हिंदी माध्यम नोट्स
कांट का नीतिशास्त्रीय सिद्धान्त क्या है ? Kantian Ethical Theory in hindi कर्तव्य कर्तव्य का सिद्धांत
Kantian Ethical Theory in hindi कांट का नीतिशास्त्रीय सिद्धान्त क्या है ? कर्तव्य कर्तव्य का सिद्धांत
कांट का नीतिशास्त्रीय सिद्धान्त (Kantian Ethical Theory)
कांट के नीतिशास्त्रीय सिद्धान्त को कर्तव्य –कर्तव्य का सिद्धान्त (Deontological Theory) भी कहते हैं। इस सिद्धान्त का केन्द्र बिन्दु अनुभव, भावना या फिर कर्म का लक्ष्य नहीं बल्कि विशुद्ध कर्तव्य अर्थात् ‘कर्तव्य के लिए कर्तव्य ‘ है। कांट ‘कर्तव्य –कर्तव्य के लिए‘ का उपदेश देते हैं। हमें कोई कर्म इसलिए नहीं करना चाहिए कि उससे हमें सुख मिलता है बल्कि कर्म को कर्तव्य समझकर करना चाहिए। कांट के अनुसार, नैतिक नियम ‘निरपेक्ष आदेश‘ है। इन नियमों का पालन बिना किसी शर्त के होना चाहिए। कांट का मत है कि व्यावहारिक बुद्धि अथवा अंतःकरण पर अपने-आप लागू किए जाने वाले नैतिक नियम ही ‘निरपेक्ष आदेश‘ हैं। इन नियमों का पालन बिना किसी फल की आशा के करना चाहिए। ये नियम स्वयं साध्य हैं, न कि किसी अन्य लक्ष्य के साधन।
कांट के अनुसार, हमें नैतिक भावनाओं पर कभी नैतिकता को आधृत नहीं करना चाहिए। ये भावनाएं हमारे कर्मों में दोष ला देती हैं। इसलिए हमें सदैव इन भावनाओं पर नियंत्रण रखते हुए केवल बुद्धि के आदेश के अनुसार ही कर्म करना चाहिए। कांट के निरपेक्ष आदेश में भावना, इच्छा, लिप्सा, आकांक्षा, वासना आदि का कोई महत्व नहीं है। कांट सदैव इनके दमन का आदेश देते हैं।
‘कत्र्तव्य कत्र्तव्य, के लिए‘ जो कांट की प्रिय उक्ति है, का यह अर्थ यह है कि हमें कर्म केवल कत्र्तव्य-भावना से करना चाहिए। किसी फल की आशा रखकर किया गया कर्म नैतिक दृष्टिकोण से कभी नहीं माना जा सकता। कांट सुखवादियों के मत का घोर खंडन करते हैं कि सुख प्राप्ति और दुःख निवारण के लिए कर्म करना चाहिए। कांट के अनुसार कर्म करना हमारा धर्म है। निष्काम कर्म ही हमारा आदर्श है। कर्म को कर्तव्य के रूप में ही करना चाहिए, इसके परिणाम पर विचार नहीं करना चाहिए।
कांट ने तीन सूत्र दिए हैं। प्रथम, केवल उसी सिद्धांत के अनुसार काम करे, जिसकी इच्छा आप उसी समय सार्वभौम नियम बन जाने पर कर सकते हैं। द्वितीय, ऐसा कर्म करे कि मानवता चाहे आपके अंदर हो या दूसरे के अंदर, सदैव साध्य बनी रहे, साधन नहीं। तृतीय, प्रत्येक व्यक्ति एक साध्य है, किसी को भी साधन नहीं कहा जा सकता। विवेक सभी में समान रूप से निहित है. इसलिए सबका मूल्य बराबर है। इस साम्राज्य में न कोई राजा है न कोई प्रजा। अतः साध्यों के साम्राज्य के सदस्य के रूप में कार्य करें।
कांट के निरपेक्ष आदेश के आधार पर डब्ल्यू.डी. रॉय ने कुछ मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख किया है। रॉस के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को –
ऽ सत्य बोलना चाहिए।
ऽ किसी के साथ हुए अन्याय को समाप्त करने की कोशिश करनी चाहिए।
ऽ न्यायपूर्वक कार्य करना चाहिए।
ऽ दूसरों की मदद करनी चाहिए खासकर सद्गुण, बुद्धि तथा खुशी को ध्यान में रखते हुए।
ऽ स्वयं में सद्गुण तथा बुद्धि के लिहाज से सुधार करना चाहिए।
ऽ दूसरों को धन्यवाद देना चाहिए।
ऽ दूसरों को शारीरिक चोट नहीं पहुंचाना चाहिए।
भ्रष्टाचार और नीतिशास्त्रीय सिद्धान्त (Corruption and Ethical Theories)
सद्गुण के नैतिक शास्त्रीय सिद्धान्त के आधार पर भ्रष्टाचार का अर्थ है नैतिकता के निरपेक्ष आदेश का उल्लंघन जिसमें दूसरों को चोट पहुंचाना तथा न्यायपूर्वक कार्य करने जैसे कर्तव्यों का भी उल्लंघन शामिल है। यह इस बात से भी स्पष्ट होता है क्योंकि भ्रष्टाचार का अर्थ ही है कुछ लोगों को अवैध तथा अनैतिक रूप से लाभ दिलाना। इसी तरह कांट के नैतिकता सिद्धान्त के अनुसार किसी व्यक्ति की इन सिद्धान्तों के प्रति प्रतिबद्धता देखी जाएगी न कि उस व्यक्ति के कार्यों का परिणाम। इस आधार पर भ्रष्टाचार का अर्थ है धोखा जिसमें किसी व्यक्ति की बौद्धिक तथा नैतिक क्षमता की अनदेखी की जाती है। इसी आधार पर भ्रष्टाचार को अनैतिक माना जाएगा।
