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लेबियेटी , लेमियेसी – कुल क्या है ? (labiatae , lamiaceae – family in hindi) लेबिएटी लक्षण गुण नाम

(labiatae , lamiaceae – family in hindi) लेबियेटी , लेमियेसी – कुल क्या है ? लेबिएटी लक्षण गुण नाम फैमिली के पौधे का नाम पौधों के नाम की लिस्ट और विशेषता बताइए ?

लेबियेटी , लेमियेसी – कुल (labiatae , lamiaceae – family) :

(तुलसी कुल , मिन्ट कुल , ग्रीक – लेबियम = ओष्ठ सन्दर्भ दल पुंज की आकृति)
वर्गीकृत स्थिति : बेंथम एवं हुकर के अनुसार –
प्रभाग – एन्जियोस्पर्मी
उप प्रभाग – डाइकोटीलिडनी
वर्ग – गेमोपेटेली
श्रृंखला – बाइकार्पेलिटी
गुण – लेमियेल्स
कुल – लेबियेटी , लेमियेसी

कुल लेबियेटी के विशिष्ट लक्षण (salient features of labiatae family)

  1. अधिकांश सदस्य शाकीय और क्षुप , वृक्ष विरल।
  2. विशिष्ट चतुष्कोणीय।
  3. विशिष्ट वाष्पशील तेलों की उपस्थिति के कारण सम्पूर्ण पौधे से विशेष सुगंध आती है।
  4. पर्ण सम्मुख और क्रासित , विरलता से चक्रीय।
  5. पुष्प क्रम विशेष प्रकार का कूटचक्रक।
  6. पुष्प सहपत्री , सहपत्रिकी , लगभग अवृंत , द्विलिंगी , एकव्यास सममित।
  7. बाह्यदल पुंज द्विओष्ठी , कोरछादी।
  8. दल पुंज द्विओष्ठी , कोरछादी।
  9. पुंकेसर 4 द्विदीर्घी अथवा केवल दो , दललग्न , परागकोष मुक्त दोली।
  10. जायांग द्विअंडपी , युक्तांडपी , अंडाशय उच्चवर्ती , वर्तिका जायांगनाभिक बीजांडन्यास स्तम्भीय।
  11. फल एकिन अथवा शाइजोकार्पिक पुंज।

प्राप्तिस्थान और वितरण (occurrence and distribution)

इस महत्वपूर्ण कुल में लगभग 180 वंश और 3500 प्रजातियाँ सम्मिलित है जो विश्व में प्राय: सभी स्थानों पर पायी जाती है लेकिन भूमध्यसागरीय क्षेत्रों में बहुतायत से मिलती है। भारत में इस कुल के लगभग 44 वंश और 380 प्रजातियों के पौधे पाए जाते है। इस कुल के 6 पादप वंश ऑस्ट्रेलिया और तस्मानिया में विशेष क्षेत्रीय वितरण प्रदर्शित करते है।

कायिक लक्षणों का विस्तार (range of vegetative characters)

प्रकृति और आवास : इस कुल के अधिकांश सदस्य एकवर्षीय अथवा बहुवर्षीय शाक है जैसे ओसीमम बेसीलिकम और सेल्विया प्लेबिया। कुछ सदस्य क्षुप है जैसे एनाइसोमेलिस और लेवेन्डूला जबकि ल्यूकोसेप्ट्रम और हिप्टिस की कुछ प्रजातियाँ छोटे वृक्ष के रूप में पाई जाती है। मेंथा और लाइकोपस जैसे पादप दलदली स्थानों में पाए जाते है जबकि रोजामेरिनस एक मरुदभिद पादप है।
जड़ : शाखित मूसला जड़।
स्तम्भ : शाकीय , उधर्व , शाखित , चतुष्कोणीय और रोमिल। पोदीना अथवा मेंथा में स्तम्भ अर्धवायवीय अंत: भूस्तारी होता है।
पर्ण : अननुपर्णी , सरल , प्राय: सम्मुख और क्रासित (लेकिन डाइसोफिला में चक्रीय) , रोमिल और सुगन्धित वाष्पशील पदार्थो का स्त्राव करने वाली ग्रंथियों से युक्त होती है। पत्तियों की सतह बाह्यत्वचीय ग्रन्थियों से ढकी होती है। इनके स्त्राव के कारण ही इस कुल के पौधों में एक एरोमैटिक गंध होती है। पर्ण अच्छिन्न कोर अथवा दांतेदार अथवा पालियुक्त या अत्यधिक विभाजित होती है। (जैसे लेवेन्डुला में)

