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लिलिएसी कुल क्या है | लिलिएसी का पौधा नाम लिस्ट कौनसा है liliaceae family in hindi लक्षण गुण
liliaceae family in hindi लिलिएसी कुल क्या है | लिलिएसी का पौधा नाम लिस्ट कौनसा है लक्षण गुण पुष्पसूत्र बताइए ?
लिलियेसी – कुल (liliaceae family) :
(लिलि कुल अथवा प्याज कुल ; lily family or onion family)
वर्गीकृत स्थान – बेन्थैम और हुकर के अनुसार –
प्रभाग – एन्जियोस्पर्मी
उपप्रभाग – मोनोकोटीलिडनी
श्रेणी – कोरोनेरी
कुल – लिलियेसी
कुल लिलियेसी के विशिष्ट लक्षण (salient features of family liliaceae)
- अधिकांश सदस्य एकवर्षीय अथवा बहुवर्षीय , प्रकंदयुक्त अथवा शल्ककंदयुक्त शाक , क्षुप और वृक्ष विरल।
- पर्ण मूलज अथवा स्तम्भीय , अननुपर्णी , पर्णाधार आच्छादी।
- पुष्पक्रम विविध प्रकार के , जैसे – असीमाक्षी , पेनिकल और समशिख।
- पुष्प सहपत्री , त्रिज्यासममित , त्रितयी , उभयलिंगी और जायांगधर।
- परिदलपुंज द्विचक्रीय , 3+3 के दो चक्रों में। सामान्यत: दलाभ।
- पुंकेसर -6 , 3+3 के दो चक्रों में , परिदललग्न अथवा पृथक पुंकेसरी।
- जायांग त्रिअंडपी , युक्तांडपी , विषम अंडप अग्र , अंडाशय उधर्ववर्ती , बीजांडन्यास स्तम्भीय।
- फल सामान्यतया केप्सूल।
प्राप्तिस्थान और वितरण (occurrence and distribution)
यह एकबीजपत्री पौधों का अपेक्षाकृत एक बड़ा कुल है जिसमें लगभग 254 वंश और 4075 पादप जातियाँ सम्मिलित है। इस कुल के सदस्य सामान्यतया विश्व के अधिकांश भागों में पाए जाते है लेकिन मुख्यतः गर्म समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में बहुलता से पाए जाते है। भारत में इस कुल के 35 वंश और 189 जातियाँ पाई जाती है , जो मुख्यतया हिमालय क्षेत्रों में वितरित है।
कायिक लक्षणों का विस्तार (range of vegetative characters)
प्रकृति और आवास : इस कुल के सदस्य सामान्यतया बहुवर्षीय शाक है जो एक संधिताक्षी प्रकन्द जैसे – पोलीगोनेटम में अथवा शल्ककंद जैसे – लिलियम के द्वारा कायिक जनन करते है और चिरस्थायी रहते है। एस्पेरेगस और ग्लोरिओसा आरोही पादप है , एलोय एक क्षुप है , स्माइलेक्स की कुछ जातियाँ काष्ठीय आरोही है जो पर्णाच्छद से विकसित पर्ण प्रतानों की सहायता से ऊपर चढ़ती है। युक्का और ड्रेसिना की अनेक जातियाँ बड़ी झाड़ियों और छोटे वृक्षों के रूप में पाई जाती है।
मूल : प्राययिक जड़ें अल्पकालिक होती है। अपस्थानिक रेशेदार जड़ें पाई जाती है , एस्पेरेगस और क्लोरोफाइटम ट्यूबरोसम (सफ़ेद मूसली) की जड़ें भोजन संचय के कारण फूल कर मोटी हो जाती है।
