टिड्डी किसे कहते हैं | एशियाई या प्रवासी टिड्डी क्या होती है अर्थ मतलब परिभाषा | Locust in hindi meaning

Locust in hindi meaning definition photo टिड्डी किसे कहते हैं | एशियाई या प्रवासी टिड्डी क्या होती है अर्थ मतलब परिभाषा ?

एशियाई अथवा प्रवासी टिड्डी

टिड्डी का जीवन प्रवासी टिड्डी एक भयानक कृषिनाशक कीट है। शकल-सूरत में वह बड़े टिड्डे जैसा लगता है पर इसकी शृंगिकाएं छोटी होती हैं (आकृति ४६) ।
टिड्डी के वृत्तखंडधारी पैरों के तीन जोड़ों में से सबसे पिछला जोड़ा सुपरिवर्दि्धत होता है। ये दो पैर सबसे लंबे और मजबूत होते हैं। अपने पैरों के सहारे अपने को धक्का देता हुआ यह कीट लंबी लंबी कूदें लगाता है।
सख्त, संकुचित पंख-संपुटों के नीचे चैड़े पंख होते हैं जो आराम के समय पंखे की तरह सिमट जाते हैं। वयस्क कीट बहुत अच्छी तरह उड़ सकता है।
बड़े बड़े दल बांधकर टिड्डियां काफी दूर तक उड़ती जा सकती हैं और अपने संवर्द्धन-स्थान से काफी दूरी पर स्थित बड़े बड़े क्षेत्रों को उजाड़ कर देती हैं। पहले, इन कीटों के हमले के बाद हरेभरे खेत रेगिस्तानसे बन जाते और उनपर विनष्ट पौधों के बचे-खुचे अंश फैले रहते। जब तक टिड्डी के जीवन का उचित अध्ययन न हो पाया था, अज्ञान किसान टिड्डी दल के हमले को भगवान के क्रोध का फल मानकर रह जाते थे।
प्रवासी टिड्डियां झीलों और नदियों के किनारों पर नरकटों के बीच बच्चे देती हैं। यहां ग्रीष्म के उत्तरार्द्ध में मादा टिड्डी अपने उदर का पिछला सिरा जमीन में गड़ा देती है और इस प्रकार बनाये गये सूराख में अपने अंडे डालती है। बाद में इन अंडों पर इलेष्म का प्रावरण चढ़ता है। मिट्टी के कणों के साथ सख्त बनकर यह श्लेष्म कैपसूल का रूप धारण कर लेता है। हर कैपसूल में पचास एक अंडे होते हैं जो अत्यधिक नमी और मूत्रे ने सुरक्षित होते हैं। अगले वर्ष के वसंत तक ये अंडे इसी स्थिति में पड़े रहते हैं और अक्सर बाढ़ों का पानी उन्हें ढंके हुए रहता है। उनका अगला परिबर्द्धन वासंतिक बाढ़ों के पानी के हट जाने के बाद शुरू होता है। इस ममय अंडों में से डिंभ निकल आते हैं जिनकी शकल वयस्क कीट जैसी होती है।
डिंभ कूदता-फुदकता हुआ चलता है और उसे पादचारी टिड्डी कहते हैं। ये वेद पेटू होती हैं। वे अकसर गेहूं के खेतों में चली जाती हैं। यहां डिंभ जल्दी जल्दी बढ़ते हैं, पांच बार उनका निर्मोचन होता है और आखिर बिना प्यूपा की अवस्था से गुजरते हुए वे वयस्क कीट बन जाते हैं।
इस तरह टिड्डी का परिवर्द्धन अपूर्ण रूपांतरण के द्वारा होता है।
सोवियत संघ में टिड्डी विरोधी उपाय महान् अक्तूबर समाजवादी क्रांति से पहले टिड्डियों के खिलाफ में जो कुछ कार्रवाइयां की जाती थीं वे नाकाफी थीं। बहुत ज्यादा हुआ तो ढालू बाजुओं वाली रुकावटी खंदकें बनायी जाती थीं। पर ये खंदकें सिर्फ पादचारी टिड्डियों के खिलाफ ही असरदार होती थीं। वे उनमें गिरकर मारे भूख के मर जाती थीं।
सोवियत शासन-काल में देश में हवाई वेड़े और रासायनिक उद्योग का विकास हुआ। सोवियत संघ ही संसार का ऐसा पहला देश है जिसने विमानों द्वारा टिड्डियों के संवर्द्धन-क्षेत्रों में विपैले द्रव्यों के छिड़काव का तरीका अपनाया। अब इन कीटों का उन्हीं स्थानों में खात्मा कर दिया जाता है जहां वे अंडों से बाहर निकलते हैं। इससे खेतों पर उनका हमला होने की संभावना नष्ट हो जाती है। सोवियत संघ , ईरान , अफगानिस्तान इत्यादि जैसे पड़ोसी देशों को भी टिड्डियों के विनाश में सहायता देता है।
प्रश्न – १. टिड्डी का परिवर्द्धन किस प्रकार होता है ? २. टिड्डियों से क्या नुकसान होता है और सोवियत संघ में उनके विरुद्ध कौनसे उपाय अपनाये जाते हैं ?