पुष्पीय लक्षणों का विस्तार (range of floral characteristics)

पुष्पक्रम : इस कुल में विशेष प्रकार का लाक्षणिक पुष्पक्रम पाया जाता है जिसे कूटचक्रक कहते है। इस पुष्पक्रम में पुष्पावलिवृंत पर्व और पर्वसंधियों में विभेदित होता है। पुष्पों के अनेक चक्र पर्व संधियों पर विकसित होते है। पुष्पक्रम की अक्ष में लगभग अवृंत पुष्पों के समूह एक दूसरे के सम्मुख सहपत्रों के अक्ष में व्यवस्थित रहते है। इस प्रकार प्रत्येक सहपत्र के अक्ष में तीन पुष्पों वाला सघन द्विशाखी ससीमाक्ष पाया जाता है। ससीमाक्ष के पाशर्वीय पुष्प आगे भी एकल शाखित ससीमाक्ष के रूप में शाखित होते रहते है लेकिन ओसीमम और सेल्विया में तीन पुष्प वाले कक्षस्थ ससीमाक्ष के आगे शाखन नहीं होता। हिप्टिस की कुछ प्रजातियों में कूटचक्रक पत्तियों के अक्ष में सवृंत मुंडकों में संघनित हो जाते है। कभी कभी पुष्प एकल कक्षस्थ और पत्तियों अथवा सहपत्रों के अक्ष में पाए जाते है जैसे – स्कूटेलैरिया में।
पुष्प : सवृंत जैसे नेपेटा में अथवा सवृंत जैसे ल्यूकास में , सहपत्री और सहपत्रकी (लेकिन प्रूनेला में सहपत्र रहित) , पूर्ण , एक व्यास सममित लेकिन मेंथा में त्रिज्या सममित , उभयलिंगी , पंचतयी और अधोजायांगी। प्रूनेला और थाइमस आदि उदाहरणों में दो प्रकार के पौधे पाए जाते है। एक प्रकार के पौधे पर उभयलिंगी और दूसरे पौधे पर केवल मादा पुष्प ही विकसित होते है , इस अवस्था को भिन्नस्थोभयस्त्रीलिंगता (gynodioecism) कहते है।
बाह्यदलपुंज : बाह्यदल-5 , चिरलग्न संयुक्त और कोरस्पर्शी अथवा कभी कभी कोरछादी होते है। ओसीमम और सेल्विया आदि में बाह्यदलपुंज द्विओष्ठी होता है। यह सामान्यतया शुष्क और उत्तरवर्ती होता है।
दलपुंज : दलपत्र-5 , संयुक्त , सामान्यत: द्विओष्ठी लेमियम और सेल्विया में दो पश्च दल ऊपर का ओष्ठ बनाते है जबकि शेष तीन दल निचे का ओष्ठ बनाते है (अर्थात 2/3) लेकिन ओसीमम में ऊपरी ओष्ठ में चार और निचले ओष्ठ में केवल एक दल (अर्थात 4/1)
ट्यूक्रियम में पाँचो दल मिलकर एकओष्ठीय दल फलक बनाते है। दलपुंजविन्यास कोरछादी अथवा व्यावर्तित।
पुमंग : पुंकेसर सामान्यत: 4 और द्विदीर्घी , दललग्न और दलपुंज नलिका में धँसे हुए , सेल्विया और लाइकोपस आदि कुछ वंशों में केवल दो अग्र पुंकेसर जनन क्षम और शेष दो पुंकेसर बंध्य होते है , पुंतंतु सामान्यतया स्वतंत्र लेकिन कोलियस में जुड़ें हुए और एकसंघी अवस्था प्रदर्शित करते है। परागकोष द्विकोष्ठीय , अंतर्मुखी और मुक्तदोली होते है। सेल्विया में दोनों परागकोष योजी की वृद्धि होने के कारण एक दूसरे से अलग हो जाते है , इनमें पश्च परागकोष ही जननक्षम होता है और अग्रस्थ आधा भाग एक बंध्य घुंडी बनाता है।
जायांग : द्विअंडपी युक्तांडपी , अंडाशय उच्चवर्ती द्विकोष्ठीय लेकिन आभासी पट बनने के कारण चतुकोष्ठीय हो जाता है। बीजांडविन्यास स्तम्भीय। वर्तिका जायांग नाभिक होती है , अर्थात यह पुष्पासन से अंडाशय की चार पालियों के बीच से निकलती दिखाई देती है। वर्तिकाग्र द्विपालित।
फल और बीज : फल सामान्यतया एकीन या चार दृढ़ अथवा मजबूत फलिकाओं का एक समूह होता है , चारों एकीन समान रूप से विकसित और बीज युक्त होते है। बीजों में भ्रूणपोष अनुपस्थित होते है।
परागण और प्रकीर्णन : यहाँ सामान्यत: कीट परागण पाया जाता है। कीट पुष्पों की तरफ आकर्षक रंगों और मकरंद के कारण अकार्षित होते है। जैसे ही कीट पुष्प के अन्दर मकरंद चूसने के लिए प्रविष्ट होता है तो उसके शरीर पर असंख्य परागकण चिपक जाते है। जब यह कीट मकरंद के लिए अन्य पुष्पों पर पहुँचता है तो उसके शरीर पर लगे परागकण दूसरे पुष्प के वर्तिकाग्र पर चिपक जाते है। इस प्रकार कीटों द्वारा परागण होता है।
सेल्विया में पुंकेसर का संयोजी सुदीर्घित होता है , जिससे ऊपर वाला जनन क्षम परागकोष , नीचे वाले बन्ध्य परागकोष से काफी दूर हो जाता है। पुंतंतु , संयोजी से इस प्रकार जुड़ा रहता है कि एक विशेष उत्तोलक प्रक्रिया बन जाती है तथा संयोजी पुंतन्तु के चारों तरफ आसानी से झूल सकता है। जब कीट दलपुंज नलिका में घुसता है तो उसका सिर नीचे के बंध्य परागकोष से टकराता है। इसके परिणामस्वरूप ऊपर का जनन क्षम परागकोष कीट की पीठ से टकरा कर वहां अपने परागकण बिखेर देता है। ये पुष्प पुंपूर्वी होते है तथा परिपक्व होने से इनका वर्तिकाग्र नीचे मुड़ जाता है। अत: एक पुष्प से कीट जब दुसरे पुष्प पर पहुँचता है तो इसके घुसते ही , इसकी पीठ पर उपस्थित परागकण मुड़ी हुई परिपक्व वर्तिकाग्र पर चिपके जाते है।
पुष्प सूत्र :
ओसीमम :
सेल्विया :
बंधुता और जातिवृतीय सम्बन्ध :
बैंथम और हुकर , हचिन्सन , क्रानक्विस्ट और तख्तजन के अनुसार कुल लैमियेसी को गण लेमियेल्स में रखा गया है। एंगलर और प्रेंटल की वर्गीकरण पद्धति में इसे ट्यूबीफ्लोरी में रखा गया है। हचिन्सन के अनुसार यह कुल शाकीय द्विबीजपत्री पौधों या हर्बेसी में सर्वाधिक विकसित अथवा प्रगत कुल माना गया है। यह कुल वर्बिनेसी कुल के निकट है। लेमियेसी कुल की एकेन्थेसी से समानता है लेकिन अपने वर्टिसिलास्टर अथवा कूटचक्रक पुष्पक्रम और जायांग नाभिक वर्तिका के कारण इसे आसानी से पहचाना जा सकता है। जायांगनाभिक वर्तिका की उपस्थिति के कारण लेमियेसी और बोरेजिनेसी कुलों में भी समानता परिलक्षित होती है।

