वसा का महत्व क्या है ? lipid in hindi , types , वसा या लिपिड क्या है ? किसे कहते है , प्रकार , वर्गीकरण , कार्य , लिपिड की खोज किसने की ? सबसे अधिक वसा किसमें पायी जाती है , वसा की कमी से होने वाले रोग कौन कौन से है ?
लिपिड या वसा : लिपिड़ शब्द का उपोयोग सर्वप्रथम ‘ब्लूर’ ने किया था। वसा (lipid) कार्बन , हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के यौगिक है। जिनमे हाइड्रोजन (H) तथा ऑक्सीजन (O) का अनुपात जल से कम होता है। ये वसीय अम्लों और एल्कोहल के एस्टर होते है जो जल के साथ इमल्सन बनाते है लेकिन कार्बनिक विलायकों में विलेय होते है। उदाहरण : घी , मक्खन , कोलेस्ट्रोल , केरोटिन , विटामिन A , E , K , लाइकोपीन आदि।
वसा (लिपिड) सामान्यतया जल में अविलेय होते है। ये साधारण वसीय अम्ल हो सकते है। एक वसीय अम्ल में एक R-समूह से जुड़ा हुआ कार्बोक्सिल समूह होता है। यह R-समूह मैथिल (-CH3) या एथिल (-C2H5) या -CH2 समूह के अधिक संख्या (1 कार्बन से 19 कार्बन) हो सकता है।
उदाहरण : पामिटिक अम्ल में कार्बोक्सिल कार्बन सहित 16 कार्बन होते है। अरेकिडोनिक अम्ल में कार्बोक्सिलिक कार्बन सहित 20 कार्बन अणु होते है। अन्य साधारण वसा ग्लिसराल है जो कि ट्राईहाइड्रोक्सी प्रोपेन है।
अन्य साधारण वसा को दो श्रेणीयों में बाँटा गया है –
(1) साधारण वसा
ये वसीय अम्लों के विभिन्न एल्कोहल के साथ एस्टर होते है। ये प्राकृतिक वसा (लिपिड) होते है। ये एल्कोहल की प्रकृति के आधार पर दो प्रकार के होते है –
(i) प्राकृतिक या सत्य वसा और तेल : ये वसीय अम्लों और ग्लिस्रोल के ट्राईएस्टर होते है। जब वसा में तीनों वसीय अम्ल समान होते है तो यह साधारण वसा और यदि विभिन्न होते है तो यह मिश्रित वसा कहलाता है।
वसा संतृप्त होती है। यह कमरे के ताप पर पर ठोस होती है। इसका गलनांक उच्च होता है और यह अधिक स्थायी होती है। उदाहरण : कम क्रियाशील , जंतुओं से प्राप्त।
जबकि तेल असंतृप्त होते है। तेल कमरे के ताप पर द्रव अवस्था में होते है , इनका कम होता है उदाहरण : कम स्थायी , पादपो से प्राप्त।
वसा तथा तेल
- ये जन्तु और पादप कोशिकाओं में उच्च ऊर्जा वाले संचयित भोजन बनाते है। वसा सबक्यूटेनियस उत्तक में , eye balls के निचे , वृक्क के चारों ओर , डर्मिस के नीचे , मेंढक और छिपकली की वसा बॉडीज में , केस्टर के एंडोस्पर्मिक बीज में , सनफ्लावर और नारियल आदि में पाए जाते है।
- कुछ जंतुओं जैसे ध्रुवीय भालू , व्हेल में , एडिपोज वसीय उत्तक की मोटी परत शरीर को पृथक करती है और ठन्डे वातावरण में शरीर को गर्म रखती है।
- असंतृप्त वसा हाइड्रोजनीकरण पर संतृप्तवसा में परिवर्तित हो जाती है जो वनस्पति घी बनाने के काम आते है। तेल का गलनांक कम होता है इसलिए सर्दियों में भी तेल तरल रहता है , कुछ उत्तक विशेषत: प्राकृतिक उत्तक जटिल संरचना वाले लिपिड (वसा) रखते है।
वसीय अम्ल
