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लेमिलिडेन्स का उत्सर्जी तंत्र lamellidens Excretory System in hindi यूनियो में उत्सर्जन संवेदी अंग

जाने लेमिलिडेन्स का उत्सर्जी तंत्र lamellidens Excretory System in hindi यूनियो में उत्सर्जन संवेदी अंग ?

उत्सर्जी तंत्र (Excretory System)

यनियो या लेमिलिडिन्स में उत्सर्जन के लिए विशेष अंग पाये जाते हैं। ये अंग बोजेनस के अंग तथा केबर के अंग कहलाते हैं।

बोजेनस के अंग (Organ of Bojanus)

लैमिलिडेन्स में उत्सर्जन के लिए एक जोड़ी वृक्क या बोजेनस के अंग पाये जाते हैं। वस्तुतः ये अंग वृक्क ही होते हैं जिन्हें खोजकर्ता के नाम के अनुसार बोजेनस के अंग कहते हैं। बोजेनस के अंग भूरे काले रंग के होते हैं तथा परिहृद आवरण के नीचे महाशिराओं के दोनों तरफ स्थित होते हैं। इनकी उत्पत्ति देह गुहा या सीलोम (coelome) से होती है तथा इनकी गुहा मूत्र गुहिका अकशेरुकियों की संरचना एवं; (urocoel) कहलाती है। प्रत्येक वृक्क एक नलिकाकार संरचना होती है। नलिका या वक्क भाग काला तथा पिछला भाग स्पंजी भूरे रंग का एक ग्रन्थिल होता है। वृक्क एक चौडी । आकार की नलिका होती है। वृक्क की पश्च या निचली भुजा जो भूरे रंग की स्पंजी एवं होती है, वृक्क का मुख्य भाग बनाती है। इसकी भित्ति मोटी होती है। पिछली भुजा आगे की। एक छोटे पक्ष्माभ युक्त छिद्र द्वारा हृदयावरण की गुहा में खुलती है। इस छिद्र को मूत्र हृदयात छिद्र (uro-pericardial aperture) कहते हैं। अगली या ऊपरी भुजा की भित्ति पतली होती की अग्रंथिल तथा पक्ष्माभी उपकला द्वारा आस्तरित रहती है। इसे मूत्र वाहिका (ureter) या मत्राश (urinary bladder) कहते हैं। यह एक छोटे छिद्र द्वारा प्रावार गुहा में खुलती है, इस छिद्र को वा छिद्र (renal aperture) कहते हैं।

उत्सर्जन की कार्यिकी (Physiology of excretion) : वृक्क की पश्च या निचली मजा ग्रंथिल होती है अतः यह हृदयावारणी गुहा (pericardial cavity) में आने वाले रक्त में से उत्सर्जी पदार्थों को अलग करती है। वृक्क की ग्रंथिल कोशिकाएँ नाइट्रोजन युक्त अपशिष्ट पदार्थों को अलग कर वाहिका या वृक्क की अगली भुजा में छोड़ देती है। इसमें पाया जाने वाला पक्ष्माभी अस्तर इन पदार्थों को आगे खिसकाता रहता है। अन्त में ये उत्सर्जी पदार्थ वृक्क छिद्र द्वारा बाहर निकाल दिय जाते हैं।

लेमिलिडेन्स में वृक्क या बोजेनस के अंगों के अलावा परिहृद ग्रंथि (pericardial gland) या केबर के अंग (Keber’s organ) भी उत्सर्जन का कार्य करते हैं। यह एक बड़ी लाल भूरे रंग की ग्रंथिल संरचना होती है जो हृदयावरण उपकला की बनी होती है। यह नाइट्रोजन युक्त अपशिष्ट पदार्थों को हृदयावरणी गुहा में छोड़ती है।

तन्त्रिका तन्त्र (Nervous System)

यूनियो अत्यंत सुस्त व बिलकारी या स्थानबद्ध प्राणी होता है। अतः इसका तंत्रिका तंत्र कम विकसित होता है। यूनियो का तंत्रिका तंत्र निम्नलिखित भागों का बना होता है

