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kymograph in hindi used for , uses , कायमोग्राफ उपयोगी है क्या है उपयोग किसे कहते हैं परिभाषा
जानिये kymograph in hindi used for , uses , कायमोग्राफ उपयोगी है क्या है उपयोग किसे कहते हैं परिभाषा ?
पेशी संकुचन के मापन के लिये जो यंत्र उपयोग में आता है उसे काइमोग्राफ (kymograph)
कहते हैं। इसमें एक ड्रम होता है जिसे विद्युत मोटर या किसी दूसरे यांत्रिक ढंग से घुमाया जाता है तथा इसकी गति नियंत्रित की जाती है। पेशी के संकुचन की क्रिया को ड्रम पर कालिख लग पेपर (smoked paper) पर रिकार्ड किया जाता है। यह पेपर ड्रम के चारों ओर लिपटा रहता है। सम्पूर्ण काइमोग्राफ यंत्र को चित्र 7.19 में दर्शाया गया है।
चित्र 7. 21 – काइमोग्राफ यंत्र
पेशियों में संकुचन की क्रिया को समझने हेतु प्रायोगिक तौर पर मेंढ़क की ग्रेस्ट्रोनेमियस (gastrocnemius) पेशी उपयोग में लाई जाती है। इस पेशी में नितम्ब तंत्रिका अर्थात् शिएटिक (sciatic) तंत्रिका एवं फीमर (femur) अस्थि के भाग के साथ शरीर से बाहर निकाला जाता है। इस सम्पूर्ण समुच्चय को माइमोग्राफ यंत्र पर लगातार तंत्रिका को उद्दीपन दिया जाता है तथा इस उद्दीपन को ड्रम पर लगे पेपर पर पेशीय क्रिया के रूप में निरूपित किया जाता है। सामान्यतया पेशीयों द्वारा निम्न गुण प्रदर्शित किये जाते हैं।
(i) एकल पेशीय स्फुरण या झटका (Single muscle twitch)
पेशी में संलग्न तंत्रिका को एक उद्दीपन दिये जाने पर पेशी द्वारा दर्शाये जाने वाली अनुक्रिया का एकल पेशीय स्फुरण या झटका कहा जाता है। इस प्रकार की क्रिया काइमोग्राफ के ड्रम पर प्राप्त वक्र में तीन अवस्थाएँ देखी जाती है। ये अवस्थाएँ अव्यक्त काल (latent period), संकुचन उद्दीपन देने के पश्चात् पेशी द्वारा वास्तविक संकुचन दर्शाने की क्रिया के समय अन्तर को अव्यक्त प्रावस्था (contraction phase) तथा अनुशिथिलन प्रावस्था (relaation pahse) कहलाती है। काल कहा जाता है जो लगभग 0.01 सैकण्ड होता है। संकुचन प्रावस्था में पेशी अपना अधिकतम संकुचन दर्शाती है जो लगभग 0.04 सैकण्ड तक देखी जाती है। इसके पश्चात् पेशी अपनी प्रारम्भिक अवस्था में लौट आती है। इस प्रावस्था का समय लगभग 0.1 सैकण्ड का लगता है। इसे चित्र 7.20 द्वारा दर्शाया जा सकता है।
(ii) संकलन (Summation)
चित्र 7.22- एकल पेशीय स्फुरण
यदि पेशी के अनुशिथिलन प्रावस्था में प्रवेश करने से पूर्व ही पुनः उद्दीपन दिया जाये तो यह तुरन्त ही दुबारा संकुचन की क्रिया दर्शाती है। पेशी की यह क्रिया संकलन कहलाती है।
इस प्रकार द्वितीय संकुचन प्रथम संकुचन में जुड़ जाता है। इस प्रकार दो लगातार उद्दीपनों से पेशी ओर अधिक छोटी हो जाती है। संकलन की सम्पूर्ण क्रिया को चित्र 7.20 द्वारा दर्शाया गया है।
चित्र 7.23- संकलन