आर्थिक महत्व (economic importance)

कुल लेमियेसी के सदस्य सुगन्धित वाष्पशील तेलों का प्रमुख स्रोत है। ये भोजन को स्वादिष्ट बनाने , औषधियों और इत्र के रूप में प्रयुक्त किये जाते है। इसके अतिरिक्त अनेक पौधे सुन्दरता के लिए उद्यानों में उगाये जाते है।
I. औषधिक पादप :
  1. ओसिमम केनम – राम तुलसी – उदर रोगों में।
  2. ओसिमम बेसिलिकम – श्याम तुलसी अथवा मरवा और ओसिमम सेन्क्टम – तुलसी को खाँसी , जुकाम और ब्रांकाइटिस के उपचार हेतु प्रयुक्त किये जाते है।
  3. मेंथा पीपरेटा – विलायती पुदीना से पीपरमेंट प्राप्त होता है जो उल्टी रोकने , जी घबराने की दवा के रूप में काम आता है। प्रमुख आयुर्वेदिक औषधि अमृतधारा का यह प्रमुख घटक है।
  4. मेंथा स्पाइकेटा – पोदीना , तापाघात के उपचार और ठण्डल पहुँचाने वाली औषधि के रूप में काम आता है। इसका उपयोग भोजन और खाद्य पदार्थो को स्वादिष्ट बनाने में भी होता है।
  5. थाइमस वल्गेरिस – कृमिनाशक औषधि थाइमोल इस पौधे से प्राप्त होती है।
  6. ओसिमम क्लिमंडशैरिकम – कपूर का प्रमुख स्रोत है।
II. खाद्य पदार्थ :
  1. स्टेकिस सिरीसिया – कंद खाए जाते है।
  2. कोलियस पार्विफ्लोरस – कंद सब्जी हेतु प्रयुक्त होते है।
  3. सेटुरेजा होर्टेन्सिस – सुगन्धित तना और पत्तियों का उपयोग भोजन में स्वाद और सुगन्धि के लिए होता है।
  4. थाइमस सरपाइलम – पत्तियाँ खाई जाती है।
III. शोभाकारी पौधे :
  1. सेल्विया स्पलेंडेंस।
  2. कोलियस वल्गेरिस।
  3. लेवेन्डूला ओफिसिनेलिस
  4. ओसिमम बेसिलिकम – मरुआ अथवा श्याम तुलसी।
  5. थाइमस वल्गेरिस।

