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Kreb’s cycle in hindi or Citric acid cycle or Tricarboxylic acid cycle in hindi क्रेब्स चक्र या सिट्रिक अम्ल चक्र या ट्राइकार्बोक्सिलिक अम्ल चक्र

क्रेब्स चक्र या सिट्रिक अम्ल चक्र या ट्राइकार्बोक्सिलिक अम्ल चक्र किसे कहते हैं परिभाषा Kreb’s cycle in hindi or Citric acid cycle or Tricarboxylic acid cycle in hindi ?

क्रेब्स चक्र या सिट्रिक अम्ल चक्र या ट्राइकार्बोक्सिलिक अम्ल चक्र

(Kreb’s cycle or Citric acid cycle or Tricarboxylic acid cycle) :

क्रेब्स चक्र का आविष्कार जैवरसायनिक विज्ञान में एक महत्वपूर्ण घटना है। इस चक्र का वर्णन जीवरसायन वैज्ञानिक एच. ए. क्रेन्स (H.A. Kreb) ने किया था। अतः इस चक्र को क्रैब्स चक्र कहते हैं। क्रैब्स को इस कार्य के लिये, नोबल पुरस्कार भी मिला। इस चक्र में सिट्रिक अम्ल का एक मुख्य मध्यवर्ती पदार्थ होता है अतः इस चक्र को सिट्रिक अम्ल चक्र भी कहते हैं। क्रेब्स चक्र एन्जाइम युक्त क्रियाओं की चक्रीय श्रृंखला है। इसमें एसीटाइलकोएंजाइम A प्रवेश करता है। एवं CO, वे H,O बनाता है व ऊर्जा मुक्त होती है। क्रैब्स चक्र कोशिका में माइट्रोकॉण्डिया में होता । इस चक्र में क्रियायें निम्नलिखित प्रकार होती है-