(ii) ट्रेपे या सोपान घटना (Trepper or staircase phenomenon)
यदि पेशी को लगातार एक के दाब एक उद्दीपन (1 उद्दीपन / सै. की दर से) दिया जाये तो इसमें संकुचनों की एक श्रृंखला प्राप्त होती है। इस संकुचनों के बाद वाला संकुचन परिमाण से अपने से पूर्व संकुचन से थोड़ा बड़ा होता है। इस प्रकार की क्रिया एक सोपान घटना अर्थात् स्टेरकेस के रूप में देखी जा सकती है। इस घटना के समय कुछ उद्दीपनों के पश्चात् पेशी में सर्वाधिक संकुचन देखा जा सकता है। ट्रेपे नामक घटना पेशी में उत्तेजन हेतु अनुकूल परिस्थितियों उत्पन्न होने के कारण होती है। इसे चित्र 7.22 द्वारा दर्शाया गया है।
(iv) टिटेनस (Tetanus)
चित्र 7.24 ट्रेपे या सोपान घटना
यदि पेशी तंतु को अनुशिथिलत अवस्था में आने से पूर्व ही दूबारा उद्दीपन दिया जाये तो यह पुन: संकुचन की क्रिया दर्शाती है। इस प्रकार यदि पेशी को लगातार उद्दीपन भेजे जायें तो यह प्रतिपादित (sustained) संकुचन को दर्शाती है। इसे टिटेनस कहा जाता है।
यदि मेढ़क की पेशी को 20 से 30 उद्दीपन प्रति सैकण्ड की दर से उद्दीपन किया जाये तो यह उद्दीपनों के मध्य आशिक शिथिलन की क्रिया दर्शाती है। इनके फलस्वरूप पेशी में एक प्रतितालित संकुचन देखा जाता है जो अपूर्ण धनुस्तम्भ या टिटेनस (in-complete tetanus) कहलाता है। इसे चित्र 7.22 द्वारा पेशीय अभिलक्षण में दिशाया गया है। इसी प्रकार यदि पेशी का दी जाने वाले उद्दीपनों की दर के बढ़कार 35 से 50 सैकण्ड कर दिया जाये तो पेशी प्रतिपादित संकुचन की क्रिया की दर्शाती जिसमें आंशिक शिथिलन भी नहीं पाया जाता है। इसे सम्पूर्ण टिटेनस (complete tetanus) कहते हैं। इसमें एक पठारीय (plateau) चक्र प्राप्त होता है। जिसे चित्र 7.23 B में दिखाया गया है।
चित्र 7.25 – (A) सम्पूर्ण टिटेनस एवं (B) अपूर्ण
(v) पेशीय श्रांति (Mucsle fatigue)
यदि एक ही पेशी को लम्बे समय तक लगातार उद्दीपन प्रेषित किये जाये तो इसका संकुचन बल (contraction force) धीरे-धीरे कम होने लगता है तथा अन्त में यह ऐसी स्थिति में पहुँच जाती है जहाँ पर संकुचन नहीं होता है। इस स्थिति को जिसमें पेशी में संकुचन होने की क्रिया बन्द हो जाती है, पेशीय-श्रांति कहा जाता है। पेशीय श्रांति के समय संकुचन तथा अनुशिथिलन की क्रियाऐं क्रमिक रूप से धीमे होने लगती है। पेशीय श्रांति निम्न कारण है-
चित्र 7.26- पेशीय श्रांति
(i) पेशी में ऊर्जा के स्त्रोत का समाप्त होना,
(ii) पेशी में रासायनिक क्रियाओं के अन्तिम उत्पाद जैसे लैक्टिक अम्ल, कार्बन डाई ऑक्साइड एवं कीटोन कार्यों का संग्रह होना, एवं
(iii) लगातार पेशी के काम में आने आने से एसिटाइलेकोलीन जैसे पदार्थ का संश्लेषण कम होना
(vi) ‘आल या नन’ नियम (All-ro-none law)
