जीवाणु संक्रमण तथा गुलिका निर्माण की क्रियाविधि : राइजोबीयम नामक जीवाणु मृदा में पाया जाने वाला एक ग्राम ऋणात्मक जीवाणु है तथा यह जीवाणु डंडाकार या बेसिलस प्रकार का होता है। राइजोबियम जीवाणु दलहनी पादपो की मूल रोम के पास एकत्रित होकर ग्रंथि या गुलिका का निर्माण प्रारंभ करता है।
उपरोक्त जीवाणु द्वारा निर्मित की जाने वाली गुलिका निम्न चरणों में संपन्न होती है।
1.राइजोबियम जीवाणु के द्वारा जीस पादप की मूल में गुलिका का निर्माण किया जाता है , उस पादप की मूल के द्वारा एक विशेष प्रकार का ग्लाइको प्रोटीन स्त्रावित किया जाता है जिसे lecteu के नाम से जानते है।
यह पदार्थ जीवाणु को मूल की ओर आकर्षित करता है।
- उपरोक्त स्त्रावित पदार्थ के परिणामस्वरूप राइजोबियम जीवाणु मूल के मूलरोम के चारो ओर एकत्रित होने लगते है तथा पादपों में पाए जाने वाले वृद्धि हार्मोन जैसे ओक्सिन साइटो काइनीन तथा एक विशेष प्रकार के कारक के कारण।
- मूल की मूलरोम के कुण्डलीत होने के कारण मूलरोम की भित्ति अनेक स्थानों से टूट जाती है तथा टूटे हुए स्थानों पर रिक्त स्थान का निर्माण होता है तथा इन रिक्त स्थानों से राइजोबियम जीवाणु एक श्लेष्मी पदार्थ का स्त्रावण कर मूल में प्रवेश करता है मूल में प्रवेश के कारण उपरोक्त जीवाणु Bactiroid के नाम से जाना जाता है।
- जीवाणु के मूल में प्रवेशित होने पर मूल रोम की झिल्ली द्वारा अंतर वलीत होकर एक संक्रमण तन्तु का निर्माण किया जाता है। निर्मित होने वाला संक्रमण तंतु वल्कुट की कोशिकाओ में प्रवेश कर इन कोशिकाओ में डीएनए की मात्रा में वृद्धि को तथा बहुगुणन की क्रिया को प्रेरित करता है , इसके फलस्वरूप मूल की वल्कुट कोशिकाओ में गुलिका या ग्रन्थियो का निर्माण प्रारंभ होता है तथा इन गुलिकाओ के आकार में वृद्धि IAA Hormone के द्वारा की जाती है जिसका स्त्रावण जीवाणु कोशिका के द्वारा किया जाता है।
- निर्मित गुलिकाओ में जीवाणु कोशिका द्वारा नाइट्रोजन का स्थिरीकरण किया जाता है , इसके अतिरिक्त इन कोशिकाओ में संवहन उत्तक विकसित होता है जो मूल के संवहन उत्तक के साथ सम्बन्ध स्थापित कर लेता है जिससे पादप द्वारा आवश्यक नाइट्रोजन की मात्रा का अवशोषण किया जाता है।
नोट : मूल की वल्कुट कोशिकाओ में निर्मित होने वाली जीवित गुलिकायें गुलाबी रंग की होती है क्योंकि इनमे उपस्थित backtiroid की झिल्ली नुमा संरचना जिसे परिजीवाणु झिल्ली के नाम से जानते है , में एक विशेष वर्णक पाया जाता है जिसे लेड हीमोग्लोबिन के नाम से जाना जाता है।
मूल में निर्मित होने वाली गुलिकाओ में जीवाणु के मृत होने पर इनका रंग हल्का पीला या श्वेत हो जाता है।
सहजीवी सम्बन्ध के अन्तर्गत स्थिरीकृत की जाने वाली नाइट्रोजन में विभिन्न प्रोटीनो की भूमिका :-
सहजीवी सम्बन्ध के अंतर्गत स्थिरीकृत की जाने वाली नाइट्रोजन में दो प्रोटीन की उपस्थिति एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उपस्थित प्रोटीन निम्न है –
