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लेबिओ रोहिता अथवा रोहू : एक अस्थिल मछली (Labeo rohita or rohu : A bony fish in hindi)

(Labeo rohita or rohu : A bony fish in hindi) लेबिओ रोहिता अथवा रोहू : एक अस्थिल मछली : वर्ग ऑस्टिक्थीज (osteon = bone अस्थि + ichthyes = fish मछली) के अंतर्गत स्वच्छ जल और समुद्री जल दोनों में पायी जाने वाली वास्तविक अस्थिल मछलियाँ आती है। यह जलीय कशेरुकियों का सुपरिचित और सर्वाधिक सफल समूह है। समस्त कशेरुकियों का आधा भाग अस्थिल मछलियों का है जिनकी 20,000 से भी अधिक जीवित जातियां है।

इनका वैज्ञानिक अध्ययन मत्स्य विज्ञान कहलाता है। आकार और अनुपात में अत्यंत विविधता होते हुए भी इनकी आधारभूत संरचना एक समान है। इनका शरीर तकुआकार , धारारेखित और चर्मीय शल्कों द्वारा आच्छादित होने के साथ साथ अस्थिल अंत:कंकाल , तैरने के लिए पंख और श्वसन के लिए क्लोम होते है। ऊपरी तौर से यह डॉगफिश शार्क जैसी होती है। भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों में अनेक प्रकार की अस्थिल मछलियाँ , जैसे लैटिस , म्यूजिल , लेबिओ आदि , अध्ययन के लिए निर्धारित की गयी है। निम्नलिखित विवरण मुख्यतः लेबिओ रोहिता से सम्बन्धित है। यह संभवत: स्वच्छ जलवासी भारतीय अस्थिल मछलियों में सर्वसामान्य है और सर्वाधिक चाव से खायी जाने वाली है। यह अस्थिल मछलियों का एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करती है।

वर्गीकरण (classification)

संघ – कॉर्डेटा
उपसंघ – वर्टिब्रेटा
विभाग – नैथोस्टोमैटा
अधिवर्ग – पिसीज
वर्ग – ऑस्टिक्थीज
उपवर्ग – ऐक्टिनॉप्टेरिजिआई
अधिगण – टीलियोस्टिआई
गण – साइप्रिनिफार्मीज
वंश – लेबिओ रोहिता
प्ररूप – रोहू

वितरण (distribution)

लेबिओ उष्णकटिबंधीय अफ्रीका और ईस्ट इंडीज में वितरण कार्पस का एक बड़ा और मूलतः उष्णकटिबंधीय वंश है। भारत में पायी जाने वाली लगभग दो दर्जन जातियों में से लेबिओ रोहिता अथवा राहू और लेबिओ कल्बासु अथवा काला बाँस सर्वसामान्य है। यह भारत , पाकिस्तान और बांगला देश में सर्वत्र पायी जाती है।

स्वभाव और आवास (habits and habitats)

रोहू सामान्यतया स्वच्छ जल के तालाबों , नदियों , झीलों और मुहानों में पायी जाती है। यह निर्मल जल पसंद करती है और क्लोमों द्वारा साँस लेती है। यह मुख्यतः शाकाहारी और अधस्तलभोजी है जो शैवाल और जलीय पौधे खाती है। लेकिन अपने वायु आशय में हवा भरने के लिए यह बार बार जल की सतह पर आती है। यह अंडजनक है और जुलाई एवं अगस्त में बहते जल में प्रजनन करती है। निषेचन बाहर जल में होता है।

बाह्य लक्षण (external features)