 अनाजभक्षी भुनगी
अनाजभक्षी भुनगी का जीवन दक्षिण में खेतों को अक्सर अनाजभक्षी भुनगियों (प्राकृति ५०) के हमलों से नुकसान पहुंचता है। ये पीले-भूरे कीट होते हैं जिनके चमड़ीनुमा पंख-संपुटों पर संगमरमर जैसा पैटर्न होता है। ये पकते हुए अनाज के पौधों की डंडियों पर लड़खड़ाते हुए से चलते हैं। वे अपनी सूई जैसी सूंड अनाज के दाने में गड़ा देते हैं। दाने में डाली गयी दाहक लार उसका सत्व गला देती है और कीट अपनी सूंड से उसे चूस लेता है। दाने अपना वजन और उद्भेदनक्षमता खो देते हैं। ऐसे अनाज से बनाया गया आटा कड़वा और निम्न कोटि का होता है।
जब गेहूं , रईया जौ के पौधों में बालियां निकलने लगती हैं उस समय भुनगियां उनकी पत्तियों की पिछली सतह पर अंडे देती हैं। शीघ्र ही अंडों से डिंभ निकल आते हैं जो बहुत कुछ वयस्क भुनगी से मिलते-जुलते होते हैं। अंतर इतना ही होता है कि इनके पंख नहीं होते और आकार में वे छोटे होते हैं। कई निर्मोचनों के बाद प्यूपा की अवस्था से न गुजरते हुए ही डिंभ वयस्क कीट बन जाते हैं।
जहां डिंभ की शकल वयस्क कीट जैसी होती है और वह प्यूपा की अवस्था से नहीं गुजरता वह प्रक्रिया अपूर्ण रूपांतरण कहलाती है।
फसल कटाई के बाद ये भुनगियां खेतों से विदा लेकर जंगलों के किनारों की ओर चली जाती हैं। यहां वे झड़ी हुई पत्तियों के नीचे जाड़े बिताती हैं। वसंत में जब जमीन में गरमाहट आती है तो ये भुनगियां सुषुप्तावस्था से जाग उठती हैं और फिर खेतों को लौट आकर अनाज के पौधों के हरे हरे अंकुरों पर टूट पड़ती हैं।
अनाजभक्षी भनगी विरोधी उपाय
एक लंबे अर्से तक किसी को पता न था कि अनाजभक्षी भुनगियों का मुकाबिला कैसे करना चाहिए। इधर इस काम में मुर्गियों का उपयोग किया जाने लगा है। शरद में इन्हें पहियेदार पिंजड़ों में जगह जगह ले जाया जाता है। खेतों के पासवाले जंगलों में, जहां उक्त कीट जाड़ों में छिपे रहते हैं। ये मुर्गियां हजारों की संख्या में उन्हें चट कर जाती हैं। इस तरीके से एक पंथ दो काज हो जाते हैं। मुर्गियों को पोषक आहार मिलता है, वे अच्छी तरह कलनी-मनी हैं और खेत भयानक कृपिनाशक कीटों का शिकार होने से बचते हैं।
इन भुनगियों के विरुद्ध रासायनिक उपाय अभी हाल तक शायद ही अपनाये जाते थे क्योंकि उनका मुकाबिला करनेवाले उचित विषैले रसायन ज्ञात न थे। भुनगियों की गड़नेवाली सूंड अनाज के दाने को अंदर से चूस लेती है और पौधों को कुतरनेवाले कीटों पर प्रभाव डालनेवाले विप भुनगी की आंत तक नहीं पहुंचते ।
सोवियत संघ में अनाजभक्षी भुनगी के विरुद्ध डी० डी० टी० पाउडर का उपयोग किया जाता है। यह पाउडर कीट की त्वचा के जरिये असर डालता है जिससे कीट मर जाता है। भुनगी विरोधी लड़ाई में डी० डी० टी० का उपयोग दिन-ब-दिन वृद्धि पर है। इधर कुछ वर्षों से भुनगियों की बहुतायतवाले क्षेत्रों में डी० डी० टी० के छिड़काव के लिए बहुत-से हवाई जहाजों और जमीन पर चलनेवाली दूसरी सवारियों का उपयोग किया जा रहा है। इसके फलस्वरूप हजारों हेक्टेयर अनाज की फसलों को विनाश से बचाया जा सका है।
प्रश्न – १. अनाजभक्षी भुनगी से क्या हानि पहुंचती है ? २. इस भुनगी का परिवर्द्धन किस प्रकार होता है ? ३. इस भुनगी के खिलाफ कौनसी कार्रवाइयां की जाती हैं ?
