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मधुमक्खी का जीवन चक्र क्या है , चित्र life cycle of honey bee in hindi परिवर्धन कितना होता है समझाइये

जाने मधुमक्खी का जीवन चक्र क्या है , चित्र life cycle of honey bee in hindi परिवर्धन कितना होता है समझाइये ?

जीवन-चक्र (Life cycle)

मधुमक्खियों का वृन्दन ( Swarming ) : यह क्रिया वसन्त ऋतु में या ग्रीष्म ऋतु के प्रारम्भ होती है। अधिक भोजन की उपलब्धता के कारण छत्ते में मधुमक्खियों की संख्या अत्यधिक मात्रा में बढ़ जाती है। इसलिए भीड़ को कम करने के लिए मधुमक्खियाँ एक साथ झुण्ड बना कर को को छोड़ देती है इसे वृन्दन (swarming) कहते हैं। ये नये स्थान पर नयी कॉलोनी का निर्माण करती है। छत्ते में कई नर घुमक्षिका कक्ष व रानी कक्षों का निर्माण किया जाता है। फिर सुबह-सुबह परानी रानी मधु मक्खी नये छत्ते के निर्माण हेतु कई अपनी पुरानी साथी श्रमिक मधुमक्खियों व ना मधुमक्खियों के साथ छत्ते को छोड़ कर उड़ जाती है पुराने छत्ते में युवा श्रमिक व नयी रानी मधुमक्खियाँ आर्विभाव (emergence) के लिए तैयार होती है, वे अपने कक्ष में पायी जाती है। पहली रानी मधुमक्खी जो स्फोटित होकर बाहर आती है वह पेतृक कॉलोनी की ग्रहस्वामिनी (Mistress) कहलाती है। यह नयी रानी विशेष प्रकार की तेज ध्वनि उत्पन्न करती है तथा अपनी बहिन रानी मक्खियों को जो स्फोटित होने वाली होती है या स्फोटित हो गई है को अपने दंश द्वारा मार देती है क्योंकि छत्ते में वह किसी अन्य रानी मधुमक्खी की उपस्थिति को सहन नहीं कर सकती है अतः पहले स्फोटित होने वाली रानी मधुमक्खी ही पैतृक छत्ते की रानी मधुमक्खी बन जाती है।

कामद उड़ान (Nuptial flight) : मधुमक्खियों का प्रथम झुण्ड जो छत्ता छोड़ कर जाता है उसका नेतृत्व पुरानी रानी करती है इसे प्रथम वृन्दन कहते हैं। जबकि दूसरा झुण्ड नई कुमारी (virgin) रानी के नेतृत्व में उड़ान भरता है जिसे द्वितीय वृन्दन कहते हैं। नई रानी मधुमक्खी अपने आर्विभाव (emergence) के लगभग एक सप्ताह के बाद प्रथम उड़ान भरती है इसके साथ ही नर मधुमक्खियों का झुण्ड भी रानी मधुमक्खी के साथ उड़ान भरता है। हवा में ही मैथुन क्रिया सम्पन्न होती है जिसमें नर या ड्रोन मधुमक्खी रानी मधुमक्खी की शुक्रग्राहिका में शुक्राणुओं को छोड़ देती है। जब तक रानी मधुमक्खी जीवित रहती है तब तक शुक्रग्राहिका में शुक्राणु संचित व जीवित रहते हैं। इन्हीं शुक्राणुओं से अण्डे निषेचित होते हैं। मैथुन क्रिया के दौरान नर जननांगों को इतने अधिक दबाव के साथ बाहर धकेला जाता है कि नर मक्षिका मैथुन क्रिया के बाद मर जाती है। मैथुन क्रिया के पश्चात् मैथुन करने वाला जोड़ा जमीन पर गिर जाता है रानी मधुमक्खी अपने आप को खींच कर नर से पृथक कर छत्ते की तरफ उड़ जाती है व फिर कभी छते को छोड़कर बाहर नहीं जाती है जब यह रानी मधुमक्खी पुरानी हो जाती है तभी यह छत्ते से मुख्य या प्रथम वृन्दन का नेतृत्व करती है।

