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Categories: BiologyBiology

गोभी की तितली क्या है | सफेद तितलियां किसे कहते हैं , अर्थ फोटो | Large white butterfly in hindi

Large white butterfly in hindi गोभी की तितली क्या है | सफेद तितलियां किसे कहते हैं , अर्थ फोटो ?
गोभी को तितली
संरचना और जीवन वसंत और ग्रीष्म में सफेद तितलियां साग-सब्जी के बगीचों में चक्कर काटती दिखाई देती हैं (प्राकृति ४६)। यह हैं गोभी की तितलियां। सफेद पंखों पर काली बुंदियों वाले कीट मादा होते हैं। नर के पंखों पर कोई बुंदियां नहीं होतीं। तितली के पंख चैड़े होते हैं और संरचना की दृष्टि से अन्य कीटों के पंखों से भिन्न। यदि हम तितली को अपनी उंगली से छयें तो उंगली की त्वचा पर एक सफेद पाउडर रह जाता है। माइक्रोस्कोप से देखने पर पाउडर में सूक्ष्म काइटिनीय शल्क नजर आते हैं। पंख की पूरी सतह पर शल्कों का आवरण होता है। इसी कारण तितलियों को शल्क-पंखी कहते हैं।
गोभी की तितली के सिर पर बड़ी बड़ी संयुक्त आंखें और गदा के आकार को सुपरिवर्दि्धन शृंगिकाएं होती हैं (आकृति ४७) । तितली अच्छी तरह देख सकती है और गंध के अनुसार वातावरण से संपर्क रखती है। गोभी की तितली फूलते पौधों पर दूर दूर से उड़ आती है और उन्हीं का पुष्प-रस पीकर रहती है। फूल पर उतरकर वह अपनी सूंड पुष्प-गर्भ में डाल देती है और वहां का मधुर रस चूस लेती है। आकंठ रसपान करने के बाद वह अपनी सूंड कुंडलाकार समेट लेती है और उड़ जाती है।
परिवर्द्धन तितलियां गोभी के पत्तों की निचली सतह पर ढेरों की शकल में पीले अंडे डाल देती हैं। अंडे से निकलनेवाले डिंभ इल्ली कहलाते हैं। यह इल्ली शकल-सूरत में तितली से जरा भी नहीं मिलती। इल्लियां कृमियों के समान होती हैं पर काइटिनीय आवरण, पैर, मुखेंद्रियां और कुंडल-श्वसनिका साफ साफ बतलाते हैं कि ये कृमि नहीं, बल्कि कीट हैं। डिंभ गोभी के पत्ते खाकर रहते हैं और साग-सब्जी के बगीचों को भारी नुकसान पहुंचाते हैं। भोजन के इस ढंग के कारण तितली के विपरीत इल्ली के कुतरनेवाला मुख-उपकरण होता है।
डिंभ कई निर्मोचनों के साथ बढ़ते हैं और अंत में प्यूपा बन जाते हैं। इससे पहले वे इमारतों की दीवालों, घेरों या पेड़ों के तनों पर चढ़कर जालों के सहारे उनकी सतहों से चिपके रहते हैं। इसके बाद ही डिंभ का प्यूपा में रूपांतर होता है और प्यूपा से वयस्क कीट का परिवर्द्धन ।
एक वर्ष में गोभी की तितलियों की दो पीढ़ियां पैदा होती हैं। पहली सुषुप्त प्यूपा से वसंत में और दूसरी ग्रीष्म में।
गोभी की तितली के परिवर्द्धन के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि अंडों को नष्ट करके ही इसका सबसे अच्छी तरह मुकाबिला किया जा सकता है।
यदि तुम गोभी के पत्तों के नीचे की ओर देखो तो तुम्हें वहां तितली के पीले अंडों के ढेर दिखाई देंगे। उंगली के एक ही दबाव के साथ तुम ३०-४० भावी तितलियों को नष्ट कर सकोगे। अगर तुमने समय । गंवाया तो आगे हर इल्ली को अलग अलग करके नष्ट करने की नौबत आयेगी।
इचनेउमन परजीवी कभी कभी मनुष्य को गोभी की तितलियों के विरुद्ध लड़ाई में तितलियों के परजीवियों से मदद मिलती है। इचनेउमन मक्षिका नाम के चार पारदर्शी जालीदार पंखों वाले नन्हे नन्हे कीट होते हैं जो गोभी की तितली की इल्लियों पर धावा बोल देते हैं (आकृति ४८)। हमला करते समय वे अपने उदर के सिरे में से एक पतली-सी नली या अंड-रोपक निकालकर उससे इल्ली की त्वचा में एक सूराख बना देते हैं और उसमें अपने अंडे डाल देते हैं। अंडों से परिवर्दि्धत डिंभ इल्ली के शरीर पर ही मुंह मारते और उसे जिंदा ही चट कर जाते हैं। इचने उमन कभी कभी गोभी की तितलियों की इल्लियों का नामोनिशान तक मिटा देते हैं।
प्रश्न – १. गोभी की तितली की जिन्दगी कैसे चलती है ? २. गोभी की तितली का परिवर्द्धन कैसे होता है ? ३. गोभी की तितली को सबसे असरदार तरीके से कब और कैसे खत्म कर दिया जा सकता है ? ४. गोभी की तितली का मुकाबिला करने में कौनसे कीट सहायता देते हैं और कैसे?