ये वसाओं की आधारभूत इकाई है। प्रत्येक वसा में एकल सामान्यतया 16 से 18 कार्बन अणु की संख्या के साथ कार्बोक्सिलिक समूह (-COOH) में समाप्त होने वाली हाइड्रोकार्बन श्रृंखला पायी जाती है। इनका सामान्य सूत्र CH3(CH2)nCOOH होता है। जहाँ n कार्बोक्सिल छोर से क्रमों की संख्या है। वसीय अम्ल जल स्नेही -COOH और जलविरोधी हाइड्रोकार्बन श्रृंखला के कारण एम्फीपेथिक होते है। पादप और जीवाणु सभी प्रकार के वसीय अम्लों का संश्लेषण कर सकते है लेकिन जन्तु नहीं और वे आवश्यक वसीय अम्लो का संश्लेषण नहीं कर पाते है। लिनोलिक , लिनोलीनिक और एराकिडोनिक वसीय अम्ल आवश्यक वसीय अम्ल है।
वसीय अम्लों के दो समूह है –
(a) संतृप्त वसीय अम्ल
(b) असंतृप्त वसीय अम्ल
(a) संतृप्त वसीय अम्ल : इनकी कार्बन श्रृंखला में द्विबंध नहीं होता है। इनका सामान्य सूत्र CnH2nO2 होता है। उदाहरण : पामिटिक अम्ल C16H32O2 या CH3(CH2)14COOH और स्टिरिक अम्ल C18H36O2 या CH3(CH2)16COOH इन्हें ठोस वसा भी कहते है। क्योंकि ये कमरे के ताप पर ठोस और चिकने होते है। हालाँकि मक्खन छोटी वसीय अम्लो की श्रृंखला के कारण मुलायम होता है।
(b) असंतृप्त वसीय अम्ल : इनमे कार्बन परमाणु पूर्णतया संतृप्त नहीं होते है क्योंकि हाइड्रोजन द्विबंध द्वारा जुड़े होते है। उदाहरण : oleic acid . इसमें एक द्विबन्ध होता है जबकि लिनोलिक अम्ल में दो और लिनोलेनिक अम्ल में तीन द्विबंध होते है। एराकिडोनिक अम्ल में चार द्विबंध होते है। इनमे प्रत्येक द्विबंध पर एक बंध होता है जो इन्हें सामान्य ताप पर द्रव अवस्था में रखता है। ये (PUFA) polyunsaturated fatty acids कहलाते है। जब इनमे एक से अधिक द्विबंध होते है। बादाम का तेल , मस्टर्ड सीड , सनफ्लावर की मात्रा असंतृप्त वसीय अम्लों में अधिक होती है।
(ii) मोम (Waxes)
ये लम्बी श्रृंखला वसीय अम्लों (संतृप्त) के उच्च अणुभार वाले लम्बी श्रृंखला मोनोहाइड्रिक एल्कोहल (ग्लिसरोल के अलावा) के साथ एस्टर होते है। ये वातावरणीय ऑक्सीकरण के लिए प्रतिरोधी होते है। ये वाटर प्रूफ होते है और कार्य में सुरक्षात्मक होते है। ये पादपों में रिसाव की दर कम करता है। ये पादपों से तने , पत्तियों और फलों व जन्तुओं के बालों व त्वचा पर एक अघुलनशील आवरण बनाते है। उदाहरण : bees wax , lanolin or wool fat और plant waxes आदि।
मधुमक्खी मोम (bees wax) मुख्यतः पामिटिक अम्ल के हेक्साकोसोमोल या ट्रायाकोनटेनोल के साथ एस्टीकरण से बनता है। लेनोलिन या woll fat में पामिटिक , ओलिक , स्टिरिक अम्ल और कोलेस्ट्रोल होता है। यह क्यूटेनियस ग्रंथियों द्वारा स्त्रावित होता है।
2. संयुग्मित या यौगिक वसा
ये ग्लिसरोल वसीय अम्ल और कुछ अन्य पदार्थो जैसे फास्फेट , अमीनों अम्ल आदि के यौगिक होते है। ये कोशिका और कोशिका झिल्ली के संरचनात्मक घटकों की तरह कार्य करते है।
(a) फास्फोलिपिड : येे ग्लिस्रोल , वसीय अम्ल और फास्फोरिक अम्ल के सीधी श्रृंखला यौगिक होते है। इनमे केवल दो वसीय अम्ल ग्लिसरोल अणु से जुड़े होते है और तीसरा ग्लिसरोल के हाइड्रोक्सिल समूह का वसीय अम्ल के स्थान पर फास्फोरिक अम्ल में एस्टरीकरण हो जाता है। फास्फोलिपिड के प्रकार के आधार पर यह फास्फेट भी दुसरे एल्कोहल अणु जो कि कोलीन , इथेनॉलएमीन , इनोसिटोल या सेरिन हो सकता है , से बंधा होता है। उदाहरण : लेसीथिन , सिफेलिन , इनोसिटाल्स और प्लाज्मालोजन्स है। फास्फोलिपिड भी एम्फीपेथिक होते है। (जल स्नेही और जलविरोधी दोनों क्षेत्र उपस्थित) ये जैव झिल्ली के आधारभूत घटक होते है। सिफेलिन मस्तिष्क में पाया जाता है और यह तंत्रिकाओ को पृथक करता है और रक्त स्कन्दन में प्रेसिपिटेट होता है। लेसीथिन कोशिका पारगम्यता , परासरण तनाव और कोशिका की सतही कंडीशनिंग में भाग लेता है।
