लैम्प्रे (lamprey in hindi) : पेट्रोमाइजॉन (petromyzon) petromyzon belongs to which class

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पेट्रोमाइजॉन : लैम्प्रे (petromyzon : the lamprey) : वर्टिब्रेट्स में सबसे निम्न अथवा सर्वाधिक आदिम जन्तु बिना जबड़ो के एग्नेथा समूह से सम्बन्धित है। प्राचीन जिवाश्मीय ऑस्ट्रेकोडर्मस के अतिरिक्त इनमे जीवित वर्टिब्रेट्स का केवल एक वर्ग साइक्लोस्टोमेटा सम्मिलित है। इनका नाम इनके वृत्ताकार मुख से व्युत्पन्न है।

(cyklos = circular वृत्ताकार + stoma = mouth मुख)

साइक्लोस्टोम्स में लैम्प्रेज , हैगमीन तथा स्लाइम ईल्स शामिल है। ये सामान्यतया गोल मुख की ईल्स कहलाती है क्योंकि ये ऊपर से ईल के समान दिखाई देती है। लेकिन इन्हें वास्तविक ईल्स से भ्रमित नहीं करना चाहिए जो अत्यंत विकसित अस्थिल मछलियाँ होती है।

लैम्प्रे समुद्री और ताजे जल , दोनों में होती है। पेट्रोमाइजॉन मैरीनस एक विनाशकारी सागरीय लैप्रे है जबकि लैम्पेट्रा फ्लूवियाटिलिस सामान्य ताजे जल की लैम्प्रे है। अपने बड़े आकार के कारण प्राय: उनका प्रयोगशाला अध्ययन में उपयोग किया जाता है।

वर्गीकरण (classification)

संघ – कॉर्डेटा

उपसंघ – वर्टिब्रेटा

समूह – एग्नेथा

वर्ग – साइक्लोस्टोमेटा

गण – पेट्रोमाइजोंशीफोर्मिज

कुल – पेट्रोमाइजोनिडी

प्ररूप – पेट्रोमाइजॉन , लैम्प्रे

वितरण और आवास (distribution and habitat)

लैम्प्रे का वितरण सार्वभौमिक है तथा लवणीय और ताजे जल दोनों में पाई जाती है। उत्तरी गोलार्द्ध के समशीतोष्ण क्षेत्रों में तीन जातियां सामान्य है। पेट्रोमाइजॉन मैरीनस , जिसे साधारणतया समुद्री लैम्प्रे कहते है , कनाडा तथा संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के मध्य बड़ी झीलों और उत्तरी अमेरिका , यूरोप एवं अफ्रीका के अटलांटिक तटों के समीप पाई जाती है।

स्वभाव (habits)

पेट्रोमाइजॉन कुछ अरोचक जन्तु है। इसके जीवन चक्र में दो बिल्कुल भिन्न प्रावस्थायें होती है। एम्मोसीट नामक लारवा प्रावस्था एक स्वच्छजलीय , स्थानबद्ध निस्यन्दक पोषी एवं सूक्ष्मभक्षी जीव है जो लान्सिलेट अथवा ब्रैंकिओस्टोमा का स्मरण कराती है।

मछली सदृश वयस्क अवस्था सागर में रहती है एवं मछलियों पर परजीवी होती है। यह अपने शक्तिशाली चूषक मुख द्वारा मछलियों , कूर्मो आदि से चिपक जाती है एवं तब अपनी रेतन जिव्हा से उनके उत्तक के छोटे छोटे टुकडो को पृथक करती है। इस प्रकार यह मछलियों की भयंकर शत्रु होती है। सागरीय लैम्प्रे अपने शरीर की तरंग गतियों से लवणीय या ताजे जल में लगभग तली के निकट तैरती है। तेज धारा में ऊपर की तरफ गति करते समय यह यकायक आगे को झपटती है एवं चट्टानों से चिपक जाती है। शरद ऋतु में प्राय: सभी वयस्क लैम्प्रेज नदियों में आरोहण करती है एवं बसंत ऋतू में अंडजनन के पश्चात् वे मर जाती है।

बाह्य लक्षण (external features)

1. आकृति परिमाण एवं रंग : वयस्क लैम्प्रे का शरीर सर्पमीन की तरह लम्बा और तीन भागों – सिर , धड एवं दुम का बना होता है जो स्पष्टतया सीमांकित नहीं होते है। सिर एवं धड़ बेलनाकार होते है जबकि दुम पाशर्वीय संपीडित होती है। शरीरतल अथवा त्वचा हरित भूरी और चितकबरी होती है। यह बाह्य कंकाल रहित , कोमल एवं उपचर्मीय ग्रंथियों के स्त्रावों से लसलसी बनी रहती है। समुद्री लैम्प्रे पेट्रोमाइजॉन मैरीनस एक मीटर लम्बी हो जाती है , सामान्य स्वच्छ जलीय लैम्प्रे लैम्पेट्रा फ्लूवीटैलिस 90 सेंटीमीटर तक पहुंचती है जबकि सरिता लैम्प्रे लै. प्लैनेरी 45 सेंटीमीटर से अधिक लम्बी नहीं होती।