आकार , आमाप और रंग : इसका शरीर तकु आकार होता है। इसका रंग पीठ पर स्लेटी अथवा काला और दोनों पाशर्वों और पेट पर चाँदी के समान सफ़ेद अथवा पिलाभ होता है। पूर्ण वृद्धि प्राप्त मछली की लम्बाई 1 मीटर और भार 20 से 25 किलोग्राम होता है। शरीर सिर , धड और पूंछ में विभक्त होता है।
1. शीर्ष : शीर्ष अथवा सिर प्रोथ के अग्रछोर से प्रच्छद अथवा ओपरकुलम के पश्च किनारे तक फैला होता है। प्रोथ अवनमित , छोटा और कुंठित होता है। उपांतस्थ मुख मोटे और मांसल ओष्ठों द्वारा परिबंधित एक बड़ा अनुप्रस्थ द्वार है। सामान्यतया मुख के कोनो पर केवल दो छोटे , धागे सदृश , संवेदी , मैक्सिलरी स्पर्शवर्ध उपस्थित होते है। सामान्यतया रोस्ट्रल स्पर्शवर्ध अनुपस्थित होते है। जबड़ों पर दांतों का अभाव होता है। प्रोथ की पृष्ठ ओर एक जोड़ी छोटे नासाद्वार होते है। सिर पर स्थित पाशर्व नेत्र पलकविहीन होते है। नेत्रों के पीछे प्रत्येक पाशर्व में एक बड़ा गतिशील अस्थिल प्रच्छद अथवा ओपरकुलम होता है जिसके पश्च और अधर किनारे स्वतंत्र होते है। प्रत्येक प्रच्छद के नीचे स्थित क्लोम कक्ष में 4 कंघी समान गिल होते है।
2. धड़ : यह शरीर का मोटा मध्य भाग है। यह चौड़ाई की अपेक्षा अधिक ऊँचा और क्रॉस परिच्छेद में अंडाकार होता है। धड़ और पूंछ पर प्रत्येक पाशर्व में एक पाशर्व रेखा होती है। पंख सुविकसित और अस्थिल फिनरेज द्वारा अवलम्बित होते है। धड़ के मध्य में पीठ पर अकेला बड़ा लगभग समचतुर्भुजीय पृष्ठ पंख होता है।
ओपरकुलम के ठीक पीछे एक जोड़ी अपेक्षाकृत बड़े अधर पाशर्व अंस पंख होते है , और इनके पीछे एक जोड़ी , अपेक्षाकृत छोटे अधर श्रोणी पंख होते है। धड के पश्च सिरे पर मध्य अधर तल पर क्रमानुसार 3 छिद्र – अग्र गुदा , मध्य जननिक और पश्च मुत्रीय होते है।
3. पूँछ : पूंछ शरीर का एक तिहाई पश्च भाग बनाती है। यह पाशर्वों में संपीडित और पीछे की तरफ संकरी होती है। पूँछ के अंतिम सिरे पर माध्यिक समपालि पूछ पुख होता है जो गहरी खाँच द्वारा दो समान पालियों में बंटा होता है। पूँछ की अधर सतह पर मूत्रद्वार के ठीक पीछे एक माध्यिक गुदा पंख होता है।
पूँछ इसका मुख्य चलन अंग है।

देहभित्ति (bodywall)

धड़ और पूँछ पतले , गोलाकार , कोरछादी और चर्मीय साइक्लॉइड शल्कों द्वारा आच्छादित होते है। शल्कों पर पाए जाने वाले संकेंद्री अथवा अंगूठीनुमा निशानों को मछली की आयु की गणना के लिए प्रयोग किया जाता है। त्वचा में सामान्य दो भाग होते है :
बाह्य अधिचर्म अथवा एपिडर्मिस और आंतरिक चर्म अथवा डर्मिस। अधिचर्म श्लेष्मा ग्रंथियों द्वारा उत्पादित श्लेष्मा मछली को फिसलनदार बनाता है। धड़ और पूँछ की मुख्य पेशियाँ अन्य मछलियों और कशेरुकियों के समान ही टेढ़े मेढ़े मायोटॉमस में विन्यासित होती है। पेशियाँ अन्दर की तरफ से पर्युदर्या अथवा पेरिटोनियम द्वारा आस्तरित होती है जो देहगुहा अथवा प्रगुहा को भी आस्तरित करती है और अंतरंगों को आच्छादित करती है।

आर्थिक महत्व (economic importance)

लेबिओ एक बड़ा वंश है जिसमें अनेक अच्छी जातियाँ शामिल है। जो भोज्य पदार्थ के रूप में अत्यंत महत्वपूर्ण है। लेबिओ रोहिता अथवा रोहू शायद सर्वाधिक मिलने वाली भारतीय मछली है और खाने के उद्देश्य से भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है। खाने के लिए श्रेष्ठ होने के कारण ही यही सर्वाधिक पाली जाने वाली स्वच्छ जलवासी मीन है।
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