  1. सिट्रिक अम्ल का निर्माण (Formation of Citric Acid) – पाइरुविक अम्ल के ऑक्सीकारी विकार्बोक्सीकरण से बना ऐसिटाइल को – एन्जाइम – A क्रैब्स चक्र में प्रवेश कर चार कार्बन परमाणु वाले ऑक्जेलोएसिटिक अम्ल (oxaloacetic acid) के साथ संयोग कर सिट्रिक अम्ल, बनाता है तथा एन्जाइम – A मुक्त होता है। यह क्रिया संघनन एंजाइम (condensing enzyme) सिट्रेट सिन्थटेज की उपस्थिति में होती है ।
  2. निर्जलीकरण (Dehydration) – एकोनिटेज एन्जाइम की उपस्थिति में साइट्रिक अम्ल से ‘पानी का एक अणु पृथक हो जाता है तथा सिसएकोनिटिक अम्ल बनता है।
  3. जलयोजन (Hydration)—सिस एकोनिटेस एन्जाइम की उपस्थिति में पानी का एक अणु सिस एकोनिटिक अम्ल के अणु से पुनः संयोग कर आइसोसिट्रिक अम्ल बनाता है।
  4. विहाइड्रोजनीकरण (Dehydrogenation ) – अब आइसोसिट्रिक अम्ल आइसोसिट्रेट डिहाइट्रोजिनेम एंजाइम की उपस्थिति में विहाइड्रोजनीकरण में जाता है तथा ऑक्जेलोसक्सीनिक अम्ल बनता है। इस क्रिया में मुक्त हुये हाइड्रोजन अणु NAD+ द्वारा ग्रहण कर लिये जाते हैं ओर
  5. विकार्बोक्सीकरण (Decarboxylation) – ऑक्जेलोसक्सीनिक अम्ल का फिर विकार्बोक्सीकरण होता है तथा a- कीटोग्लूटेरिक अम्ल बनता है और इससे एक CO2 का अणु मुक्त होता है। यह प्रक्रिया भी आइसोसिट्रिट डिहाइड्रोजिनेज की उपस्थिति होती है।
  6. विहाइड्रोजनीकरण तथा विकार्बोक्सिकरण अथवा ऑक्सीकारी विकार्बोक्सीकरण (Dehydrogenation and Decarboxylation or Oxidative Decarboxylation ) – a- कीटोग्लूटेरिक अम्ल के विहाइड्रोजनीकरण व विकार्बोक्सिकरण के फलस्वरूप ऑक्सीकारी विकार्बोक्सिकरण होता है। यह प्रक्रिया a- कीटग्लूटारेट डीहाइड्रोनिजेज काम्पलेक्स द्वारा उत्प्रेरित होती है। एवं इसमें थाइमीन पायरों फॉस्फेट, लिपाईक अम्ल, FAD, NAD + तथा कोएंजाइम A (CoA) भाग लेते हैं। यह प्रक्रिया पाइरुविक अम्ल के ऑक्सीकारी विकार्बोक्सीकरण प्रक्रिया के समान ही होती है। Q-कीटोग्लूटेरिक अम्ल कोएन्जाइम A से क्रिया कर सक्सीनाइल CoA में परिवर्तित होता है तथा एक CO2 मुक्त होता है। इस प्रक्रिया में 2H परमाणु मुक्त होते हैं जो NAD+ द्वारा ग्रहण कर लिए जाते हैं व NADH+H* – बनता है।
  7. ADP का फॉक्फोरिलीकरण (Phosphorylation of ADP) – सक्सीनिक थायोकाइनेज एन्जाइम की उपस्थिति में ऑक्सीनाइल कोएन्जाइम – A सक्सीनिक अम्ल व कोएन्जाइम-A में परिवर्तित हो जाता है। इस क्रिया में GDP का फॉस्फोरिलीकरण होता है व GTP बनता है। GTP अपनी • ऊर्जायुक्त – P को ADP पर स्थानान्तरित कर देता है व ATP बनता है। यह प्रक्रिया फॉस्फोकाइनेज द्वारा उत्प्रेरित होती है I
  8. विहाइड्रोजनीकरण (Dehydrogenation)- अब सक्सीनिक अम्ल सक्सीनिक डिहाइड्रोजेनेक की उपस्थिति में विहाइड्रोजनीकरण में जाता है तथा फ्यूमेरिक अम्ल बनता है। इस क्रिया में 2H परमाणु मुक्त होते हैं जिन्हें FAD (Flavonin Adinesin Diuncleotide ) ग्रहण करता है व FADH बनता है।
  9. हाइड्रोजनीकरण (Hydration) – फ्यूमैरेज एन्जाइम की उपस्थिति में पानी का एक अणु फ्यूमेरिक अम्ल से जुड़ता है तथा मौलिक अम्ल बनता है।
  10. डिहाइड्रोजनीकरण (Dehydrogenation) – क्रेब्स चक्र के अन्त में मैलिक अम्ल मैलिक डिहाइड्रोजेनेस एन्जाइम की उपस्थिति में ऑक्सेलोएसीटिक अम्ल बनता है तथा इस क्रिया में दो हाइड्रोजन परमाणु मुक्त होते हैं वह NAD द्वार ग्रहण कर लिये जाते हैं एवं NADH + H + बनता है।

ऑक्सेलोएसीटिक अम्ल पुनः एसीटाइल कोएन्जाइम – A से क्रिया कर क्रैब्स चक्र में प्रवेश करता है तथा चक्र को दोहराता है।

क्रेन्स चक्र की रससमीकरणमिति (Stoichiometry of Kreb Cycle) :

एक क्रेब्स चक्र के अन्तिम उत्पाद इस प्रकार है-

  1. एक ATP का अणु सीधे सब्सट्रेट स्तर पर प्राप्त होता है । GTP के रूप में प्राप्त एक उच्च ऊर्जा फॉस्फेट बन्ध ADP को स्थानान्तरित कर दिया गया है।

CTP + ADP → ATP + GDP

  1. एक चक्र में 3 NADH के अणु प्राप्त होते हैं। प्रत्येक NADH अणु इलेक्ट्रॉन परिवहन 3 ATP अणु देता है।
  2. एक चक्र द्वारा एक FADH2 अणु प्राप्त होता है। एक FADH2 इलेक्ट्रॉन परिवहन तन्त्र में प्रवेश कर 2ATP अणु देता है ।
  3. एक चक्र में 2 CO2 अणु निर्मुक्त होते हैं।
  4. 2 H2O के अणुओं का उपयोग होता है।

इलेक्ट्रान परिवहन तंत्र या श्वसन शृंखला या आक्सीकारी फोस्फोरिलीकरण (Electron transport system or Respiratory chain or Oxidative Phosphorylation)