परिवर्धन एवं जाति निर्धारण (Development and Caste determination) :

मैथन क्रिया के 3-4 दिन बाद युवा रानी मधुमक्खी अण्डे देने लगती है। निषेचित अण्डा रानी या श्रमिक प्रकोष्ठ में दिया जाता है। जबकि अनिषेचित अण्डा ड्रोन कक्ष में दिया जाता है। अण्डे देने के तीन दिन बाद अण्डे से एक लारवा बाहर निकल आता है। लारवाओं से श्रमिक या रानी . मधमक्खी बनना उनको दिये जाने वाले भोजन पर निर्भर करता है। श्रमिक मधुमक्खियाँ इन लारवाओं को पालती व पोषण कराती है। पहले दो दिन तो सभी लारवाओं को रॉयल जैली का भोजन खिलाया .. जाता है। बाद में जिन लारवाओं को रानी बनना होता है उन्हें जीवन पर्यन्त यही भोजन दिया जाता है। जबकि श्रमिक और ड्रोन बनाने के लिए तीसरे दिन से उनके भोजन से रॉयल जेली हटा दी जाती है व भोजन में शहद की मात्रा बढ़ा दी जाती है।

लारवा वृद्धि करते हुए कई बार त्वक पतन करते हैं। लगभग नवें दिन जिस कक्ष में लारवा रहते है उन्हें मोम के आवरण से सील कर दिया जाता है जिसमें लारवा अवस्था प्यूपा में रूपान्तरित हो जाती है। प्यूपा अवस्था भली भांति बन्द किये गये कक्ष में ही गुजरती है। इस दौरान लारवा अपने चारों तरफ एक पतली रेशमी कोकून स्रावित कर लेता है। रानी मक्खी बनने में लगभग 13 दिन, श्रमिक मक्खी बनने में 18 दिन और ड्रोन बनने में 21 दिन का समय लगता है।

सर्दियाँ आते ही श्रमिकों द्वारा ड्रोन मक्खियों को छत्ते से बाहर खदेड़ दिया जाता है। या तो श्रमिक उन्हें अपने डंक से मार देते हैं या वे ठण्ड व भूख से मर जाते हैं। श्रमिक व रानी मधुमक्खियाँ एकत्रित शहद पराग से पोषण प्राप्त करती है। वसन्त ऋतु आने पर फिर नयी रानी मधुमक्खियाँ व ड्रोन विकसित होते हैं व वृन्दन प्रारम्भ हो जाता है।

मधुमक्खी के सामाजिक जीवन की कुछ विशेषताएँ

  1. सम्प्रेषण : समाज का संगठन बनाए रखने हेतु समाज के सदस्यों के बीच संवाद या सम्प्रेषण (सूचना के आदान-प्रदान) की आवश्यकता होती है। यह समाज का महत्त्वपूर्ण अंग है। सम्प्रेषण देखने, सुनने, छूने या रसायनों द्वारा हो सकता है। मधुमक्खियों द्वारा स्रावित फेरोमोन रासायनिक सम्प्रेषण का उदाहरण है।

मधुमक्खी के विशेष नृत्य के बिना जन्तु सम्प्रेषण का कोई आलेख पूर्ण नहीं हो सकता है। मधुमक्खियाँ साथी श्रमिकों को भोजन के स्रोत की जानकारी देने हेतु विशेष नृत्य करती हैं। इसके द्वारा भोजन खोज कर लौटी मधुमक्खी अन्य मक्खियों को भोजन स्रोत की दिशा, दूरी व प्रकार की जानकारी दे देती है। यह नृत्य दो प्रकार का होता है। यदि भाजन का स्रोत छत्ते से लगभग 85 मीटर की दूरी पर हो तो मधुमक्खी एक तरह का घूमर नृत्य (round dance) करती है यदि स्रोत 85 मीटर से दूर हो तो श्रमिक मक्षिका उदर अभिदोलन नृत्य (tail waging dance) करती है। जिसमें यह 8 संख्या की आकृति में घूमती है तथा अपना उदर हिलाती है। इस नृत्य में सूर्य व छत्ते के साथ बने काण तथा उदर हिलाने की आवृत्ति के द्वारा यह स्रोत की दूरी की ठीक जानकारी अपने साथी श्रमिकों को दे देती है।