पेशीय तंतु की अनुक्रिया उद्दीपन के प्रकार या तीव्रता से पूरी तरह स्वतंत्र होती है। इसका अभिप्राय यह है कि एक पेशी तंतु में संकुचन की क्रिया अपनी पूर्ण क्षमता वे साथ होती है परन्तु इसके लिए स्थितियाँ समान बनी रहनी चाहिए। इस प्रकार पेशी तंतु का संकुचन उद्दीपन की तीव्रता पर निर्भर करता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि एक पेशी तंतु या तो अपनी पूर्ण क्षमता अर्थात् अधिकतम संकुचन प्रदर्शित करता है या फिर संकुचित ही नहीं होता है। जब सभी तंतु अनुक्रिया करते हैं तो उद्दीपन की शक्ति को बढ़ाने में अनुक्रियां के परिमाण में कोई वृद्धि नहीं होती है। इसी प्रकार अगर एक पेश को दुबारा उद्दीपित किया जाए तथा दूसरा उद्दीपन पहले वाले के शीघ्र बाद में दिया जाये तो अतिरिक्त प्रक्रिया नहीं होगी। इस समयान्ताल को अनुत्तेजन अवधि (refractor period) कहते हैं। यह काल कंकाल पेशी में मात्र 0.002 से 0.005 सैकण्ड का होता है।
पेशियों का वर्गीकरण (Classification of muscles)
- कार्यों के आधार पर (On the basis of function)
- फ्लेक्सर पेशी (Flexor muscle )
- इनके संकुचन से अस्थियाँ अन्दर या पीछे की ओर खिसकती हैं जिसे दोनों अस्थितियाँ
पास आती है।
- उदा. बाइसेप्स (Biceps )
- एक्स्टेन्सर पेशी (Extensor muscle )
- इनके संकुचन से अस्थि या सम्बन्धित रचना आगे या बाहर की ओर धकेलती है, इससे
यह पूर्व स्थिति में आ जाती है।
- उदा. ट्राइसेप्स (Triceps )
- एब्डक्टर पेशी (Abductor muscle)
- ये पेशियाँ अंगों को शरीर के अक्ष से दूर ले जाती है।
उदा. डेल्डाइस (Deltois) पेशियाँ
- एडक्टर पेशी (Adductor muscle)
- ये पेशियाँ अस्थि को शरीर के अक्ष की ओर लाती है।
- उदा. लेटिसिमस डोर्सी (Laticimus dorsi)
- प्रोनेटर (Pronator)
- ये पेशियाँ हथेली (plam) को नीचे की ओर पलटने का कार्य करती है।
- सुपिनेटर (Supinator)
- ये पेशियाँ उल्टे हुए भाग को पुनः अपनी स्थिति में लेकर आती है। 7. स्फिक्टिर (Sphinctor) –
- ये पेशियाँ किसी छिद्र को संकरा करने का कार्य करती है।
- डाइलेटर (Dilator)
- ये पेशियाँ किसी छिद्र को चौड़ा करने का कार्य करती है।
- लीवेटर पेशियाँ (Levator muscles)
- ये पेशियाँ किसी भाग को ऊपर की ओर उठाती है। • उदा. मेसेटर (Masseter)
- डिप्रेसर पेशियाँ (Depressor muscles)
- ये पेशियाँ किसी अंग को नीचे की ओर लाती है।
- उदा. डिप्रेशर मेन्डिबुली (Depressor mandibulae)
- रोटेटर पेशियाँ (Rotator muscles)
- ये पेशियाँ अंगों (organs) को अपनी अक्ष पर घुमाने का कार्य करती है।
- उदा. पाइरीफॉर्मिस (Pyriformis)
प्रश्न
प्र. 1. (Questions)
निम्नलिखित प्रश्नों के लघु उत्तर दीजिए।
(i) (Write short answer of the following questions) कशेरुकियों में उपस्थित पेशियों के प्रकार बताइये।
(i) अरेखित पेशियाँ शरीर के कौनसे अंगों में उपस्थित होती है।
(iii) रेखित पेशी की संरचना बताइये ।
(iv) हृदय पेशियों के प्रमुख लक्षण कौन से हैं?