इलेक्ट्रॉन परिवहन तन्त्र अपचय प्रक्रिया (Catabolic Process) का अन्तिम पद है, तथा एक ऐसा बिन्दु है जहां अधिकांश उपापचयी ऊर्जा निर्मुक्त होती है। इस प्रक्रिया में NADH तथा FADH, अणुओं के इलेक्ट्रॉन जो इन अणुओं ने खाद्य अणुओं के आक्सीकरण से प्राप्त किये है, आण्विक आक्सीजन (O2) को स्थानान्तरित कर दिये जाते हैं। इलेक्ट्रान स्थानान्तरण के फलस्वरूप उत्पन्न ऊर्जा का अधिकांश भाग ATP निर्माण (ADP के ATP में फोस्फोरिलीकरण द्वारा) के काम आता है शेष ऊष्मा के रूप में निष्कासित हो जाता है। इलेक्ट्रॉन के NADH व FADH, से O, तक इलेक्ट्रॉन वाहकों द्वारा स्थानान्तरण के दौरान ATP निर्माण का प्रक्रम ही ऑक्सीकारी फोस्फोरिलीकरण कहलाता है।

यद्यपि NADH व FADH2 के ऑक्सीकरण की सम्पूर्ण रासायनिकी में हाइड्रोजन का O, को स्थानान्तरण होता है, परन्तु यह स्थानान्तरण एकदम सीधे O2 को नहीं होता है। हाइड्रोजन के प्रोटीन (H’)व इलेक्ट्रॉन (e) में नियोजन के पश्चात् इलेक्ट्रॉन का स्थानान्तरण एक के बाद एक इलेक्ट्रॉनग्राही या वाहक से दूसरे पर होता है। प्रोटोन जलीय माध्यम में पड़े रहते हैं। इन व Ht का अन्तिम ग्राही 03 होती है। एक ग्राही से दूसरे ग्राही पर इलेक्ट्रॉन्स से स्थानान्तरण की श्रृंखला ही इलेक्ट्रॉन परिवहन श्रृंखला या तंत्र कहलाती है ।

इलेक्ट्रॉन परिवहन श्रृंखला (Electron transfer chain)-इलेक्ट्रॉन परिवहन श्रृंखला से पाँच प्रकार के पदार्थ सम्बद्ध होते हैं-.

(I) पाइरीडिन सम्बद्ध डीहाइड्रोजिनेज (Pyridine linked dehydrogenase)-यह ऐसे एन्जाइम

है जिसमें NAD+ कोएन्जाइम के रूप में प्रयुक्त होते हैं । इनकी उपस्थिति में साइटोसोल व

माइटोकोन्ड्रिया में विहाइड्रोजिनीकरण क्रियाओं के फलस्वरूप उत्पन्न 2H को NAD’ ग्रहण करते हैं।

NAD+ पर एक धन आवेश पहले से होता है इसलिए यह एक प्रोटोन व दो इलेक्ट्रॉन ग्रहण करता है। (2) फ्लेवीन सम्बद्ध डीहाइड्रोजिनेज (Flavin linked dehydrogenase)- इस एन्जाइम के साथ FMN (फ्लेवीन मोनो न्यूक्लिओटाईड) अथवा FAD (फ्लेवीन एडिनीन डाइन्यूक्लिओटाइड) प्रोस्थेटिक समूह होते हैं। NADH डीहाइड्रोजिनेज का प्रोस्थेटिक समूह FMN होता है जो NADH से 2H ग्रहण करता है।

सक्सिनेट डीहाइड्रोजिनेज का प्रोस्थेटिक समूह FAD होता है जो सक्सिनिक अम्ल से निर्मुक्त 2H को ग्रहण करता है ।

(3) कोएन्जाइम Q या यूबिक्यूनोन (Coenzyme Q or vbilquinone ) – यह लिपिड विलेय कोएन्जाइम होता है जो दो प्रोटोन व दो इलेक्ट्रॉन को ग्रहण करता है ।

(4) साइटोक्रोमस (Cytochromes ) – साइटोक्रोम हीम युक्त प्रोटीन होते हैं। इनकी खोज सर्वप्रथम केलीन (Keilia) ने 1925 में की थी। साइटोक्रोम में प्रोस्थेटिक समूह आयरन युक्त पोरफाइरिन होता है। साइटोक्रोम इलेक्ट्रान वाहक होते हैं जिसमें इलेक्ट्रॉन स्थानान्तरण के समय आयरन – Fett (अपचयित) व Fe++ (आक्सीकृत) अवस्था में परिवर्तित रहता है ।