व्यावहारिक अभ्यास – १. गोभी की सुषुप्त तितली के प्यूपा ढूंढ लो, उन्हें शीशे के बरतन में डाल दो और बरतन का मुंह जाली से ढांककर उसे गरम जगह में रख दो। तितली के परिवर्द्धन का निरीक्षण करो। २. ग्रीष्म में गोभी की तितलियों की इल्लियां इकट्ठा करके उन्हें एक शीशे के बरतन में डाल दो, उन्हें भोजन देते जाओ और उनकी विष्ठा बरतन से हटाते जानो। देखो, किस प्रकार इल्ली का प्यूपा में रूपांतर होता है। ३. गोभी की तितली का परिवर्द्धन दिखानेवाला एक संग्रह तैयार कर लो। ४. स्कूल के साग-सब्जीवाले बगीचे में गोभी की तितलियों के विरुद्ध जरूरी कदम उठाओ।

काकचेफर की अंदरूनी इंद्रियां
पचनेंद्रियां काकचेफर का पाचक तंत्र एक नली जैसा होता है ( आकृति ४३ ) । जबड़ों द्वारा तोड़े गये पत्तियों के टुकड़े मुंह के जरिये गले में पहुंचते हैं और फिर ग्रसिका के जरिये पेषणी में। पेषणी की अंदरूनी सतह पर काइटिनीय उभाड़ होते हैं। पेशियों द्वारा गतिशील होकर ये भोजन को पीस देते हैं और फिर भोजन छोटे छोटे अंशों में मध्य प्रांत में पहुंचता है। मध्य प्रांत से पाचक रस रसता है और इसके प्रभाव से भोजन अर्द्धतरल बनकर अवशोषित होता है। भोजन के अनपचे अंश पिछली प्रांत में इकट्ठा होकर गुदा के द्वारा बाहर फेंके जाते हैं।
श्वसनेंद्रियां काकचेफर की कुंडल-श्वसनिकाएं पतली पतली नलियों या श्वास-नलियों के जरिये शरीर के अंदरूनी हिस्से से संबद्ध रहती हैं (प्राकृति ४४ )। कीट के शरीर में इनकी बहुत-सी शाखाएं बन जाती हैं और पतले होते हुए इनके सिरे शरीर की सभी इंद्रियों में फैल जाते हैं। यहां तक कि वे आंखों, शृंगिकाओं और पैरों तक में पहुंचते हैं। श्वास-नलियों की दीवालों में कुंडलाकार काइटिनीय तंतु होते हैं जो उन्हें धंस जाने से बचाते हैं। इससे कीट की हर इंद्रिय और हर ऊतक में हवा का पहुंचना सुनिश्चित होता है।
यदि हम बर्च की पत्ती पर आराम से बैठे हुए बीटल का निरीक्षण करें तो हमें उसके उदर का क्रमशः फूलना और धंसना दिखाई देगा। ये श्वसनक्रिया की गतियां हैं।
बीटल की कई श्वास-नलियों के अंत में पतली दीवालों वाली नन्हीं नन्हीं हवाई थैलियां होती हैं जिनके अंदर लचीले कुंडलाकार तंतु नहीं होते। जब उदर फैलता है उस समय हवा आसानी से इन थैलियों में प्रवेश करती है और उन्हें तान देती है। इस प्रकार श्वसनक्रिया जारी रहती है। जब उदर संकुचित हो जाता है उस समय अंदरूनी इंद्रियां उक्त थैलियों पर दबाव डालती हैं और हवा को श्वास-नलियों के जरिये शरीर से बाहर कर देती हैं।