  1. कालिक श्रम विभाजन : मधुमक्खियों में सिर्फ अलग-अलग ज्ञातियों में श्रम विभाजन नहीं मिलता है वरन् श्रमिकों में भी कालिक श्रम विभाजन (temporal division of labour) पाया जाता है। इसका आशय है श्रमिक हर उम्र में हर तरह का कार्य नहीं करते हैं वरन् उम्र बढ़ने के साथ इनके कार्य बदलते हैं। नए श्रमिक प्रारम्भ के दो दिन कुछ कार्य नहीं करते हैं। तीसरे दिन से कुछ दिन तक ये छत्ते की सफाई का काम करते हैं। इसके बाद यह छत्ते में रहकर ही लार्वाओं को पोषण देने का कार्य करते हैं। इसके बाद यह कुछ समय छत्ते को बनाने का काम सम्हालते हैं।

उम्र बढ़ने पर यह छत्ते की रखवाली का कार्य सम्हाल लेते हैं। बड़ी उम्र के श्रमिक घर (छत्ते) से बाहर भोजन ढूंढने का कार्य सम्हालते हैं क्योंकि इनमें परागकण लाने हेतु पश्च पादों (hind limbs) की टीबिया पर पराग करंड (Pollen basket) विकसित हो जाती हैं तथा मकरन्द (necter) लाने हेतु क्रॉप (crop) भी विकसित हो जाती है। संकट के समय श्रमिक सभी तरह का कार्य सम्हाल सकते हैं, परन्तु सामान्य तौर पर उपरोक्त वर्णित कालिक श्रम विभाजन इनमें पाया जाता है।

  1. सहोदर या बन्धु चयन (Kin Selection) : डार्विन के प्राकृतिक वरण (natural celection) के सिद्धान्त के अनुसार ऐसे जीव जो अधिक सन्ततियाँ उत्पन्न करते हैं वे उद्विकास द्वारा अन्ततः कम सन्ततियाँ उत्पन्न करने वाले जीवों की तुलना में अधिक सफल होते हैं। मधुमक्खियों में हम देखते हैं कि समाज के कुछ सदस्य (श्रमिक) अन्य सदस्यों को योगदान देने हेतु प्रजनन करना ही छोड़ देते हैं। डार्विन के सिद्धान्त के अनुसार यह समझाना कठिन जान पड़ता है कि क्यों मधुमक्खियों का ऐसा साध्वी या त्यागी जीवन लाखों वर्षों से चला आ रहा है तथा वे प्राकृतिक वरण से नष्ट भी नहीं हुई ? इस प्रश्न के जवाब में समूह चयन (group selection) का सिद्धान्त प्रस्तुत किया गया जिसके अनुसार प्राकृतिक वरण व्यष्टि (indivdual) स्तर पर प्रभावी न होकर समूह पर अपना प्रभाव डालता है परन्तु उचित स्पष्टीकरण के अभाव में यह तर्क मान्यता प्राप्त न कर सका।

जे.एम. स्मिथ (J.M. Smith) नामक विद्वान ने बाद में ‘सहोदर चयन’ (kin selection) का तर्क दिया जिसके अनुसार श्रमिकों को जनन त्यागने से कोई हानि नहीं है वरन् लाभ ही है क्योंकि वे इस तरह से अपने जैसे अनेक ‘सहोदर’ (kin) उत्पन्न करने में सफल होती हैं। यदि सभी मादाएँ (श्रमिक व रानी) अलग-अलग सन्तान उत्पत्ति व पालन करें तो इस तरह के समाज में कम ही सन्ततियाँ उत्पन्न होंगी। एक श्रमिक मधुमक्खी एक सहोदर नर (ड्रोन) की तुलना में अन्य श्रमिकों से जीनीय संगठन में अधिक मिलती हैं अतः वह प्रजनन न करते हुए प्राकृतिक वरण से अप्रभावित रहती है। यह परिघटना ही सहोदर या बन्धु चयन कहलाती है।

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