माइटोकोन्ड्रिया की अन्तःकला पर इलेक्ट्रान परिवहन हेतु पांच प्रकार के साइटोक्रोम पाये जाते हैं। (5) आयरन सल्फर प्रोटीन (Iron sulpher protein Fe–S)- यह हीम रहित प्रोटीन होते हैं जो इलेक्ट्रान परिवहन श्रृंखला से संबद्ध होते हैं। यह प्रोटीन NADH डीहाइड्रोजिनेज फ्लेवो प्रोटीन व साइटोक्रोम b के साथ सम्बद्ध होते हैं। Fe-S प्रोटीन या केन्द्र इलेक्ट्रान वाहक का कार्य करते रहते हैं। परन्तु श्वसन श्रृंखला में इनकी भूमिका की निश्चित जानकारी अभी ज्ञात नहीं है ।

इलेक्ट्रॉन परिवहन तन्त्र के उपरोक्त सभी अवयव माइटोकोन्ड्रिया की अन्तःकला पर स्थित होते.हैं। अन्तःकला में यह अवयव निम्नलिखित चार कॉम्पलेक्स के रूप में पाये जाते हैं। इन चार कॉम्पलेक्स के अतिरिक्त CoQ व साइटोक्रोम C गतिशील वाहक के रूप में कार्य करते हैं।

श्वसनी सन्तुलन चार्ट (Respiration balance chart)

हम देख चुके हैं कि पथ में प्रवेश करने से पूर्ण वसा अम्ल जब क्रियाधार के रूप में आते हैं तो श्वसनीय पथ में प्रवेश करने के पूर्ण एसीटाइल COA में विखण्डित होना पड़ता है। जब जीवधारी को वसा अम्ल का संश्लेष करना हो तो श्वसनी पथ एसीटाइल COA अलग हो जाता है। इसलिये वस अम्ल के संलेषण व विखण्डन के दौरान श्वसनीय पथ का उपयोग होता है। इसी प्रकार प्रोटीन के संश्लेषण एवं विखण्डन के दौरान भी होता है। इस प्रकार विघटन की क्रिया को कम करता है। शरीर में विघटन अपचय (Catabolism) एवं संश्लेषण उपचय (Anabolism) कहलाती है । श्वसनी पथ में अपचय एवं उपचय दोनों ही होते हैं । इसलिये श्वसनी पथ को एफिबोलीक पथ कहते हैं ।

चित्र 12.18 : वसा, कार्बोहाइड्रोट एवं प्रोटीन का अपचयन

श्वसनीय गुणांक (Respiration quotient)

हम जानते हैं कि ऑक्सी श्वसन के दौरान 0, को उपयोग लाया जाता है एवं CO, निकलती है। श्वसन के दौरान प्रयोग में ली गई O, और मुक्त CO, के मध्य अनुपात को श्वसनीय गुण (R.Q) या सॉस गुणांक कहते हैं।

श्वसनीय गुणांक = मुक्त हुई CO2 का आयतन/उपयोग में लाई O2 का आयतन

श्वसनीय गुणांक श्वसन के दौरान उपयोग में आने वाले श्वसनी क्रियाधार पर निर्भर करता है। जब कार्बोहाइड्रेट क्रियाधार के रूप में आकर पूर्ण ऑक्सीकृत हो जाते हैं तो श्वसनीय गुणांक । होगा क्योंकि समान मात्रा में CO2 व 02 क्रमशः मुक्त होती है एवं उपयोग में लाई जाती है जैसा कि समीकरण से स्पष्ट है-

C6H12O6 + CO2 → 6CO2 + 6H2O2 ऊर्जा

श्वसनीय गुणांक = 102CO2/145O2 =0.7

जब वसा श्वसन में प्रयुक्त होती है तो श्वसनीय गुणांक 1.00 से कम होता है। तब इसकी गणना निम्नलिखित होगी ।

जब प्रोटीन श्वसनीय क्रियाधार के रूप में काम आती है तब अनुपात 0.9 के लगभग होता है।