  • गुच्छक (Ganglia)

(ii) संयोजनियां (Connectives)

(iii) तंत्रिकाएँ (Nerves)

(i) गुच्छक (Ganglia)

यूनियो में मस्तिष्क का अभाव होता है। परन्तु इसमें तीन जोड़ी गुच्छक पाये जाते हैं, जो केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र को प्रदर्शित करते हैं। ये गुच्छक सिर, पाद और आन्तरांग प्रदेशों में पाये जाते हैं।

(a) प्रमस्तिष्क पाश्वीय गुच्छक (Cerebro-pleural ganglia)

ये छोटे पिन के सिर के बराबर, पीले रंग के ओष्ठीय स्पर्शकों (labial palpls) की अधह सतह पर मुख के दोनों तरफ स्थित होते हैं। ये एक जोड़ी होते हैं। ये दोनों गुच्छक प्रमस्तिष्क व पाश्वीय गुच्छकों के संगलन से बनते हैं। ये दोनों गुच्छक आपस में एक महीन अनुप्रस्थ प्रमस्तिष्कीय-संधायी (cerebral commissure) द्वारा जुड़े रहते हैं। यह संधायी ग्रसनी के ऊपर होकर गजरती है। प्रत्येक गुच्छक से दो स्पष्ट संयोजनियाँ निकलती हैं इनमें से एक इन गुच्छकों को पादिक गुच्छक से जोड़ती है जिसे प्रमस्तिष्क पादिक संयोजनी (cerebo-pedal connective) कहते हैं। दूसरी इन गुच्छकों को आंतरांग गुच्छक से जोड़ती है इसे प्रमस्तिष्क आन्तरांग संयोजनी (cerebo visceral connective) कहते हैं। इनके अलावा इन गुच्छकों से कई छोटी-छोटी तंत्रिकाएँ निकलती हैं जो अग्र अभिवर्तनी पेशी को (anterior adductor muscle), ओष्ठीय स्पर्शक (labial palp) को एवं प्रावार पालि को जाती है।

(b) पादिक गुच्छक (Pedal ganglia)

दोनों पादिक गुच्छक (pedal ganglia) आपस में संगलित होकर एक द्विपालित संरचना का निर्माण करते हैं। ये गुच्छक पाद में उसके अगले सिरे से एक तिहाई भाग भीतर की ओर पेशीय भाग पर स्थित होते हैं। इनमें से प्रत्येक गुच्छक अपनी तरफ के प्रमस्तिष्क पार्वीय गुच्छक से प्रमस्तिष्क पादिक संयोजनी द्वारा जुड़ा रहता है। इन गुच्छकों से तंत्रिकाएँ निकल कर पाद, इसकी पेशियों तथा स्टेटोसिस्ट को जाती है।

(c) आन्तरांग गुच्छक (Visceral ganglia)

ये भी दो गुच्छक होते हैं जो परस्पर संगलित होकर ‘X’ के आकार की संरचना का निर्माण करते हैं। यह संगलित गुच्छक पश्च अभिवर्तनी पेशी की अधर सतह पर पाया जाता है। इस गुच्छक से पाँच जोड़ी मुख्य तंत्रिकाएँ निकलती हैं

  • पृष्ठ प्रावार तंत्रिका (dorsal pallial nerve)-यह प्रावार के पृष्ठ भाग को जाती है।
  • पश्च प्रावार तंत्रिक (posterior pallial nerve)-यह प्रावार के पश्च भाग को जाती है।

 

(iii) पश्च वृक्क तंत्रिका (posterior renal nerve)-यह वृक्कों (iv) क्लोम तंत्रिका (brandial nerve)-यह गिल को जाती है।

  • पश्च अभिवर्तनी तंत्रिका (posterior adductor nerve)-यह पश्च अभिवर्तनी पेशी , जाती है।

संवेदांग (Sense orgnas)

यूनियो एक बहुत सुस्त प्रकृति का प्राणी होता है, अत: इसमें संवेदी अंग बहुत कम विकसित होते हैं। इसमें नेत्रों व स्पर्शकों का अभाव होता है। यूनियों में निम्न संवेदी अंग पाये जाते है