परन्तु प्रयोजनवादी अर्थात् उपयोगितावादी सिद्धान्त के अनुसार भ्रष्टाचार जैसे कृत्य को नैतिकता की कोटि में रखा जा सकता है। कुछ लोगों के अनुसार भ्रष्टाचार का अर्थ है कुछ ऐसा करना जिससे नौकरशाही या अपना काम करने के लिए बाध्य हो तथा उसकी क्षमता में भी वृद्धि हो जिससे ज्यादातर लोगों को लाभ मिलने की उम्मीद हो सकती है। हालांकि वर्तमान में इस तरह के तर्क दिए नहीं जाते क्योंकि थोड़े समय के लिए भले ही नौकरशाही या अपने सरकारी कर्मचारियों के कार्य में तेजी आ जाए परन्तु भ्रष्टाचार के कारण फैली ऐसी कार्य-संस्कृति का दूरगामी परिणाम बुरा होता है। परन्तु उपयोगितावाद के ‘अधिकतम लोगों के अधिकतम सुख‘ के सिद्धान्त को अगर वृहद परिप्रेक्ष्य में लागू किया जाए तो फिर भ्रष्टाचार को भी नैतिक ठहराया जा सकता है।
सद्गुण और उत्तम आचरण (Virtues and Good Conduct)
सद्गुण चरित्र के अच्छे शीलगुण होते हैं परन्तु बुरे कर्म अथवा पाप चरित्र के निकृष्ट शीलगुण माने जाते हैं। अतः व्यक्ति अपने चरित्र में इन सद्गुणों को विकसित करने का प्रयास कर सकता है। इससे व्यक्ति और समाज दोनों को ही लाभ मिलता है। उत्तम जीवन अर्थात् नैतिक जीवन का विकास व्यक्ति के निरन्तर प्रयास से संभव है। ये प्रयास अच्छे कर्मों के रूप में किए जाते हैं भले ही परिस्थितियां निरन्तर बदलती रहे।
किसी व्यक्ति के चरित्र तथा आचरण में गहन संबंध होता है। व्यक्ति के आचरण विभिन्न परिस्थितियों में उसकी चारित्रिक विशेषताओं द्वारा परिलक्षित होते हैं। दूसरी तरफ किसी व्यक्ति का चरित्र नैतिकतापूर्ण तभी होता है जब वह लगातार और सिर्फ अच्छे कर्मों में लगा रहता है। इसी प्रकार सद्गुण का विकसित किया जा सकता है और इसीलिए इसे चारित्रिक मूल्य कहा जाता है। चूंकि सद्गुणों को विकसित किया जा सकता है, इसलिए इन्हें अर्जित गुण भी कहा जा सकता है। इस तरह सद्गुण किसी व्यक्ति का चारित्रिक श्रेष्ठता का संकेत है वहीं पाप अथवा बुरे कर्म चरित्र के दुर्गुण के रूप में जाने जाते हैं। दूसरे शब्दों में, सद्गुणों को किसी व्यक्ति का आन्तरिक शीलगुण माना जाता है। इस प्रकार सद्गुण से ही व्यक्ति की नैतिकता का निर्माण होता है जबकि कत्र्तव्य तथा अच्छे कर्म किसी व्यक्ति के कर्म संबंधी नैतिकता को परिलक्षित करते हैं। किसी भी महान व्यक्ति का उपदेश यह होता है कि अच्छा बनो, अच्छे कर्म करो और अच्छा बनने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि लगातार अच्छे कर्म करते रहो।
कत्र्तव्य बाध्यकारी कर्म होते हैं। सद्गुण किसी व्यक्ति के नैतिक गुणों का परिचायक है। इसीलिए हम सब यह मानते हैं कि अमूक व्यक्ति सद्गुणी है क्योंकि उसके चरित्र में कई अच्छे शीलगुण दृष्टिगोचर होते हैं। ऐसा सद्गुणी व्यक्ति न सिर्फ अच्छा होता है बल्कि वह अच्छे कर्म भी करता है। वह किसी भी परिस्थिति में सद्गुणों को नहीं छोड़ता। कोई व्यक्ति सद्गुणी है या नहीं यह उसके प्रयासजन्य अच्छे आचरण से पता चलता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को सद्गुणी होना चाहिए तथा अच्छे मार्ग पर चलते हुए अच्छे कर्म करते रहना चाहिए। सद्गुण से व्यक्ति का जीवन आनंदमय होता है तथा इससे उसके समाज को भी लाभ मिलता है। परन्तु पाप अथवा बुरे कर्म व्यक्ति के सुख और विकास में बाधक होते हैं।
Recent Posts
सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है
सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…
मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the
marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…
राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi
sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…
गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi
gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…
Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन
वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…
polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten
get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…