रक्त-परिवहन इंद्रियां ऑक्सीजन बीटल की श्वास-नलियों के जरिये सीधे इंद्रियों में पहुंचता है य रक्त इन्हें केवल पोषक द्रव्य पहुंचाता है।
रक्त-परिवहन हृदय के संकोचों के फलस्वरूप होता है। हृदय शरीर के पृष्ठीय हिस्से में एक लंबी और पतली-सी दीवालों वाली नली के रूप में होता है। हृदय के पृथक् कक्ष होते हैं जिनकी बगलों में खुले द्वार होते हैं (प्राकृति ४५ ) । उसके अगले सिरे में एक लंबी वाहिनी या महाधमनी होती है और पिछले सिरे में यह बंद होता है। जब हृदय फलता है तो उसमें शरीर-गुहा में से कक्षों के खुले द्वारों के जरिये रक्त प्रवेश करता है। हृदय के संकुचित होने के साथ कक्ष के द्वार बंद हो जाते हैं और रक्त महाधमनी में ठेला जाता है। यहां से वह विभिन्न इंद्रियों के बीच के खाली स्थानों में पहुंचता है। इस प्रकार काकचेफर का रक्त-परिवहन-तंत्र के मछली की तरह ही खुला तंत्र है।
उत्सर्जक इंद्रियां बिचली और पिछली प्रांतों की सीमा पर अत्यंत महीन उत्सर्जक नलियों के गुच्छे के खुले द्वार होते हैं। इन नलियों के छट्टे सिरे बंद होते हैं । रक्त द्वारा विभिन्न ऊतकों से लाये गये हानिकर मल-द्रव्य शरीर-गुहा में बहनेवाले रक्त में से इन नालियों में उनकी दीवारों के जरिये प्रविष्ट होते हैं। यह तरल मल नलियों के जरिये प्रांत में पहुंचते हैं और फिर शरीर के बाहर फेंके जाते हैं।
तंत्रिका-तंत्र औदरिक तंत्रिका रज्जु काकचेफर के तंत्रिका तंत्र का केंद्रीय भाग है। नदी की क्रे-मछली के विपरीत तंत्रिका गुच्छिकाएं पनीर में समान रूप से वितरित नहीं रहतीं बल्कि सीने में स्थित कई बड़ी बड़ी निकायों में एकत्रित रहती हैं । ज्ञानेंद्रियों के ऊंचे परिवर्द्धन के कारण अधिग्रसनीय तंत्रिका- गुच्छिका विशेप बड़ी होती है।
तंत्रिका-तंत्र के ऊंचे संगठन के कारण काकचेफर का बरताव नदी की के-मछली के बरताव से अधिक जटिल होता है। लेकिन यह भी अचेतन होता है और अंतःसंबद्ध प्रतिवर्ती क्रियाओं से बना हुआ होता है। दूसरे शब्दों में वह सहज प्रवृत्त होता है।
जननेंद्रियां काकचेफर डायोशियस होते हैं। मादा के अंडाशय अर्द्धपारदर्शी अंडों से भरी हुई पतली दीवालों वाली कई नलियों से बने होते हैं। नर के वृषण सफेद रंग को दो लंबी और मुड़ी हुई नलियों के रूप में होते हैं। इन नलियों में शुक्राणु होते हैं ।
प्रश्न – काकचेफर और केंचुए के वीच अंदरूनी इंद्रियों की संरचना की दृष्टि से क्या साम्य-भेद हैं ?