स्तम्भ : यक्का , ड्रेसिना और कुछ अन्य सदस्यों में काष्ठीय तना पाया जाता है और उनकी आंतरिक संरचना में द्वितीयक वृद्धि भी परिलक्षित होती है लेकिन इस कुल के अधिकांश सदस्यों में शाकीय या विभिन्न प्रकार के भूमिगत तने पाए जाते है जैसे –
1. कोल्चीकम ऑटम्नेल में घनकन्द।
2. पेरिस क्वाड्रीफोलिया में प्रकंद।
3. एलियम सीपा प्याज और अर्जीनिया में शल्ककंद।
ऐस्पेरेगस में पर्णाभपर्व और रसकस में पर्णाभ स्तम्भ पाए जाते है।
पर्ण : आधारीय अथवा मूलज जैसे – प्याज में अथवा स्तम्भीय होती है जैसे – ड्रेसीना। ये एकान्तरित , कभी कभी सम्मुख जैसे – ग्लोरिओसा में या चक्रीय जैसे – ट्राइलियम में हो सकती है। पत्तियाँ सरल और अननुपर्णी लेकिन स्माइलेक्स में अनुपर्णी होती है , पर्णाधार आच्छादित। पत्तियों की आकृति में रेखिक अथवा अंडाकार , रसकस में पत्तियाँ शल्की और एलियम में बेलनाकार खोखली और केन्द्रिक प्रकार की होती है। ग्लोरिओसा में पर्णशीर्ष प्रतान और स्माइलेक्स में अनुपर्ण प्रतान पाए जाते है। शिला विन्यास सामान्यतया समानान्तर लेकिन स्माइलेक्स में जालिकावत।
पुष्पीय लक्षणों का विस्तार (range of floral characteristics)
पुष्पक्रम : सामान्यत: प्रारूपिक असीमाक्ष पुष्पक्रम पाया जाता है , लेकिन अनेक विविधताएँ भी दृष्टिगोचर होती है , जो निम्नलिखित प्रकार से है –
(1) अन्तस्थ यौगिक पुष्प गुच्छ – यक्का में।
(2) कणिश – ऐलोय में
(3) छत्रक – स्माइलेक्स में
(4) असीमाक्ष असीम – एस्फोडीलस में।
इसके अतिरिक्त अनेक सदस्यों में ससीमाक्षी पुष्पक्रम भी पाया जाता है , जिनके उदाहरण निम्नलिखित प्रकार है –
- एलियम में पुष्प क्रम एकल शाखी ससीमाक्ष होता है लेकिन पर्वो के समानित हो जाने से यह पुष्पछत्र की भांति दिखाई देता है।
- ट्यूलिपा और लिलियम में एकल अन्तस्थ।
- हेमेरोकेलिस में कुटिल ससीमाक्ष।
- ग्लोरिओसा में एकल कक्षस्थ।
पुष्प : सहपत्री , द्विलिंगी लेकिन पेरिस , स्माइलेक्स और रसकस में एकलिंगी , सवृंत , त्रितयी , वही दूसरी तरफ पेरिस और एस्पिडियेस्ट्रा में चतुष्तयी , त्रिज्यासममित लेकिन हेवोर्थिया और लिलियम में एकव्याससममित , जायांगधर।
परिदलपुंज : परिदल 6 , 3+3 के दो चक्रों में , पृथक परिदली जैसे – ऐलियम में अथवा संयुक्तपरिदली जैसे ऐलोय में , विन्यास कोरस्पर्शी अथवा कोरछादी लेकिन गिलिसिया में परिदल जिभिकाकार होता है। परिदलपुंज सामान्यतया दलाभ।
पुमंग : पुंकेसर 6 , 3 + 3 के दो चक्रों में व्यवस्थित , पृथक पुंकेसरी अथवा परिदल लग्न परिदल सम्मुख , चतुष्तयी पुष्पों में पुंकेसर 4 + 4 के दो चक्रों में व्यवस्थित , रसकस में केवल 3 पुंकेसर संपुमंगी अवस्था में पाए जाते है .परागकोष द्विकोष्ठी , आधार अथवा पृष्ठलग्न और अंतर्मुखी।
जायांग : त्रिअंडपी , युक्तांडपी , अंडाशय उधर्ववर्ती और त्रिकोष्ठीय , बीजांडविन्यास स्तम्भीय , वर्तिका सरल और वर्तिकाग्र त्रिपालित।