कुल लेमियेसी के प्रारूपिक पादप का वानस्पतिक वर्णन (botanical description of typical plant from lamiaceae)

ओसिमम बेसीलिकम लिन. (ocimum basilicum linn.) :
स्थानीय नाम – श्याम तुलसी अथवा मरवा।
प्रकृति और आवास – बहुवर्षीय , सुगन्धित , अतिशाखित शाक।
मूल – शाखित मूसला जड़।
स्तम्भ – उधर्व शाखित , चतुष्कोणीय , काष्ठीय , ठोस , शाखाएँ रोमिल और कभी कभी बैंगनी।
पर्ण – सरल , सवृंत , अननुपर्णी , सम्मुख और क्रासित , अंडाकार , दांतेदार , निशिताग्र , ग्रंथिल , शिराविन्यास एकशिरीय जालिकावत।
पुष्पक्रम – कूटचक्रक जिसमें प्रत्येक चक्र में 6-10 पुष्प होते है , सुगन्धित।
पुष्प – सवृंत , सहपत्री , सहपत्र छोटे , पूर्ण , उभयलिंगी , एकव्यास सममित , अधोजायांगी , हल्के बैंगनी रंग के।
बाह्यदलपुंज – बाह्यदल-5 , संयुक्त , द्विओष्ठी , दलाभ , पश्च ओष्ठ चौड़ा और नावाकार अग्र ओष्ठ (1/4) छोटी पालियों युक्त विन्यास कोरछादी।
दलपुंज – दल-5 , संयुक्त , द्विओष्ठी , अग्रओष्ठ 4 पालियों युक्त (4/1) , कोरछादी।
पुमंग – पुंकेसर-4 पृथक पुंकेसरी , द्विदीर्घी , दललग्न , परागकोष द्विकोष्ठी , अंतर्मुखी , पृष्ठलग्न।
जायांग – द्विअंडपी , युक्तांडपी , अंडाशय शुरू में द्विकोष्ठीय लेकिन बाद में आभासी पट बन जाने के कारण चतुष्कोष्ठीय , उच्चवर्ती , बीजांडविन्यास स्तम्भीय , वर्तिका जायांगनाभिक अर्थात अंडाशय के आधारीय भाग से विकसित , वर्तिकाग्र द्विशाखित।
फल – शाइजोकार्पिक , कार्पेरुलस , 4 नटलेट्स।
पुष्प सूत्र :

प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1 : लेबियेटी कुल में दलपुंज होता है –
(अ) द्विओष्ठी
(ब) जीव्हीकाकार
(स) कीपाकार
(द) दीवटाकार
उत्तर : (अ) द्विओष्ठी
प्रश्न 2 : लेबियेटी कुल का औषधीय पादप है –
(अ) सेल्विया
(ब) ओसीमम
(स) लेवेन्डूला
(द) आर्थोसाइफोन
उत्तर : (ब) ओसीमम
प्रश्न 3 : लेबियेटी कुल के शोभाकारी पादप का उदाहरण है –
(अ) मेन्था
(ब) ओसीमम
(स) सेल्विया
(द) थाइमस
उत्तर : (स) सेल्विया
प्रश्न 4 : पीपरमिंट बनता है –
(अ) सेल्विया से
(ब) ओसीमम से
(स) लेवेन्डुला से
(द) मेन्था पाइपरेटा से
उत्तर : (द) मेन्था पाइपरेटा से
प्रश्न 5 : जायांग नाभिक वर्तिका पाई जाती है –
(अ) लेबियेटी में
(ब) ऐकेन्थेसी
(स) एपोसाइनेसी
(द) रूटेसी में
उत्तर : (अ) लेबियेटी में
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