कोलोरेडो या आलू का बीटल
बाह्य लक्षण वयस्क कोलोरैडो बीटल (रंगीन चित्र ७) आकार-प्रकार में सुप्रसिद्ध लेडी-बर्ड जैसा लगता है पर रंग इसका अलग होता है। उसके हर पंख-संपुट पर पांच काली और लगभग समानांतर धारियां होती हैं जो पीले स्थानों से बंटी रहती हैं। इस चिन्ह से आलू के बीटल को लेडी-बर्ड से और अन्य आलू नाशक कीटों से आसानी से अलग पहचाना जा सकता है।
नुकसान आलू और आलूभक्षी बीटल दोनों का जन्मस्थान अमेरिका है। चालू शताब्दी में जहाजों पर लदे हुए माल के साथ साथ यह कीट भी पश्चिमी यूरोप पहुंचा। यह बीटल जहां कहीं पहुंचता है, आलू की पत्तियों और डंडियों का सफाया करके बेहद नुकसान पहुंचाता है।
आलूभक्षी बीटल जाड़े जमीन के नीचे बिताते हैं। वसंत में वे जल्दी जल्दी आसपास के खेतों में फैलकर आफत ढा देते हैं। मादा बीटल पत्तियों पर ढेरों लंबवृत्ताकार और नारंगी रंग के अंडे डाल देती है जिनमें से ललौहें-नारंगी रंग के और काली बुंदियों वाले डिंभ निकल आते हैं। डिंभ आलू की पत्तियों और डंडियों को नष्ट कर देते हैं। चोटी के पेटू होने के कारण वे जल्दी जल्दी बड़े होते हैं और पौधों को छोड़कर जमीन में घुस जाते हैं जहां उनका प्यूपा में रूपांतर होता है। प्यूपा से बीटलों की अगली पीढ़ी पैदा होती है। आबोहवा के अनुसार आलूभक्षी बीटल हर गरमी में यूरोप में एक-दो से लेकर अमेरिका के उष्णतर प्रदेशों में चार तक पीढ़ियों को जन्म देते हैं।
सोवियत संघ आलूभक्षी बीटल विरोधी उपाय जहां कहीं ये बीटल दिखाई देंगे उन्हें फौरन मारकर केरोसीन में या नमक के घोल में डालना और तब तक वहीं रखना चाहिए में जब तक कोई पौध-रक्षक इनस्पेक्टर न आ पहुंचे। आलू के जिस किसी पौधे पर आलूभक्षी बीटल जैसा कीट दिखाई दे उस पौधे को विशेष रूप से चिह्नित करना चाहिए। जिंदा बीटलों को खेत से उठाकर नहीं ले जाना चाहिए क्योंकि रास्ते में उनके यों ही गिर जाने की संभावना होती है, और इस तरह गिरे हुए कीटों से उनका और फैलाव हो सकता है। आलूभक्षी बीटलों के दिखाई देते ही फौरन कोलखोज के अध्यक्षमंडल , ग्राम सोवियत , स्थानीय कृषि-विशेषज्ञ या अध्यापक को इसकी सूचना देनी चाहिए।
प्रश्न – १. आलूभक्षी बीटल अन्य बीटलों से किस प्रकार भिन्न है ? २. आलूभक्षी बीटल क्यों खतरनाक है ? ३. आलूभक्षी बीटल का परिवर्द्धन कैसे होता है ? ४. आलूभक्षी बीटलों के दिखाई देते ही क्या करना चाहिए?