फल और बीज : कोष्ठविदारक अथवा पटविदारक केप्सूल लेकिन स्माइलेक्स और पोलीगोनेटम में सरस फल बेरी पाया जाता है।
बीज भ्रूणपोषी , सीधे अथवा वक्रित भ्रूण युक्त।
परागण और प्रकीर्णन : सामान्यतया इस कुल में कीट परागण पाया जाता है। फलों का प्रकीर्णन , वायु , मनुष्यों अथवा जन्तुओं के द्वारा होता है।
पुष्पसूत्र :
आर्थिक महत्व (economic importance)
I. खाद्योपयोगी पादप :
1. एलीयम सीपा – प्याज
2. एलीयम सेटाइवा – लहसुन।
3. ऐस्पेरेगस आफ़िसिनेलिस – गुच्छित मूल और युवा प्ररोह सब्जी बनाने के लिए प्रयुक्त होते है।
II. औषधिक महत्व :
1. एसपेरेगस रेसीमोसस – शतावरी।
2. क्लोरोफाइटम ट्यूबरोसम – धोली मूसली।
3. ऐलो वीरा – ग्वारपाठा , गठिया रोग में।
4. कोल्वीकम ल्यूटियम – इसके घनकंद गठिया रोग और यकृत रोग में लाभकारी है।
5. अर्जिनिया इंडिका – कोली कांदा – इसके शल्क कंद ह्रदय उत्तेजक होते है , ये ड्रॉप्सी में भी लाभदायक होते है।
III. रेशे :
1. सेन्सेवीरा रॉक्सबर्घियाना की पत्तियों से रेशे प्राप्त होते है , जो तीर कमान , जाल और रस्सियाँ बनाने के काम आते है।
2. यक्का फिलामेंटोसा से प्राप्त रेशा रस्सी बनाने के प्रयुक्त होता है।
IV. शोभाकारी पादप :
- ट्यूलिपा गेस्नेरियाना – ट्यूलिप
- स्माइलेक्स ग्लेब्रा – बड़ी चोबचीनी
- ड्रेसीना – हिरादुखी
- यक्का ग्लोरिओसा – यक्का।
- ग्लोरिओसा सुपर्बा – ग्लोरी लिलि , कलिहारी।
- लिलियम जाइजेन्टियम – लिली।
- लिलियम केन्डीडम – लिलि।
- सेन्सीविएरा ट्राइफेसिऐटा – मरवा।
- ऐस्पेरेगम प्लूमोसा – सतावरी फर्न।
- रसकस एक्यूलियेटस – रसकस।
कुल लिलियेसी के प्रारूपिक पादप का वानस्पतिक वर्णन (botanical description of typical plant from liliaceae)
1. एस्फोडेलस टेन्यूईफोलियस केव. (asphodelus tenuifolius cav.) :
स्थानीय नाम – प्याजी , परजुरी।
प्रकृति और आवास – एकवर्षीय , शाकीय खरपतवार।
मूल – अपस्थानिक रेशेदार जड़।
स्तम्भ : समानित , संघनित और भूमिगत।
पर्ण – सरल , मूलज , लम्बी बेलनाकार , निशिताग्र , खोखली , म्यूसीलेज युक्त , समानांतर शिराविन्यास।
पुष्पक्रम : असीमाक्षी असीम।
पुष्प : सवृंत , नियमित , सहपत्री , द्विलिंगी , पूर्ण , त्रिज्यासममित त्रितयी , जायांगधर और चक्रिक।
परिदल : परिदल – 6 , 3 + 3 के दो चक्रों में , पृथक परिदली , कटक युक्त , दलाभ।
पुमंग : पुंकेसर-6 , 3 + 3 के दो चक्रों में पृथक पुंकेसरी , परिदल लग्न , परागकोष द्विकोष्ठी , अंतर्मुखी।
जायांग : त्रिअंडपी , युक्तांडपी , अंडाशय उधर्ववर्ती , त्रिकोष्ठीय , बीजांडन्यास स्तम्भीय , वर्तिका तंतुमय , वर्तिकाग्र त्रिपालित।
फल : कोष्ठविदारक केप्सूल।
पुष्पसूत्र :
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