(v) सार्कोमीयर किसे कहते हैं?
(vi) रेखित पेशी तंतु कौनसी पट्टियाँ (bands) पायी जाती है ?
(vii) रेखित पेशी में प्राथमिक एवं द्वितीयक सूत्र कौनसी प्रोटीन के बने होते हैं?
(vii) कंकाल पेशी का रासायनिक संगठन बताइये।
(ix) पेशियों में उपस्थित विभिन्न प्रोटीन्स कौनसी है ?
(x) पेशियों में कौनसे फॉस्फोजन्स उपस्थित रहते हैं?
(xi) पेशियों में लैक्टिक अम्ल का निर्माण कैसे होता है?
(xii) पेशियों में मायोकाइनेज की क्या क्रिया होती है?
(xiii) पेशियों में मायोकाइनेज की क्या क्रिया होती है?
(xiv) रेखित पेशी का नामांकित चित्र बताइये ।
(xv) पेशी क्रियाविधि के समय ऐक्टिनोमाइसिन का निर्माण कैसे होता है?
(xvi) अरेखित ऐव रेखित पेशियों में दो में दो प्रमुख अन्तर और इनकी स्थिति बताइये।
(xvii) यदि रेखित पेशी का ग्लूकोज समाप्त हो जाये तो क्या होगा ?
(xviii) पेशीय संकुचन में कैल्शियम आयनों की भूमिका बताइये ।
(xix) पेशियों में एक्टिन एवं मायोसिन की कार्य-विधि समझाइये |
(xx ) मायोसिन एवं एक्टिन सूत्रों की सूक्ष्म रचना बताइये ।
प्र. 2. निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिये। (Write short Motes on the following)
(i) सार्कोमीयर
(ii) H क्षेत्र
(ii) पेशीय तंतुक
(iv) पेशीचय प्रोटीन्स
(v) पेशीय थकावट
(vi) अगघत या लकवा
(vii) A एवं I पट्टियाँ
(xi) कैल्शियम-निष्कासन सिद्धान्त
(xii) कोरी चक्र
(xiii) लैक्टिक अम्ल का निर्माण
(xiv) एकल पेशीय स्फुरण
(xv) काइमोग्राफ
(xvi) पेशीय श्रांति
(xvii) पेशीय संकुलन
(vii) पेशियों में वृद्धि एवं क्षय
(xviii) डेवीस सिद्धान्त
(ix) पेशी का उत्तेजन
(xix) आल या नन नियम
(x) उत्तेजन-संकुचन युग्मन
(xx) अनुत्तेजन अवधिा
- 3. निम्नलिखित प्रश्नों के विस्तृत उत्तर दीजिये।
(Give detail answers of the following questions).
(i) रेखित, अरेखित एवं हृदय पेशियों का तुलनात्मक अध्ययन कीजिये।
(ii) पेशियों संकुचन की कार्यिकी विस्तार से बताइये।
(iii) पेशी संकुचन के समय होने वाले रासायनिक परिवर्तनों का उल्लेख कीजिये।
(iv) पेशियों के विभिन्न अभिलक्षण बताइये ।
(v) रेखित कंकाल पेशी की संरचना बताइये।
(vi) पेशी संकुचन मे अपसर्पी सूत्र सिद्धान्त (sliding filament theory) का सचित्र वर्णन कीजिये।
(vii) पेशीय ऊतक कितने प्रकार के होते हैं? रेखित या अरेखित पेशी की सचित्र संरचना तथा कार्य विधि का वर्णन कीजिये ।
(viii) साकॉमीयर क्या है?
पेशी संकुचन की क्रिया विधि का विस्तार से वर्णन कीजिए।
(ix) पेशीय संकुचन में कैल्शियम आयनों के कार्य को समझाइये।
(x) पेशी ऊतक में तंत्रिका संभरण कैसे होता है तथा तंत्रिका से पेशीय उत्तेजन किस प्रकार होता है ?
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