ होते है। सिर में नेत्र एवं नासा विवर स्पष्ट होते है। नेत्रों पर सचल पलकें पायी जाती है और सिर के पश्च भाग में बड़ी बड़ी विष ग्रन्थियां पायी जाती है। इनके क्लोम अथवा क्लोमछिद्र अनुपस्थित होते है एवं दुम उपबेलनाकार होती है। पुच्छ पर पुच्छ पंख नहीं होता। यह सामान्यतया जरायुज होते है। मादा की अण्ड वाहिनियों में अण्डों का विकास होता है। नर अपने शुक्राणु शुक्राणुधर नामक संपुट में छोड़ देता है जिसे मादा अपने अण्डों का आंतरिक निषेचन करने के लिए अपने अवस्करिय ओष्ठों से उठा लेती है। अंडे मादा के शरीर में रूककर वृद्धि करते है। फिर लार्वा जन्म लेकर पानी में अपना परिवर्धन पूरा कर लेते है।
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