(b) ग्लाइकोलिपिड : ये शर्करायुक्त लिपिड (वसा) होते है। दो सामान्य ग्लाईकोलिपिड सेरेब्रोसाइड्स और गेग्लियोसाइड्स है।
संगठन : ग्लाइकोलिपिड में वसीय अम्ल , एल्कोहल स्फिंगोसिन और शर्करा (गेलेक्टोज) होते है जो बाद में एक वसीय अम्ल हटाते है।
कार्य : ये कोशिका झिल्ली के घटक होते है मुख्यतः तंत्रिका तंतुओं की मायलिन आच्छद और तंत्रिका कोशिका की बाह्य सतह और क्लोरोप्लास्ट झिल्ली घटक होते है।
सेरेब्रोसाइडस : ये एमीनो एल्कोहल स्फिंगोसिन , वसीय अम्ल और शर्करा के बने होते है। polar head शर्करा इकाई का बना होता है। सेरेब्रोसाइड्स के head region में डी-ग्लूकोज होता है। ये कोशिका झिल्ली में पाए जाते है। गेलेक्टोसेरेब्रोसाइडस के head region में डी-गेलेक्टोज होता है। ये मस्तिष्क कोशिकाओ की कोशिका झिल्ली में पाए जाते है।
गैंगलियोसाइड्स : ये स्फिंगोसिन या डाईहाइड्रोस्फिंगोसिन , वसीय अम्ल , ग्लूकोज , गेलेक्टोज , N-एसीटाइलग्लूकोसामीन और सिएलिक अम्ल के बने होते है। ये आयन परिवहन और बीजाणुओं के लिए ग्रहीता का कार्य करते है। ये धूसर द्रव्य में पाए जाते है।
(c) स्फिंगोमायलिन्स : इन लिपिडो (वसा) में ग्लिसरोल नहीं होता है। एक जटिल अमीनो एल्कोहल के स्थान पर स्फिंगोसिन पाया जाता है। इसका वसीय अम्ल और फास्फोकोलिन या फास्फोइथेनोल एमाइन के साथ एस्टीकरण होता है। स्फिंगोमायलिन अधिकांश जन्तु झिल्लियो में पाए जाते है। ये तंत्रिका तन्तु की मायलिन आच्छद में भी अच्छी मात्रा में होते है।
(d) लाइपोप्रोटीन : लाइपोप्रोटीन में इसके अणु में लिपिड (मुख्यतः फास्फोलिपिड) और प्रोटीन होते है।
कार्य : झिल्लियाँ लाइपोप्रोटीन की बनी होती है। ये लिपिड रक्त प्लाज्मा और लसिका में लाइपोप्रोटीन की भांति transported किये जाते है। लाइपोप्रोटीन दुग्ध और अंडपीतक में होते है।
(e) क्यूटिन : ये एपिडर्मल कोशिका भित्ति और क्यूटीकल में पाए जाते है।
(f) सुबेरिन : यह कॉर्क कोशिका और एण्डोडर्मल कोशिका की कोशिका भित्ति में पायी जाती है। यह ग्लिस्रोल , फिनोलिक अम्ल या इसके व्युत्पन्नो युक्त जटिल लिपिड होता है। यह कोशिका भित्ति को जल के लिए अपारगम्य बनाता है।
(g) क्रोमोलिपिड्स : इसमें केरोटिनोइड्स जैसे वर्णक पाए जाते है। उदाहरण : केरोटिन , विटामिन A
3. व्युत्पन्न लिपिड (वसा)
वसा
वसा शरीर को ऊर्जा प्रदान करने वाला प्रमुख रासायनिक यौगिक है। इसके अणु ग्लिसरॉल तथा वसा अम्ल के संयोग से बनते हैं। इन पदार्थों में कार्बन, हाइड्रोजन व ऑक्सीजन होते हैं। इनमें ऑक्सीजन की मात्रा कम होती है। ये जल में पूर्णतः अघुलनशील होते हैं। वसा अम्ल दो प्रकार के होते हैंः संतृप्त और असंतृप्त
* वसा की कमी से शरीर की त्वचा रूखी हो जाती है, वजन में कमी हो जाती है। वसा की अधिकता से शरीर स्थूल हो जाता है जिसके कारण हृदय रोग, उच्च रक्त चाप आदि बीमारियां हो जाती हैं।
* लिपिड्स द्रवीय अवस्था में वसा होते हैं। वसा सेल मेम्बरेन का निर्माण करती है।