२६. काकचेफर का परिवर्द्धन और उसके विरुद्ध उपाय
परिवर्द्धन मई-जून में मादा बीटल जमीन में पैठ कर वहां अंडे देती है। ये पटसन के वीजों के आकारवाले अर्द्धपारदर्शी दाने से होते हैं (रंगीन चित्र ६)।
जमीन के अंदर अंडा सफेद डिंभ में परिवर्दि्धत होता है। इसका शरीर कृमि के समान होता है पर इसके वृत्तखंडधारी पैर, मुखेंद्रियां और स्पष्टतया दिखाई देनेवाली कुंडल श्वसनिकाएं होती हैं। डिंभ पौधों की जड़ों को खाकर जीते हैं। उसका ऊपरवाला बड़ा और मजबूत काइटिनीय जबड़ा उसे केवल खाने के ही नहीं बल्कि जमीन में रास्ता खोदने के साधन का भी काम देता है। इस काम में तीन जोड़े पैरों की मदद न के बरावर होती है।
कई निर्मोचनों के बाद डिंभ प्यूपा में परिवर्तित होता है। इसमें अभी से वयस्क बीटल के पंखों, शृंगिकाओं तथा अन्य इंद्रियों का प्रारंभ दिखाई देता है। प्यूपा अपने परिवर्द्धन-काल में डिंभ द्वारा पीछे छोड़ा गया भोजन खाकर रहता है। प्यूपा न हिलता है और न बढ़ता ही है। पंखों, पैरों और वयस्क वीटल की अन्य इंद्रियों का जटिल परिवर्द्धन आवरण के अंदर ही होता रहता है।
कुछ समय बाद प्यूपा वयस्क कीट का रूप धारण कर लेता है। यह कीट जाड़ों के समाप्त हो जाने तक जमीन के अंदर ही रहता है। अगले वसंत में अपने मिर और पैरों का उपयोग करते हुए वयस्क वीटल जमीन के ऊपर निकल आता है।
काकचेफर का परिवर्द्धन एक जटिल रूपांतरण के साथ होता है। हर बीटल अपने परिवर्द्धन के दौरान चार अवस्थाओं में से गुजरता है- अंडा, डिंभ, प्यूपा और वयस्क कीट। इन सभी अवस्थानों में से गुजरनेवाले कीटों का रूपांतरण पूर्ण रूपांतरण कहलाता है। काकचेफर पूर्ण रूपांतरशील कीट वर्ग में शामिल है।
सामान्यतः काकचेफर अपने जीवन के चैथे वर्ष में प्यूपा में से बाहर निकलते हैं। पर जीवन-स्थितियों और विशेषकर तापमान और पोषण के अनुसार वीटल का परिवर्द्धन-काल दक्षिण में तीन वर्ष और उत्तर में पांच वर्ष तक का हो सकता है। इसी कारण बीटलों की विशेष भरमारवाले मौसम हर तीन-पांच वर्ष तक के बाद आते हैं।
काकचेफर विरोधी काकचेफर भयंकर कृषिनाशक कीट है। पाइन के पौधों की जडों को नुकसान पहुंचानेवाले इसके डिंभों के कारण वनों उपाय को सबसे बड़ी हानि पहुंचती है। संरक्षक वनों के पट्टों को बीटलों से बचाये रखना विशेप महत्त्वपूर्ण है।
बीटलों का मुकाबिला करने का एक रास्ता है वयस्क कीटों को इकट्ठा कर लेना। सवेरे जब बीटल ठंढ के कारण अचेत-से होते हैं उसी समय उन्हें पेड़ के तले बिछाये गये टारपुलिन पर गिराया जाता है। इस प्रकार थोड़े समय में हजारों कीट इकट्ठे किये जा सकते हैं। इसके बाद उन्हें उबलते पानी से मरवाकर सूअरों को खिलाया जाता है। कभी कभी बीटलों को सुखाकर उनका पौष्टिक पाउडर बनाया जाता है। यह मवेशियों के चारे में मिला दिया जाता है।
डिंभग्रस्त जमीन में विषैले द्रव्य डाल देना काकचेफर के मुकाबिले का दूसरा तरीका है। यह विशेष उपकरणों की सहायता से किया जाता है।
बीटलग्रस्त वनों पर विषैले पाउडरों का छिड़काव करने के लिए विमानों का भी उपयोग किया जा सकता है।
प्रश्न – १. काकचेफर का परिवर्द्धन किस प्रकार होता है ? २. बीटल के विरुद्ध क्या कार्रवाइयां की जाती हैं ?
व्यावहारिक अभ्यास – १. वसंत में कुछ काकचेफर पकड़ लो। उन्हें एक बक्स में रख दो और उसमें बर्च की कुछ टहनियां डाल दो। देखो बीटल किस प्रकार भोजन करता है। २. यदि तुम्हारे इलाके में काकचेफर बहुत नुकसान पहुंचा रहे हों तो उन्हें पकड़ने का प्रबंध करो और पकड़े हुए काकचेफर मुर्गी-बत्तखों और सूअरों को खिला दो।

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