- Leghemoglobin: राइजोबियम जीवाणु की परिजीवाणु झिल्ली में एक विशेष वर्णक पाया जाता है जो लाल गुलाबी रंग का होता है तथा इसे Leghemoglobin के नाम से जाना जाता है। इसका प्रमुख कार्य नाइट्रोजन स्थिरीकरण करते समय ऑक्सीजन का अवशोषण करना होता है क्योंकि स्थिरीकरण की क्रिया को सम्पन्न करने वाला एंजाइम नाइट्रोजनेज , ऑक्सीजन के प्रति संवेदनशील होता है अर्थात ऑक्सीजन की उपस्थिति में निष्क्रिय हो जाता है अत: Leghemoglobin , ऑक्सीजन का अवशोषण कर इस एंजाइम को निष्क्रिय होने से बचाता है अत: Leghemoglobin की अनुपस्थिति में नाइट्रोजन स्थिरीकरण क्रिया असंभव है।
- Nodulin protein: नाइट्रोजन स्थिरीकृत करने के अन्तर्गत राइजोबियम जीवाणु स्वयं तथा पादप की मूल की कोशिकाओ के द्वारा संयुक्त रूप से कुछ सामूहिक जीन का संलेषण किया जाता है तथा संश्लेषित जीनो के द्वारा एक विशिष्ट प्रोटीन Nodulin protein का निर्माण किया जाता है जिसके द्वारा गुलिका के निर्माण तथा नाइट्रोजन के स्थिरीकरण की क्रिया संपन्न की जाती है।
नोट : पादप की कोशिका के द्वारा नोड कारक तथा जीवाणु स्वयं के द्वारा नोड कारक Nif gene तथा fix gene का संश्लेषण किया जाता है जिनमे में node कारक के द्वारा गुलिका का निर्माण तथा Nif जीन के द्वारा नाइट्रोजन स्थिरीकरण तथा fix जीन द्वारा नाइट्रोजन का संचयन किया जाता है।
उपरोक्त दोनों प्रकार के प्रोटीन की अनुपस्थिति में नाइट्रोजन स्थिरीकरण असम्भव है।
सहजीवी नाइट्रोजन स्थिरीकरण की क्रियाविधि
सहजीवी नाइट्रोजन स्थिरीकरण निम्न चरणों में संपन्न होता है –
- अमोनिया (NH3) का निर्माण: सर्वप्रथम नाइट्रोजनेज एंजाइम की उपस्थिति में वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को अमोनिया में परिवर्तित किया जाता है तथा इस कार्य हेतु Leghemoglobin तथा Nodulin protein एक मुख्य भूमिका निभाते है।
इस चरण के अंतर्गत अमोनिया के निर्माण में ऊर्जा के रूप में ATP का उपयोग किया जाता है।
इस चरण के अन्तर्गत संपन्न होने वाली अभिक्रिया निम्न प्रकार से है –
N2 + 8H+ + 8e– + 16ATP → 2NH3 + H2 + 16ADP + 16IP
नोट : सहजीवी नाइट्रोजन स्थिरीकरण के अंतर्गत उपयोग किये जाने वाले नाइट्रोजनेज एंजाइम का निर्माण कुछ विशिष्ट प्रोटीन Molybedeum व लौह तत्व से होत है।
- निर्मित अमोनिया का स्वांगीकरण: इस चरण के अन्तर्गत अमोनिया का अपचयन संपन्न होता है तथा एक अन्य यौगिक अल्फा कीटो ग्लुटेरीक अम्ल के साथ मिलकर प्रथम एमिनो अम्ल → glutamate का निर्माण किया जाता है तथा इसके निर्माण के अंतर्गत एक विशिष्ट एंजाइम का उपयोग किया जाता है जिसे Glutamic dehydrogenase के नाम से जाना जाता है।
नोट : निर्मित होने वाला यह एमिनो अम्ल अन्य एमिनो अम्ल में परिवर्तित होता है तथा इसकी सहायता से 17 अन्य एमिनो अम्लो का निर्माण किया जाता है।
NH4 + α-Ketoglutoric + NADPH2 → Glutamate + 2H+ + NADP