2. पंख : युग्मित उपांग नहीं होते। दो असमान मध्यस्थ पृष्ठीय पंख , प्रथम एवं द्वितीय , पश्च सिरे के निकट स्थित होते है। दुम के चारों तरफ एक पुच्छीय पंख होते है , जिसकी ऊपरी पालि द्वितीय पृष्ठ पंख से मिली रहती है। पंखो को उपास्थि की शलाकाएँ अथवा पंख रश्मियाँ सहारा देती है।

3. मुख कीप : शरीर के अग्रछोर अथवा सिर के प्रतिपृष्ठ ओर एक बड़ा प्याले सदृश गर्त , चूषक अथवा मुख कीप होता है। यह अनेक कोमल छोटे उभारों , मुख झालर अथवा अंकुरों से युक्त एक सीमांत कला से घिरा होता है , जो मछली से चिपकने में सहायक होते है। अंकुरों के मध्य लम्बे संवेदी प्रवर्ध , कुरल निकले होते है। मुख कीप के अन्दर शंक्वाकार , पीले , श्रृंगीय उपचर्मीय दाँतों की अरीय पंक्तियाँ लगी होती है। दांतों का विन्यास अंत्यंत निश्चित होता है। ये दांत वर्टिब्रेट्स के वास्तविक दाँतों में समजात नहीं होते है। मुख कीप के शीर्ष पर एक छोटा वृत्ताकार मुखद्वार होता है। मुख के ठीक निचे एवं पीछे तथाकथित जिव्हा निकली रहती है। इस पर भी बड़े और श्रृंगीय दन्त होते है।

4. नेत्र : सिर के प्रत्येक पाशर्व में एक बड़ा उन्नत नेत्र है। दोनों नेत्रों में पलकों का अभाव है एवं दोनों त्वचा के एक पारदर्शी क्षेत्र से ढके रहते है।

5. छिद्र : निम्न प्रकार के छिद्र होते है :

(a) मुख : जैसा कहा जा चूका है , मुखकीप के शीर्ष पर स्थित मुख एक संकीर्ण छिद्र होता है एवं उपास्थि के एक वलय से खुला रहता है।

(b) नासारन्ध्र : सिर पर दोनों नेत्रों के मध्य एक मात्र छोटा मध्य पृष्ठ नासारंध्र अथवा नासा हाइपोफिसी रन्ध्र (nasohypophyseal opening) है। नासारन्ध्र के ठीक पीछे त्वचा का एक पारदर्शी क्षेत्र पीनिअल अंग की स्थिति को प्रकट करता है।

(c) बाह्य क्लोम छिद्र : बाह्य क्लोम छिद्रों के 7 गोल द्वार सिर के प्रत्येक पाशर्व में नेत्र के ठीक पीछे एक लम्बी अनु दैधर्य पंक्ति बनाते है।

(d) अवस्कर : धड एवं दुम के जोड़ पर अधर तल पर एक छिद्र सदृश गर्त अवस्कर होता है। एक जनन मूत्र पैपिला , जिसके सिर पर सूक्ष्म जनन मूत्र छिद्र खुलता है , अवस्कर में से बाहर निकलता है। इसके ठीक सामने अवस्करीय गर्त में एक छोटा मलद्वार खुलता है।

(e) संवेदी छिद्र : शरीर के प्रत्येक पाशर्व के साथ साथ एवं सिर के निचे पाशर्व रेखा तंत्र के अनेक छोटे संवेदी छिद्र फैले रहते है।

आर्थिक महत्व (economic importance)

कुछ क्षेत्रों में लैम्प्रे ने मत्स्य उद्योग के सम्मुख एक बड़ी आर्थिक समस्या खड़ी कर दी है। वे मूल्यवान मछलियों के रुधिर और शारीरिक द्रवों को खाकर उनको नष्ट करती है। इस प्रकार आक्रमण किये जाने पर मछलियाँ मर जाती है अथवा वे इतनी क्षीण हो जाती है कि रोगों या परभक्षियों का शिकार हो जाती है। मछलियों के शरीर पर छोड़े गए क्षति चिन्ह उन्हें बाजार के लिए अनुपयुक्त बना देते है।
लैम्प्रेज का मांस कुछ सीमा तक यूरोप एवं अमेरिका में प्रयोग किया जाता है। डिम्भक लैम्प्रेज का कभी कभी प्रलोभक की भाँती उपयोग किया जाता है। सामान्यतया , समुद्री लैम्प्रेज बहुत विनाशकारी होती है। उन्हें जाल में फांसने एवं अंडजनन को रोकने की नियंत्रक विधियाँ केवल आंशिक रूप में सफल हुई है। विष एवं विद्युतीय अवरोध जैसे नियंत्रक उपाय पूर्णतया प्रभावी नहीं हुई है।