  1. सन्तुलन पुटिका (Statocyst)
  2. जलेक्षिका (Osphradium)
  3. संवेदी कोशिकायें (Sensory Cells)
  4. सन्तुलन पुटिका या स्टेटोसिस्ट (Statocyst)

यूनियो में एक जोड़ी सन्तुलन पुटिकाएँ पायी जाती हैं। ये पुटिकाएँ पाद में पादिक गुच्छक के दोनों तरफ एक खोखले आशय (vesicle) में स्थित होती हैं।

प्रत्येक सन्तुलन पुटिका एक खोखली गेंद जैसी संरचना होती है। ये बाहर से संयोजी ऊतक के खोल से ढकी रहती है। पुटिका भीतर से संवेदी कोशिकाओं द्वारा आस्तरित रहती है। प्रत्येक संवेदी कोशिका के स्वतंत्र सिरे पर संवेदी रोम पाया जाता है। ये रोम तंत्रिका से जुड़े रहते हैं। प्रत्येक सन्तुलन पुटिका से एक तंत्रिका निकलकर प्रमस्तिष्क पादिक संयोजनी तंत्रिका से मिल जाती है जो अन्त में प्रमस्तिष्क गुच्छक से जुड़ी रहती है। यूनियो में प्रमस्तिष्क गुच्छक ही मस्तिष्क का निर्माण करते हैं। पुटिका में संवेदी कोशिकाओं के भीतर के तरफ चूने का एक पुंज पाया जाता है जिसे संतुलनाश्म या स्टोटोलिथ (statolith) कहते हैं। यह संतुलनाश्म या स्टेटोलिथ सामान्यतया पुटिका के मध्य में रहता है परन्तु जन्तु का संतुलन बिगड़ने पर यह एक तरफ की संवेदी कोशिकाओं से टकरा कर उन्हें उत्तेजित कर देता है उतत कर देता है तथा यह उत्तेजना तरंग संवेदी तंत्रिका आवेग द्वारा प्रमस्तिष्क गुच्छक तक . पहुंचायी जाती है। इस तरह से पुटिकाएँ  प्राणि का संतुलन बनाये रखने में सहायक होती है।

  1. जलेक्षिका (Osphradium)

लेमिलिडेन्स जलीय प्राणि होते हैं तथा जलीय श्वसन (aquatic respiration) द्वारा श्वसन करत हैं। इस क्रिया में जल अन्तर्वाही साइफन (incurrent siphon) द्वारा अधो:क्लोम प्रकोष्ठ (infia branchial chamber) में होकर गिलों (gills) में जाता है। अत: यह आवश्यक है कि जो जल शरार में प्रवेश करता है उसका रासायनिक परीक्षण किया जाये। इसके लिए यूनियो में विशेष संवेदी संरचना पायी जाती है जिसे जलेक्षिका (osphradium) कहते हैं।

यूनियो में पश्च अभिवर्तनी पेशी (posterior adductor muscles) की अधर सतह पर, गिलों के आधार पर पीले रंग की कोशिकाओं का समूह पाया जाता है जो प्रत्येक आन्तरांग गुच्छक (visceral ganglion) के समीप स्थित होता है। यह संवेदी कोशिकाओं का समूह जलेक्षिका (osphradium) का निर्माण करता है। जलेक्षिका (osphradium) की कोशिकाएँ रसायन ग्राही (chemo receptor) होती है तथा अन्तर्वाही साइफन में प्रवेश करने वाली जल धारा की जाँच करती

  1. संवेदी कोशिकाएँ (Sensory cells) : यूनियो में प्रावार पालियों के किनारों पर विशेष प्रकार की संवेदी कोशिकाएँ पायी जाती है जो सम्भवतः स्पर्शग्राही एवं प्रकाशग्राही संवेदी संरचनाओं की तरह कार्य करती हैं। ये कोशिकाएँ अन्तर्वाही साइफन पर अधिक संख्या में उपस्थित होती है।
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