- Transaminase अभिक्रिया: सहजीवी नाइट्रोजन स्थिरीकरण के अंतर्गत Glutamate के निर्माण के पश्चात् निर्मित इस एमिलो अम्ल के एमिनो समूह को एक अन्य कीटो अम्ल को स्थानांतरित किये जाने पर एक नए एमिनो अम्ल का निर्माण होता है। यह क्रिया Transaminase के नाम से जानी जाती है अत: इस क्रिया की सहायता से 17 अन्य एमिनो अम्लो का निर्माण किया जाता है।
- अमोनिकरण: मृदा में उपस्थित कार्बनिक पदार्थो के विघटन से अमोनिया या अमोनिया के यौगिको का निर्माण अमोनिकरण कहलाता है।
प्रमुख रूप से पादपो के द्वारा अवशोषित की जाने वाली अकार्बनिक नाइट्रोजन स्वांगीकरण होकर कार्बनिक पदार्थो में परिवर्तित हो जाती है।
कार्बनिक पदार्थ निर्मित होकर पादपो में संचित हो जाते है तथा पादपों की मृत्यु या क्षय होने पर सूक्ष्म जीवो के सम्पर्क में आते है जिसके फलस्वरूप सूक्ष्म जीवो के द्वारा ऐसे कार्बनिक पदार्थो का पुनः विघटन कर दिया जाता है जिससे अकार्बनिक नाइट्रोजन मुक्त होकर वायुमण्डल में पलायन कट जाती है।
इस चरण के अन्तर्गत कार्बनिक पदार्थो से अकार्बनिक नाइट्रोजन का मुक्तिकरण एक विशेष समूह के द्वारा किया जाता है जिन्हें Putrifying बैक्टीरिया के नाम से जानते है। इस जीवाणुओं द्वारा उपरोक्त क्रिया निम्न चरणों में संपन्न की जाती है –
(i) प्रोटीन अपघटन : इस proteolysis के नाम से भी जाना जाता है। इसके अन्तर्गत प्रोटीनो को एमिनो अम्लों में परिवर्तित किया जाता है। तथा इस कार्य हेतु मुख्यतः क्लॉस्ट्रीडियम तथा pseudomunas जैसे जीवाणुओं का उपयोग किया जाता है।
(ii) विअमोनिकरण : इसे De amination के नाम से भी जाना जाता है। इस चरण के अंतर्गत निर्मित एमिनो अम्लो में विघटन की क्रिया से अमोनिया को वातावरण में मुक्त किया जाता है तथा इस हेतु अनेक प्रकार के डंडाकार जीवाणु उपयोग में लिए जाते है जिन्हे सामान्य रूप से बेसिलस के नाम से जाना जाता है।
(iii) नाइट्रिकरण : इसे Nitrification के नाम से जाना जाता है। इस चरण के अंतर्गत अमोनिया के ऑक्सीकरण के द्वारा नाइट्रेट का निर्माण किया जाता है तथा यह क्रिया नाइट्रिकरण के नाम से जानी जाती है।
नाइट्रीकरण की क्रिया मुख्य रूप से रसायन पोषित जीवाणु के द्वारा संपन्न की जाती है जो निम्न चरणों में संपन्न होती है –
- नाइट्राइट का निर्माण : नाइट्रीकरण के इस चरण के अंतर्गत अमोनिया ऑक्सीकृत होकर नाइट्राइट का निर्माण करती है तथा इस क्रिया को प्रमुख रूप से Nitrosomunas नामक जीवाणु द्वारा संपन्न की जाती है।
2NH3 + 3O2 → 2HNO2 + 2H2O + ऊर्जा
- नाइट्रेट का निर्माण : Nitrite के निर्माण के बाद ऑक्सीजन की उपस्थिति में तथा विशेष प्रकार के जीवाणु Nitrobectar के द्वारा Nitrite को nitrate में परिवर्तित कर दिया जाता है तथा इस क्रिया के अन्तर्गत ऊर्जा का उत्सर्जन होता है।
2HNO2 + O2 → 2HNO3 + ऊर्जा
(iv) विनाइट्रिकरण : इसे Deamonification या denitrification के नाम से भी जाना जाता है। नाइट्रोजन चक्र के इस चरण के अंतर्गत निर्मित होने वाली नाइट्रेट को पुनः वायुमण्डलीय नाइट्रोजन में परिवर्तित कर दिया जाता है तथा इस कार्य हेतु प्रमुख रूप से बेसिलस De Nitrificans तथा Thio besillus de nitrificans नामक जीवाणु उत्तरदायी होते है।